Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
10-11-2019, 01:17 PM,
#24
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
मेरी शहूत पूरे परवान पे थी। मेरे जिस्म के हर हिस्से से बिजली के करंट जैसी मस्ती भरी लहरें दौड़ती हुई मेरी चूत में आँधी की तरह आपस में टकराती हुई तुफ़ान मचाने लगीं। अचानक मेरी चूत में बेहद ज़ोरदार धमाका हुआ और मैं मस्ती में जोर से चींखते और छटपटाते हुए झड़ने लगी। मेरी चूत का रस सैलाब की तरह फूट पड़ा जिसे वो बकरा बेहद शौक से मेरी चूत और रानों पे से चाटने लगा। बेहद कयामत-खेज़ ऑर्गैज़्म था। आखिरकार जब मेरा झड़ना बंद हुआ तो भी मेरी चूत में लरजिश और झनझनाहट क़ायम थी।

मेरी चूत के रस की एक-एक बूँद चाट लेने के बाद वो बकरा अपना सिर उठा के बड़े तजस्सुस से मुझे देखने लगा जबकि मैं चुदास नज़रों से उसके दिलकश लंड को निहार रही थी। उसके धड़कते लंड को देख कर साफ़ ज़ाहिर था कि मेरी चूत के रस के ज़ायके और खुशबू से बकरे की शहूत भी बढ़ गयी थी। बकरे के लंड को मुँह में ले कर चूसने और उसकी मनी के ज़ायके के खयाल से मेरे जिस्म में सनसनी सी दौड़ गयी। अपने लबों पे ज़ुबान फेरते हुए मैं उसके करीब गयी। अपनी कमर गोल करके मोड़ते हुए और एक घुटना ऊपर मोड़कर मैं एक करवट पे लेटते हुए उसके नीचे झुक गयी। मेरा चेहरा बिल्कुल उसके लंड के करीब था और उसे देख कर मेरे मुँह में पानी आ रहा था। जैसे ही मैंने उसके फड़कते लंड को अपनी उंगलियों में पकड़ा तो उसका लंड मुश्तैल होकर जोर से आगे-पीछे झटके मारने लगा और अचानक उसमें से पेशाब के दो-तीन स्प्रे मेरे चेहरे पे पड़े। मेरा तमाम चेहरा उसके पेशाब से भीग गया। हालांकि उसके जिस्म से पेशाब की बू साँसों में पहले से समायी हुई थी लेकिन चेहरे पर सीधे छिड़काव से ज़बरदस्त तीखी बू-ए-पेशाब मेरी नाक में ज़ोर से टकरायी जिससे मेरी चुदास और ज्यादा भड़क गयी। अपने होंठों से उसके पेशाब का ज़ायका लेने की लिये मेरी ज़ुबान खुद-बखुद बाहर निकल आयी। मैं तो अक्सर लज़्ज़त से अपने स्टूडेंट्स का पेशाब पीती थी और किस्म-किस्म के ज़ायकों की आदी थी लेकिन बकरे के पेशाब का ज़ायका तो याल्लाह उन सबसे बेहद मुनफ़रीद और खुशगवार था। बकरे के पेशाब का तुंद-ओ-तेज़ ज़ायका मुझे बेहद शहवत अमेज़ लगा और मैं अपने होंठ चपचपाते हुए उसके ज़ायके का लुत्फ़ लेने लगी।

