RE: Chudai Kahani मेरी कमसिन जवानी की आग
जब पापा छुट्टी पर मुंबई से आते तब जब भी मम्मी पापा अंदर होते तो दरवाजे के होल से चुदाई करते देखती थी. मम्मी पापा की चुदाई देख कर मैं खुद को सम्भाल नहीं पाती थी. मैं मम्मी के कमरे में चारपाई के नीचे चुपके से घुस जाया करती थी. एक बार जब पापा के दोस्त धनंजय चाचा और दूसरे बार जब कमलेश अंकल आये थे, तब मैं चारपाई के नीचे थी इसलिए देख कुछ नहीं पायी थी पर बातें, आवाज सब सुनी. उसी समय से मेरा मन भी अपने अंदर घुसवाने करने लगा था.
एक बार की बात है गर्मी की छुट्टियों में मेरी कजिन बहन सुनन्दा का युवा बेटा पीयूष मेरे साथ खेल रहा था. मैं उस से खेल खेल में बोली- चल तू और मैं भी दुल्हन दुल्हा का खेल खेलें!वो बोला- ठीक है मौसी.
घर में कोई नहीं होता था, पापा मुंबई जहाज में काम करने चले ही जाते थे और मम्मी खेत चली जाती थी.
मैं दुल्हन की तरह सज गई, मैंने सुहागरात की तरह उसको ग्लास में दूध पिलाया और अपने साथ चारपाई पर ले गयी और उसे बोली- मेरे सब कपड़े उतार दो!वो बोला- ठीक है मौसी!मैं बोली- मुझे मौसी मत बोलो, मैं आज तुम्हारी बीवी हूं, तुम मुझे संध्या बोलो!वह बोला- ठीक है.
मैंने उसे कहा- आप बिस्तर में चलो!मेरा भानजा पीयूष मेरे साथ बिस्तर में चला गया.मैंने कहा- अब मेरे सारे कपड़े उतारो!
पीयूष ने मेरे सारे कपड़े उतार दिये. अब मैं उसके सामने बिल्कुल नंगी हो गई.मैं भी पीयूष के कपड़े उतारने लगी, तो उसने मना किया; तब मैं बोली- इस खेल में दोनों के कपड़े उतारने होते हैं!वह मान गया, मैंने उसे नंगा कर दिया, अब मैं उससे लिपट गई और पीयूष के होठों पर अपने होंठ रख दिए. यह मेरी जिंदगी की पहली लिप किस थी, या यूं कहिए कि जो आज कर रही थी सब कुछ आज पहली बार ही फिजिकली कर रही थी.
मैं और पीयूष दोनों एक दम नंगे दोनों के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था, एक दूसरे से लिपट गये.मैं उसके होंठों को जब चूम रही थी तो उसकी गर्म सांसें मेरे नाक में आ रही थी और मुझे पागल बना रही थी. मैंने जोर से उसके मुख में अपनी जीभ डाल दी.
इसके बाद दोनों अपनी बांहों में पीयूष को जकड़ लिया, पीयूष बोला- संध्या, मुझे दबा दोगी क्या?मैं बोली- तुम मेरे दूल्हा हो… आज तुम्हें नहीं छोडूंगी!
उसके बाद मैं उसकी जीभ को निकाल कर अपने होठों से चाटती रही, पीयूष कुछ कर नहीं रहा था, मुझे ही बोलना पड़ता था, मैं पीयूष को बोली- अब मेरे ऊपर चढ़ जाओ!और पीयूष मेरे ऊपर चढ़ गया, उसकी कमर मेरी कमर से, जांघों से जांघें से सट गयी और उसका सीना मेरे सीने से!
मैं बोली- पीयूष, मेरे दूध दबाओ दोनों हाथों से पकड़ कर जोर जोर से!तभी पीयूष मेरे चूचों को दबाने लगा.मैं बोली- और जोर से दबाओ!तो उसने फिर और ताकत से दबाया, मुझे बहुत कुछ होने लगा, अब मैं बोली- पीयूष दोनों चूचों को चूसो!
तब पीयूष मेरे बूब्स को अपने मुंह में भर के चूसने लगा और उसे बिल्कुल ही कुछ भी नहीं पता था, तो बोला- संध्या, तुम्हारे दूधों से लगता है दूध नहीं निकल रहा है.मैं फुल सेक्स के मूड में थी, तो मैं बोली- पीयूष, मेरे बूब्स जमकर चूसो जब तक दूध न निकले!पीयूष बोला- पी रहा हूं!और पीयूष जोर जोर से चूसने लगा.
करीब 15 मिनट मेरे मस्त दूध चूसता रहा और मैं पागल हो गई.फिर वो बोला- संध्या तुम्हारे चूचे छोटे हैं, लगता है इसीलिए इनसे दूध नहीं निकल रहा, मैं चूसते चूसते थक गया.
तभी उसके बूब्स चूसने और इस तरह की मस्त बातों से मुझमें बहुत जोश आ गया और मैं पीयूष के लन्ड को जोर से पकड़ कर ऊपर नीचे करने लगी और बोली- जाने दे पीयूष, तू रोज ऐसे दबाना और चूसना तो मेरे बूब्स बहुत बड़े हो जायेंगे और इनसे दूध भी निकलने लगेगा, और जब दूध इनसे निकलने लगेगा तो मैं दूध तुम्हें पिला दूंगी.
पीयूष बोला- सच संध्या, तुम कितनी अच्छी हो, मुझे अपने दूध जरूर पिलाना, मुझे दूध बहुत पसंद है.मैं बोली- पक्का तुम्हें अपने दूध पिलाऊंगी… पर अभी मेरे टांगों को फैला दो!और मैं अपनी उंगली अपनी चूत में रख कर बोली- यह जो तुम्हारा लंड है, जिससे तुम सुसु करते हो, इसे यहां डालो और घुसा दो.तो पीयूष बोला- संध्या क्या होगा इससे?मैं बोली- तुम खुश हो जाओगे… और पीयूष, तुम्हें बहुत मजा आएगा और मुझे तो बहुत ही मजा आयेगा.
तभी पीयूष ने मेरी टांगों को फैलाया, मैंने अपने दोनों पैर भी ऊपर कर लिए और बोली- पीयूष डालो अपना लन्ड… जिससे सूसू करते हो उसका नाम लन्ड है.पीयूष का लन्ड कुछ छोटा था और ढीला भी इसलिए जैसे ही उसने घुसाया तो घुस ही नहीं रहा था, मैंने अपनी चूत और कमर उठा दी, तब भी लन्ड नहीं घुसा, मैं बहुत प्यासी हो गई, मेरा मन बहुत करने लगा कि कैसे भी मेरी चूत में लन्ड घुस जाये.
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