RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
तभी मुझे उस बैल के जोर से डकारने की आवाज़ आयी और उसकी गरम-गरम मनी की तेज़ धार अपनी चूत में छूटती हुई महसूस हुई। बैल की मलाई दार मनी अपनी चूत में लबालब भरने के मस्ती भरे एहसस से मेरी खुद की चूत के सिलसिलावार ऑर्गैज़्म और ज्यादा ज़बरदस्त होकर नयी बुलंदियों को छूने लगे। वो बैल तो जैसे बाल्टी भर-भर के अपनी गाढ़ी मनी मेरी चूत में बहा रहा था और मेरी चूत का गरम पानी भी तेज़ी से इखराज़ हो-हो कर बैल की मनी में घुल रहा था। अपनी तमाम मनी मेरी चूत में भरने के बाद बैल के टट्टे आखिरकार थोड़ी देर में खाली हुए तो उसका जसीम लौड़ा ऊपर-नीचे हिचकोले खाने लगा और अपनी चूत में उसके ताकतवर लंड के फ़ंसे होने से मेरी गाँड भी स्टूल से ऊपर उठ जाती और मेरा जिस्म उसके साथ-साथ ऊपर-नीचे हिचकोले खाने लगा। बेहद लंबे और ज़बरदस्त क़यामत खेज़ ऑर्गैज़्म की आखिरी चिंगारियों की लज़्ज़त और मस्ती की कैफ़ियत में मैं उसके लौड़े पे अपनी चूत कसमसाने लगी।
बैल का लवड़ा ढीला पड़ने लगा तो मैं कसमसाते हुए उसे अपनी चूत में से आहिस्ता-आहिस्ता थोड़ा-थोड़ा करके बाहर निकालने लगी। इसी दौरान चूत के किनारों से बैल की मनी के साथ मेरी चूत का पानी फूट-फूट कर बाहर बहने लगा और मेरी टाँगों को भिगोता हुआ बिखरे हुए दूध की तरह नीचे ज़मीन पे फैलने लगा। मेरी रानों और टाँगों के साथ-साथ मेरे सैंडल और पैर भी पूरी तरह मनी से सन गये थे। उसका लंड मेरी चूत में से बाहर निकल कर भी ऊपर-नीचे हिचकोले खा रहा था। मनी और चूत के पानी से सने हुए उसके लंड की नोक से बूँदें टपक रही थीं और कुछ गाढ़ी बूँदें मेरे पेट पर भी बिखर गयीं। मैं स्टूल से फिसल कर बैल के नीचे ज़मीन पे फैली मनी में ही बैठ गयी। उसका लौड़ा मेरे चेहरे के सामने हिचकोले खाता हुआ बेहद लज़ीज़ नज़र आ रहा था। मुझसे रहा नहीं गया और मैं लपक कर आगे झुकते हुए लंड को अपनी ज़ुबान से चाटने लगी जो कि मनी और चूत के पानी से सना हुआ था। उसके लंड की नोक से ले कर पीछे तक तमाम लौड़े पे अपनी ज़ुबान फ़िरा-फ़िरा कर चाटते हुए मैं बैल की मनी और अपनी चूत के पानी के मिलेजुले लज़ीज़ ज़ायके का तब तक मज़ा लेती रही जब तक उसका लंड छोटा होके ढीला पड़ कर नीचे नहीं लटकने लगा। उसकी मनी का मीठा सा मलाई जैसा ज़ायका इस कदर लज़्ज़तदार था कि पहले तो मैं अपनी चूत और रानों को अपनी हाथ से पोंछ कर चाटा और फिर कच्चे फर्श पे फैली मनी भी अपने चुल्लू में इक्कट्ठा करके खूब मज़े से चाट गयी।
बैल के साथ लज़्ज़त- अमेज़ मुनफ़रीद चुदाई से मेरी चुदैल चूत झड़-झड़ कर निहाल हो गयी थी। मैं मुतमईन होकर उठी और बाड़े की रेलिंग पे पड़ा हुआ अपना रोब उठा कर नंगी ही छप्पर से बाहर निकल आयी। चलते हुए मेरी चूत में से बैल की मनी मुझे अपनी रानों पे रिसती हुई महसूस हो रही थी। मेरी रानों और टाँगों से लेकर मेरे सैंडल वाले पैरों तक मेरा जिस्म वैसे भी बैल की मनी से सना हुआ चिपचिपा रहा था। छप्पर से बाहर निकल कर मैंने रोब की जेब में से सिगरेट निकाल कर सुलगायी और ऊँची पेंसिल हील की सैंडल में बिल्कुल मादरजात नंगी मैं झुमती हुई अपने कमरे की तरफ़ चल पड़ी। अगले दिन मैं सुबह नौ बजे तक सोती रही। ग्यारह बजे से तीन बजे तक सी-बी-एस-ई के ऑफिस फिर मेरी मीटिंग थी और उसके बाद रात तक मुझे वापस अपने घर पहुँचना था। लेकिन मैंने एक और रात यहाँ रुककर अगले दिन सुबह अपने घर वापस जाने का फैसला किया। ज़ाहिर है उस रात भी मैंने बैल के साथ चुदाई के खूब मज़े लिये। बैल से अपनी चुदाई के हसीन मज़ेदार तजुर्बे को मैंने उन चारों लड़कों को भी ज़ाहिर नहीं किया और उस वाक़िये के बाद मुझे दोबारा कभी किसी बैल से चुदवाने का मौका भी नहीं मिला।
करीब दो सालों से इस तरह मैं दोहरी ज़िंदगी में बखूबी तालमेल बनाये हुए खूब मज़े से जी रही हूँ। दुनिया की नज़रों में मैं बेहद शाइस्ता और मोहज़्ज़ब... परहेज़गार और पाकीज़ा औरत हूँ। लोग मुझे एक बेहद स्ट्रिक्ट और पुर-ख़ुलूस इज़्ज़तदार टीचर की हैसियत से पहचानते हैं। अक्सर लोग इस बात की सरहाना करते हैं कि मैं पढ़ाई में कमज़ोर स्टूडेंट्स को रोज़ाना शाम को भी वक़्त निकाल कर अपने घर पे मुफ़्त में पढ़ाती हूँ। स्कूल में पढ़ाने के अलावा दूसरी इंतेज़ामी जिम्मेदारियाँ भी बखूबी निभाती हूँ। हालांकि मेरी एय्याशियों की वजह से मेरी एम-ए की पढ़ाई तो बिल्कुल नज़र-अंदाज़ हो चुकी है लेकिन फिर भी जल्दी ही सरकारी तौर पे भी वाइस प्रिंसीपल मुकर्रर होने की उम्मीद है। अपना रुत्बा इसी तरह क़ायम रखने के लिहाज़ से ऊपरी तौर पे मेरे लिबास वगैरह में भी पहले के मुकाबले ज़रा भी तब्दीली नहीं आयी है। आज भी पहले की तरह ही फैशनेबल लेकिन मुनासिब और शाइस्ता कपड़े ही पहनती हूँ। कपड़ों के मामले में अगर एक तब्दीली हुई है तो वो ये कि सहुलियत के लिहाज़ से पैंटी पहनना ज़रूर छोड़ दिया है।
नेकी और शराफ़त के इस सतही नक़ाब के पीछे मेरी दूसरी असल ज़िंदगी बिल्कुल मुख्तलीफ़ है। सिर्फ़ गिने-चुने लोग खासतौर पे मेरे कुछ स्टूडेंट्स ही मेरी चुदई-परस्त, निंफोमानियक पर्वर्टिड शख्सियत से रुबरू हैं। मुझे ज़रा भी पछतावा या शर्मिंदगी नहीं है कि मैं एक शराब-सिगरेट पीने वाली निहायत सैक्साहोलिक और लंडखोर औरत हूँ जिस पर हर वक़्त शहूत सवार रहती है। दीन-दुनिया की बन्दिशों से आज़ाद मैं खुल कर अपने चुदास जिस्म की तमाम पर्वर्टेड हसरतें बे-ज़ब्त पूरी करती हूँ। मैं इमानदारी से कुबूल करती हूँ कि चुदाई मेरे लिये एक बुनियादी ज़रूरत है जिसकी तकमील के लिये मैं दिन भर कईं-कईं दफ़ा मुख्तलीफ़ नौजवान लड़कों और जानवरों से चुदवाने और कभी-कभार लेस्बियन चुदाई का लुत्फ़ उठाने में ज़रा भी गुरेज़ नहीं करती। अब तो मैंने अल्सेशियन कुत्ते का एक बच्चा भी पाल लिया है जो अभी सिर्फ़ तीन महीने का है लेकिन डेढ़-दो साल में मुझे चोदने के काबिल हो जायेगा। वर्जिन लड़कों को अपनी हवस का शिकार बनाने का भी कोई मुनासिब मौका नहीं छोड़ती हूँ और इसके बंदोबस्त के लिये स्कूल सबसे अच्छी और मुनासिब जगह है।
मैं तो अपनी जिस्मनी ख्वाहिशों को बिल्कुल दबा कर बेज़ार सी ज़िंदगी जी रही थी लेकिन मेरे जिस्म में दबी शहूत की चिंगारी को भड़का कर मुझे चुदक्कड़ निंफोमानियक औरत बनाने का सेहरा यकीनन मेरे उन चारों स्टूडेंट्स को जाता है जिसके लिये मैं हमेशा उनकी एहसानमंद रहुँगी।
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