Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:34 PM,
#61
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
और लगभग क्रॉस करते हुए और धीरेधीरे अपनी कमर को हिलाने लगी रामु तो जैसे पागल हो गया था और अपनी उत्तेजना को ज्यादा देर नहीं रोक पाया और अपनी गिरफ़्त में आई आरती को कस्स कर पकड़ लिया और उसके होंठों को चूसते हुए कस्स कर अपनी कमर को ऊपर की ओर चलाने लगा पर हर झटके में वो अपने आपको झड़ता हुआ पा रह था और हुआ भी ऐसा ही वो ज्यादा देर रुक नहीं पाया और आरती के अंदर और अंदर तक अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हो गया पर आरती तो जैसे आज संतुष्ट नहीं होना चाहती थी वो अब भी अपनी कमर को उसी तरीके से चलाती जा रही थी और फिर थोड़ी देर बाद वो भी निढाल होकर उसके ऊपर फेल गई थी उसकी साँसे अब भी तेज चल रही थी पर हाँ… एक शांति थी बहुत ही शांत शांत होते हुए भी उसके हाथ और शरीर ऊपर पड़े होने के बावजूद रामू के शरीर से घिस रही थी आरती और अपने हाथों से भी उसके बाहों को सहलाते हुए अपने आपको शांत कर रही थी


रामू भी नीचे से आरती के शरीर को सहलाते हुए नीचे की ओर जाता था और अपने हाथों को उसकी हर उँचाई और घहराई को छेड़ते हुए ऊपर की ओर आ जाते थे आरती के मुख से एक हल्की हल्की सी सिसकारी के साथ अब बहुत ही धीरे-धीरे और हल्के से आवाजें आने लगी थी पर समझ में कुछ नहीं आरहा था पर हाँ… इतना तो पता था कि वो संतुष्ट है थोड़ी देर तक अपने को संभालने के बाद आरती साइड की ओर हुई और धीरे से उस गंदे से बेड पर वैसे ही नंगी लेट गई उसका चहरा अब दीवाल की ओर था


और रामु काका और लाखा काका उसके पीछे थे क्या कर रहे थे उसे पता नहीं और नहीं वो जानना चाहती थी वो वैसे ही पड़ी रही और अपनी सांसों को संभालने की कोशिश करती रही और पीछे लाखा काका अपने आपको दीवाल के सहारे बैठे हुए रामु की ओर देखता रहा लाखा ने अपने ऊपर अपनी लूँगी को डाल लिया था पर बाँधी नहीं थी

