Free Sex Kahani काला इश्क़!
10-22-2019, 09:21 PM,
#41
RE: काला इश्क़!
update 20

उस रात मुझे बुखार चढ़ गया पर फिर भी सुबह मैं नाहा-धो के ऑफिस निकल गया| पर दोपहर होने तक हालत बहुत ज्यादा ख़राब हो गई, कमजोरी ने हालत बुरी कर दी| मैंने एक चाय पि पर तब भी कोई आराम नहीं मिला, नजाने कैसे पर मैडम को मेरी ख़राब तबियत दिख गई और वो मेरे पास आईं, मेरे माथे पर हाथ रख उन्हें मेरे जलते हुए शरीर का एहसास हुआ और उन्होंने मुझे डॉक्टर के जाने को बोला| मैं ऑफिस से निकला और बड़ी मुश्किल से घर बाइक चला कर पहुँचा| घर आते ही मैं बिस्तर पर पड़ा और सो गया, रात 8 बजे आँख खुली पर मेरे अंदर की ताक़त खत्म हो चुकी थी| मैंने खाना आर्डर किया ये सोच कर की कुछ खाऊँगा तो ताक़त आएगी पर खाना आने तक मैं फिर सो गया|  जब से मैं शहर आ कर पढ़ने लगा था तब से मैं अपना बहुत ध्यान रखता था| जरा सा खाँसी-जुखाम हुआ नहीं की मैं दवाई ले लिया करता था| मैं जानता था की अगर मैं बीमार पड़ गया तो कोई मेरी देखभाल करने वाला नहीं है, पर बीते कुछ दिनों से मैं बहुत मटूस था| ऐसा लगता था जैसे मैं चाहता ही नहीं की मैं ठीक हो जाऊँ| खाना आने के बाद उसे देख कर मन नहीं किया की खाऊँ, दो चम्मच दाल-चावल खाये और फिर बाकी छोड़ दिया और बिस्तर पर पड़ गया| रात दस बजे मैडम का फ़ोन आया और उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछा तो मैंने झूठ बोल दिया; "Mam मुझे कुछ दिन की छुट्टी चाहिए ताकि मैं घर चला जाऊँ, यहाँ कोई है नहीं जो मेरी देखभाल करे|" मैडम ने मुझे छुट्टी दे दी और मैं फ़ोन बंद कर के सो गया| वो रात मुझ पर बहुत भारी पड़ी, रात 2 बजे मेरा बुखार 103 पहुँच गया और शरीर जलने लगा| प्यास से गाला सूख रहा था और वहाँ कोई पानी देने वाल भी नहीं था| ऋतू को याद कर के मैं रोने लगा और फिर होश नहीं रहा की मैं कब बेहोश हो गया|


जब चेहरे पर पानी की ठंडी बूंदों का एहसास हुआ तो धीरे-धीरे आँखें खोलीं, इतना आसान काम भी मुझसे नहीं हो रहा था| पलकें अचानक ही बहुत भारी लगने लगी थीं, खिड़की से आ रही रौशनी के कारन मैं ठीक से देख भी नहीं पा रहा था| कुछ लोगों की आवाजें कान में सुनाई दे रही थी जो मेरे आँख खोलने पर खेर मना रहे थे| "उठो ना?" ऋतू ने मुझे हिलाते हुए कहा और तभी उसकी आँख से आँसू का एक कतरा गिरा जो सीधा मेरे हाथ पर पड़ा| अपने प्यार को मैं कैसे रोता हुआ देख सकता था, मैंने उठने की जी तोड़ कोशिश की और बाकी का सहारा ऋतू ने दिया और मुझे दिवार से पीठ लगा कर बिठा दिया| अब जा के मेरी आँखों की रौशनी ठीक हो पाई और मुझे अपने कमरे में 3-4 लोग नजर आये| मेरे मकान मालिक अंकल, उनका लड़का और उनकी बहु और बगल वाले पांडेय जी| मेरे मुँह से बोल नहीं फुट रहे थे क्योंकि गला पूरी तरह से सूख चूका था| ऋतू ने मुझे पीने के लिए पानी दिया और जब गला तर हुआ तो थोड़े शब्द बाहर फूटे; "आप सब यहाँ?"

