Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-07-2019, 01:25 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
निशा मेरे थोड़ा पास आते हुए – मैने सोचा तुम और रुकोगे यहाँ.

मैं- नही, अभी चलते है दो तीन दिन गाँव रुक कर फिर देल्ही निकल लेंगे.

निशा- कभी कभी मैं तुमको समझ नही पाती हूँ.

मैं- मैं भी.

मैने निशा के माथे पर एक किस किया और बोला- सो जा निशा.

उसने अपना सर मेरे सीने पर रखा और आँखो को बंद कर लिया , चाँदनी रात मे निशा आज कुछ अलग सी ही लग रही थी , क्या ये जिस्म की ज़रूरत थी या मैं सच मे ही उसकी ओर खींचा चला जा रहा था , पर जो भी था अब निशा के सिवा मेरा और था भी तो कौन. कुछ ठंड सी लग रही थी तो मैने एक चादर हम दोनो के उपर डाल ली और सो गया.

सुबह हम तैयार हो चुके थे, तो मैं बस सबको बाइ बोल रहा था कि अशोक भाई और रीना भाभी मेरे पास आए .

भाभी- मनीष, उस बात पे गौर करना जो मैने तुमसे कही थी.

मैं- किस बारे मे भाभी.

भाभी- निशा के बारे मे , स्टुपिड. तुम चाहे मानो या ना मानो पर मैं जानती हूँ निशा ही वो लड़की है जो तुम्हे थाम सकेगी, क्योंकि उस से बेहतर तुम्हे कोई नही समझता , जैसे तुम्हे महसूस कर लेती है वो और सबसे बड़ी बात तुमसे प्यार करती है वो.

भाई- देखो, कुछ चीज़ो से हम लाख कॉसिश कर ले लेकिन भाग नही सकते हमे बस जीना होता है , वैसे तो हम फ़ौज़ियो की ज़िंदगी की डोर का कुछ पता नही पर जितना भी जीने को मिले राज़ी खुशी जी लो यार, चलो अपना मत सोचो पर जब भी तुम्हारी रूह मिथ्लेश से मिलेगी वो बस तुमसे एक सवाल पूछेगी- कि मैं तो अपनी तमाम मुस्कुराहटें तुम्हे सौंप गयी थी , तब क्या कहोगे उस से. नियती से कब तक भगॉगे और फिर निशा जैसी सुलझी हुई लड़की तुम्हे कहाँ मिलेगी, बाकी करो जो करना है हम होते ही कौन है .

मैं- ऐसा क्यो कहते हो भाई, मैं कोशिश तो कर रहा हूँ ना.

भाई- एक बार निशा के दिल को टटोल कर देखो, तुम्हे कोशिश नही करनी पड़ेगी.

भाई और भाभी बहुत देर तक मुझे समझाते रहे, वो ये भी चाहते थे कि मैं कुछ दिन और रुक जाउ पर मुझे तो जाना ही था तो सब लोगो से विदा लेकर मैं और निशा गाँव के लिए चल दिए. पहुचते पहुचते शाम हो गयी थी. चाय-नाश्ता किया निशा घर पर ही रुक गयी और मैं चाची के साथ खेतो की तरफ आ गया.
चाची ने कमरे का ताला खोला और चारपाई बाहर निकाल ली.

मैं- टाइम कितना बदल गया ना.

चाची- हाँ, ऐसे लगता है जैसे बस कल ही की बात है. जैसे कल तक तुम ऐसे ही बेफ़िक्रे इन खेत खलिहानो मे घुमा करते थे, शराराते किया करते थे.

मैं- हाँ, चाची मुझे सब की बहुत याद आती है, अब अपने पैरो पे खड़ा तो हो गया हूँ पर फिर भी सच कहूँ तो काश एक बार फिर वो वक़्त आ जाए तो , मैं एक बार फिर से उसी वक़्त को , उसी अंदाज को , उसी बेफकरी मे जीना चाहता हूँ.

चाची- वक़्त बदल गया है मनीष अब कुछ नही पहले जैसा यहाँ तक कि हम भी तो बदल गये है, खैर मैं कुछ काम निपटा लूँ, तुम चाहो तो थोड़ा आराम करो या फिर आस पास घूम लो .

मैं भी उठ कर थोड़ा आगे को चल दिया, जैसे एक मुद्दत ही हो गयी थी मैं इस तरफ आया ही नही था. हमारे खेतो से थोड़ा आगे सेर मे एक बड़ा सा नीम का पेड़ होता था जिस की छाया मे बहुत समय गुज़रा था मेरा, एक बार फिर से उस नीम को देख कर बहुत अच्छा लगा मुझे. पास ही एक पानी की टंकी होती थी जो अब नही थी, शायद रोड को पक्का करने मे उसे यहाँ से हटा दिया गया था. ऐसा लगता था कि जैसे जमाना एक तेज रफ़्तार से आगे बढ़ गया था और मैं आज भी अपनी उसी बारहवी क्लास वाले साल मे अटका हुआ था.