रामु भी धीरे से उठा और लाखा की ओर देखता हुआ एक बार पास लेटी हुई आरती की ओर नजर दौड़ाई और फिर लाखा की ओर और फिर नज़रों के इशारे से बातें
रामु- क्या और आरती की ओर इशारा करते हुए
लाखा- पता नहीं पूछ
रामू- बहू
और धीरे से अपनी हथेलियो को उसकी पीठ पर रखा और धीरे-धीरे सहलाते हुए कमर तक ले जाता रहा आरती के शरीर में एक हल्की सी हरकत हुई और उसका दायां हैंड पीछे की ओर हुआ और रामु काका की हथेली को पकड़कर सामने की ओर अपनी चुचियों की ओर खींच लिया और अपनी बाहों से उसकी कालाई को कस कर अपने साइड और बाहों के बीच में कस्स लिया रामु काका की हथेली अब आरती की गोल गोल चुचियों पर थिरक रही थी और अपनी मजबूत हथेली से उनकी मुलायम और सुदोलता का धीरे-धीरे मर्दन कर रही थी आरती तो जैसे अपने आपको भूल चुकी थी वो वैसे ही लेटी हुई रामु काका के हाथों को बगल में दबाए हुए अपने शरीर पर उनके हाथों को घूमते हुए एहसास करती रही थोड़ी देर में ही आरती का रूप चेंज होने लगा था वो जैसे उकूड़ू होकर सोई हुई थी धीरे-धीरे सीधी होने लगी थी उसके शरीर में एक बार फिर से उत्तेजना भरने लगी थी आज वो बिल्कुल फ्रेश थी उसे इन दोनों ने निचोड़ा नहीं था बल्कि उसने इन दोनों को निचोड़ कर रख दिया था वो दोनों अपने को अब तक संभाल रहे थे पर रामु तो फिर से आरती की गिरफ़्त में पहुँच चुका था और अपना खेल भी खेलना चालू कर चुका था और आरती का पूरा साथ भी मिल रहा था आरती का शरीर एक बार फिर से तन गया था और वो आखें बंद किए हुए ही धीरे-धीरे अपने आपको रामु की ओर धकेल रही थी आरती की पीठ अब रामु के सीने से चिपक गई थी और रामु का हाथ उसके शरीर के सामने से घूमते हुए उसके हर उतार चढ़ाव को समझते और एहसास करते हुए फिर से उसकी चुत की ओर जाने लगा था रामु अपने हाथों को घुमा ही रहा था कि नीचे पड़े बिस्तर पर एक जोड़ी पाँव ने भी दखल दिया वो लाखा काका थे वो भी अपना हिस्सा लेने आए थे और धीरे से आरती के पास ही बैठ गये और अपने हाथों से उसकी जाँघो को सहलाते हुए धीरे-धीरे ऊपर चलाने लगे थे आरती अब धीरे-धीरे सीधी होती जा रही थी और अपने को रामू काका के साथ सटाते हुए वो अब पीठ के बल लेट गई थी


पूरी तरह से आखें बंद किए अपने शरीर पर दो जोड़ी हाथों को घूमते हुए पाकर आरती शरीर एक बार फिर से उत्तेजना के सागार में गोते लगाने लगा था वो अब पूरी तरह से लाखा काका और रामू काका के साथ अपने आपको फिर से उस खेल का हिस्सा बनाने को तैयार थी अपने एक हाथ से उसने रामू काका की हथेली को अपनी चुचियों के ऊपर पकड़ रखा था और दूसरे हाथों को लाखा काक की जाँघो पर घुमाने लगी थी लाखा काका भी अपने आप पर हो रहे इस तरह के प्यार को नहीं झुठला सके और नीचे होकर अपनी प्यारी बहू के होंठों को अपने होंठों में दबाकर उनको थोड़ी देर तक चूसते रह आरती ने भी कोई शिकायत नहीं की बल्कि अपने होंठों को खोलकर काका के सुपुर्द कर दिया और उनके चुबलने का पूरा मजा लेती रही रामू काका भी आरती की चुचियों को दबाते दबाते अपने होंठों को उसकी चुचियों तक लेआए और उसकी एक चुचि को अपने होंठों के बीच में दबा के चूसने लगे आरती की नरम हथेली रामू काका के बालों पर से होते हुए उन्हें अपनी चुचियों पर और अच्छे से खींचती रही और अपने दूसरे हाथों से काका को अपने होंठों के पास दोनों के हाथ अब आरती के पूरे शरीर पर घूमते रहे और आरती को उत्तेजित करते रहे आरती की जांघे अपने आप खुलकर उन दोनों की उंगलियों के लिए जगह बना दी थी ताकि वो अपने अगले स्टेप की ओर बिना किसी देर और रुकावट के जा सके

दोनो ने अपने हिस्से की आरती को बाँट लिया था दायां साइड रामु के पास था और लेफ्ट साइड लाखा काका के पास था जो कि अपने आपको जिस तरह से चाहे अपने होंठों और हथेलियो को उसके शरीर पर चला रहे थे हथेलियो के संपर्क में आते हर हिस्से का अवलोकन और सुडोलता को नापने के अलावा उसकी नर्मी और कोमलता का मिला जुला एहसास रामू और लाखा के जेहन तक जाता था कोई मनाही नहीं ना कोई इनकार बस करते रहो और करो और कोई सीमा नहीं किसी के लिए भी पूरा मैदान साफ है और कोई चिंता भी नहीं बस एक बात की चिंता थी कि कब और कैसे