सुभाष जी (मकान मालिक) बोले; "अरे बेटा तेरी तबियत इतनी ख़राब थी तो तूने हमें बताया क्यों नहीं? ये लड़की भागी-भागी आई और इसने बताया की तू दरवाजा नहीं खोल रहा, पता है हम कितना डर गए थे की कहीं तुझे कुछ हो तो नहीं गया?" अब मुझे सारी बात समझ आ गई, पर हैरानी की बात ये थी की ऋतू यहाँ आई क्यों? पर ऋतू को रोते हुए देख उसपर जो कल तक गुस्सा आ रहा था वो अब भड़कने लगा था| "चलिए डॉक्टर के|" ऋतू ने सुबकते हुए कहा| मैंने ना में सर हिलाया; "इतनी कोई घबराने की बात नहीं है, दवाई खाऊँगा तो ठीक हो जाऊँगा|" "आपका पूरा बदन बुखार से जल रहा है और आप इसे हलके में ले रहे हैं?" ऋतू ने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा| पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा और डॉक्टर के नहीं गया| मैं जानता था की मुझे इस तरह देख कर ऋतू को बहुत दर्द हो रहा था और यही सही तरीका था उसे सबक सिखाने का! मुझ पर भरोसा नहीं करने की कुछ तो सजा मिलनी थी उसे! चूँकि मेरा सर दर्द से फट रहा था तो मैंने उसे चाय बनाने को कहा| चाय बना के वो लाई तो सबने चाय पि पर मेरे लिए वो चाय इतनी बेसुआद थी की क्या बताऊँ! मेरी जीभ का सारा स्वाद मर चूका था, इतना बुखार था मुझे| सब ने मुझे कहा की मैं डॉक्टर के चला जाऊँ पर मैंने कहा की आज की रात देखता हूँ! आखिर सब चले गए और ऋतू मुझे दूर किचन काउंटर से देख रही थी| 1 बजा था तो मैंने उसे हॉस्टल लौटने को कहा पर अब वो जिद्द पर अड़ गई| "जब तक आप ठीक नहीं हो जाते मैं कहीं नहीं जा रही!" उसने हक़ जताते हुए कहा|

"हेल्लो मैडम! आप यहाँ किस हक़ से रुके हो?" मैंने गुस्से से कहा| जो गुस्सा भड़का हुआ था वो अब धीरे-धीरे बाहर आने लगा था|  

"आपकी जीवन संगनी होने के रिश्ते से रुकी हूँ!" उसने बड़े गर्व से कहा|

" काहे की जीवन संगनी? जिसे अपने पति पर ही भरोसा नहीं वो काहे की जीवन संगनी?" मैंने एक ही जवाब ने उसका सारा गर्व तोड़ कर चकना चूर कर दिया|