गर्दन आगे झुका कर मैं बड़ी बेसब्री से अपनी गरम ज़ुबान उसके तमाम लंड पे हर जगह फिराते हुए उस रसीले गोश्त को सुड़क-सुड़क कर चाटने लगी। उसका लंड मेरे चाटने से अकड़ कर फूलने लगा और वो बकरा मस्ती में अपने पैर हल्के-हल्के झटकते हुए ज़मीन पे थाप मारने लगा। उसे भी मस्ती चढ़ रही थी और इस दौरान उसके अकड़ते हुए लंड ने एक के बाद एक पेशाब के दो-तीन स्प्रे छोड़े जिन्हें मैं फोरी तौर पे सीधे अपने मुँह में लेकर बड़ी लज़्ज़त से चटखारे लेते हुए पी गयी। उसका लंड चाटते हुए मेरी प्यास और ज्यादा बढ़ती जा रही थी। मस्ती में जिस कदर मेरी चूत में रस निकल रहा था... बिल्कुल उसी मिक़दार में मेरे मुँह से राल भी बह रही थी और मेरी ज़ुबान भी मेरे बाज़र की तरह ही मुश्ताइल थी। बकरे का लंड चाटते-चाटते मैंने उसे अपने मुँह में भर लिया तो बकरे ने हल्के से झटका खाया। जिस तरह मैं अपने स्टूडेंट्स और कुत्तों का लंड मुँह में भर कर मज़े से चूसती हूँ उसी तरह बकरे का तमाम लंड मुँह में आगे-पीछे करती हुई पुर-शहवत चूस रही थी। उसके फूलते हुए लंड से रस मेरे मुँह में मुसलसल इखराज हो रहा था। उसका ज़ायका शुरू-शुरू में तो बिल्कुल उसके पेशाब की तरह था और फिर धीरे-धीरे तब्दील होकर नमकीन और खट्टी लस्सी जैसा ज़ायका होने के साथ-साथ पहले से ज्यादा सा लेसदार हो गया। उसकी लेसदार मज़ी और मेरी राल आपस में घुलकर मेरे मुँह में हर तरफ़ बहते हुए मेरे हलक में गिरने लगे। इसी तरह लज़्ज़त से बकरे का लंड चूसते हुए मेरी नाक लंड के पीछे वाले मुलायम खोल को छू रही थी। मेरे मुँह से गलगलाने और 'फच्च-फच्च' की भीगी-भीगी आवाज़ें निकाल रही थी।

बीच-बीच में उसके लंड का सिरा झटके के साथ मेरे हलक में फिसल जाता तो मेरी साँस अटक सी जाती लेकिन इससे मुझे ज़रा भी दिक्कत नहीं थी क्योंकि मैं तो वैसे भी अपने हलक में लौड़े ले-ले कर चूसने में बेहद माहिर हूँ। बकरे का लंड मुँह में लेकर चूसते हुए बदकारी और फ़ाहाशी का एहसास मेरी शहूत और भड़का रहा था। उधर बकरा भी मस्ती में मुसलसल जोर-जोर से मिमिया रहा था। इतने में उसका जिस्म ज़ोर से थरथराने लगा और उसका लंड भी मेरे मुँह में फूल कर झटके खाने लगा तो मैं समझ गयी कि बकरा मेरे मुँह में अपनी मनी इखराज़ करने के करीब था। बकरे की मनी पीने की मेरी आरज़ू अब पूरी होने के करीब थी... इस ख्याल से मेरे तमाम जिस्म में मस्ती भरी सनसनी लहरें दौड़ने लगीं। मेरा जिस्म भी बकरे के जिस्म की तरह थरथराने लगा और अचानक उसकी मनी की तेज़ पहली धार इस कदर ज़ोर से मेरे हलक में टकरायी की मुझे झटका सा लगा और मेरी आँखें हैरत से फैल गयीं। उसके लंड से मनी की तेज़ धारें एक के बाद एक छूटने लगीं और मेरा मुँह उसकी लज़्ज़त-अमेज़ मनी से लबालब भरने लगा। मैं बड़ी शिद्दत से बकरे की मनी निगलने की कोशिश कर रही थी जैसे कि वो 'आबे-हयात' हो लेकिन अपने होंठों के किनारों से मनी बाहर बहने से मैं रोक नहीं सकी। इस दौरान वो बकरा मिमियाते हुए मेरे मुड़े हुए घुटने पे अपना सिर ऊपर-नीचे रगड़ता हुआ अपनी टाँगें फैलाये खड़ा था। आखिर में उसकी मनी का इखराज़ रुकने के बाद भी मैं उसका लंड अपने मुँह में चूसती रही और उसकी ज़ायकेदार मनी की आखिरी बूँद निचोड़ लेने के बाद ही मैंने उसका लंड अपने होठों की गिरफ़्त से आज़ाद किया।
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RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी - by sexstories - 10-11-2019, 01:17 PM

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