आरती लेटी लेटी अपने शरीर पर घुमाते हुए दोनों के हाथों का खिलोना बनी हुई थी और अपने शरीर पर से उठ रही तरंगो को सिसकारी के रूप में बाहर निकालते हुए अपने दोनों हाथों से रामू और लाखा को अपने पास और पास खींचती जा रही थी रामु और लाखा की उंगलियां आरती की चुत में अपनी जगह बनाने लगी थी और एक के बाद एक उसकी चुत के अंदर तक उतर जाती थी और आरती को एक और स्पर्धा की ओर धकेलती जा रही थी वो कामातूर हो चुकी थी एक बार फिर दोनों के चुबलने से और उंगलियों के खेल से


दोनों की उंगलियां बीच में भी कई बार आपास्स में टकरा जाती थी और फिर जो जीतता था वो अंदर हो जाता था पर एक समय ऐसा भी आया जब एक साथ दो उंगलियां उसकी चुत में समा गई थी और आरती को कोई एतराज नहीं था उसने अपनी जाँघो को और खोलकर उन्हें निमंत्रण दे दिया और अपने होंठों को पता नही कौन था उसके होंठों में रहा ही रहने दिया अपने चूचियां को सीना तान कर, और भी उँचा कर दिया ताकि वो पूरा का पूरा उसके हथेलियो में समा जाए अंदर गई उंगलियां अपना कमाल दिखा रही थी और आरती के मुख से एक बार फिर से
आरती- अब चोदो जल्दी प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज
रामू- (जो कि उसके होंठों को अब चूस रहा था ) हाँ बहू बस थोड़ा सा रुक
आरती- नहीं चोदो जल्दी
एक अजीब सी गुर्राहट उसके गले से निकली जो कि रामु और लाखा दोनों के कानों तक गई थी उनकी उंगलियां चुत के अलावा उसके थोड़ी सी दूर उसके गांड से भी खेल रही थी और वो एक अजीब सी, आग आरती के शरीर में लगा रही थी वो अपनी गांड को सिकोड़ कर वहाँ कोई आक्रमण से बंचित रखना चाहती थी पर
शायद दोनों की उंगलियां वहाँ के दर्शन को भी आतुर थी और धीरे से एक उंगली उसके गांड से भी अंदर चली गई आरती एक बार अपने को नीचे दबाए हुए भी और नहीं किसी खेल को मना करती हुई एक आवाज उसके मुख से निकली
आरती-, नहीं वहां नहीं प्लीज वहां नहीं
हाँफती हुई सी उसके मुख से निकली थी पर उसके आग्रह का कोई भी असर उसे दिखाई नहीं दिया पर हाँ… उसका इनकार कमजोर पड़ गया था और उत्तेजना की ओर ज्यादा ध्यान था उसके शरीर को अब और इंतेजार नहीं करना था
एक ही झटके से वो उठ बैठी और दोनों की ओर देखती हुई लाखा काका पर लगभग कूद पड़ी लाखा काका जब तक कुछ समझते, वो उनके ऊपर थी और उनके सीधे खड़े हुए लण्ड के ऊपर आरती और धम्म से वो अंदर था
आरती- अहाआह्ह