"जानू! प्लीज!" उसने रोते हुए कहा|

"तुम्हारे इस रूखे पन से मैं कितना जला हूँ ये तुम्हें पता है? वो तुम्हारे कॉलेज के बाहर रोज आ कर रुकना इस उम्मीद में की तुम आ कर मेरे सीने से लग जाओगी! अरे गले लग्न तो छोडो तुमने तो एक पल के लिए बात तक नहीं की मुझसे! ऐसे इग्नोर कर दिया जैसे मेरा कोई वजूद ही नहीं है! कैसे की मैं तुम्हारे लिए कोई अनजान आदमी हूँ! मैं पूछता हूँ आखिर ऐसा कौन सा पाप कर दिया था मैंने? तुम्हें सब कुछ सच बताया सिर्फ इसलिए की हमारे रिश्ते में कोई गाँठ न पड़े और तुमने तो वो रिश्ता ही तार-तार कर दिया| जानता हूँ एक पराई औरत के साथ था पर मैंने उसे छुआ तक नहीं, उसके बारे में कोई गलत विचार तक नहीं आया मेरे मन में और जानती हो ये सब इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ| पर तुम्हें तो उस प्यार की कोई कदर ही नहीं थी| जब मुंबई गया था तब तुमने एक दिन भी मेरा कॉल उठा कर मुझसे बात नहीं की, सारा टाइम फ़ोन काट देती थी| पिछले दो हफ़्तों से तुम ने मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया!!! किस गलती की सजा दे रही थी मुझे?" मेरे शूल से चुभते शब्दों ने ऋतू के कलेजे को छन्नी कर दिया था और वो बिलख-बिलख कर रोने लगी| "I’m …really ….very very…. sorry! मैंने आपको बहुत गलत समझा| ऋतू ने रोते हुए कहा| फिर उसने अपने आँसूँ पोछे और हिम्मत बटोरते हुए कहा; "उस दिन मैं आपके ऑफिस जान बुझ कर आई थी अनु मैडम से मिलना| मुझे देखना था ... जानना था की आखिर उसमें ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं! पर उनसे बात कर के मुझे जरा भी नहीं लगा की उनका या आपका कोई चक्कर है! मैंने उनसे पूछा क्या आप उनके पति हो तो उनके चेहरे पर मुझे कोई शिकन या गिल्ट नहीं दिखा| मुझे वो बड़ी सुलझी और सभ्य लगीं, उस दिन मुझे खुद पर गुस्सा आया की मैंने उनके बारे में ऐसा कुछ सोचा| वो तो आपको सिर्फ अपना दोस्त मानती हैं! मुझे बहुत गिलटी हुई की मेरे इस बचपने की वजह से मैंने आपको इतना तड़पाया इतना दुःख दिया| आप चाहते तो वो सब उनके साथ कर सकते थे और मुझे इसकी जरा भी भनक नहीं होती| पर आपने सब सच बताया और यही सोच-सोच कर मैं शर्म से मरी जा रही थी| मुझे माफ़ कर दीजिये! मैं वादा करती हूँ की मैं आज के बाद कभी आप पर शक नहीं करुँगी|” 

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बिस्तर से उठ के बाथरूम जाने को उठा तो एहसास हुआ की मुझे बहुत कमजोरी है| ऋतू तेजी से मेरे पास आई और मुझे सहारा दे कर उठाने लगी| बाथरूम से वापस भी उसी ने मुझे पलंग तक छोड़ा| मैं लेटा और लेटते ही सो गया और करीब घंटे भर बाद ऋतू ने मुझे खाना खाने को उठाया| "मैं खा लूँगा, तुम हॉस्टल वापस जाओ|" इतना कह के मैं उठ के बैठ गया, पर मेरी बातों से झलक रहे रूखेपन को ऋतू मेहसूस कर रही थी| वो दरवाजे तक गई और दरवाजे की चिटकनी लगा दी और मेरी तरफ देखते हुए अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर कड़ी हो गई; "मैं कहीं नहीं जाने वाली! जब तक आप तंदुरुस्त नहीं हो जाते मैं यहीं रहूँगी, आपके पास!"


