RE: Ashleel Kahani रंडी खाना
कार अपने रफ्तार में चल रहा था,पीछे पूर्वी बैठे बैठे ही सो गई थी ,मेरे मन में कई सवाल मचल रहे थे वही उसके साथ ही एक उत्सुकता भी मेरे मन में थी ,
मेरे बाजू में बैठी हुई निशा जैसे पूर्वी के सोने का ही इंतजार कर रही थी वो बार बार मेरे हाथो से अपने हाथो को टच करती और ऐसे दिखाती जैसे की वो बिल्कुल ही अनजाने में हो गया हो ,मैं गाड़ी चला रहा था और वो मेरे बाजू की सीट पर ही बैठी थी ,उसके इस हरकत से मेरे होठो में एक मुस्कान सी खिल जाती थी ,
ऐसे लग रहा था जैसे कोई जोड़ा अभी अभी बंधन में बंधा हो और एक दूसरे को लुभाने का प्रयास कर रहा हो ,मुझे काजल के साथ बिताये कालेज के समय की याद आ गई जब हमारे जिस्म नही मिले थे लेकिन मन मिल चुके थे,छोटी छोटी बातो पर शर्माना फिर हल्के से मुस्कुराना,छोटी छोटी सी वो शरारते,वो जवानी के सबसे अच्छे दिन होते है ,हल्की छेड़छाड़ और बहुत सारा प्यार ….
मैं वो सब सोच कर एक गहरी सांस ली ,और निशा की तरफ देखा ,काजल इसी उम्र की थी जब हम दोनो प्यार में पड़ गए थे,ये उम्र होती ही ऐसी है …..
मैं निशा को देखकर मुस्कुराया और वो बिल्कुल ही स्वाभाविक रूप से शर्मा गई …
मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनो हनीमून में जा रहे हो ,वही एक अजीब सा डर और उत्साह दोनो ही एक साथ होता है…
शायद निशा मुझसे एक प्रेमी सा वर्ताव चाहती थी ,शायद वो चाहती थी की मैं ही आगे बढूं लेकिन क्या मैं ये कर पाऊंगा ,वो मेरी प्रेमिका नही थी वो मेरी बहन थी ,मेरी सगी छोटी बहन …..ये सब सोच कर मेरे शरीर में एक झुनझुनी सी भर गई ,बड़ी अजीब सी दशा थी मेरी ,मेरी बहन चाहती थी की मैं उसके साथ प्रेमियों जैसा वर्ताव करू,और मेरे दिल में भी उसके लिए एक आग उठने लगी थी ,बस डर यही थी की कही उस आग में हमारी मर्यादा ही ना जल जाए ,उस आग में रिश्तों की महीन डोर ही ना जल जाए ,हवस की आग बड़ी ही जालिम होती है वो कभी भी नही देखती की सामने कौन है …
मैं इस सोच में जैसे डूब ही गया ,मेरा शरीर हल्के से कांप गया था,लेकिन मेरे नजरो के सामने उस दिन का नजारा भी घूम गया जब मैं और निशा आगे बढ़ चुके थे ,उसके जिस्म का हर कटाव मेरे आंखों के सामने से होकर गुजर गया,मैं बुरी तरह से घबराया और तुरंत ही निशा की ओर देखा ..
वो मुझे ही घूर रही थी लेकिन उसकी आंखे कुछ और ही कह रही थी ,
क्या वो भी वही सोच रही थी जो की मैं सोच रहा था ,जैसे वो एक नशे में थी ,आंखे हल्की सी बोझील थी,क्या वो हवस के नशे में थी ????