जैसे ही वो अंदर गया आरती का शरीर आकड़ गया और थोड़ा सा पीछे की ओर हुई ताकि अपने चुत में घुसे हुए लण्ड को थोड़ा सा अड्जस्ट कर सके पीछे होते देखकर रामू ने उसे अपनी बाहों में भर कर उसे सहारा दिया और धीरे-धीरे उसके गालों को चूमते हुए
रामु- आज क्या हुआ है बहू हाँ…
और उसकी चूचियां पहले धीरे फिर अपनी ताकत को बढ़ाते हुए उन्हें मसलने लगा था लाखा काका तो नीचे पड़े हुए आरती की कमर को संभाले हुए उसे ठीक से अड्जस्ट ही करते जा रहे थे और आरती तो जैसे अपने अंदर उनके लण्ड को पाकर जैसे पागल ही हो गई थी वो बिना कुछ सोचे अपने आपको उचका कर उनके लण्ड को अपने अंदर तक उतारती जा रही थी

उसके अग्रसर होने के तरीके से कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि आरती कितनी उत्तेजित है
आरती के मुख से निकलती हुई हर सिसकारी में बस इतना जरूर होता था
आरती- और जोर्र से काका उूुउउम्म्म्मम और जोर से जल्दी-जल्दी करूऊऊऊ उूुउउम्म्म्म
और अपने होंठों से पीछे बैठे हुए रामु काका के होंठों पर चिपक गई थी उसकी एक हथेली तो नीचे पड़े हुए काका के सीने या पेट पर थी पर एक हाथ तो पीछे बैठे रामु काका की गर्दन पर था और वो लगा तार उन्हें खींचते हुए अपने सामने या फिर अपने होंठों पर लाने की कोशिश में लगी हुई थी लाखा काका का लण्ड उसके चुत पर लगातार नीचे से हमलाकर रहा था और दोनों हथेलियो को जोड़ कर वो आरती को सीधा बिठाने की कोशिश भी कर रहा था पर आरती तो जैसे पागलो की तरह कर रही थी आज वो उछलती हुई कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ हो जाती थी पर लाखा काका अपने काम में लगे रहे

रामु भी आरती को ही संभालने में लगा हुआ था और उसकी चुचियों को और उसके होंठों को एक साथ ही मर्दन किए हुए था और अपने लण्ड को भी जब भी तोड़ा सा आगे करता तो कामया के नितंबों की दरार में फँसाने में कामयाब भी हो जाता था वो अपने आप भी बड़ा ही उत्तेजित पा रहा था और शायद इंतजार में ही था कि कब उसका नंबर आएगा पर जब नहीं रहा गया तो वो आरती की हथेली को खींचते हुए अपने लण्ड पर ले आया और फिर से उसकी चुचियों पर आक्रमण कर दिया वो अपने शरीर का पूरा जोर लगा दे रहा था उसकी चूचियां निचोड़ने में पर आरती के मुख से एक बार भी उउफ्फ तक नहीं निकला बल्कि हमेशा की तरह ही उसने अपने सीने को और आगे की ओर कर के उसे पूरा समर्थन दिया उसकी नरम हथेली में जैसे ही रामू का लण्ड आया वो उसे भी बहुत ही बेरहमी से अपने उंगलियों के बीच में करती हुई धीरे-धीरे आगे पीछे करने लगी थी आरती का शरीर अब शायद ज्यादा देर का मेहमान नहीं था क्योंकी उसके मुख से अब सिसकारी की जगह, सिर्फ़ चीख ही निकल रही थी और हर एक धक्के में वो ऊपर की बजाए अपने को और नीचे की ओर करती जा रही थी लाखा की भी हालत खराब थी और कभी भी वो अपने आपको शिखर पर पहुँचने से नहीं रोक पाएगा