"बकवास मत कर! हॉस्टल में क्या बोलेगी की रात भर कहाँ थी और घर पर ये खबर पहुँच गई ना तो तुझे घर बिठा देंगे, फिर भूल जाना पढ़ाई-लिखाई!" ये कहते-कहते मेरे सर में दर्द होने लगा तो मैं अपने दोनों हाथों से अपना सर पकड़ के बैठ गया| मेरा सर झुका हुआ था तो ऋतू मेरे नजदीक आई और मेरी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई और बोली; "मैंने आपके फोन से आंटी जी को फ़ोन कर दिया और उन्हें आपकी तबियत के बारे में सब बता दिया| उन्होंने कहा है की मैं यहाँ रुक सकती हूँ|” ये सुनते ही मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने अपनी गर्दन घुमा ली; “तेरा दिमाग ठिकाने है की नहीं?!” मैंने उसे गुस्से से डाँटा पर उसका उस पर कोई असर नहीं पड़ा, वो बस सर झुकाये वहीँ खड़ी रही| "तू क्यों सब कुछ तबाह करने पर तुली है? तुझे यहाँ आने के लिए किसने कहा था? कॉलेज में भी तेरी दोस्त का हमारे रिश्ते के बारे में तूने सब बता दिया और यहाँ भी सब को हमारे बारे में सब पता चल गया है, अब तू हॉस्टल नहीं जाएगी तो वो सब क्या सोचेंगे?"  माने उसे समझाया, जो शायद उसके दिमाग में घुसा या फिर वो मुझे मैनिपुलेट करते हुए बोली; "आज आपकी तबियत बहुत ख़राब है! मुझे बस आज का दिन रुकने दो, कल आपकी तबियत ठीक हो जाएगी तो मैं वापस चली जाऊँगी| प्लीज...." ऋतू ने हाथ जोड़ कर मुझसे मिन्नत करते हुए कहा| अब मैं थोड़ा पिघल गया और उसे रुकने की इजाजत दे दी| वो खुश हो गई और थाली में दाल-चावल परोस के लाई और खुद ही मुझे खिलाने लगी, मैंने मना किया की मैं खा लूँगा पर वो नहीं मानी| पहला कौर खाते ही मुझे एहसास हुआ की खाने में कोई टेस्ट ही नहीं है! बिलकुल बेस्वाद खाना! मेरी शक्ल से ही ऋतू को पता चल गया की खाने में कुछ तो गड़बड़ है तो उसने एक कौर खा के देखा और बोली; "नमक-मिर्च सब तो ठीक है?!" पर मैं समझ गया की बुखार के कारन ही मेरे मुँह से स्वाद चला गया है और इसलिए खाने का मन कतई नहीं हुआ| पर ऋतू ने प्यार से जोर-जबरदस्ती की और मुझे खाना खिला दिया| मैं बस खाने को पानी के साथ लील जाता की कम से कम पेट में चला जाए तो कुछ ताक़त आये|


खाना खा कर ऋतू ने मुझे क्रोसिन दी और मैं फिर से लेट गया और फिर सीधा शाम 5 बजे उठा| बुखार उतरा तो नहीं था बस कम हुआ था, तो मैंने ऋतू से कहा की वो हॉस्टल चली जाए| "आपका बुखार कम हुआ है उतरा नहीं है| रात में फिर से चढ़ गया तो?" उसने चिंता जताते हुए कहा| फिर वो पानी गर्म कर के लाई और उसने मुझे 'स्पंज बाथ' दिया और दूसरे कपडे दिए पहनने को| फिर वही बेस्वाद चाय पि, हम दोनों में अब बातें नहीं हो रही थी| ऋतू बीच-बीच में कुछ बात करती थी पर मैं उसका जवाब हाँ या ना में ही देता था| फिर वो रात का खाना बनाने लगी, पर मेरा मन अब कमरे में कैद होने से उचाट हो रहा था| मैं खिड़की पास खड़ा हो गया और ठंडी हवा का आनंद लेने लगा| ऋतू ने मुझे बैठने को एक कुर्सी दी और कुछ देर बाद वहाँ मोहिनी आ गई|      

                "अरे मानु जी! क्या हालत बना ली आपने?" उसकी आवाज सुनते ही मैं चौंक कर गया और उसकी तरफ हैरानी से देखने लगा| "दीदी ये तो बेहोश हो गए थे मकान मालिक से डुप्लीकेट चाभी ली और घर खोला तब ...." ऋतू के आगे बोलने से पहले ही मैं बोल पड़ा; "अब पहले से बेहतर हूँ, वैसे अच्छा हुआ तुम आ गई| जाते समय इसे साथ ले जाना|"

"अरे अभी तो आई हूँ? और आप जाने की बात आकर रहे हो? बड़े रूखे हो गए आप तो? कहाँ गए आपकी chivalry???" मोहिनी मुझे छेड़ते हुए बोली|

"chivalry से तौबा कर ली मैंने! खाया-पीया कुछ नहीं गिलास तोडा बारह आना|" मैंने ऋतू को टोंट मारते हुए कहा| ये सुन कर ऋतू ने मोहिनी से नजर बचा कर कान पकडे और दबे होठों से सॉरी बोला|