इससे पहले मैं कुछ भी समझ पाता वो इठलाकर मेरे पास आ गई और मेरे बांहो को अपने हाथो से जकड़ कर अपना सर मेरे कंधे में ठिका दिया,उसने अपनी आंखे बंद कर ली और मुझे बहुत ही सुकून का आभास हुआ,
मैं आराम से गाड़ी चला रहा था जबकि वो मुझे किसी प्रेमिका की तरह जकड़े हुए थी ,वो एक हल्के गुलाबी से कसे हुए सलवार कमीज में थी,भगवान ने उसे बहुत ही सुंदर बनाया था ना सिर्फ सुंदर चहरा दिया था जबकि कसे हुए शरीर से भी नवाजा था,उसकी छातिया जैसे किसी पहाड़ सी उसके कमीज से बाहर झांक रही थी ,ना जाने उसने ये जानबूझ कर किए था या ये किसी और कारण से हुआ था लेकिन उसका दुपट्टा उसके सीने से गिरकर उसके गोद में आ गया था और उसके वो पहाड़ मुझे अपने तराइयों को दिखा रहे थे,उसने जो काले रंग की ब्रा पहनी हुई थी उसकी इलास्टिक तक मुझे दिखने लगी थी ,मैं तो कुछ देर के लिए नजर जमा नही बैठा था जैसे पहली बार किसी महिला के यौवन को देख रहा हु ,
मैंने अपना सर झटका ,’ये मेरी बहन है ‘
मरे दिमाग ने मुझसे कहा ,लेकिन अगर ये मेरी बहन ना भी होती तो भी इसे देखने का कोई कारण मेरे पास नही था क्योकि मैंने कभी किसी पराई लड़कियों की तरह नजर नही गड़ाई थी ,मैं बहुत शर्मिला लड़का रहा हु ,हा ये बात अलग थी की कुछ लड़कियों के साथ मेरे संबंध बन गए है लेकिन वो सिर्फ एक इत्तफाक ही था और साथ ही साथ वो अभी किसी अलग तरह की लडकिया थी ,लेकिन मैंने कभी किसी अच्छी लड़की के लिए बुरा नही सोचा था ,मैं तो उन लड़कियों के लिए भी बुरा नही सोचा था ,लेकिन किस्मत ही ऐसी थी की लड़कियों की फ़ौज मेरे सामने आ गई ,और अब उनमे मेरी खुद की बहन भी शामिल हो गई थी ……
करीब 4 घण्टो के सफर के बाद हम केशरगढ़ के उस गेस्टहाउस में पहुच गए जंहा हमे रुकना था,कोई खास बड़ी जगह नही थी वो ,किसी कस्बे जैसा था लेकिन बहुत ही उन्नत लग रहा था ,हरियाली और साफ सफाई मेरी बहनों को ये जगह पसन्द आने वाली थी ,पास ही एक किला भी था और ऊंचे ऊंचे पहाड़ भी गेस्टहाउस से दिख रहे थे ,शहर से ऐसी जगह आने पर कुछ नही बस हरियाली ही दिख जाए तो काम हो जाता है ,मुझे बहनों को थोड़ा घूमना था और डॉ से मिलकर कुछ पता करना था ,वो भी मुझे यही मिलने वाले थे,
मैंने निशा को सीट में ही लिटा दिया था वो बैठे बैठे सो गई थी ,पूर्वी तो पहले से ही सोई हुई थी ,गेस्टहाउस पहुचते ही मैंने उन्हें उठाया …
“आइये साहब हम आपकी बहुत ही देर से प्रतीक्षा कर रहे थे ,”एक अधेड़ सा आदमी भागते हुए हमारे पास आया,ये सरकारी गेस्ट हाउस था,कुछ पुलिस के लोग भी दिख रहे थे ,सभी मुझे इतनी इज्जत दे रहे थे जैसे मैं कोई ऑफिसर हु ,शायद डॉ ने ही ये अरेंजमेंट किया था,पता नही डॉ मुझे क्या दिखाने वाला था और क्या समझने वाला था लेकिन इसके लिए मैं बहुत ही उत्साहित था साथ ही रश्मि भी ,उसने जल्दी से जल्दी मुझे डॉ से मिलने का आदेश दिया था,पता नही केशरगढ़ क्या क्या खेल खेलने वाला था,एक तरफ मेरी बहन थी जो मुझे अपना प्रेमी या शायद पति मान बैठी थी और दूसरी तरफ डॉ के द्वारा बताया जाने वाला रहस्य था ...मैं एक गहरी सांस लेकर छोड़ा और गेस्टहाउस के अंदर जाने लगा ………..
