RE: Chudai Kahani मेरी कमसिन जवानी की आग
अंकित ने बोला- कोई दिक्कत तो नहीं होगी?लालजी बोला- नहीं.. मैं यहां हूं कोई दिक्कत नहीं होगी.यह कहकर उसने फोन काट दिया.
लालजी ने अपना पूरा लंड मेरे अब मुँह में डाल दिया. उसका लौड़ा बहुत ही गर्म हो गया था. मैं उसे चूसने लगी, चाटने लगी. लाल जी मेरे बाल पकड़ कर अपना लंड मेरे मुँह में अन्दर बाहर करने लगा.
जैसे ही वो अपना पूरा लंड मेरे मुँह में डालता, मुझे खांसी आ जाती, मेरे गले में उसका लौड़ा अटक जाता. मैं एकदम से बहुत ही अधिक मदहोश हो चुकी थी. तभी लालजी गंदी गंदी गालियां देने लगा. वो बोला- साली छिनाल तू तो बहुत चुदवाती होगी यहां सबसे.. हर कोई तुझे चोदने के लिए पागल रहता होगा, संध्या भैन की लौड़ी तेरे से मस्त माल, तेरे से बड़ी छिनाल.. मैंने ब्लू फिल्म में भी नहीं देखी. मैं तुझे सबसे बहुत चुदवाऊंगा.
वो मेरे बाल पकड़कर बहुत जोर से खींच के अपना लंड मेरे मुँह में अन्दर बाहर कर रहा था, उधर नीचे पीयूष अपनी पूरी जीभ मेरी चूत में डाल कर चूत को चूस रहा था. उसने अपनी नाक भी चूत में मेरे घुसा दी और बोला- आह.. क्या महक है संध्या तेरी चूत की.. साली कुतिया संध्या..
वो बहुत जोर जोर से मेरी चूत को चाटने लगा. उधर ऊपर मेरे चूचों को अपने हाथों से लाल जी जोर से दबाने लगा, नीचे पीयूष मेरी चूत चाट रहा था. इधर मैं लाल जी का लौड़ा चूस रही थी.
इतने में जोर से दरवाजा खट खट हुआ. मैं बिंदास बोली- तेरा दोस्त आ गया पीयूष.. जा साले दरवाजा खोल कर अन्दर ले आ उस लंड को भी..तो लालजी बोला- मैं दरवाजा खोलने जाऊं..?मैं बोली- नहीं, पीयूष को जाने दे इसका दोस्त है…. जा जल्दी से उसको अन्दर कर ले पीयूष.. और फिर दरवाजा अन्दर से बंद कर देना.
तभी लंड हिलाता हुआ पीयूष दरवाजे की तरफ चलने लगा.मैं बोली- अरे बेवकूफ टावल तो लपेट ले.. ऐसे नंगा चला जाएगा क्या?
तो पीयूष ने सामने टंगी एक टॉवल को लपेट लिया और जाकर जैसे ही गेट खोला. मैंने सोचा कि यह पीयूष का दोस्त आ गया, पर 2 मिनट के अन्दर झटके से बस पीयूष की एक आवाज आई कि संध्या..!
और इतने में मेरे पड़ोस में रहने वाले अंकल आवाज़ लगाते उधर ही आते जा रहे थे, जहां मैं उस समय नंगी बिल्कुल बिस्तर में लेटी लालजी का लंड चूस रही थी और लालजी मेरे बूब्स को चूसने में लगा था.
जैसे उन अंकल ने आवाज दी कि कुल्हाड़ी कहां रखी है संध्या, कुल्हाड़ी लेने आया हूं.. कल मैं यहीं आंगन में रख गया था.
ये कह कर वे मेरे कमरे में झटके से आ गए. अंकल ने देखा कि मैं लाल जी का लंड मुँह में लिए चूस रही थी. अंकल आंख फाड़के देखने लगे.
मैंने झटके से लंड निकाला और बहुत डर गई. उन अंकल का नाम रोहण गर्ग था, वह आर्मी से रिटायर्ड थे. उनकी उम्र लगभग साठ से बासठ वर्ष की रही होगी. मुहल्ले के ज्यादातर लोग उन्हें चाचा कहते थे. मैं भी उन्हें चाचा ही कहती थी और वो मुझे संध्या कहते थे. उनका रोज हमारे घर आना जाना था. वह चाचा वहीं सामने खड़े रहे. मैं तुरंत इधर-उधर कपड़े देखने लगी, घबराहट में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, न कपड़े मिल रहे थे.
तभी चाचा ने लालजी को गाली दी- मादरचोद और कोई नहीं मिला तुझे? अपनी मौसी की लड़की, अपनी बहन को ही चोद रहा है.. बहनचोद घटिया इंसान साले.
लालजी तो डर कर नंगा ही उस कमरे से बाहर निकल गया. डर और घबराहट के मारे मुझे कुछ नहीं समझ आ रहा था, कमरे में मुझे कुछ कपड़ा दिखाई नहीं दिया. उधर चाचा मेरे सामने खड़े मैं उनसे नज़रें चुरा रही थी, उनकी तरफ देखने की हिम्मत तो मुझमें थी ही नहीं. मैं उनकी तरफ अपना पिछवाड़ा करके खड़ी हो गई.
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