"ऐसा क्या होगया की हमारे chivalry के राजा ने तौबा कर ली? बैठ इधर ऋतू मैं तुझे एक किस्सा सुनाऊँ| बात तब की है जब हम दोनों कॉलेज में थे, पढ़ाई में मैं जीरो थी हाँ उसके आलावा कल्चरल प्रोग्राम में मैं हमेशा आगे रहती थी| बाकी सारे सब्जेक्ट्स तो मैं जैसे-तैसे संभाल लेती पर एकाउंट्स मेरे सर के ऊपर से जाता था और तुम्हारे चहु ठहरे एकाउंट्स के महारथी| मेरी माँ ने इन्हें मुझे पढ़ाने के लिए बोला वो भी घर आ कर| तो जनाब हमेशा मुझे 2 फुट की दूरी से पढ़ाते थे| ऐसा नहीं था की माँ का डर था बल्कि वो तो ज्यादातर बहार ही होती थीं पर मजाल है की कभी इन्होने वो दो फुट की दूरी बाल भर भी कम की हो! अब मुझे इनके मज़े लेने होते थे तो मैं जानबूझ कर कभी-कभी इनके नजदीक खिसक कर बैठ जाती और ये एक दम से पीछे सरक जाते| इनकी मेरे नजदीक आने से इतनी फटती थी की पूछ मत! पूरे कॉलेज को पता था की जनाब मुझे पढ़ाते हैं और वो सब पता नहीं क्या-क्या बोलते थे इन्हें| कइयों ने इन्हें चढ़ाया की आज तू मोहिनी का हाथ पकड़ ले और बोल दे उसे की तू उससे प्यार करता है, उसे मिनट नहीं लगेगा पिघलने में पर आज तक इन्होने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा|"


ऋतू ये सब सुन कर हैरान थी क्योंकि मैंने उसे ये सब कभी नहीं बताया था, पर ये सुनने के बाद उसे बहुत बुरा लग रहा था की क्यों उसने मुझे पर शक किया| खेर चाय पीना और कुछ गप्पें मारने के बाद मोहिनी हँसती हुई  बोली; "चलो आपके बीमार पड़ने से एक तो बात अच्छी हुई, की इसी बहाने पता तो चल गया की आप रहते कहाँ हो?! अब तो आना-जाना लगा रहेगा|"

"अगर एक बार पूछ लेते तो मैं वैसे ही बता देता|" मैंने भी हँसते हुए बता दिया|

"अच्छा जी? चलो आगे से ध्यान रखूँगी| चल भई रितिका?"

"दीदी प्लीज मैं आज यहीं रुक जाऊँ? अभी बुखार सिर्फ कम हुआ है उतरा नहीं है, रात को तबियत ख़राब हो गई तो कौन यहाँ देखने वाला?" ऋतू ने मिन्नत करते हुए कहा|

"कोई जर्रूरत नहीं है, मैं ठीक हूँ|" मैंने उसी रूखेपन से जवाब दिया|

"कोई बात नहीं तू रुक जा यहाँ|" मोहिनी ने ऋतू के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा| फिर मेरी तरफ देख कर बोली; "आप ना ज्यादा उड़ो मत! वरना मैं भी यहीं रुक जाऊँगी| वैसे भी अब तो आपने chivalry से तौबा कर ही ली है, तो अब तो कोई दिक्कत नहीं होगी आपको?!" मोहिनी ने मुझे छेड़ते हुए कहा|     

