RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
आख़िर में शंकर को उसके पलंग पर उसके बाजू में बैठना पड़ा, लेकिन थोड़ी दूरी बनाकर.., सुषमा उसके हाथ को पकड़े सहलाते हुए उससे उसकी पढ़ाई के बारे में पूच्छने लगी…
कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद वो बोली – तुम्हें ताश (प्लेयिंग कार्ड) खेलना आता है…?
शंकर – बहुत ज़्यादा तो नही, बस कुछ-कुछ गेम आते हैं…
सुषमा – चलो वही खेलते हैं थोड़ी देर, मज़ा आएगा…, ये कहकर वो कार्ड लेने उठ खड़ी हुई…
शंकर बोला – सलौनी और गौरी को भी बुला लेते हैं, वो भी साथ में खेल लेंगी…
सुषमा – अरे नही, उन दोनो को वहीं बाहर ही खेलने दो, बेकार में गौरी यहाँ धमाल करेगी, हमें भी खेलने नही देगी, हो सकता है कार्ड ही फाड़ दे…!
सुषमा कार्ड के साथ-साथ एक प्लेट में नमकीन काजू, पिस्ता बगैरह भी ले आई और आकर पलंग पर सिरहाने की तरफ बैठ गयी, शंकर को भी उसने अपने सामने पलंग पर चढ़कर बैठने को कहा…
अब वो दोनो आमने सामने बैठ गये, एक साइड में उन्होने मेवा की प्लेट रख दी, और दोनो के बीच में कार्ड रखकर खेलने लगे…!
ये कोई सीक्वेन्स बनाने वाला गेम था, कुछ कार्ड बराबर नंबर्स में एक दूसरे ने ले लिए, वाकी की गॅडी बीच में रख ली, जिसमें से एक-एक करके कार्ड लेना था,
ज़रूरत का कार्ड अपने पास रख के, बिना ज़रूरत का नीचे डाल देना था, पहले का फेंका हुआ कार्ड अगर दूसरे के काम का होगा तो वो उसे गॅडी की बजाय उसे ले सकता था…
शंकर के सामने सुषमा अपनी तागे फैलाकर बैठी थी, जिससे उसकी साड़ी पीड़लियों के उपर तक चढ़ि हुई थी,
गोरी-गोरी एकदम गोलाई लिए संगेमरमर जैसी सुडौल पिंडलिया देख कर शंकर की निगाह उनपर जमी रह गयी, तिर्छि नज़र से सुषमा उसकी हरेक गतिविधि पर नज़र बनाए हुए थी…
कार्ड खेलते खेलते कभी-कभी वो अपनी टाँगें खुजाने के बहाने अपनी साड़ी को उपर करती जा रही थी, जो अब उसके एक टाँग के घुटने तक जा पहुँची…
शंकर का ध्यान जब भी कार्ड की तरफ होता, वो किसी ना किसी बहाने से उसे अपनी तरफ आकर्षित कर लेती…
इसी शृंखला में उसने अपना आँचल ढलका दिया, और कार्डों में मशगूल होने का नाटक करने लगी..,
जैसे ही शंकर की नज़र उसके खुले गले से लगभग आधे गोरे-गोरे सुडौल दूधिया मम्मों पर पड़ी, उसकी साँसें थम गयी…,
सुषमा के इतने सुंदर दूधों को देखकर उसका लॉडा पाजामे में सिर उठाने लगा.., उसकी नज़र ताड़ते हुए सुषमा मंद-मंद मुस्कराने लगी…
अपने हुष्ण का जादू उसने शंकर के मन-मस्तिष्क पर चला दिया था, यही नही वो नीचे गिरे कार्ड को उठाने के बहाने अपने आपको और आगे को झुका देती, जिससे उसकी चुचियों की मादक घाटी काफ़ी अंदर तक दिखाई देने लगती…
शंकर कार्ड खेलना भूलकर उसकी घाटी में खो गया…, उसकी कार्ड चलने की बारी थी, लेकिन बहुत देर तक भी उसने कार्ड नही चला, सुषमा उसकी हालत का मज़ा लेते हुए बोली –
कार्ड फेंको शंकर भैया, कहाँ खो गये…?
उसकी आवाज़ सुनकर शंकर पहले हड़बड़ा गया, फिर अपने खुश्क हो चुके होंठों को जीभ से तर करते हुए अपना ध्यान कार्ड्स पर लगाया और बिना काम का एक कार्ड फेंक दिया…
सुषमा ने शंकर के उपर से अपना ध्यान हटा लिया, जिससे वो अच्छे से उसके रूप का रस्पान कर सके, और अपना एक हाथ जाँघ पर ले जाकर उसे खुजाने लगी…!
शंकर फिर से उसके रूप लावण्य में खो गया…, मौका ताडकर सुषमा ने अपनी टाँगों का ऐसा पोज़ बनाया जिससे उसकी साड़ी का नीचे का पल्ला और ज़्यादा नीचे हो गया, और उपर का भाग तंबू की तरह दोनो घुटनों पर तन गया…
उसकी दोनो गोरी-गोरी, केले जैसी मोटी-मोटी, चिकनी सुडौल जांघे अंदर तक नुमाया हो गयी…,
शंकर की चंचल नज़रें अंदर तक का एक्सरे करती चली गयी, और अंत में जाकर उसकी गुलाबी रंग की पैंटी पर टिक गयी…,
पैंटी में कसी हुई उसकी मोटी-मोटी जांघों के बीच दबी उसकी चूत के मोटे-मोटे होंठ जो जांघों के दबाब के कारण पैंटी के अंदर और ज़्यादा उभरे हुए से लग रहे थे,
उनपर नज़र पड़ते ही शंकर का घोड़ा अपने अस्तबल में हिन-हिनाने लगा..,
उसने अंडरवेर और पाजामे के बबजूद भी उसके आगे बड़ा सा तंबू बना दिया…, जिसपर नज़र पड़ते ही सुषमा की साँसें तेज होने लगी…
उसकी मुनिया में सुरसूराहट बढ़ गयी, और उसके होंठ गीले होने लगे..,
उसने शंकर के लंड को यहीं चैन से खड़े नही होने दिया, अपने घुटनो को एकदुसरे के करीब लाई जिससे उसकी सुरंग का रास्ता और चौड़ा और साफ, किसी एक्सप्रेसवे की तरह हो गया…,
और फिर आगे झुक कर गॅडी से कार्ड लेने के बहाने अपने उपर की स्क्रीन एकदम शंकर की आँखों के आगे कर दी…..
