Antarvasna Sex kahani मायाजाल
10-16-2019, 01:36 PM,
#14
RE: Antarvasna Sex kahani मायाजाल
दूसरे दिन सुबह आठ बजे का समय था । प्रसून बराङ साहब की कोठी की सबसे ऊपरी छत पर था । उसकी उँगलियों में जलती हुयी सिगरेट फ़ँसी हुयी थी । जिससे निकलती धुँये की लकीरें सी ऊपर आसमान में किसी अज्ञात सफ़र पर जा रही थी । स्वयँ बराङ उसके आसपास टहल रहा था । और जस्सी की बीमारी के बारे में कम । उससे जस्सी की शादी को लेकर ज्यादा फ़िक्रमन्द था । उसके कहने पर राजवीर ने जस्सी और उसके एकान्त साथ के बारे में कुरेद कुरेदकर पूछते हुये उसका रुख जानने की कोशिश की थी । जिस पर जस्सी सिर्फ़ शर्माकर रह गयी थी । और.. मुझे कुछ नहीं पता..उन्हीं से पूछो ना ..कहकर भाग गयी थी । तब राजवीर के दिल में मीठी मीठी गुदगुदी सी हुयी । उन्हीं से पूछो ना..ये उन्हीं वर्ड कुछ न बताता हुआ भी सब कुछ बता गया । ओ रब्ब ! तेनूं लख लख शुक्र है । क्या राजकुमार भेजा था । उसकी कुङी के लिये । जैसी परी सी छोरी । वैसा ही सुन्दर वो राजकुमार ।
उसने बराङ साहब से उसी की शरारत के अन्दाज में बोला । बोलती है - उन्हीं से पूछो ना..। तब वे दोनों भरपूर हँस भी नहीं सके । हँसना चाहते थे । पर सिर्फ़ खुशी के आँसू ही निकले । पहली बार बराङ जैसे अभिमानी ने जाना । जिन्दगी में माधुर्य रस क्या होता है । पहली बार उसे लगा । वह एक जवान बेटी का बाप है । और वह आँसू भरी आँखों वाला बबुला ख्यालों में ही बङे लाङ से अपनी लाङो को उसके प्रियतम की डोली में बैठाकर खुद भावपूर्ण विदाई कर रहा था । ऐसे कितने ही अग्रिम मधुर दृश्य उन सरदार पति पत्नी की आँखों के सामने तैर गये ।
और अब वह बिना देरी किये इस मामले में प्रसून से बात करने वाला था । पर प्रसून के सामने उसके पास आते ही उसके सारे भाव एकदम साबुन के झाग की तरह बैठ गये । प्रसून भावहीन सा सिर्फ़ विचार मग्न था । तब शादी वाली बात कहने की वह हिम्मत नहीं कर पाया । और बात को शुरू करने के लिये जस्सी की स्थिति के बारे में पूछने लगा । जिसके बारे में उसने संक्षिप्त में इतना ही कहा - बराङ साहव ! मैं अपनी जान की कीमत पर भी जस्सी को ठीक करके रहूँगा । चाहे इस बाधा की जङ आकाश से लेकर पाताल तक क्यों न फ़ैली हो ।
वह मोटी अक्ल का सरदार इस बात का कोई अर्थ निकाल पाता । तब तक जस्सी नहाकर ऊपर आ गयी । ये देखते ही वह उन्हें एकान्त देने के लिये वह वहाँ से नीचे चला गया । छत पर टहलते हुये से प्रसून की निगाह बाहर कहीं निकलते सतीश पर पङी । उसके यहाँ आने का कारण सतीश ही था ।
जब जस्सी के घर में हुयी कानाफ़ूसी टायप बातें उसके भी कानों में आयी । तब उसने जस्सी की बात का कोई पता न होने का बहाना सा करते हुये..हमारी तरफ़ के लोग आज के जमाने में भी एक ऐसे अदभुत योगी को जानते हैं । उसके बारे में ऐसा सुना है । वैसा सुना है । जैसी अकारण सी सामान्य चर्चा की तरह बात की । जिसे बराङ दम्पत्ति खास राजवीर ने पूरी दिलचस्पी से ध्यान से सुना । और वे भी जस्सी को अलग रखते हुये उससे प्रसून के बारे में अधिक से अधिक पूछने लगे । और आखिर में उन्होंने जानना चाहा कि क्या वह जरूरत होने पर उसे बुला भी सकता है । या सिर्फ़ मुँह जबानी ही उसके बारे में जानता है ।
