Antarvasna Sex kahani मायाजाल
10-16-2019, 01:36 PM,
#15
RE: Antarvasna Sex kahani मायाजाल
देखा मिल गया तुरन्त सबूत । वह टावल से मुँह पोंछता हुआ बोला । दोनों माँ बेटी अभी भी हँस रही थी । और राजवीर उसके धौल जमाती हुयी कह रही थी - चुप भी कर मरी । डैडी को ऐसा क्यों बोलती है । वो संता बंता तो नहीं है ।
- देखा प्रसून जी ! वह खुलकर हँसता हुआ बोला - ये मेरी अपने घर में पोजीशन है । बाइज्जत बामुलाहिजा बराङ साहब । ज्यादातर सिख लङकियाँ सरदार लङकों को पसन्द नहीं करतीं । उनकी फ़र्स्ट च्वाइस सिर्फ़ हिन्दू लङके हैं । और शायद । वह राजबीर की तरफ़ देखता हुआ बोला - यही हाल सरदार औरतों का भी है । इन दोनों को भी ये दाङी वाले कतई नासपसन्द हैं । कम से कम मेरा ख्याल तो अब तक यही बना है ।
- ओये चुप करो जी । राजवीर मानों प्यार से डाँटकर बोली - मैंने ऐसा कब बोला आपको । मुझे तो आप पूरे राजकपूर जैसे हीरो लगते हो ।
- मेरा नाम जोकर वाले । जस्सी फ़िर शरारत से प्रसून की तरफ़ देखते हुये बोली ।
उसकी बात पर एक जोरदार संयुक्त ठहाका लगा । अबकी बराङ साहब भी पहले से ही खुलकर हँसे । फ़िर वे तीनों भी साथ में हँसने लगे ।
- बङी प्यारी फ़ैमिली है मेरी । वह भावुक सा होकर बोला - हम आपस में एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं । लेकिन प्रसून जी मैंने आपसे एक प्रश्न किया है । कुछ जानना चाहा है । मैं नास्तिक क्यों बन गया । जब सदियों से भारत की धार्मिकता की जङों में काफ़ी गहराई है । रूटस जिसे बोलते हैं । फ़िर भी हर आदमी यहाँ नास्तिक सा क्यों है ?
वह गम्भीर हो गया । शायद इसी को संगति का असर कहते हैं । शायद बराङ को अब तक ऐसा कोई मिला नहीं होगा । जँचा नहीं होगा । जिससे वह बरसों से अपने दिल में छिपी इस बात को कह पाता । आज मानों उसने अपनी सारी भङास निकाली थी ।
- आपने ! वह प्रभावशाली सौम्य स्वर में बोला - एकदम सही बात कही है । और ये सिर्फ़ आपकी ही बात नहीं है । एक आम इंसान की बात है । पर किसी को इसको व्यक्त करने का मौका मिलता है । और किसी को नहीं । लाइफ़ में किसी को अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाता है । किसी को नहीं ।
जब एक छोटा बच्चा जो एक दो साल का होता है । तब उसको बेसिक नालेज के लिये प्रारम्भिक शिक्षा हेतु बुक दी जाती है । उसमें A से एप्पल होता है । B से बनाना होता है । C से कैट होती है । सोचिये बराङ साहब । गहराई से सोचिये । A से एप्पल B से बनाना C से कैट को सचित्र किताब में लिखने की क्या आवश्यकता है ? ये सब चीजें तो हमारे आसपास उपलब्ध ही हैं । किताब से सिखाने की क्या आवश्यकता है ? इसके बाद शिक्षा के लिये स्कूल कालेजों की क्या आवश्यकता है । जब किताब है । प्राइवेट तौर पर सिखाने पढाने वाले शिक्षक भी हैं । तब इस सब फ़ालतू से सिस्टम की क्या आवश्यकता हो सकती है ।