"यार आप अब भी नहीं सुधरे!" मैंने हँसते हुए कहा|

"जो सुधर जाए वो मोहिनी थोड़े ही है|" इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए चली गई| ये सब सुन कर अब तो जैसे ऋतू के मन में प्यार का सागर उमड़ पड़ा| उसने बड़े प्यार से खाना बनाया पर नाक बंद थी और जो थोड़ी-बहुत खुशबु मैं सूँघ पाया उससे लगा की खाना जबरदस्त बना होगा, पर जब ऋतू ने मुझे पहला कौर खिलाया तो वही बेस्वाद! जैसे -तैसे खाना निगल लिया और फिर ऋतू को खाने के लिए बोला| वो अपना खाना ले कर मेरे सामने बैठ गई और खाने लगी| खाने के बाद उसने मुझे फिर से क्रोसिन दी और हम दोनों लेट गए| रात के 1 बजे मुझे फिर से बुखार चढ़ गया और मैं बुरी तरह कँप-कँपाने लगा| ऋतू शायद जाग रही थी तो उसने मेरी कँप-कँपी सुनी और तुरंत लाइट जलाई और उठ कर मुझे पीठ के बल लिटाया| जैसे ही उसने मेरे माथे को छुआ तो वो चीख पड़ी; "हाय राम! अ...अ....आपका बदन तो भट्टी की तरह जल रहा है!" सबसे पहले उसने मुझे थोड़ा बिठाया और एक क्रोसिन की गोली दी फिर उसने आननफानन में सारी चादरें उठाई और एक-एक कर मुझ पर डाल दी| पर मैं अब भी काँप रहा था, ऋतू की आँखों से आँसूँ बहने लगे और जोर-जोर से मेरे हाथ और पाँव मलने लगी| जब उसे कुछ और नहीं सुझा तो वो उठी और आ कर मेरी बगल में लेट गई और मुझे उसने अपनी तरफ करवट करने को कहा| उसने मेरा मुँह अपनी छाती में दबा दिया और खुद मुझसे इस कदर लिपट गई जैसे की कोई जंगली बेल किसी पेड़ से लिपट जाती है| मैंने भी उसे कस कर जकड लिया और अपने ऊपर भी उसने वो चादरें डाल ली और मेरी पीठ रगड़ने लगी| उसकी सांसें तेज चलने लगी थी, वो घबरा रही थी की कहीं मैं मर गया तो? उसने बुदबुदाते हुए कहा; "मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगी| प्लीज.....प्लीज... मुझे छोड़ कर मत जाना| आपके बिना मेरा कौन है? कैसे जीऊँगी मैं?" करीब एक घंटा लगा मेरे जिस्म पर दवाई का असर होने में और मेरी कँप-कँपी थम गई| ऋतू के सारे कपडे मेरे माथे और उसके जिस्म के पसीने से भीग चुके थे! धीरे-धीरे हम दोनों इसी तरह एक दूसरे की बाहों में सो गए| सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली और मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से धीरे से छुड़ाया और उसके मस्तक पर चूमा| बुखार अब कम था पर मेरे होठों के एहसास से ऋतू जाग गई और मुझे जागता हुआ पा कर मेरी आँखों में देखते हुए पूछा; "अब आपकी तबियत कैसी है?" माने मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिलाई और वो समझ गई की मैं ठीक हूँ| उसने मेरा माथा छुआ तो घबरा गई और बोली; "बुखार खत्म नहीं हुआ आपका! आज आपको मेरे साथ डॉक्टर के चलना होगा|" मैंने जवाब में बस हाँ कहा| कल तक मुझे जो गुस्सा ऋतू पर आ रहा था वो अब प्यार में बदल गया था| अब मैं उससे अब अच्छे से बात आकर रहा था और वो भी अब पहले की तरह खुश थी| नाश्ता कर के वो मेरे साथ हॉस्पिटल के लिए निकली पर मेरे जिस्म में ताक़त कम थी तो नीचे आ कर हमने फ़ौरन ऑटो किया और हॉस्पिटल पहुँचा| डॉक्टर ने चेक-अप किया और डेंगू का टेस्ट कराने को कहा| ये सुनते ही ऋतू बहुत घबरा गई, मानो की जैसे डॉक्टर ने कहा हो की मुझे कैंसर है| खेर ब्लड सैंपल देने के टाइम जब नर्स ने सुई लगाईं तो ऋतू से वो भी नहीं देखा गया और मुझे होने वाला उसके चेहरे पर दिखने लगा, उसका बचपना देख नर्स भी हँस पड़ी| खेर हम दवाई ले कर घर लौटे और रिपोर्ट कल सुबह आने वाली थी|
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:24 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:26 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:18 PM
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:36 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-13-2019, 11:43 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-14-2019, 08:59 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:28 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-15-2019, 11:56 AM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 01:14 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-15-2019, 06:12 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 06:56 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 07:45 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 07:51 PM
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 11:39 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-17-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-18-2019, 05:00 PM
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RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-22-2019, 11:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 12:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 10:13 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-24-2019, 10:26 PM

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