RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
अगली सुबह वो काफी देर से उठा तब तक राजन जा चुका था और सोनिया व नेहा फ्रेश हो कर चाय-नाश्ता भी कर चुकी थीं। जाने कहाँ से नेहा को पता चल गया और वो उसके लिए कॉफ़ी लेकर आ गई। उसके व्यवहार से ये बिल्कुल नहीं लग रहा था कि उसे रात के बारे में कुछ भी याद है।
समीर को इस बात से सुकून मिला कि नेहा को कुछ याद नहीं था, वरना वो तो इसी बात से चिंतित था कि कहीं उसे कुछ याद रह गया तो ये जो उनके रिश्ते में थोड़ी नज़दीकियां बनी हैं ये भी कहीं हाथ से निकल न जाएं।
कॉफी पीकर समीर बाहर आया तो सोनिया ने कहा- समीर, नाश्ता लगा दिया है, लेकिन थोड़ा कम ही लेना क्योंकि इतना देर से उठे हो कि खाने का समय भी बस हो ही गया है। नाश्ता करके नहा लेना, फिर सब साथ में खाना खाएंगे।
समीर- जी दीदी!
नाश्ता करके समीर घर में इधर उधर टहलने लगा। नेहा ने अब एक दूसरी ड्रेस पहन ली थी जो उस रात वाले टी-शर्ट से कोई बहुत अलग नहीं थी। फर्क इतना था कि ये थोड़ी कसी हुई थी और इस पर ऊपर से नीचे तक काली और सफ़ेद पट्टियां थीं।
एक बात और, ये घुटनों से काफी ऊपर भी थी और इसकी बाँहें कलाइयों तक पूरी ढकी हुई थीं। नेहा बहुत सेक्सी लग रही थी इसमें। समीर ने तो ऐसी ड्रेस पहने केवल 1-2 लड़कियों को ही देखा था वो भी कॉलेज की पार्टी में।
खाना लगभग तैयार था इसलिए सोनिया ने समीर को जल्दी से जा कर नहाने के लिए कहा तो वो नहाने चला गया।
अभी ठीक से नहाना शुरू भी नहीं किया था कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी।
नेहा- बड़ी जल्दी सारा सिस्टम समझ गए समीर! मैं तो डर गई थी कि कहीं आज भी घंटा भर रोक के न रखना पड़े।
समीर को कमोड का ढक्कन खोलने की आवाज़ आई और साथ में ये ख्याल भी कि पर्दा तो शावर में लगा है कमोड तो खुले में है। तब तक नेहा के पेशाब करने की आवाज़ भी आने लगी थी। शस्स्स्सऽऽऽ…
उसने हिम्मत करके स्लाइडिंग दरवाज़े को थोड़ा खोला और परदे के किनारे से आँख लगा कर बाहर देखा। ठीक सामने नेहा कमोड पर बैठ कर पेशाब करती हुई दिखाई दी। उसकी ड्रेस नाभि से ऊपर तक उठी हुई थी, ज़ाहिर है कोई पैंटी नहीं थी और चूत बिल्कुल चिकनी… समीर के मन में रात वाली कोमल अनुभूति ताज़ा हो गई। लेकिन छूने और देखने दोनों की अपनी अलग अनुभूति होती है।
वो डबलरोटी के बन की तरह फूले और आपस में चिपके दो चिकने भगोष्ठ, उनके बीच से बाहर झांकती छोटी सी भगनासा (क्लिट)। उसके नीचे से निकलती पानी की धार… हाँ वो पीली बिल्कुल नहीं थी। बिल्कुल पानी की तरह साफ पेशाब की धार जो सीधा कमोड में गिर रही थी।
समीर ने सोचा था कि पैंटी शायद नीचे पैरों में फंसी होगी लेकिन वो वहां भी नहीं थी। मतलब आज नेहा ने कोई पैंटी पहनी ही नहीं थी?
इसका जवाब भी जल्दी ही मिल गया। नेहा ने बाजू से एक टिश्यू लेकर अपनी चूत को साफ़ किया और खड़ी हो गई। कमोड को बंद करके वो सिंक के पास गई और वहां से अपनी पैंटी (जी-स्ट्रिंग) उठाई। वो उसे पहनने के लिए झुकी लेकिन फिर रुक गई, वापस खड़े हो कर उसने उसे सूंघा और फिर वहीं प्लेटफॉर्म पर रख दिया और खुद को आइने में निहारने लगी।
उसकी वो ड्रेस जो अब तक उसकी नाभि के ऊपर तक चढ़ी हुई थी, उसे नीचे करने की बजाए उसने उसे अब बाहों तक ऊपर चढ़ा लिया। उसके ऐसा करते ही उसके दोनों कबूतर आज़ाद पंछी की तरह फड़फड़ा कर बाहर आ गए।
नेहा ने अपने स्तनों को दोनों हाथों में भर कर सहलाया, थोड़ा दबाया और खेल खेल में उनके चुचूक उमेठ कर खींचे भी। इसी बीच वो अपनी कमर भी हल्के से लहराने लगी जैसे किसी हल्की सी धुन पर नाच रही हो और इससे समीर का ध्यान अपने आप ही उसके नितम्बों की ओर चला गया, ऐसे लग रहे थे जैसे रेगिस्तान में तूफ़ान के बाद रेत के स्तूप बन गए हों, एकदम सुडौल और बेदाग।
अचानक उसकी कमर पेंडुलम की तरह दाएं-बाएं हिलते हिलते, एक ओर रुक गई और जब समीर की नज़र ऊपर गई तो उसे लगा जैसे नेहा दर्पण में से उसी की तरफ देख रही थी। नेहा ने एक आँख मारी और मुस्कुरा दी।
समीर घबरा कर जल्दी से पर्दा छोड़ दिया और स्लाइडर बंद कर लिया।
इस घटना से समीर बहुत उत्तेजित हो गया था और रात वाली बात उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने नेहा की कल्पना करते हुआ मुठ मारना शुरू कर दिया। उसे पक्का यकीन नहीं था कि नेहा ने वो आँख उसे देख कर ही मारी थी या वो दर्पण में खुद को देख कर ऐसा कर रही थी लेकिन फिर भी उसका दिल यही चाहता था कि काश वो इशारा उस ही के लिए हो। आज बहुत दिनों के बाद मुठ मारने में उसे इतना मजा आया था।
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