RE: Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई
रोज की तरह आज रात भी खाने खाने के बाद मैं, अजय और माँ तीनों टीवी के सामने आ बैठ गये।
विजय- "माँ, आज गाँव से चाचाजी का फोन आया था, कह रहे थे की हमारे खेत गाँव का सरपंच खरीदना चाह रहा है। 20 लाख में उससे बात हुई है। मैंने चाचाजी से कह दिया है की यहाँ से अजय सारे कागजात और पावर आफ अटार्नी लेकर गाँव आ जाएगा और रिजिस्ट्री का काम कर देगा। तो मुन्ना कल वकील से कागजात तैयार करा लेते हैं और कागज तैयार होते ही तुम गाँव के लिए निकल जाओ। कम से कम आधे पैसे तो खड़े करो।
क्यों माँ मुन्ना ही ठीक रहेगा ना?”
राधा- “हाँ, फिर वहाँ चाचाजी हैं, कोई फिकर की बात नहीं है। अजय कभी शहर में तो रहा नहीं है। यहाँ दो महीने हो गये उसे गाँव की याद आती होगी..."
विजय- “तभी तो मुन्ना को भेज रहा हूँ। वहाँ इसके खास दोस्त हैं। माँ यह वहाँ बहुत मस्ती करता था। यह अपने दो दोस्तों को तो बहुत ही खाश बता रहा था। कहता था की इसके दोनों दोस्त खेतों में पहले तो अच्छी तरह से सक्करकंदा सेंकते थे फिर इसे खिला-खिला के मजा देते थे। क्यों मुन्ना कभी माँ को भी सक्करकंदा खिलाते थे या सक्करकंदों का सारा मजा अकेले ही ले लेते थे। अब यहाँ शहर में तो इसे गाँव जैसे सक्करकंदा कहाँ मिलेंगे...”
अजय- “भैया नहीं जाना मुझे और ना ही सक्करकंदा खाने। मुझे तो यहाँ के बड़े-बड़े केले अच्छे लगते हैं। मैं तो यहीं स्टोर में रोज नये दोस्तों से केले लेकर खाया करूंगा। सक्करकंदे का इतना ही शौक है तो गाँव आप चले जाओ...” अजय ने मेरी ओर देखकर मुश्कुराते हुए कहा।
विजय- “भैया के रहते तुझे दोस्तों से केले लेकर खाने की क्या जरूरत है? भैया क्या तेरे लिए केलों की कभी भी
कमी रखेगा। तुझे दिन में और रात में जितने केले खाने हैं, मैं खिलाऊँगा। अभी तो तुम गाँव जाओ और वहाँ खेतों में मजा लो। तूने तो माँ को कभी सक्करकंदा खिलाए नहीं, पर मैं माँ के लिए केलों की कमी नहीं रबँगा...” हम इसी तरह काफी देर बातों का मजा लेते रहे। फिर माँ अपने कमरे में चली गई तो हम दोनों भाई अपने कमरे में आ गये। मैं अपने कमरे में आदमकद शीशा लगी ड्रेसिंग टेबल के सामने सिंगल सीटर सोफे पर बैठ गया।
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