उठाऊ या गॅडी से खींचू ऐसा बड़बड़ाते हुए झुकी हुई सुषमा ये जताने का प्रयास कर रही थी कि वो ये तय नही कर पा रही है, कि कार्ड गॅडी से ले या शंकर का फेंका हुआ ले…
शंकर की आँखों के सामने दोनो ही स्क्रीन एकदम खुली पड़ी थी…, वो ये फ़ैसला नही कर पा रहा था कि कॉन सी स्क्रीन पर सीन अच्छा चल रहा है, जबकि वो किसी एक से भी नज़रें हटाने की हिम्मत नही कर पा रहा था…
उत्तेजना के मारे उसके कान तक गरम होकर लाल हो गये, लौडे की हालत का तो कहना ही क्या…, वो तो इतने बंदोबस्त के बाद भी ठुमके लगाने लगा, जिसका भरपूर मज़ा कार्ड उठाने के बहाने सुषमा खूब अच्छे से लूट रही थी…
उसकी मुनिया तो खुशी से लार टपकाने लगी…,
फिर दोनो ने अपने आप पर थोड़ा सा काबू किया और गेम को आगे बढ़ाते हुए सुषमा ने अपने हाथ से एक कार्ड सामने फेंका जो शंकर के मतलब का था…
सो उसने झट से उठा लिया, तभी सुषमा बोली – सॉरी शंकर, वो कार्ड मेने ग़लती से फेंक दिया, वो मुझे वापस दे दो, मे दूसरा कार्ड फेकुंगी…,
शंकर – नही अब नही भाभी, ये आपको पहले देखना चाहिए था, एक बार फेंक दिया तो फिर वापस नही ले सकती…
सुषमा – अरे तुम समझा करो, वो कार्ड मेरे काम का है, प्लीज़ वापस दे दो, ये कहकर उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया…
शंकर ने वो कार्ड वाला हाथ पीछे खींचा, जिसे सुषमा छीनने के लिए झपटी….
तभी शंकर ने वो हाथ अपनी पीठ के पीछे कर लिया, वो उसे हर हालत में पाने की गरज से उसपर झपट पड़ी, इसी चक्कर में वो शंकर के उपर जा गिरी…
शंकर अपनी जगह पर पीछे को लुढ़क गया, और सुषमा उसके उपर…
शंकर का कार्ड वाला हाथ उसकी पीठ के नीचे दब गया था, जिसे निकालने के लिए वो उसके हाथ को पकड़ने के लिए अपना हाथ भी घुसाने लगी…
सुषमा के पुष्ट कड़क दूधिया उभार शंकर की कठोर चौड़ी छाती से दब गये, जिससे वो अब उसके ब्लाउस के और ज़्यादा बाहर को निकल पड़े,
अपनी आँखों के ठीक सामने उसके दोनो उभार जो दबकर एक-दूसरे पर ओवेरलेप हो रहे थे देखकर शंकर की साँसें तेज होने लगी,
उधर सुषमा भी कार्ड-वॉर्ड सब भूल गयी, और शंकर के लंड के तंबू को अपनी जांघों के ठीक बीच में अपनी चूत के होंठों के उपर महसूस करके उसके दिल की धड़कनें बुलेट ट्रेन की तरह चलने लगी…
आँखों में वासना के डोरे तैरने लगे, वो अपनी लाल-लाल नशीली आँखों से शंकर की आँखों में झाँकने लगी, जहाँ उसे वासना के कीड़े बिज-बीजाते हुए दिखे…
उसने अपनी गान्ड का दबाब और बढ़ाकर अपनी चूत को उसके लंड के उभार पर और बढ़ा दिया, जिससे उसकी मुनिया बुरी तरह से गीली होने लगी…
दोनो के दिल इतने पास-पास थे, कि वो धाड़-धाड़ बजते दोनो एक दूसरे के दिलों की धड़कन को साफ-साफ सुन रहे थे…
दोनो को ये होश नही रहा कि वो कहाँ और किस स्थिति में हैं,
ना जाने वो कितनी देर और यौंही पड़े रहते कि तभी बाहर से मम्मी…मम्मी चिल्लाते हुए गौरी की आवाज़ सुनाई दी…
सुषमा जैसे किसी भंवर से बाहर निकली हो, होश आते ही वो फ़ौरन शंकर के उपर से उठकर अपनी जगह पर बैठ गयी, तब तक गौरी कमरे के अंदर आ चुकी थी…
अभी वो अपने कपड़े ठीक कर ही रही थी कि पीछे से सलौनी भी अंदर आ गयी…,
उसने राहत की साँस ली कि चलो बच गये, वरना अगर सलौनी उसे ऐसी हालत में देख लेती तो ना जाने क्या सोचती…
वो सब कुछ देर और बैठे कार्ड खेलते रहे, फिर गौरी को दूसरे दिन आने का प्रॉमिस करके दोनो भाई-बेहन अपनी माँ के पास चले गये…!
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