RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
बैल के लंड की जसामत घोड़े या गधे के लंड जैसी ही थी लेकिन बनावट मुख्तलीफ़ थी। बैल का लंबा लंड आगे से नोकीला और थोड़ा पतला था और पीछे की तरफ़ मोटाई बढ़ती जाती थी। उसका शानदार लंड से सफ़ेद मज़ी के कतरे टपकने लगे थे जिसे देख कर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने झुक कर उस मोटी गाजर को अपने नर्म होंठों में ले लिया और उसपे ज़ुबान फिराती हुई चूसने लगी। एक मुख्तलीफ़ सी महक मेरी साँसों में घुल गयी। उसकी मज़ी का दूध जैसा मीठा सा ज़ायका बेहद लाजवाब और बाकी जानवरों से मुख्तलीफ़ था। जितना मुमकिन हो सकता था उतना लंड मैं अपने हलक तक लेकर चूसने लगी। मुझे उसका लंड चूसने और चाटने में बेहद मज़ा आ रहा था। किसी लड़के का लंड हो या जानवर का। मैं हमेशा उसकी मनी का ज़ायक़ा चखने के लिये तलबगार रहती हूँ और इस वक़्त भी बैल के लंड और उसकी लज़्ज़त दार मज़ी का ज़ायका लेते हुए मैं उसकी मनी का ज़ायका चखने के लिये बेताब हो रही थी लेकिन चूत की बेकरारी अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मेरी पुर-सोज़ चूत को आज सारा दिन लंड नसीब नहीं हुआ था। इतने अज़ीम लौड़े से अपनी चूत चुदवाने की तवक्को में मेरी चूत में से भाप उठने लगी थी और चूत का पानी स्टूल पे रिसने लगा था।
बैल का लंड भी फौलाद की तरह सख्त हो कर फड़क रहा था लेकिन वो बैल बड़े आराम से चुपचाप खड़ा हुआ मेरे होंठों और हाथों के सहलाने का मज़ा ले रहा था। उसका करीब दो फुट लंबा तना हुआ लंड तन कर खड़ा होके उसकी अगली टाँगों के करीब पहुँच रहा था। मैंने वो स्टूल बैल के नीचे उसकी अगली टाँगों के करीब खिसकाया और उस स्टूल पे इस तरह बैठ गयी की मेरे कंधे पीछे बाड़े की लकड़ी की रेलिंग पे टिके थे। बैल का लंड अपनी चूत में घुसेड़ने की सलाहियत की खातिर मुझे अपने पीछे रेलिंग के सहारे की जरूरत थी। स्टूल की उँचाई भी बिल्कुल मुनासिब थी। रेलिंग के सहारे कंधे टिका कर कमर मोड़ते हुए जब मैंने अपनी चूत ऊपर उठाई तो बैल का लंड बिल्कुल मेरी रानों के दर्मियान चूत के ठीक ऊपर सट गया। अपनी टाँगें चौड़ी फैलाते हुए अपने दोनों हाथ नीचे लेजाकर बैल का लौड़ा अपनी बेकरार चूत में घुसेड़ने लगी।
हालाँकि मुझे आहिस्ता-आहिस्ता बैल का मोटा लंड अपनी चूत में घुसेड़ना पड़ रहा था लेकिन इसमें भी मुझे बेहद मज़ा आ रहा था। अपने चूतड़ों को एक-एक करके आहिस्ता से आगे ठेलते हुए मैं उसका लंड रफ़्ता-रफ़्ता अपनी चूत के अंडर दाखिल करने लगी। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि अजगर किसी बकरे को निगल रहा हो। बैल का करीब आधा लंड अंदर लेने के बाद मुझे अपनी चूत ठसाठस भरी हुई महसूस होने लगी लेकिन घोड़ों और गधे के साथ हसीन तजुर्बों से मुझे मालूम था कि इससे और ज्यादा लंड अंदर लेने की गुंजाईश बाकी थी अभी। मैं सिसकते और कसमसाते हुए अपने चूतड़ आहिस्ता-आहिस्ता आगे ठेलती रही। गनिमत थी कि वो बैल बगैर हिलेडुले खड़ा रहा। "ओं... ऊँहह... आँह... औंहह..." उसके मोटे लंड पे अपनी चूत की दीवारों के फैलने और चिकने सख्त लंड पे अपने बाज़र के रगड़ने की कैफ़ियत में मेरे मुँह से मस्ती भरी सिसकारियाँ निकल रही थी।