कमरे की बत्तियां हल्के प्रकाश फैला रही थी और मैं बेचैन सा लेटा हुआ छत को निहार रहा था,आज पूर्वी और निशा दोनो ही बाजू के कमरे में सो चुकी थी ,मुझे तो लगा था की वो मेरे साथ सोने की जिद करेंगी लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ था…
अचानक दरवाजा खुला ,जैसा मुझे यकीन था निशा अंदर आयी वो मुझे देखकर मुस्कुराने लगी ,उस हल्के रोशनी में भी उसके जिस्म का हर कटाव मुझे साफ साफ दिखाई दे रहा था,वो मेरे पास आकर लेट गई थी ,उसने एक बहुत ही पतली सी नाइटी डाल रखी थी ,उसे देखकर मैं थोड़ा घबराया क्योकि मुझे पता था की आज हमे रोकने वाला कोई भी नही है ,लेकिन मैंने खुद को वक्त के हाथो में सौपने की ही ठान ली ,
उसके आंखों में एक अजीब सा नशा था जो आजतक मैंने किसी भी दूसरी लड़की के आंखों में नही देखा था,एक अजीब सी चाहत और जुनून उसकी आंखों में दिख रहा था,
अगर वो मेरी बहन ना होकर मेरी बीवी होती तो शायद मैं उसे देखकर खुस हो जाता लेकिन ये नशा ना जाने क्यो मुझे डरा रहा था…
“नींद नही आ रही है क्या “
मैंने उससे पूछ लिया ,वो मेरे बांहो में आके सो गई थी,
“कैसे आएगी भइया जब आप मेरे पास नही हो “
उसकी आवाज थोड़ी भारी थी जैसे उसने अभी अभी गहरी सांस ली हो शायद उसकी सांसे भी तेज हो रही थी ,वो मेरे पास आने से पहले ही उत्तेजना के शिखर में थी …
“क्या चाहती हो “मैं अनायास ही बोल गया ...
“भइया अब मैं कुछ भी नहीं करना चाहती ,मैं बस आपकी होना चाहती हु ,पूरी तरह से आपकी ,मुझे नहीं पता मैं क्या करूँगी पर मुझे इतना पता है ,जो भी होगा वो मेरा प्यार होगा,'
मैंने सजल नैनों से उसके मस्तक पर एक चुम्बन का तिलक किया ,और अपने होठो से उसके होठो को मिला दिया और हमारे बीच की सभी दूरिय उसी क्षण से ख़तम हो गयी ,हम अब एक ही थे और कोई दूजा ना था ,हम बस अपने को एक दूजे में समेटने की पूरी कोसिस कर रहे थे,,, ना जाने कितने समय तक हम एक दुसरे के होठो को चूसते रहे थे हमारी सांसे थी पर मेरे लिंग में कोई भी अकडन नहीं थी और ना ही इसका भान ही रह गया,समय जैसे रुक सा गया हो ,हम एक दूजे को अपनी बांहों में भरे बस खो जाना चाहते थे ,मुझे तब थोडा होश आया तब मेरा हाथ निशा के स्कर्ट के अंदर घुस आया था, और उसकी पीठ को सहला रहा था ,उसकी नंगी पीठ पर अपने हाथो को चलते हुए मैंने उसके स्कर्ट को निकल फेका मेरा सीना पहले से ही नग्न था ,निशा के नर्म स्तनों के आभास ने मुझे फिर से किस के खुमार से बहार निकला मैंने अपने हाथो से उसे दबाना शुरू किया पर होठो को नहीं छोड़ा निशा ने अपने हाथो को मेरे सर पर कस लिए थे और पूरी शिद्दत से मेरे होठो को अपने में समां रही थी ,उसे शायद मेरे हाथो के हलचल तक का आभास नहीं हो रहा था ,पर जब मैंने पूरी ताकत से एक वक्ष को दबाया ,