वास्तव में यू पी की मानसिकता वाला सतीश एक तीर से दो शिकार कर रहा था । वह बखूबी जानता था कि प्रसून को बुलाने का मतलब था । उसको कम से कम पचास हजार की इनकम होना । जो उसको योगी के खोजने के लिये मिलनी थी । दूसरे वह अपने घर मुफ़्त में घूमने जाता । तीसरा उनका काम सफ़ल हो जाता । तो न सिर्फ़ बराङ दम्पत्ति बल्कि इस पंजाबी क्षेत्र में उसका रौब गालिब हो जाना था । और खुद उसकी नजर में ये बेबकूफ़ सरदार उसे झुककर सलाम करने वाले थे । हर चालाक आदमी की तरह उसने भी ऐसे ही ढेरों प्लान यकायक सोच लिये थे । जिसे उसके यूपी में बहती गंगा में हाथ धोना कहा जाता था । पर वह सिर्फ़ हाथ धोकर नहीं रह जाना चाहता । पूरा का पूरा स्नान ही कर लेना चाहता था ।
लेकिन जब बराङ दम्पत्ति ने यकायक उससे बुलाने के बारे में कहा । तो मानों उसके हाथों से तोते ही उङ गये । वह जो कल्पना कर रहा था कि प्रसून को थोङी ही कोशिश से खोज लायेगा । अब उसे एकदम फ़ालतू की बात लगी । क्योंकि वह उसे सीधे सीधे नहीं जानता था । उसने किसी से सुना था । उस किसी ने भी किसी से सुना था । और उस किसी ने भी किसी और से बस सुना भर था । उसे जानता कोई भी न था ।
तब फ़िर किसी ने किसी को फ़ोन किया । उस किसी ने और किसी को फ़ोन किया । पूरे दो दिन सतीश दिन भर बैठा हुआ अपने किसी को फ़ोन मिलाता रहा । वह आगे अपने किसी को मिलाता रहा । तब सैकङों बार की बातचीत के बाद उसे बहुत दूर के किसी से प्रसून की कोठी का बस लैंडलाइन नम्बर ही हासिल हुआ । और उस पर भी जिस सख्त पर आंसरिग मशीन की तरह मधुर ध्वनि की लेडी आवाज सुनाई दी । उसने तो मानों उसके सब अरमानों पर पानी ही फ़ेर दिया ।
दूसरी तरफ़ से अल्ला बेबी बोल रही थी । उसने बहुत संक्षेप में बिना कुछ सुने कहा - सर ! अभी घर पर नहीं है । सिक्स मन्थ बाद आयेंगे । तब आप फ़ोन करना । कहकर उसने बिना कुछ सुने फ़ोन काट दिया ।
सतीश की समस्त आशा ही खत्म हो गयी । अभिमानी बराङ को खामखाह ही यूँ लगा । भरे बाजार उसकी बेइज्जती हुयी हो ।
पर राजवीर समझदार थी । उसने दो तीन बार स्वयँ प्रयास किया । तब कहीं फ़ोन उठा । तब अल्ला बेबी से उसकी बात हुयी । प्रोफ़ेशनल लोगों से बात करने का तरीका समझ आया । तब बात बनी ।
उसने बिना किसी भूमिका के कहा - देखिये । प्लीज ये एक जिन्दगी मौत का सवाल समझो । मैं आपसे प्रसून जी का नम्बर नहीं माँग रही । कोई अन्य रिकवेस्ट नहीं कर रही । पर कोई बहुत इम्पोर्टेंट बात आने पर आप उनको डायरेक्ट कान्टेक्ट कर सकती हो । ये तो मैं जानती हूँ । तब यदि आप कहें । तो मैं अपनी बात कहूँ ।
दरअसल सतीश और राजवीर को दूसरी तरफ़ से बोलने वाली कोई युवा लेडी मालूम हो रही थी । जबकि वह महज 13 वर्ष की अल्ला बेबी थी । जो बङी दक्षता से एक कुशल सेक्रेटरी की तरह ऐसी बातों को डील करती थी । और बहुत भावुक दिल भी थी । बस उसकी आवाज एकदम सपाट और भाव रहित थी । उसने राजवीर के स्वर में दर्द महसूस किया । तो स्वतः ही उसकी आवाज अतिरिक्त मधुरता से भर उठी ।
- कहिये । वह नमृ होकर बोली - मैं आपकी हेल्प करने की पूरी पूरी कोशिश करूँगी ।
- देखिये । राजवीर बोली - मैं बहुत संक्षिप्त में बात कहूँगी । आपका कीमती समय खराब नहीं करूँगी । मेरे पास अदृश्य बाधा पीङा के अपनी बेटी के कुछ वीडियो क्लिप्स हैं । आप अपना ई मेल मुझे बता दें । मैं वे क्लिप्स और खास प्वाइंट आपको लिखकर भेज दूँगी । प्लीज आप उन्हें नजर अन्दाज न करना । और किसी की जिन्दगी मौत का सवाल जानकर देखना । और फ़िर आपको मेरी बात सही लगे । खुद विश्वास आये ।
