RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
सोनल ने दरवाजा लॉक नही किया था ताकि आरती अंदर आ सके. आरती काफ़ी देर से दोनो की हरकतें दरवाजे में बनी झिरी से देख रही थी. आरती का दिल तो कर रहा था अंदर जाने के लिए पर दिमाग़ रोक रहा था कविता के सामने इस तरहा खुलने के लिए.
दोनो की हरकते देख कर आरती गरम होती जा रही थी और सोनल कविता के साथ चिपकी हुई सोच रही थी कि अब तक तो मम्मी को आ जाना चाहिए.
कविता अपने होंठ सोनल से अलग करती है.दोनो की साँसे फूल चुकी थी.
कविता : अहह सोनल की बच्ची आग लगा के रख दी तूने.
सोनल : अभी भुजा दूँगी यार, आग तो मेरे जिस्म में भी लग चुकी है
कविता : चल आजा फिर एक दूसरे को ठंडा करते हैं .
सोनल दरवाजे की तरफ एक नज़र देखती है पर कविता उसे खींच लेती है. दोनो 69 के पोज़ में आ जाती हैं.
सोनल कविता की चूत पे झुकने से पहले फिर एक नज़र दरवाजे पे डालती है. आरती का कोई निशान नही था. सोनल ये समझ लेती है कि आरती को शरम आ रही है कविता के सामने आने में . उसे नही पता था कि आरती तो बाहर खड़ी सब कुछ देख रही है, पर उसकी अंदर आने की हिम्मत नही हो रही.
आरती चाह कर भी अंदर नही घुस पाती और इतनी गरम हो चुकी थी कि उससे और देखा नही गया. अपनी चूत मसल्ते हुए आरती अपने कमरे में चली जाती है और बिस्तर पे गिर कर तड़पने लगती है
कुछ देर तो आरती बिस्तर पे पस्से मारती रही, जब सहा नही गया तो उठ के अपने कपड़े उतार डाले.
और बिस्तर पे गिर कर अपने चूचो को दबाने और निचोड़ने लगी. उसकी आँखों के सामने सोनल और कविता के जुड़े हुए जिस्म लहराने लगे और उसके जिस्म की प्यास बढ़ती चली गई.
चुचियो को सहलाते, दबाते, निचोड़ते उसे सोनल के हाथों की कमी महसूस होने लगी. कल तक जो सिर्फ़ लंड लिया करती थी, आज उसे अपनी ही बेटी के जिस्म की चाहत होने लगी. शायद इसलिए की उसका पति उसे चोदने के लिए मौजूद नही था और बाहर के साथ करने से बेटी ने मना किया था। जिस्म की प्यास जब भड़कती है तो इंसान अच्छा या बुरा भूल जाताहै, बस याद रहती है तो सिर्फ़ एक बात, इस प्यास को भुजाना है कैसे भी.
काफ़ी देर तक वो अपने चुचिया से खेलती रहती है और फिर आँखें बंद कर अपने ही हाथों से अपनी चूत सहलाने लगती है और मन ही मन कल्पना करने लगती है कि सोनल उसकी चूत सहला रही है.
कल्पना करते करते अपनी ही उंगलियाँ अपनी चूत में घुसा लेती है और तेज़ी से अपनी उंगलियाँ अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगती है.जिस्म का उन्माद बढ़ता ही रहता है और मुँह से सिसकियाँ फूटने लगती है.
आह सोनल कर और कर, और अंदर डाल, हां हां उफ़ उफ़ उफ़ ओह और तेज़ और तेज़
जो मुँह में आया वो निकलता रहा और काफ़ी देर तक उंगलियाँ चलाने के बाद उसका जिस्म अकड़ने लगा. बंद आँखों के आगे एक अंधेरा सा छा गया और चिंगारियाँ से लहराने लगी.