'आहह भइया थोडा धीरे ,'निशा साँस लेती हुई बोल पायी उनकी सांसे उखड़ी हुई थी ,वो साँस ले पाती इससे पहले ही मैंने फिर से अपना मुह उसके मुह में घुसा दिया ,मैंने उसे पीठ के सहारे लिटाया और उसके ऊपर छा सा गया,मैंने दोनों हाथो से उसका चहरा पकड़ा और उसके होठो को छोड़ा फिर ,फिर उसके गाल ,उनकी आँखे उनकी नाक ,उसका माथा ,आँखों की पुतलिया,गरदन ,कन्धा ,छाती ,उजोर ,पेट ,नाभि ,...मैं बस चूसता गया मुझे नहीं पता था की मैं क्या कर रहा हु ,ना निशा को ही पता था,हम बस खो से गए थे मैंने फिर उसके उजोरो को पकड़ा और उसके उन्नत निपलो को अपने होठो में समां लिया ,निशा बस छटपटा रही थी ,
'आः आःह भइया,आः आः आआअह्ह्ह्ह भाआआआआआई ,'मैंने अपने मन भर उसे चूसा जब तक की वो लाल नहीं हो चुके थे, नीचे मुझे उसकी पेंटी के ऊपर से जन्घो के बीच का गीलापन मुझे दिखाई दिया,मुझे अपने जांघो के बीच एक विशाल खम्भे सा दिखाई दिया ,जिसकी अकडन से अब मुझे दर्द होने लगा था,मैंने उसे आजाद कर दिया ,मैंने पेंटी के छोरो को अपने दोनों हाथो से पकड़ा,मैंने निशा की और देखा निशा काप रही थी ,वो एक दिवार थी जो मुझे हमेशा के लिए गिरानी थी ,जिसे गिराकर ही मैं निशा को अपना बना सकता था,
“इजाजत है “
मैंने निशा को छेड़ा
“अब भी इजाजत लोगे क्या “
मुस्काते हुए उसने पूछा और मुझे अपने ऊपर खीच लिया मेरे होठो को फिर अपने होठो में भर लिया ,
“मेरे भइया ,”
निशा ने मेरे हाथो को पेंटी के ओर ले गयी वो मेरे आँखों में ही देख रही थी उसके चहरे पर अब भी वो मुस्कान थी और आँखों में वही प्यार ,मेरे हाथो में दबाव बनाते वो पेंटी को निकल दी और अपने पैरो से निकाल निचे फेक दिया ,वो अब मेरे सामने नंगी थी ,पर मुझे इसकी फिकर ही नहीं थी ना ही मैंने ये देखने की जहमत की ,मैं तो फिर निशा के होठो को चूसने लगा ,हम दोनों पूरी तरह से नंगे थे मैं उसके ऊपर लेटा था ,और निशा अपनी आँखे बंद किये बस खोयी हुई थी ,मेरा अकड़ा लिंग निशा के गिले योनी में हलके हलके घिस रहा था,थोडा गीलापन से भीग कर लिंग भी फिसलने लगा मैंने एक दबाव दिया पर वो जन्घो से जा टकराया ,ऐसा कई बार होता रहा पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ,क्योकि ये बिलकुल स्वाभाविक तौर से हो रहा था ,मैं कोई मेहनत नहीं कर रहा था,मैंने तो निशा को किस करने में डूबा हुआ था,पर निशा ने मेरे लिंग को पकड़ा जैसा की उसका पहला मौका नहीं था उसने उसे सही जगह लगाया ,वहा पहुचकर वो चिपिचिपा गिलापण मेरे लिंग को फिर से घेर लिया ,मैंने स्वभावतः फिर झटका मारा लेकिन ये क्या मेरे मुह से एक चीख सी निकली जो निशा के होठो में खो सी गयी ,मेरी लिंग की चमड़ी ने इस घर्षण का आभास किया था लेकिन उस अतिरेक आनद से बढकर मेरे लिए कुछ भी नही रह गया था,मैंने फिर एक जोरदार झटका मारा और ,
'आआह्ह्ह्ह भा ईई या भा ईईईईईईई या '
'निशा आआआआ आह्ह्ह्ह 'हमारा मिलन हो चूका था पर अभी तो उफान की शुरुवात भर थी ,
मैंने और निशा ने आँखे खोलकर एक दूजे को देखा ,हम एक रहत की साँस ले रहे थे ,हमारी आँखे मिली दोनों के चहरे पर एक मुस्कान फैली और मैंने फिर एक जोरदार धक्का मार दिया ,
'अआह्ह्ह 'दोनों के मुह से निकला और दोनों एक दूजे को देख हस पड़े ,,,मैंने धीरे धीरे अंदर बहार करने लगा ,मेरा लिंग निशा के योनी रस से पूरी तरह से गिला हो चूका था और हम फिर एक गहन तन्द्रा में प्रवेश कर रहे थे जहा बस प्यार था और दुनिया की कोई शय नहीं..