तो ये बात आप अपने सर तक पहुँचा देना । मेरा मतलब मेरे मेल का मैटर आप उन्हें ई मेल कर देना । बाकी मेरी बेटी के भाग्य में जो होगा । जिन्दगी या मौत । ये फ़ैसला तो रब्ब के हाथ ही होता है । कहते कहते राजवीर कुछ भावुक सी हो गयी थी । और उसने सुबकते हुये फ़ोन स्वयँ ही रख दिया था ।
काश ! वह देख पाती । दूसरी तरफ़ उस भावुक लङकी की नीली आँखों में आँसू झिलमिला उठे थे । उसने न सिर्फ़ अपना ई मेल बताया था । बल्कि अगले चार घण्टे में तीन बार क्लिप्स की उत्सुकता में मेल चेक किया था । तब चार घण्टे बाद उसे 14 वीडियो क्लिप मेल से मिले । और एक दो क्लिप देखकर ही वह मामले की गम्भीरता और प्रसून के लिये उसका महत्व समझ गयी । उसने न सिर्फ़ तुरन्त प्रसून को ज्यों का त्यों वह मेल भेजा । बल्कि वह तुरन्त देखे । इस हेतु उसे साथ के साथ फ़ोन भी किया । और फ़िर वो फ़ोन जिस पर हजार कोशिश के बाद लोगों की बात मुश्किल से हो पाती थी । अगले चार सेकेण्ड में पहली बार में ही उसकी बात हुयी । प्रसून इस ईसाई लङकी की समझदारी का बेहद कायल था । जहाँ उसमें बच्चों सा भोलापन भी था । वहीं गजब की समझदारी भी थी ।
उस समय वह विदेश में था । और संयोगवश अभी अभी ही काम से फ़्री हुआ था । और भी डबल संयोगवश उस समय वह नेट पर ही बैठा था । जब उसे अल्ला बेबी का फ़ोन पहुँचा । बेबी ने बङे भावुक स्वर में रिकवेस्ट की थी - प्लीज सर । अभी देखें । बात खास है ।
ओ के डियर कहकर वह क्लिप देखने लगा था । और सबसे पहले तो जस्सी को देखकर ही चौंक गया था । क्या बला की सुन्दरी थी । नेचुरल ब्यूटी । सुन्दरता की देवी । वीनस की प्रतिमा । उसने अपने आपको कंट्रोल किया । और क्लिप को गम्भीरता से देखने लगा । उसने अल्ला बेबी को मन ही मन लाख थेंक्स बोला । और 14 क्लिप देखने में टाइम खराब न करते हुये तुरन्त नम्बर डायल किया ।
राजवीर पर तो मानों भगवान स्वयं ही मेहरवान हुआ था । क्लिप भेजने के महज 50 मिनट बाद उसके फ़ोन की घण्टी बज उठी थी । और तब तो वह एकदम से उछल ही पङी । जब दूसरी तरफ़ से उसे बहुत मधुर और संतुलित स्वर सुनाई दिया - हल्लो ! मैं प्रसून बोल रहा हूँ ।
और फ़िर सीधा ही वह यहाँ आ गया था । उसने महसूस किया था । जस्सी सिगरेट को पसन्द नहीं करती थी । पर बोलती कुछ नहीं थी । उसने सिगरेट नीचे उछाल दी । क्या गजब लग रही थी वह । उसके गीले से लम्बे बाल कन्धों पर लहरा रहे थे । बिना किसी मेकअप के वह गजब ढा रही थी । और सबसे बङी बात प्रसून को उसमें प्रेमिका नजर आ रही थी ।
वह उससे नजरें चुरा रहीं थी । और चोरी चोरी कनखियों से उसे देख रही थी । संभवत कल के अभिसारी क्षण उसे
बारबार याद आते थे । तब तुरन्त ही उसके गोरे गुलाबी गालों पर शर्म की लाली सी दौङ जाती थी । पर एक लङकी की परेशानी शायद वह समझ नहीं पा रहा था । उसे कल के मिलन की वजह से चलने में खास परेशानी थी । इसलिये वह बहुत धीरे धीरे संभलकर चल रही थी । और खास ध्यान रख रही थी कि उसकी चाल का बदला्व किसी के नोटिस में ना आये । पर इसके बाद भी वह अभी भी प्रसून द्वारा उसे बाँहों में लेकर चूमने की प्रेममयी कल्पना कर रही थी ।