अहह एक चीख के साथ उसने अपना बाँध तोड़ दिया और उसकी उंगलियाँ उसके कम रस से भीग गई, बिस्तर पे एक तालाब सा बनने लगा. जिस्म निढाल सा पड़ गया और वो अपने आनंद में खो गई.
ऊपर आरती खुद को अपनी ही उंगलियों से राहत पहुँचती है , नीचे दोनो बहने 69 पोज़ मे एक दूसरे की चूत को चूस, काट और चाट रही थी. दोनो पे एक पागलपन सवार था.
कविता ने सोनल की चूत में अपनी उंगली घुसा दी और उसकी क्लिट को ज़ुबान से कुरेदने लगी. उफफफफफफफफफफफ्फ़ सोनल के जिस्म में झुरजुरी फैल गई, उसे ऐसे महसूस होने लगा जैसे लहरों की तपड़ों के साथ उसका जिस्म उपर नीचे हो रहा है. कविता की चूत तो काफ़ी खुली हुई थी आसानी से सोनल की तीन उंगलियाँ निगल गई. सोनल ने उसकी चूत के अंदर अपनी उंगलियों की हरकतें शुरू करदी और जीब से उसके क्लिट को ज़ोर ज़ोर से चाटने लगी. एक तेज़ लहर कविता के जिस्म में उठी और उसने सोनल की चूत पे दाँत गढ़ा दिए.
आधे घंटे तक दोनो के जिस्म उत्तेजना से तड़प्ते हुए एक दूसरे की चूत में जीब और उंगलियों का प्रहार करते रहे. लहरें जिस्म में उठती गिरती रही.
सोनल ने कविता की चूत को पूरा मुँह में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लग गयी जैसे पंप चला कर चूत में से कुछ निकलना चाहती हो. कविता तड़प उठी और उसने सोनल के क्लिट को दांतो से पकड़ लिया . एक करेंट सा लगा सोनल को और उसके चूसने की गति और ताक़त यकायक बढ़ गई जिसका सीधा असर कविता की चूत की दीवारों पे हुआ और वो अंदर इकट्ठा होते हुए सैलाब को बहने रोकने में पूरी ताक़त लगा बैठी.
भूखी प्यासी बिल्लियों की तरहा दोनो एक दूसरे की चूत को चूस रही थी और दोनो के जिस्म इस आनंद को सह पाने की अपनी क्षमता पार कर चुके थे.
दोनो का जिस्म अकड़ने लगा और और दोनो की चूत एक साथ कुलबुलाती हुई अपने कमरस को रोकने मे असमर्थ एक तेज़ भाव के साथ बहने लगी, जिससे दोनो ही लपलप चाटते हुए चूसने लगी और अपने होंठ एक दूसरी की चूत से चिपका कर निकलते हुए कमरस को अंदर गटकने लगी.
जब दोनो का सैलाब रुक गया तो असीम आनंद को महसूस करते हुए दोनो एक दूसरे की बगल में गिर कर हाँफने लगी और अपनी साँसे दुरुस्त करने लगी.
जब दोनो की साँसे सम्भल गई तो दोनो एक दूसरे से चिपक कर एक दूसरे के चेहरे पे फैले हुए अपने रस को चाटने लगी और दोनो ने एक दूसरे का चेहरा चाट चाट कर सॉफ कर दिया.
सोनल कविता के पीछे पड़ गई आगे की दास्तान जानने के लिए.
सोनल : अब आगे बता क्या क्या. चुदने के बाद तूने क्या किया.
कविता : तू मेरा पीछा छोड़ेगी नही, बड़ा मज़ा ले रही है मेरी चुदाई के बारे मे जान कर . जब खुद चुदेगि तब पता चलेगा कितना मज़ा आता है.
सोनल : उसी केलिए तो पापा को पटा रही हूँ.अब तू मेरी बात छोड़ और अपनी बता.
कविता : अच्छा बाबा ले सुन.