सोचिये । एक बच्चा सिर्फ़ किताब में ही जीवन भर A से एप्पल B से बनाना C से कैट को देखता रहे । और स्कूल भी न जाये । पेङों पर लगा या हाथ में फ़ल रूप में A से एप्पल B से बनाना न कभी देखे । न कभी खाये । C से कैट को भी रियल्टी में न देखे । न किसी तरह का यूज करे । लेकिन उसको बार बार बताया जाये । उसके दिमाग में भर दिया जाये । A से एप्पल स्वीट होता है । ताकतवर होता है । B से बनाना मीठा और टेस्टी होता है । तो उसे क्या कोई उनमें रस आयेगा । उसकी आस्तिकता इन चीजों में होगी । नहीं । तब वह इन सभी चीजों के प्रति अन्दर से नास्तिक ही होगा ।
वही आप हो । दूसरे हैं । आप सिर्फ़ ABCD की किताब पढकर रह गये । आप स्कूल गये अवश्य । पर आपको एप्पल की मिठास का अहसास कराने वाले शिक्षक नहीं मिल सके । यह एप्पल ट्री आप कैसे उगाकर ढेरों एप्पल खुद पैदा कर लो । ये बताने वाला कोई रियल गुरु आपको नहीं मिला ।
एक जिन्दगी में असफ़ल गरीब आदमी भी अमीरी के शौक वैभव को लेकर नास्तिक ही होता है । क्यों ? वह उसे हासिल नहीं है इसलिये । तब उसकी अमीरी में आस्तिकता कैसे उत्पन्न हो । तब वह अपनी कुण्ठावश अमीरी और अमीरों को गालियाँ ही देता है । उनमें झूठे दोष निकालता है । जबकि दोषी वह स्वयँ है । प्लीज डोंट माइण्ड बराङ साहब । यदि आप ऐसा महसूस करते हैं । तो आप धार्मिक गरीव हैं । असफ़ल इंसान हैं । यदि सभी सिख ऐसा सोचते हैं । तो वे सभी बेहद गरीब हैं । ये आपका मकान कोठी गाङी धन आपके साथ अन्त में कुछ नहीं जाने वाला । तव आप एकदम खाली हाथ जाओगे । एक फ़टेहाल भिखारी की तरह । वहाँ सिर्फ़ सुमरन की कमाई साथ होती है । अब आप अपना आंकलन स्वयँ करें ।
बराङ को मानों सरे बाजार जूते पङे हों । उसका सारा घमण्ड इस देवदूत ने कुछ ही शब्दों में चूर चूर कर दिया था । पर कितना आश्चर्य था । उसे अपनी बेइज्जती में एक अजीव सा सुख हासिल हो रहा था । उस लङके ने मानों उसे हकीकत का आइना दिखा दिया हो । कितना जादू था । उसके शब्दों में । उसे लग रहा था । वो ये दिव्य वाणी सी यूँ ही बोलता रहे । और वो सुनता रहे । कितना अजीव सा सुख मिला था उसे । उसने मन ही मन उन तमाम साधुओं बाबाओं धार्मिक लोगों को माँ बहन की भद्दी गालियाँ दी । जो उसे जीवन में अब तक मिले थे । और जो धर्म के नाम पर जाने क्या क्या बकबास करते हुये आदमी को भृमित ही करते हैं । और सत्यता को करीब से तो बहुत दूर । दूर दूर तक नहीं जानते । दूसरे वह सिर्फ़ बोल ही नहीं रहा था । इतने दिनों में जस्सी को एक भी अटैक न आना । उसके घर में एक अजीव सी सात्विकता की खुशबू सी जो उसके आने से फ़ैली थी । वह बिना बताये बहुत कुछ बता रही थी । अब तक के घोर अभिमानी बराङ को दिल में बहुत ही प्रबल इच्छा हुयी कि वह इस पहुँचे हुये महात्मा के चरणों में गिर पङे । और बोले - आप ही मेरे गुरु हो ।
