RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उसी रात काम धंधा निपटा कर रंगीली शंकर के कमरे में पहुँची…, दिनभर का हारा थका शंकर जो कुच्छ घंटा पहले ही अपनी बेहन की मनोकामना भी पूरी करके आया था.., सोने की कोशिश कर रहा था….!
माँ के आने की आहट पाकर उसने अपनी आँखें खोल दी और कुहनी के बल अढ़लेटा सा होते हुए बोला – आ जा माँ.., मे तेरी ही बाट देख रहा था…!
रंगीली भी उसके बगल में बैठ कर अपने पैर लंबे करते हुए अपने बेटे के बालों में उंगलियाँ डालते हुए बोली – हो गयी सुलह बेहन भाई में…?
शंकर – हां माँ, हो गयी.., दरअसल वो उस वाकिये से डरी हुई थी.., और हम समझ रहे थे वो रूठ गयी है..,
रंगीली उसकी आँखों में देखते हुए अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए बोली – हुउऊंम्म….तो शाम को खेतों में सारे गीले शिकवे दूर कर लिए होंगे तुम दोनो ने…,
शंकर ने अपना सिर माँ की चुचियों पर रखते हुए उसके मांसल नंगे पेट को सहलाते हुए बोला – हां माँ.., बहुत उतावली हो रही थी मेरे लिए,
वहाँ बगीचे में उसने एक साँप देख लिया था…, उससे डरकर वो मेरे साथ चिपक गयी.., उसी का डर दूर करने के चक्कर में मुझे उसके साथ वो सब करना पड़ा…!
रंगीली ने उसके बालों को मुट्ठी में कसते हुए उसके सिर को अपने आँचल से उठाया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली – अरे तू तो ऐसे ऐसे सफाई दे रहा है जैसे मेने कभी कोई एतराज किया हो तुम दोनो के मिलने पर..,
फिर वो शंकर के लंड को उसके बरमूडा के उपर से दबाते हुए बोली - मुझे पता है अब उस’से ज़्यादा दिन तेरे इस नाग से दूर नही रहा
जाएगा.., और फिर मे होती कॉन हूँ तुम दोनो को रोकने वाली..,
जब मुझसे ही ज़्यादा दिन दूर नही रहा जाता तो वो तो बेचारी अभी नयी नयी जवान हुई है.., वैसे तेरा क्या रहा वहाँ शहर में…?
शंकर अपनी माँ से लिपटते हुए बोला – अड्मिशन तो हो गया है.., दो महीने बाद रिज़ल्ट आते ही मुझे शहर जाना पड़ेगा…, मे तुम लोगों से
दूर कैसे रह पाउन्गा माँ…?
रंगीली ने लाड से उसके बालों में अपनी उंगलियाँ घुमाते हुए कहा – बेटा हम लोग कहाँ भागे जा रहे हैं.., दो साल की ही तो बात है उसके
बाद तेरी जिंदगी तो संवर जाएगी…, और फिर शहर कॉन सा लंदन में है, हर महीने आ जाया करना…!
वैसे मेरी सुषमा बहू से बात हुई थी…, उसके मामा-मामी बहुत अच्छे इंशन हैं.., कह रही थी कि मामी तुझे अपने साथ ही रखने की ज़िद कर रही थी…!
मामी का जिकर आते ही शंकर के लंड में करेंट सा दौड़ गया.., एक पल में ही मामी के गोरे चिट्टे खरबूजे उसकी आँखों के सामने घूमने लगे…,
रंगीली की गहरी गुदाज नाभि में अपनी उंगली घूमाते हुए बोला – हां माँ बहुत अच्छे लोग हैं.., मामा जी ने सुनते ही कह दिया था कि मेरा अड्मिशन समझो हो गया.., कॉलेज जाकर खाना-पूर्ति ही की बस….!
रंगीली – मे मामी के बारे में बोल रही थी, जिनका नाम सुनते ही तेरा ये लॉडा हिलने लगा था…, कोई खास चीज़ है उनके पास…!
माआअ….कहकर शंकर शर्मीले बच्चे की तरह अपनी माँ की कमर से लिपट गया.., और उसके मुलायम गुदाज पेट से अपना गाल सटाते हुए
बोला - वैसे हैं तो बहुत सुन्दर, और पता है मामा जी से तो वो बहुत छोटी हैं वो….!
रंगीली – तब तो वो तुझे अपने पास ज़रूर रखेंगी कहकर रंगीली ने शंकर के लौडे को मसल दिया और बोली – लगता है उनकी नज़र तेरे
इस हलब्बी लंड पर ज़रूर पड़ गयी होगी…अब वो इससे ज़्यादा दूर नही रह पाएँगी.
चल कोई ना…, तुझे तो चूत से मतलब.., लेकिन बेटा ये दो महीने अपनी माँ की चूत की आग ठंडी करते रहना.., फिर दो साल तो ये कम ही मिलेगा.., ये कहकर उसने शंकर को अपनी टाँगों के बीच जाने का इशारा कर दिया…!
शंकर अपनी माँ के लहँगे को कमर तक चढ़कर उसकी पाव रोटी जैसी फूली हुई चूत को अपने हाथ से मसलने लगा…!
रंगीली अपने होठ का कोना अपने दाँतों में दबाते हुए आहें भरने लगी, उसने अपनी चोली के सारे बटन खोल डाले, उसकी मस्त मांसल
खरबूजे जैसी चुचियाँ उछल्कर हवा में लहरा उठी…,
अपने निप्प्लो को अपने अनुगूठे में दबाते हुए बोली- आअहह…अपनी जीभ से चाट मोरे राजा बेटा…, आआययईीीई…हुउम्म्मन्णन…निगोडे…जीभ अंदर डाल ना….!
शंकर ने उसकी चूत के मोटे से दाने को अपनी उंगलियों के बीच में दबा लिया और उसकी गुलाबी चूत के छेद में अंदर तक जीभ घुसाकर
जीभ से ही अपनी मस्त मलन्द माँ की चूत को चोदने लगा…!
रंगीली की मज़े की अधिकता में साँसें उखड़ने लगी.., वो अपनी गान्ड को हवा में लहराकार शंकर की जीभ को और ज़्यादा अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…
लेकिन हर चीज़ की अपनी एक सीमा होती है.., अब उसकी चूत को जीभ से भी बड़ी और कड़क चीज़ की ज़रूरत महसूस हो रही थी.., सो उसने बड़ी बेदर्दी से शंकर के बालों को अपनी मुट्ठी में भरकर उसे अपने उपर खींच लिया….!
शंकर उसके उपर आकर दोनो हाथों से उसकी मस्त गुदाज चुचियों को बेदर्दी से दबाते हुए उसके रसीले होठों का रस्पान करने लगा…,
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