हमारी आँखे फिर बंद होने लगी... मैं तो किसी भी तरह से आंखे खोल भी पा रहा था पर निशा की आँखे इतनी बोझिल हो चुकी थी वो अपनी आँखे खोल ही नहीं पा रही थी ,मेरे धक्के एक लय पकड़ चुके थे और हमारी सांसे और आंहे ,उसी लय में चल रहे थे ,समय खो चूका था ,और सारा जहा भी खो चूका था ,हम एक दुसरे को काट रहे थे ,चूस रहे थे चूम रहे थे ,पर हमें नहीं पता था की हम क्या कर रहे है ,कोई कण्ट्रोल हमरे ऊपर नहीं था ,ना हमारा ना और किसी का ,पहले धीरे धीरे आःह आह्ह से लेकर तेज तेज सांसे और आह उह ओह तक पहुच जाते फिर धीरे- मध्यम- तेज ये सिलसिला ना जाने कब तक चलता रहा ,हमें आँखे खोल एक दूजे को देखने की फुर्सत नहीं थी ,जैसे किसी ने कहा है ,’
बिना किसी के परवाह के ,बिना किसी मांग के ,बिना किसी तलाश के ,बिना किसी चाह के ,हम थे और बस हम थे,,,...एक दूजे में ऐसे घुल रहे थे की पता लगाना भी मुस्किल था की मैं और तू अलग भी है ,बस मेरा मुझमे ना रहा जो होवत सो तोर ,तेरा तुझको सोपते क्या लागत है मोर...
सांसो में अपनी अंतिम गहराई तक हमें डूबा दिया ,जब लक्ष्य करीब आने को थी तो बस थोड़ी देर के लिए सांसे रुक गयी मेरे अंदर से एक विस्फोट हुए ना जाने कितनी ताकत से मैं धक्के लगाये जा रहा था लेकिन उस विस्फोट ने मुझे शांत कर दिया एक गढ़ा सफ़ेद ,चिपचिपा सा द्रव्य ,मेरे अंदर से निकल निशा की योनी को भिगो दिया वही निशा की योनी से ना जाने कितनी बार फुहारे निकल चुकी थी ,लडकियों की एक खासियत होती है की अगर वो प्यार की गहराई का आभास कर पायी और उससे सेक्स करे जिसे वो प्यार करती है तो वो एक नहीं कई चरम सुख (ओर्गोस्म )का अनुभव आसानी से कर पाती है ,एक सम्भोग में लगभग 7 तालो का ओर्गोस्म संभव है ,ऐसा शोधो ने पता लगाया है ...निशा ने भी आज किसी गहरे तालो पर इसका अनुभव किया था ,और मैंने भी ,तूफ़ान तो शांत हो चूका था पर जैसे हम जम ही चुके थे ,हमारे शरीर एक दूजे से अलग ही नहीं हो रहे थे ,हम पसीने से भीगे थे हमारी सांसे उखड़ी थी ,पर हमारे चहरे में एक परम शांति का आभास था,सबकुछ शून्य हो चूका था ,खो चूका था ,इतनी शांति का आभास मैंने कभी नहीं किया था,ऐसा लग रहा था जैसे मैं खाली हो चूका हु ,बिलकुल हल्का ....हम एक दूजे के चुमते रहे हमारे होठ जैसे कभी एक दूजे से ना बिछड़ेंगे वैसे ही चिपके रहे ,हमारे शरीर इक दूजे के पसीने से सने थे ,चहरा और होठ एक दूजे की लार से सने थे और निशा की योनी से मेरा वीर्य अब बहार आने लगा था ,मेरे कमर अब भी हलके हलके चल रह थे…….
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