पर वह ऐसा कर न सका । अभी वह कुछ कहना ही चाहता था कि प्रसून फ़िर से बोला ।
- देखिये बराङ साहब ! ये ढोंगी और स्वयँ के लिये भी अज्ञानी बाबाओं द्वारा एक आम पर मजबूत धारणा बना दी गयी हैं कि परमात्म ज्ञान को जानना बेहद कठिन है । जबकि सभी धार्मिक ग्रन्थ बङी सरलता से कहते हैं - आत्मा अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा आदि अन्त रहित है ।..और आप अपने मूल रूप में आत्मा ही हो । अपनी सिर्फ़ यही मजबूत और स्थायी पहचान हमेशा पक्के तौर पर याद रखने से परमार्थ ज्ञान बहुत सरल हो जाता है । और तब फ़िर आप चाहकर भी नहीं कह पाओगे कि - मैं नास्तिक हूँ ।
अब मनदीप साफ़ साफ़ और पहले से भी अधिक प्रभावित दिखा । राजवीर तो मानों भक्ति सागर में ही डूब रही थी । न आस्तिक न नास्तिक बस अपनी जवानी में मस्त जस्सी भी आश्चर्य से उसकी बातें सुन रही थी । उसका दिल साफ़ साफ़ कर रहा था कि वह प्रसून के गले में तुरन्त बाँहें डाल दे । और उसके होंठ चूम ले । ये वो उसे अभी अभी की ज्ञान वार्ता पर तोहफ़ा देना चाहती थी । पर वह ऐसा कर न सकी ।
रात रोज ही होती है । उसमें क्या नई बात थी । वही अंधेरा । वही बिजली का प्रकाश । वही दस ग्यारह बारह फ़िर एक बजता हैं । और सब नींद के आगोश में सोते हैं । सपने देखते हैं । बिस्तर पर करवटें बदलते हैं । आज भी एक बज गया था । और धीरे धीरे दो बजने वाले थे । पर जस्सी की आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी । बहुत कोशिश के बाद भी वह एक पलक तक न झपका सकी थी ।
क्या कर रहा होगा वह ? आज उसने कैसा रहस्यमय व्यवहार उसके साथ किया था । बल्कि वह पूरा ही रहस्यमय इंसान था । रात के सन्नाटे में उसके साथ पहले हनीमून के बाद वह तबसे बराबर यही सोचती रही थी कि फ़िर से ऐसे मधुर क्षण कब आने वाले हैं । वह उसके साथ यहाँ वहाँ घूमने जाना चाहती थी । उसने सोच लिया था । अब वह हर हालत में उससे शादी करने वाला है । तब क्या हर्ज था । शादी अभी हो । या एक साल बाद । उसने तो अपने मन से उसे हसबैंड मान ही लिया था ।
वह अभी से उससे एक पत्नी की तरह व्यवहार करने लगी थी । पर उसे बेहद हैरत इस बात की थी कि कार में उसे आसमानी झूले की सैर करा देने वाले उस जादूगर ने उसके बाद उसके होठ तक चूमने की कोशिश नहीं की थी । और न जाने किन ख्यालों में उलझा रहा था । ऐसा लग रहा था । किसी बात को लेकर सीरियस है । वह उसके इस बदले हुये व्यवहार से हैरान थी ।
सुबह वह देर तक अकेला कहीं घूमने चला गया था । फ़िर वह बहुत देर तक उसके पेरेंटस से अकेले में बात करता रहा । वह शरमाती हुयी सी रंगीन ख्यालों में खोयी रही थी । वह निश्चय ही उसका हाथ माँग रहा था । और वह निश्चित सी थी । सो उसने वह बात सुनने की कोई कोशिश नहीं की ।