चुदने के बाद थोड़ी देर तो मैं अपनी साँसे संभालती रही. जब साँस ठीक हुई तो मुझे ज़ोर से पिशाब आया और में बाथरूम जाने के लिए उठने लगी. ज़रा सा ही उठी थी कि कमर में ज़ोर का दर्द हुआ और में वापस बिस्तर पे गिर पड़ी. सोनू मेरी हालत समझ गया और मुझे उठा कर बाथरूम ले गया और Wc पे बिठा दिया. बेशार्मो की तरहा मेरे सामने ही खड़ा रहा. मुझे इतनी शर्म आ रही थी कि मुतना भी मुश्किल हो रहा था. मेरे पास आ कर मेरे चूची सहलाता हुआ बोला 'शरमा किसलिए रही है, अब भी कुछ बचा है छुपाने के लिए'
मैं शर्म से दोहरी होती जा रही थी वो मेरे मम्मों से खेल रहा था, बड़ी मुस्किल से मैने मुता और फिर उसने मुझे शवर के नीचे खड़ा कर दिया. ठंडा ठंडा पानी मेरे जिस्म को राहत देने लगा.
उसने मुझे बड़े प्यार से नहलाया. उसके हाथ मेरे जिस्म पे जब घूम रहे थे मेरी साँसे तेज़ होने लगी एक सैलाब मेरे अंदर फिर से उठने लगा.
वो नीचे बैठ गया और अपना मुँह मेरी चूत से लगा दिया उफफफफफफफफफफफफ्फ़ एक तेज़ सरसराहट मेरी चूत मे होने लगी . उसने अपनी जीब मेरी चूत में घुसा दी. उूुुुुुुुुुउउइईईईईईईईईईईईईई माआआआआआ मैं चीख पड़ी . मेरी चूत में हज़ारों चीटी एक साथ रेंगने लगी मेरा बुरा हाल होने लगा और वो मज़े से मेरी चूत को अपनी जीब से रोन्दने में लगा रहा. उफ़फ्फ़ क्या बताऊ क्या हाल हो रहा था मेरा. खड़ा होना भी भारी लग रहा था. बस दिल कर रहा थे वो अपना लंड मेरी चूत में घुसा दे. मैं ज़्यादा देर तक उसकी जीब के करतब अपनी चूत में सह ना सकी मेरा जिस्म अकड़ता गया और मैं उसके मुँह में ही झाड़ पड़ी. वो चटकारे लेकर मेरा कामरस पीने लगा और तब तक पीता रहा जब तक आखरी बूँद भी उसके गले के नीचे उत्तर ना गई.
इतना मज़ा आया कि क्या बताऊ . मैं और खड़ी ना रह सकी और फर्श पे ढेर हो गई. वो मेरे साथ लिपट गया और मुझे चूमने और सहलाने लगा.
जब थोड़ी जान में जान आई तो वो खड़ा हो गया. अब मेरी बारी थी उसे मज़ा देने की. मैं घुटनो के बल बैठ गई और उसके लंड को पकड़ कर चाटने लगी. वो आँहें भरने लगा.
मैं उसके लंड को अपने मुँह के अंदर घुसाती चली गई और वो मेरे गले तक पहुँच गया. मुझे साँस लेने में तकलीफ़ होने लगी, फिर भी मैं उसके लंड को थोड़ा बाहर निकालती फिर गले तक ले जाती, उसे तो ऐसा लग रहा था जैसे चूत में ही उसका लंड घुसा हुआ हो. मैं ज़ोर ज़ोर से उसके लंड को चूसने लगी. दिल कर रहा था कि वह मेरे मुँह में ही झाड़ जाए और में उसके रस से अपनी प्यास भुजा सकूँ. पर उसके मन में कुछ और ही था.