वह जानता था । संसार ही कल्पनाओं में जीता है । पर सबकी कल्पनायें उनकी अपनी भावनाओं के अनुसार अलग अलग होती है । बराङ दम्पत्ति उसको जमाई बनाने की कल्पना में खोये हुये थे । जस्सी अपनी कल्पना में उसकी महबूबा बनी हुयी थी । और उसकी कल्पना सिर्फ़ उस रहस्य के लिये भटक रही थी । जिसके अदृश्य तार जस्सी से जुङ रहे थे । ऐसे आखिर वह कब तक वहाँ रुका रह सकता था । मगर दूसरे उसने ये भी तय कर लिया था । चाहे जो हो जाये । इस रहस्य का पता लगाकर ही जायेगा । खेल को खत्म करके ही जायेगा ।
उसने देखा । बालों को हौले हौले सुखाती हुयी जस्सी उसके एकदम करीब आने से बच रही थी । और बारबार करीब भी आ रही थी । इकरार भी । इंकार भी । इजहार भी । मनुहार भी । सभी एक साथ । एक ही समय में । अजीव होती हैं । ये लङकियाँ भी । उसने सोचा । और फ़िर शरारत के अन्दाज में बोला - नाराज हो मुझसे । कल की वजह से ।
- ब्रेकफ़ास्ट ! वह तिरछी निगाहों से परे देखती हुयी बोली - ब्रेकफ़ास्ट कर लीजिये । अब नीचे चलिये ।
कहकर वह तेजी से सीङियाँ उतरती चली गयीं । हठात प्रसून उसके गोल आकर्षक नितम्बों में पङते हुये बल देखता रहा । वह बार बार इस लङकी के प्रति क्यों आकर्षित हो रहा था - उसके चेहरे को ओक में भर लूँ । ज़िंदगी को इस तरह पिया जाएगा ।
वह जानता था । बराङ साहब उससे बात करने के खास इच्छुक थे । पर अभी तक ऐसा कोई संयोग नहीं बन पाया था । वह जानता था । वे क्या बात करेंगे । और फ़िर वह क्या जबाब देगा । जो भी हो सज्जनता यही कहती थी कि उनके दिल की बात भी सुनना चाहिये । उसे महत्व भी देना चाहिये । सो वह नाश्ते पर उनके सामने बैठा था । सामने ही जस्सी और उसके बगल में राजवीर बैठी थी ।
- देखिये प्रसून जी ! बराङ बोला - धर्म और अलौकिक बातों के प्रति मेरी सोच कुछ अलग ही है । वैसे मैं भी और सिखों की तरह गुरुद्वारा जाता हूँ । दिल में कहीं न कहीं उस परम्परा का सम्मान भी करता हूँ । पर जाने क्यों मुझे लगता है । ये मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च जाना महज एक सामाजिक गतिविधि सी बनकर रह गया है । जिस तरह इंसान मेले नुमायश देखने जाता है । और कहीं भी धर्मस्थल देखकर अपनी जाति धर्म से मिले संस्कारवश उसे मत्था टेकता है । तो कोई अलग बात नहीं । मैं भी ऐसा करता हूँ । पर जाने क्यों मैं दिली तौर पर नास्तिक ही हूँ । और नास्तिक होने में ही सुख पाता हूँ । फ़िर जाने क्यों मुझे ऐसा भी लगता है कि मैं धर्म को नहीं मानता । इसलिये बहुत बङा बेबकूफ़ हूँ । मगर दूसरे ही पल मुझे अहसास होता है कि मैं इस प्रचलित परम्परागत धर्म को कट्टरता से मान रहा होता । तो शायद उससे भी बङा बेबकूफ़ होता । मैं दोनों ही तरफ़ से खुद को बेबकूफ़ सा महसूस करता हूँ ।
तभी जस्सी शरारत से बोली - डैडी ! 1 बार 1 सरदार था.. आगे बोलूँ क्या ?
अभी प्रसून इस बात को ठीक से समझ नहीं पाया था कि राजवीर जस्सी की पीठ में धौल मारती हुयी जोर से हँसी । वह पानी का घूँट मुँह में भरे हुये थी । जो उसकी हँसी के साथ फ़व्वारे के रूप में सीधा बराङ साहब के ऊपर गिरा । फ़िर वे दोनों माँ बेटी ठहाका मारते हुये हँसने लगी । बराङ भी मुक्त भाव से हँसा । पर वह नहीं हँसा
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