जब उससे वह बैचेनी सहन नहीं हुयी । तब वह उठकर कमरे में टहलने लगी । अजीव इंसान है । क्या कर रहा है । उस अकेले बन्द कमरे में । शाम सात बजे से लेकर अब रात के दो बजने वाले थे । किसी दूर के सफ़र पर गये लौटने वाले इंसान की प्रतीक्षा की भांति हर पल उसकी निगाह कमरे के गेट पर किसी आहट पर ही रही थी । अब आ रहा होगा । अब आ रहा होगा । पर वह नहीं आया ।
वह कमरे से बाहर भी नहीं जा सकता था । ये उसको पक्का पता था । जब वह बाहर आयेगा । सबसे पहले उसे ही मालूम होगा । वह उसे ही आवाज देगा । और उसके आवाज न सुन पाने पर वह उसके मोबायल पर काल करेगा । पर अब तो हद ही हो गयी थी । सात घण्टे से ज्यादा हो गये थे । और वह उसी तरह कमरे में बन्द था । आखिर क्या कर रहा था वह ।
वह अपनी उत्सुकता रोक न सकी । तभी उसे प्रसून की चेतावनी याद आयी । उससे लिया हुआ गाड प्रामिस याद आया । भले ही दस घण्टे हो जाये । दस दिन क्यों न हो जायें । वह न तो दरबाजा खोले । और न ही उसे किसी प्रकार से डिस्टर्ब करे ।
उसने सोचा । वह उसे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगी । बस चुपके से देखेगी । आखिर वह इतनी देर से अकेला क्या कर रहा है । यही सोचते हुये वह उस कमरे के द्वार पर आ गयी । जिसमें प्रसून अन्दर बन्द था । उसने एक बार चारों तरफ़ देखा । सब सोये पङे थे । एकदम सन्नाटा फ़ैला हुआ था । उसने ताले में चाबी लगायी । और बिना आवाज दरबाजा खोला । कहीं कोई दिक्कत नहीं आयी ।
उसने दरबाजे को हल्का सा धक्का दिया । और थोङी सी जगह बनाती हुयी कमरे में आ गयी । सावधानी से उसने दरबाजा वापिस लगा दिया । और सामने बेड पर देखा । फ़िर वह रहस्यमय अन्दाज में मुस्करायी ।
ओह तो ये बात थी । और वह पता नहीं क्या क्या इतनी देर में सोच गयी थी । दरअसल उसे नींद आ गयी थी । और वह वहीं पङे पङे सो गया था ।
चलो आज यहीं सही । सोचते हुये वह उसके पास जाने को हुयी । तभी उसे प्रसून की चेतावनी ध्यान आयी । पर अब उस चेतावनी का क्या मतलब रहा । अब तो कोई बात ही नहीं थी । वह नार्मली सो रहा था । तभी उसे शरारत सूझी । हम तुम एक कमरे में बन्द हो जायें । और चाबी खो जाये । उसने ऐसा ही किया । और बाहर से लाक लेकर अन्दर से लगा दिया ।
वह दबे पाँव उसके पास आयी । और बैठ गयी । उसकी निगाह सोते हुये प्रसून पर गयी । और वह आगे के कदम के बारे में सोचने लगी । और फ़िर अचानक वह न सिर्फ़ चौंकी । बल्कि भौंचक्का ही रह गयी । ओह गाड ! ये वह क्या देख रही थी । क्या ये वाकई सच था ? कुछ अजीव सा अहसास उसे हुआ था । प्रसून की सांस नहीं चल रही थी । तब उसने गौर से देखा । वाकई वह मुर्दा पङा था । उसने उसके दिल पर हाथ रखा । कोई धङकन नहीं थी । उसने