वो दिन भी क्या दिन थे, मेरा अतीत मुझ पर हावी होने लगा था. मेरे अंदर का जो आवारापन था , जैसे मैं कोई बंजारा था जो बस भटक रहा था इधर उधर. पर मैने सोचा कि एक बार फिर अपने पुराने दिनो की याद को ताज़ा करना है, मैने सोचा कि कल सुबह ही निशा को लेकर निकल जाउन्गा और पूरा दिन बस घूमना है, तमाम उन चीज़ो को एक बार फिर से देखना है जो आज भी मेरा इंतज़ार कर रही थी.

उसके बाद मैं वापिस कुँए पर आ गया. चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी.

चाची- कहाँ चले गये थे.

मैं- बस थोड़ा आगे तक.

मैं- चाची, एक बात कहूँ.

चाची- हाँ,

मैं- दोगि क्या.

चाची- अच्छा तो अब तुझे चाची की याद आई है, मैं तो सोची कि अब मुझे भूल ही गया है तू तो.

मैं- ऐसी बात नही है बस उलझा हूँ अपनेआप मे उसी का असर है और कुछ नही.
चाची- रात को चुप चाप मैं छत पे आ जाउन्गी.

मैं- यही करते है ना, वैसे भी मैने अरसे से खेत मे सेक्स नही किया है. वैसे भी घर पर निशा होगी उसके सामने मैं ये सब नही करना चाहता.

चाची- चोरी छिपे क्यो करते हो फिर, बेटा माना कि तुम्हारे और मेरे जिस्मानी रिश्ते है पर मैं फिर भी कहूँगी कि अब तुम्हारी ज़िंदगी मे हम नही बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ है , तू करना चाहता है तो कर ले मैं मना नही करूँगी पर बेटा, वो तुझे बहुत चाहती है , उसकी आँखो मे तेरे लिए बेशुमार चाहत है , उसके दिल को समझ, सिर्फ़ वो ही है जो तुम्हे सब से ज़्यादा जानती है, उसका हाथ थाम लो. यही सही होगा तुम्हारे लिए.

चाची की बात बिल्कुल सही थी. मुझे अब आगे बढ़ कर निशा का हाथ थामना चाहिए था, निशा जो जैसे मेरी सोचों पर छाई थी, मेरा हमदम थी. मेरा जो भी थी अब वो ही थी. मैने फिर चाची के साथ सेक्स नही किया और कुछ देर बाद हम घर आ गये. और आते ही मैं सीधा निशा के पास गया जो बस अभी सो कर उठी थी, अलसाया सा उसका चेहरा, बिखरे बार उसके चेहरे पर बेतारीब बिखरे हुए .

निशा- ऐसे क्या देख रहे हो.

मैं- बस तुम्हे.

निशा- पर मुझे तो रोज ही देखते हो.

मैं- मेरी जितनी मर्ज़ी होगी उतना देखूँगा.

निशा- ओके बाबा, देख लेना पर अभी ज़रा हाथ मूह धो लूँ.

मैं रसोई मे गया और दो कप चाय बनाने लगा कुछ देर मे निशा भी वही पर आ गयी.

निशा- मनीष, आख़िर तुम खुद को कैसे इतना सिंपल रख पाते हो, देखो जमाना कितना बदल गया और तुम आज भी जैसे बचपन मे ही अटके हुए हो, आज भी तुम सिर्फ़ डबल डाइमंड चाय पीते हो, कहने को तो ऑफीसर हो पर फिर भी स्टॅंडर्ड के हिसाब से तुम्हे कॉफी पीना चाहिए या कुछ ऑर.

मैं- सिंपल होना ही सबसे बड़ी मुश्किल है मेडम आज की इस भागती ज़िंदगी मे, दुनिया चाहे कुछ भी समझे पर आज के इस सेल्फिश जमाने के साथ चलना मुझे पसंद नही, मैं बस अपने आप मे ही जीना चाहता हूँ, और सही कहा तुमने मैं जान बुझ कर ही आगे नही बढ़ना चाहता, क्योंकि उस दौर मे जब हम छोटे थे जीना तभी सीखा था मैने और सच तो ये है कि मैं उस दौर मे ही जी चुका अब तो बस साँसे है.

मैने निशा के हाथ मे चाय का कप दिया और बोला- कल सुबह जल्दी उठ जाना

निशा- क्यो

मैं- खुद जान लेना .

निशा- चलो ठीक है पर अभी खाने मे क्या खाओगे, बता दो मैं जल्दी से बना देती हूँ.

मैं- अभी तो बस मेगि ही बना दो , पर सुबह मेरे लिए राबड़ी बना देना बहुत दिन हुए मैने राबड़ी नही पी है और हाँ दो रात की रोटी भी रख देना,

निशा- जो हुकम सरकार.

जब तक निशा बिज़ी थी मैं अनिता भाभी से मिलने चला गया पर हमेशा की तरह मेरी शक्की ताई की वजह से मैं भाभी से कुछ बात नही कर पाया , सो डिन्नर किया और अपना बिस्तर छत पर लगा दिया रात के करीब 11 बजे , मेरा रेडियो बज रहा था हमेशा की तरह 90’स के शानदार गाने स्लो आवाज़ मे उस ठंडी सी हवा के साथ मेरे दिल को धड़का रहे थे. और ना जाने कब मेरी बगल मे निशा आकर लेट गयी.
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