RE: Chudai Kahani मेरी कमसिन जवानी की आग
मैं बहुत डर गई और घबराने लगी, मैंने भी जल्दी से अपने कपड़े पहने और खड़ी हुई, अंकित से बोली- प्लीज़ मुझे बचा लो! ऐसे हम दोनों को टायलेट में अंदर देख लेंगे तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं बचूंगी.अंकित बोला- तू डर मत, कुछ नहीं होगा बस अंदर रहना, जब मैं बोलूं तभी बाहर आना! पहले मैं बाहर जाता हूं!मैं बहुत डर रही थी.
तभी अंकित ने दरवाजा खोला और बाहर गया.बाहर उसके पापा थे, उसने पापा से बोला- अंदर पानी नहीं है, मुझे भी बाल्टी चाहिए, अंदर पानी डालूंगा टायलेट में, तब आपके जाने लायक होगा.उसके पापा जैसे ही वहाँ से हटे, अंकित ने जल्दी से गेट खोला और मुझे बोला- जल्दी बाहर आ संध्या!मेरे बाहर आते ही मुझे अंकित बोला- यहीं खड़ी रह और बोलना मुझे जाना है अंदर!
इतने में तुंरत अंकित के पापा आ गए बाल्टी लेकर … मुझे खड़े देखे तो बोले- सोनू तू कब आ गई?मैं बोली- अभी आई हूं मौसा!अंकित के पापा बोले- ठीक है, पहले तू चली जा, बाद में मैं जाऊंगा.
अब मेरी जान में जान आई, मैं अंदर जाकर पांच मिनट बाद निकली और वहाँ से चली गई. पर अब मेरी हालत बहुत खराब थी, मुझे अंकित प्यासा छोड़ गया था, मेरा पूरा जिस्म अकड़ रहा था, पूरा बदन टूट रहा था, कभी भी लड़की को ऐसे नहीं छोड़ना चाहिए.मैं बता नहीं सकती कि मुझे क्या फील हो रहा था.
सुबह ग्यारह बजे तक मैं तीन पैंटी बदल चुकी थी, इतनी गीली हो जा रही थी, कोई मर्द जात दिखे तो उसकी जिप के पास मेरी निगाह चली जा रही थी.मैं बस यही सोचती कि काश कैसे भी आकर मुझे कोई अपनी बांहों में भर ले, और मेरे जिस्म को मसल दे … आज मेरी तमन्ना पूरी कर दे … मेरी प्यास बुझा दे, मेरे साथ जमकर सब वो करे जो मेरे गर्मी को शांत कर सके.परंतु ऐसा कोई नहीं मिला, कैसे मिलता जब तक कि कोई बातचीत ना हुई हो.
ऐसे ही तड़पते हुए रात हो गई. खाना खाने के बाद अब मैं सोने के लिए गई तो हालत और खराब हो गई. पहले तो यह बता दूं कि मौसी के यहाँ उनके परिवार और रिश्तेदार सबका बिस्तर एक हॉल में लगा करता है. मौसी के यहाँ ज्यादा बड़ा घर नहीं है, एक कमरे में सब सामान था और एक कमरा छोटा था इसलिए हाल के फर्श में ही 15-16 लोग एक साथ नीचे बिछा के लेटते थे. करीब 6-7 लेडीज थी और 10-12 जेन्ट्स!
जब मैं लेटी तो करीब 10:30 बजे रात का समय हो चुका था पर मुझे बिल्कुल नींद नहीं आ रही थी, मेरे को सुबह के बाद अंकित भी नहीं दिखा, पता नहीं कहाँ चला गया था. मेरे बगल में बिस्तर खाली पड़ा था पर बिछा हुआ था उस बिस्तर में तीन जेन्ट्स आ गए. उनमें से एक अंकल को पहचानती थी, वो मेरी मौसी की ननद के पति थे, वो आर्मी से रिटायर्ड हो चुके हैं.और दो कौन है नहीं जानती थी, पर थे मौसी के रिलेटिव ही.मेरी दूसरी तरफ मौसी की सास लेटी थी.
रात को करीब एक बजे लगभग सब सो गए थे तब अचानक मेरे कंधे को पकड़ कर किसी ने दबाया. आंख खोली तो पूरा अंधेरा था, हाल में कुछ भी नहीं दिख रहा था.तभी धीरे से अंकित की आवाज मेरे कानों में आई, वह बोला- मैं हूं, घबराओ नहीं, अंकित हूं, थोड़ा इधर खिसको, मुझे भी बगल से लिटा लो.
मैं जैसे ही अंकित की आवाज सुनी, मुझे लगा जैसे कोई अपना हो, मैं बहुत धीरे से बोली- यहाँ जगह नहीं है, कहाँ लेटोगे? जहाँ रोज लेटते हो, वहीं जाओ, यहाँ जगह नहीं है.अंकित बोला- मुझे यहीं तुम्हारे बगल से लेटना है, थोड़ा खिसको, तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है, यहाँ बन जाएगा थोड़ा और खिसको!मैं बोली- उधर, अंकल लोग लेटे हैं.तो अंकित बोला- अंकल की तरफ खिसको, इधर दादी हैं, इस तरफ मैं लेट जाऊंगा, तुम्हें बहुत जरूरी बात बताने आया हूं प्लीज खिसको.और मैं पता नहीं क्यों … पर खिसक गई.
जैसे ही उधर खिसकी तो देखा कि अंकल को मैं टच हो गई क्योंकि जगह बिल्कुल कम थी पर थोड़ी जगह निकल आई और अंकित लेट गया.अब जिधर दादी लेटी थी, उधर अंकित हो गया और दूसरे साइट में अंकल लोग लेटे थे, बीच में मैं हो गई. अंकित और मेरे बीच में पांच अंगुल का फासला था उधर दूसरे बगल अंकल से तो सिर्फ दो ही अंगुल का फासला बचा बस अगर मैं करवट लूं तो अंकल को टच कर जाती, मैं अंकल की तरफ अपना चेहरा कर ली थी और अंकित की तरफ पीठ इस तरह लेटी हुई थी.
करीब तीस मिनट तक अंकित चुपचाप लेटा रहा, उसके बाद बहुत धीरे से अंकित ने कान में आवाज दी- संध्या सुनो, सुन रही हो संध्या?मैं सुन रही थी, जग भी रही थी पर कुछ नहीं बोली, सोई हुई बन गई.चार पांच बार और आवाज लगाई अंकित ने, फिर बोला- बड़ी जल्दी तुझे नींद आ गई? मैं तुझसे मिलने आया हूं, और तुझे कुछ बताने भी आया हूं और तू कुंभकरण की तरह सो गयी.
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