उसकी नब्ज देखी । कोई स्पन्दन नहीं था । उसने उसकी छाती से कान लगाकर सुना । वह मर चुका था । निश्चित ही मर गया था । ओह गाड । ओह गाड ! ये सब क्या हुआ था ।
फ़िर उसके मुँह से जोरों की चीख निकलने को हुयी । लेकिन उससे पहले ही उस अटैक से उसका दिमाग शून्य 0 होता चला गया । उसके मुँह से मु मु की हल्की सी आवाज हुयी । और फ़िर उसका सिर तेजी से घूमने लगा । सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । फ़िर उसे लगा । एक तेज आँधी सी चलने लगी । और सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । लोग । वह । सभी तेजी से उङ रहे थे । और बस उङते ही चले जा रहे हैं । किसी अज्ञात अदृश्य की ओर ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको भी मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था ।
फ़िर वह एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी सी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । जस्सी उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी ।
पानी की तेज भंवर उसे डुबोये दे रही थी । वह गोते खा रही थी । नाव पर झुककर खङा सन्तुलन बनाता हुआ वह मछुआरा डगमाती नाव को बचाने की कोशिश कर रहा था । पर तूफ़ान की प्रचण्डता अपने चरम पर थी । तूफ़ान मानों प्रलय करके ही छोङने वाला था । उसकी चेतना लुप्त होने लगी । और फ़िर वह लहरों की दया पर डूबती उतराती हुयी दरिया में बहने लगी ।
विनाशकारी तूफ़ान अभी थमा नहीं था । पर बेहद ताकतवर लहरों ने उसे किसी दूर अज्ञात किनारे पर ले जाकर पटक दिया था । उसमें उठने की शक्ति नहीं रही थी । और वह निढाल सी पङी थी । फ़िर उसकी मौत हो गयी । और वह शिथिल होकर पङी रह गयी । खेल खत्म हो चुका था ।
पर मौत सिर्फ़ शरीर की हुयी थी । वह अपनी खूबसूरत देह छोङ चुकी थी । और एक नये शरीर सूक्ष्म शरीर में शरीर से बाहर आ गयी थी । अब उसके लिये उस प्रलयकारी तूफ़ान का मानों कोई मतलब ही नहीं था । अब वह आराम से उसी दरिया में लहरों पर चल रही थी । हवा में किसी पक्षी के समान उङ रही थी । और उसे स्वतः बोध था कि यह सब वह आराम से कर सकती है । जो चाहे कर सकती थी ।
तब उसे फ़िर से उस मछुआरे का ख्याल आया । पर वह उस स्थान से बहुत दूर भटक कर आ गयी थी । कौन था वह ? और इस वक्त कहाँ था ?
पर वह तो सिर्फ़ एक रहस्य था । एक दृश्य की तरह था । तब उसकी याददाश्त थोङा ही पहले लौटी । सिर्फ़ कुछ देर पहले । सिर्फ़ कुछ घण्टे पहले । ओह गाड । जस्सी हूँ मैं । नहीं जस्सी थी मैं । प्रसून जी..प्रसून जी मर गये ।
मौत के बाद आने वाला जो नशा सा कुछ देर को मौत जीवन सबको भुला देता है । उससे अब वह उबर गयी थी । और ठीक उसी बिन्दु पर पहुँच गयी थी । जब प्रसून के चेकअप के बाद वह गला फ़ाङकर चिल्लाने वाली थी । और फ़िर वही हुआ ।
- प प प्रसूनऽऽऽऽऽ जीऽऽऽ ! वह पूरी ताकत से चिल्लाई - आप कहाँ हो ?
