RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
जन्माष्टमी के दो दिन बाद ही रंगीली अपने पति रामू के साथ अपनी ससुराल आ गयी, अब वो पहले से ज़्यादा खुश और खिली हुई थी…!
उस रात उसने अपने पति को हर संभव खुशी देने की कोशिश की, उसको दुनिया दारी के कुच्छ गुण बताए, अपनी पत्नी के प्रति उसके क्या कर्तव्य हैं बताती रही..
अपनी एकाध सहेली का उदाहरण देकर उसे समझाया…, परिणाम स्वरूप आज रामू ने अपनी यथाशक्ति अनुसार उसके साथ दो बार सहवास किया…!
लेकिन बात वही थी, पन्चर टाइयर में हवा भरने का कोई ज़्यादा लाभ नही होता..
खैर दो दिन अपने घर रहकर तीसरे दिन वो लाला की हवेली पहुँची, सुबह-सुबह उसका खिला स्वरूप देख कर लाला का दिन ही बन गया…
उनके मन में रंगीली के मिलन को लेकर लड्डू फुट रहे थे…!
मौका देख कर उन्होने उससे बात की, उसने आज रात को आने का वादा किया और सारे दिन उनके बताए कामों में लगी रही….!
आज रंगीली थोड़ा जल्दी अपने घर आगयि, जल्दी-जल्दी अपना काम धंधा निपटाया, सास ससुर और अपने पति रामू को समय से पहले ही उसने खाना खिला दिया…!
लाला ने उसे चुपके से नींद की दवा दे दी थी, जिसे उसने उचित मात्रा में सबके खाने में मिला दिया…
9 बजते ही सारे घर में ख़र्राटों की आवाज़ें गूंजने लगी, उसका पति तो बेचारा वैसे ही काम से थक जाता था,
उसे तो इस दवा की भी ज़रूरत नही थी, लेकिन फिर भी एहतियातन उसने खिला ही दी, ताकि बीच में उसकी नींद ना खुले…!
उसके बाद रंगीली जितना सज-संवर सकती थी, उतना अपने को सजाया, आज उसने घाघरा चोली नही पहनी, अपने शादी के जोड़े में वो किसी दुल्हन जैसी लग रही थी.
अपने को छोटे से शीशे में निहारा, वो अपनी ही सुंदरता पर मोहित हो उठी…मन ही मन खुश होकर बुदबुदाई….
आज मे भी देखती हूँ लाला जी, मर्द की हवस जीतती है, या एक औरत का यौवन ?
आज उसने लाला को पूरी तरह अपने रूप यौवन का रस्पान करके अपने जाल में फँसाने का मन बना लिया था…!
पूरी तरह सज-सँवरने के बाद उसने एक सरसरी नज़र अपने पल्लेदार पति पर डाली, और बुदबुदाते हुए बोली – माफ़ करना पतिदेव, अब मे और अपनी इस चढ़ती जवानी का अपमान नही कर सकती…
फिर वो अपने कोठे से बाहर आई, और चौक में पड़े अपने बूढ़े सास ससुर पर नज़र डाली, वो दोनो भी घोड़े बेचकर सोए हुए थे…
पागल जेठ तो जानवरों के बाडे में ही पड़ा रहता था..,
लगभग 10 बजे का वक़्त रहा होगा, गाओं की अंधेरी गलियों में इतनी रात गये किसी के मिलने की तो कोई संभावना ही नही थी,
वो दबे पाँव घर से निकली, बाहर से दरवाजे की सांकल लगाई और चल दी लाला जी के पास, जहाँ वो अपनी प्रेयशी का बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे…
आज रंगीली उनके आगोस में आने वाली है, इसी एहसास से उनका नाग, उनके घुटन्ने में रह-रह कर फुंफ़कारें मार रहा था,
और मारे भी क्यों ना, आज उसे रोज़ की तुलना में ज़्यादा खुराक जो मिल चुकी है, आज लाला ने 8-10 बादाम और ज़्यादा जो घोंट लिए थे दूध के साथ…!
जब वो ज़रूरत से ज़्यादा बबाल मचाने लगा, तो लाला ने अपना घुटन्ना ही उतार दिया, और खाली धोती पहन ली…!
अपने लौडे को बिठाते लाला, रंगीली का इंतेज़ार करते हुए बैठक में इधर से उधर किसी पिंजरे में बंद शेर की तरह टहल रहे थे…!
बॉक्सिंग के कोर्ट जितनी गद्दी पर लाला ने आज नये गद्दे और एक भक्क सफेद चादर बिच्छवा दी थी, शहर से मँगवाए ताजे फूलों के गुलदुस्ते गद्दी के आजू-बाजू महक रहे थे…
बैठक इस समय इंद्र लोक सी प्रतीत हो रही थी…, एक तरफ दीवार से सटा टेबल जहाँ केपर मिश्रित तेल के दिए जगमगा रहे थे…
जल्दी से आजा रंगीली मेरी जान, क्यों इतना तडपा रही है, देख तेरे इंतेज़ार में मेरे लंड की क्या हालत हो रही है, साला मरोड़-मरोड़ के दर्द करने लगा है…!
थक कर लाला, गद्दी पर अपनी गांद टिकाए ही थे कि दरवाजे पर हल्के से दस्तक हुई...! जिसे सुनकर लाला का मन मयूर नाच उठा…!
लपक कर दरवाजा खोला, सामने सोलह शृंगार किए हुए अपने सपनों की रानी को खड़े देखकर मानो उनकी हृदय गति ही थम सी गयी…
वो टक-टॅकी लागाय उसके सुंदर रूप लावण्य में खो गये…, उन्हें ये भी होश नही रहा कि दरवाजा चौपट खुला हुआ है…!
|