RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
दूसरे दिन सुबह जब नींद टूटी तो मैं अपनी माँ के बारे में सोचने लगा। मेरी माँ यानी की मेरी प्यारी राधा रानी 46 साल की हैं, पर किसी भी हालत में 40 साल से ज्यादा की नहीं लगती। माँ भी हम दोनों भाइयों की तरह ही कद्दावर कद की और सुगठित शरीर की है। माँ का शरीर मांसल और भरा हुआ है पर किसी भी हालत में मोटी नहीं कही जा सकती। एक सुंदर औरत के शरीर में जहाँ भराव होने चाहिए वहीं पर भराव हैं। गोल चेहरा और उसपर फूले-फूले गाल की गालों को चूसते-चूसते जी नहीं भरे, सदा मुश्कुराते रसीले होंठ जिनका रसपान करने को कोई भी आतुर हो जाय, छाती पर दो कसे हुए बड़े-बड़े गोल स्तन की उनका मर्दन करने हथेली में खुजली चल पड़े, फिर कुछ पतली कमर और कमर खतम होते ही भारी उभरे हुए नितंब और विशाल फैली हुई जांघे की बस उनका तकिया बनाकर सोते रहें और सोते रहें।
खेली खाई, बड़ी उमर की, भरे बदन की सलीके से रहनेवाली औरतें सदा से ही मेरी कमजोरी रही हैं। फिर मेरी माँ तो साक्षात रति देवी की अवतार थी और हर दिन नये-नये रूप में नई सज-धज के साथ मेरी आँखों के आगे रहती थी, तो उसकी ओर मेरा आकर्षित होना स्वाभाविक था। जैसे मुझे अजय के रूप में अनायास ही एक पटा पटाया मस्त, चिकना लौंडा मिल गया और दो ही दिन में वो मेरा दीवाना हो गया, मेरे हर हुकुम का गुलाम हो गया। क्या वैसे ही मेरे सपनों की रानी राधा भी मुझे मिल जाएगी?
मैं माँ के मामले में कोई भी जल्दबाजी नहीं करना चाहता था, ऐसी कोई भी हरकत नहीं करना चाहता था की उसका दिल दुख जाय। मैं धीरे-धीरे माँ को अपनी बना लेना चाहता था की उसके साथ खुलकर मैं अपनी हवस मिटाऊँ, अपने जैसी बेबाक बेशर्म बनाकर खुलकर उसके साथ व्यभिचार करूँ, बिल्कुल खुली बातें करते हुए उसके शरीर के खजाने को भोगू। ऐसी माँ पाने के लिए मैं कितना ही इंतजार कर सकता था। माँ के साथ यह सब करने में अजय अब मेरे लिए बड़ा नहीं था बल्कि मेरा सहयोगी साबित होने वाला था। अजय जैसे शौकीन लौंडे के साथ माँ को भोगने में तो और मजा आएगा। अजय गान्डू तो है, पर पूरा मर्द भी है, एक बार उसे माँ की जवानी चखा दूंगा तो वो मेरा और पक्का चेला बन जाएगा।
सुबह 10:00 बजे स्टोर जाते समय माँ ने रोज की तरह नाश्ता कराया। हम दोनों भाई दिन का भोजन स्टोर के कैंटीन में ही करते थे।
नाश्ता करते समय मैंने माँ से कहा- “माँ अभी कुछ ही दिनों पहले चंडीगढ़ में एक बहुत आलीशान मल्टीप्लेक्स खुला है। उसमें बड़ी मस्त पिक्चर लगी है। उसमें शहर की सबसे अच्छी रेस्टोरेंट भी खुली है। मैंने भी उसे अभी तक नहीं देखा। बोलो, तुम्हारी इच्छा हो तो शाम को पिक्चर देखेंगे और वहीं खाना खाएंगे...”
राधा- “बेटा मैं तो आज से 10-12 साल पहले पास वाले शहर में गाँव की कुछ लोगों के साथ 'जै संतोषी माँ देखने गई थी। मुझे तो पिक्चर देखकर बहुत मजा आया था। उसके बाद तो मुझे वहाँ गाँव से शहर पिक्चर दिखाने कौन ले जाता?”
विजय- “अरे माँ, अब पुरानी बातों को भूल जाओ। अब मैं हूँ ना। तुम्हें खूब पिक्चर दिखाऊँगा। मैं 5:00 बजे घर
आ जाऊँगा और आज बाहर का ही मजा लेंगे...”
माँ ने खुश होकर हामी भर दी।
शाम को मेरे स्टोर में कुछ काम आ गया तो मैंने माँ को मोबाइल पर कह दिया की वो तैयार होकर 6:00 बजे तक स्टोर में ही आ जाये, वहीं से सीधे सिनेमा हाल में चले जाएंगे। मैंने अड्वान्स में दो टिकेट बुक करवा रखी थी और शो ठीक 6:30 पर शुरू होने वाला था। माँ सज-धज के 6:00 बजे स्टोर में आ गई। माँ ने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज़ पहन रखा था। हल्के मेकप में भी माँ का रूप निखरा हुआ था। हम फौरन । स्टोर से निकल गये और 15 मिनट में हम बाइक पर हाल में पहुँच गये। हाल बहुत ही शानदार बना था। हाल के इंटीरियर मन को मोहने वाले थे।
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