बङी हैरत की बात थी । अब उसे प्रसून के मरने का कोई दुख नहीं था । वह भी मर चुकी थी । वह भी मर चुका था । पर वे मरे नहीं थे । सिर्फ़ उनकी वह दुनियाँ मर गयी थी । और वे नयी दुनियाँ में आ चुके थे । अब बस उसे प्रसून को तलाश करना था । तलाश । पर कहाँ तलाश करे वह ? वह कहाँ थी । पता नहीं । प्रसून कहाँ था । पता नहीं ।
तब उसने किसी चिङिया के पंखों की तरह हाथ फ़ैलाये । और अनन्त आकाश में उङती चली गयी । वह मुक्त परवाज सा करती हुयी उङती चली जा रही थी । पर न उसे कोई मार्ग पता था । और न ही मंजिल पता थी । उसके दिमाग में बस एक ही बात थी कि उसे अपने प्रेमी प्रियतम को तलाश करना है । जो कहीं इन्हीं चाँद तारों के बीच खो गया है ।
चाँद तारे । काले नीले मिश्रित आसमान के बीच चाँद तारों की अनोखी दुनियाँ । और वह इस दुनियाँ में किसी परी की भांति उङती चली जा रही थी । उफ़ ! शायद इंसान जीते जी कभी नहीं जान पाता । मरने के बाद क्या आनन्द ही आनन्द है ।
तभी सहसा उसकी सुखद कल्पनाओं को एक झटका सा लगा । दो भीमकाय भुजंग काली आकृतियों के राक्षस जैसे देहधारी उसके दोनों तरफ़ आ गये । उन्होंने किसी अपहरणकर्ताओं की तरह उसे घेरे में ले लिया । उन्हें कुछ आश्चर्य सा हो रहा था । उनके भावों की वासना उसे दूर से महसूस हो रही थी । उसने तेजी से उनसे बचते हुये दूर जाना चाहा । पर वह असफ़ल रही । ऐसा लग रहा था । वह किसी अदृश्य घेरे में कैद हो चुकी थी । और उसका नियन्त्रण उनके हाथ में था । तब उसे अन्दर से डर सा लगने लगा ।
वे तेजी से दिशा परिवर्तन कर उसे उत्तर की ओर ले जा रहे थे ।
आसमान की सुन्दरता गायब होने लगी थी । और काले घने अंधकार का शून्य 0 स्पेस सा आने लगा था ।
और तभी उन दोनों ने उसका हाथ थामना चाहा । वह एकदम से घबरा गयी । वे उसके करीब होते जा रहे थे । और बेहद कामुक निगाहों से देख रहे थे । वह एकदम रोने लगी । और फ़िर उसे प्रसून की याद आयी । अगर वह होता । तो इन राक्षसों से बचाता । पर अब वह असहाय लङकी भला क्या कर सकती थी ।
दैत्य सम देहधारियों ने फ़िर से उसको पकङना चाहा । और तब घबराहट में उसके मुँह से करुणा भरी पुकार स्वतः निकल गयी - प्रसून जी । प्रसूनऽऽऽऽ जीऽऽऽऽ ।
अब उसे सिर्फ़ प्रसून याद आ रहा था । वह उससे एक भाव होती जा रही थी । उसका खुद का अस्तित्व खत्म होता जा रहा था । और प्रसून उसके अन्दर समाता जा रहा था । तब वे भुजंगी एकदम आश्चर्य से चौंके । इस अति खूबसूरत लङकी जिसे वे अपहरण कर भोगना चाहते थे । के इर्द गिर्द एक सुरक्षित अदृश्य घेरा सा बन गया था । जिसे वे पार नहीं कर पा रहे थे ।
जस्सी ने भी महसूस किया । जैसे ही उसने पूर्ण भाव से प्रसून को याद किया । वह उनके लिये किसी छाया के समान हो गयी । जिसे वे लाख कोशिशों के बाद भी नहीं पकङ पा रहे थे । जबकि वे उससे अभी कुछ फ़ुट ही दूर थे । फ़िर वे निराश होकर दूसरी तरफ़ चले गये ।
उसने वापिस दिशा परिवर्तन करना चाहा । पर असफ़ल रही । काले घने अंधकार का वह डरावना शून्य 0 स्थान उसे चुम्बक की तरह खींच रहा था । उसे आगे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था । सिर्फ़ अंधेरा ही अंधेरा था । स्याह काला । और काजल सा चिकना अंधेरा । और वह इस भयानक अंधेरे में विलीन होती जा रही थी । तब उसे ढोल बजने की आवाज सुनाई देने लगी । ढम ढम ढम ढमाढम
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