अब मुझे बिल्कुल भी गिला बाकी नहीं था कि जमील मियाँ ने गेट को ताला लगा दिया था। कुत्तों से तो मैं बाकायदा चुदवाती ही रहती थी और आज अगर गेट पे ताला नहीं लगा होता तो मैं इस बैल के लंड से चुदवाने के बेमिसाल और लज़्ज़त-अमेज़ तजुर्बे से महरूम रह जाती। अल्ळाह के फ़ज़ल से इस वक़्त बैल का भारी जसीम लवड़ा मेरी चूत के अंदर धड़क रहा था और मेरी चूत के लब बैल के मोटे लवड़े पे जकड़ कर चिपके हुए थे। उसका लंड मुझे अपने जिस्म के अंदर लोहे के तपते हुए रॉड की तरह महसूस हो रहा था। मेरी चूत की दीवारें उसके लौड़े पर ऐंठ-ऐंठ कर जकड़ते हुए उसे चूसने और निचोड़ने लगी। मैं मस्ती में कराहती हुई अपने चूतड़ आगे ढकेल कर और ज्यादा लंड अपनी चूत में घुसेड़ने लगी। घोड़ों या गधे के लौड़े भी करीब आधे ही मैं अपनी चूत में ले पाती थी और इस वक़्त भी अपने चूतड़ हिला-हिला कर अपनी गाँड आगे ठेलते हुए मैं इसी कोशिश में बैल का लौड़ा एक-एक इंच करके अपनी चूत की गहराइयों में घुसेड़ रही थी। जल्दी ही जितना मुमकिन हो सकता था मैंने उसका ज्यादा से ज्याद लंड अपनी चूत में आखिर तक ठूँस लिया।
मैं अपनी गाँड हिलाते डुलाते हुए किसी पेंच पर नट की तरह अपनी चूत उस बैल के लंड पे जोर-जोर से घुमाने लगी और आहिस्ता-आहिस्ता मेरी चूत उसके जसीम लंड की मोटाई के बिल्कुल मुवाफिक़ हो गयी। मैंने अपनी चूत उसके लौड़े पे आगे-पीछे चोदने की कोशिश की तो चूत अभी भी काफ़ी कसी हुई थी। मैं कसमसाते हुए बैल के लौड़े से ठंसाठस भरी हुई अपनी चूत थोड़ी और देर गोल-गोल घुमा-घुमा कर फैलाते हुए अपने पानी से चिकना करने लगी। इसके बाद मैंने फिर चोदने की कोशिश की तो मेरी चूत बैल के लंड पे आगे-पीछे फिसलने लगी। जब मैं उसके लंड पे अपनी चूत पीछे खींचती तो चूत के लब घिसटते हुए बाहर के जानिब पलट जाते और जब मैं अपनी चूत उसके लंड पे आगे पेलती तो चूत के लब वापस अंदर मुड़ जाते। मैं मस्ती में सिसकती कराहती हुई अपनी चूत बैल के लंड पे आगे-पीछे चोद रही थी और बैल भी खड़ा-खड़ा अपना लौड़ा आहिस्ता से आगे-पीछे झुला रहा था। मेरी चूत बैल के लौड़े पे ऐसे पिघली जा रही थी जैसे कि जलती शमा के धागे के इर्द-गिर्द मोम पिघलता है और मेरे बाज़र (क्लिट) में भी मुसलसल धमाके हो रहे थे। मेरे होंठों से मस्ती में जोर-जोर से कराहें और चींखें निकलने लगी और बैल भी घुरघुराते हुए अपने एक पैर से ज़मीन पे खुरचने लगा और उसकी गर्दन आगे-पीछे झूलने लगी।
अपने पीछे बाड़े की रेलिंग के सहारे टिके हुए मैंने कच्चे फर्श में अपनी सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ गड़ा कर जुनूनी ताल में अपनी गाँड हिला-हिला कर चोदने की रफ़्तार तेज़ कर दी और बैल के लंड की जुम्बिश भी मुझे तेज़ होती हुई महसूस हुई। चुदाई की रफ़्तार अब पूरे परवान पे थी और मैं लुत्फ़-अंदोज़ी और मस्ती के आलम में बदमस्त होकर जोर-जोर से सिसकने और अनाप-शनाप गालियाँ और फ़ाहिश अल्फ़ाज़ बड़बड़ाने लगी। अचानक मेरा जिस्म अकड़ कर थरथराने लगा और मेरी चूत पानी छोड़ने लगी। अभी मेरी चूत का झड़ना खतम हुआ ही था कि कुछ ही पलों में एक दफ़ा फिर मेरी चूत में धमाका हुआ और मैं चींखते हुए दोबारा झड़ने लगी। अपनी चूत की गहराइयों में बिल्कुल आखिर तक बैल के धड़कते-फड़कते लंड से चुदते हुए फिर तो मेरी चूत में मस्ती भरे धमाकों की बौछाड़ों का ऐसा सिलसिला शुरू हो गया कि मैं मशीनगन की गोलियों की तरह मुसलसल बार-बार झड़ने लगी। मैं झड़ते हुए मस्ती में मुसलसल बेहद जोर-जोर से सिसक रही थी... कराह रही थी... चींख रही थी और बैल के लंड को बार-बार अपनी चूत के पानी से नहलाये जा रही थी। अपने ही पानी से भीग-भीग कर मेरी चूत खुद भी और ज्यादा चिकनी हुई जा रही थी जिससे उस बैल का लौड़ा ज्यादा आसानी से मेरी चूत में तेज रफ़्तार से अंदर बाहर होने लगा।
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