उसने मेरे मुँह से अपना लंड निकाल लिया और मुझे झुका कर मेरे पीछे आ गया. मैं समझ गई अब ये मुझे चोदेगा. मेरे पीछे आ कर अपना लंड मेरी चूत पे घिसने लगा. मेरा हाल तो बुरा हो ही चुका था मेरी चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी. उसने मेरी कमर को पकड़ा और अपना लंड मेरी चूत मे एक झटके में ही पेल दिया. मैं सिर्फ़ एक बार ही तो चुदि थी,मेरी चूत काफ़ी टाइट थी इसलिए मुझे बहुत दर्द हुआ पर इतना नही जितना पहली बार हुआ था.
वो सतसट मुझे पेलने लगा . मैं दर्द से कराहती रही, थोड़ी देर में मेरा दर्द गायब हो गया और मज़ा आने लगा. मैने भी अपनी गान्ड उसके लंड पे मारनी शुरू कर दी. जैसे ही वो अपना लंड बाहर निकालता मैं अपनी गान्ड पीछे कर फिर उसका लंड अंदर लेलेति.
10 मिनट तक वो मुझे बिना रुके चोदता रहा और फिर मेरी चूत में झाड़ गया. हम दोनो की साँसे फूल चुकी थी. उसके झाड़ते ही मेरी चूत भी उसके साथ झाड़ पड़ी और मैं फर्श पे ही ढेर हो गई.
कविता की कहानी खत्म होते ही दोनो चिपक कर सो जाती है।
अगले दिन कविता के घरवाले पहुँच जाते हैं, इसलिए कविता अपने नये घर चली जाती है. सोनू बेसब्री से उसका इंतेज़ार कर रहा था. ये दिन बड़ी मुस्किल से उसने निकाले थे. अब दोनो को ही रात का इंतेज़ार था एक दूसरे की बाँहों में समाने के लिए.
रवि भी घर वापस आ जाता है और आरती से गुफ्तगू करता है,
आरति के दिल के एक कोना के अंदर एक उथल पुथल मचा रही थी। उसका शरीर का हर कोना जगा हुआ था और कुछ माँग रहा था।
आरती के अंदर का शैतान का कहिए आरती का शरीर जाग उठा था अपने आपको संभालती हुई वो किसी तरह से सिर्फ़ रवि का इंतजार करती रही
रात को बहुत देर से रवि आया घर का हर कोना साफ था और सजा हुआ था रवि के आने का संकेत दे रहा था रवि के आने के बाद तो जैसे फिर से एक बार घर में जान आगई थीपूरा घर भरा-भरा सा लगने लगा था नौकर चाकर दौड़ दौड़ कर अब तक काम कर रहे थे
पर आरती का हर कोना खाली था और उसे जो चाहिए था वो उसे नहीं मिला था अब तक उसे वो चाहिए ही था रवि के आते ही वो फिर से भड़क गया था एक तो पूरा दिन घर में फिर इस तरह के ख्याल उसके दिमाग में घर कर गये थे की वो पूरा दिन जलती रही थी
पर कमरे में पहुँचते ही रवि का नजरिया ही दूसरा था वो जल्दी-जल्दी सोने के मूड में था बातें करता हुआ जैसे तैसे बेड में घुस गया और गुड नाइट कहता हुआ बहुत ही जल्दी सो गया था आरती कुछ कह पाती या कुछ आगे बढ़ती वो सो चुका था कमरे में एक सन्नाटा था और वो सन्नाटा आरती को काटने दौड़ रहा था किसी तरह चेंज करते हुए वो भी सोने को बेड में घुसी थी की रवि उसके पास सरक आया था एक उत्साह और ललक जाग गई थी आरती में मन में और शरीर में पर वो तो उसे पकड़कर खर्राटे भरने लगा था एक हथेली उसके चूचों पर थी और दूसरा कहाँ था आरती को नहीं पता शायद उस तरफ होगा पर रवि के हाथों की गर्मी को वो महसूस कर रह थी एक ज्वाला जिसे उसने छुपा रखा था फिर से जागने लगी थी
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