आज तो कमाल ही कर दिया था आरती ने एक बार भी उन्हें मौका नहीं दिया और नहीं कोई लज्जा या झिझक मजा आ गया था पर एक डर भी बैठ गया था पर अभी तो मजे का वक़्त था और वो ले रहा था
आखें खोलकर जब वो अपने ऊपर की आरती को देखता था वो सोच भी नहीं पाता था कि यह वही बहू है जिसके लिए वो कभी तरसता था या उसकी एक झलक पाने को अपनी चोर नजर उठा ही लेता था आज वो उसके ऊपर अपनी जनम के समय की तरह बिल्कुल नंगी उसके लण्ड की सवारी कर रही थी और सिर्फ़ कर ही नहीं रही थी बल्कि हर एक झटके के साथ उसे एक परम आनंद के सागर की ओर धकेलते जा रही थी वो अपनी कल्पना से भी ज्यादा सुंदर और अप्सरा से भी ज्यादा कोमल और चंद्रमा से भी ज्यादा उज्ज्वल अपनी बहू को देखते हुए अपने शिखर पर पहुँच ही गया और एक ही झटके में अपनी कमर को उँचा और उँचा उठाता चला गया पर आरती के दम के आगे वो और ज्यादा नहीं उठा सका और एक लंबी सी अया के साथ ही ठंडा हो गया


आरती की ओर देखता पर वो तो जैसे शेरनी की तरह ही उसे देख रही थी दो बार झड़ने के बाद भी वो इतनी कामुक थी कि वो अभी तक शांत नहीं हुई थी लेकिन लाखा काका को छोड़ने को भी तैयार नहीं थी वो अब भी उसके लण्ड को अपनी चुत में लिए हुए अपनी चुत से दबाए जा रही थी और एक अजीब सी निगाहो से लाखा काका की ओर देखती रही पर उसके पास दूसरा आल्टर्नेटिव था रामु काका जो की तैयार था पीछे वो एक ही झटके से घूम गई थी और बिना किसी चेतावनी के ही रामु काका से लिपट गई थी अपनी बाँहे उनके गले पर रखती हुई और अपने होंठों के पास खींचती हुई वो उसपर सवार होती पर रामु ने उसे नीचे पटक दिया और ऊपर सवार हो गया था और जब तक वो आगे बढ़ता आरती की उंगलियां उसके लण्ड को खींचते हुए अपनी चुत के द्वार पर रखने लगी थी

रामु तो तैयार ही था पर जैसे ही उसने अपने लण्ड को धक्का दिया आरती के मुख से एक लंबी सी सिसकारी निकली और वो उचक कर रामु काका के शरीर को नीचे की ओर खींचने लगी रामु काका भी धम्म से उसके शरीर पर गिर पड़े और जरदार धक्कों के साथ अपनी बहू को रौंदने लगे पर एक बात साफ थी आज का खेल आरती के हाथों में था आज वो उनके खेलने की चीज नहीं थी आज वो दोनों उसके खेलने की चीज थे और वो पूरे तरीके से इस खेल में शामिल थी और हर तरीके से वो इस खेल का पूरा आनंद ले रही थी आज का खेल उसे भी अच्छा लग रहा था और वो अपने को शिखर को जल्दी से पा लेना चाहती थी वो रामु काका को खींचते हुए अपने शरीर के हर कोने तक का स्पर्श पाना चाहती थी उसके मुख से आवाजो का गुबार निकलता जा रहा था

आरती- करूऊ काका जोर-जोर से करो बस थोड़ी देर और करूऊऊ

और अपने बातों के साथ ही अपनी कमर को उचका कर रामु काका की हर चोट का जबाब देती जा रही थी पर अब तक अधूरा छोड़ा हुआ लाखा काका का काम रामु काका ने आखिर में शिखर तक पहुँचा ही दिया एक लंबी सी आहह निकली आरती के मुख से और रामु काका के होंठों को ढूँढ़ कर अपने होंठों के सुपुर्द कर लिया था आरती ने । और निढाल सी पड़ी रही। रामू काका के नीचे । रामु भी अपने आखिरी स्टेज पर ही था आरती की चुत के कसाव के आगे और चोट के बाद वो भी अपने लण्ड पर हुए आक्रमण से बच नहीं पाया था और वो भी थक कर आरती के ऊपर निढाल सा पसर गया

आरती की हथेलिया रामु काका के बालों पर से घूमते हुए धीरे से उनकी पीठ तक आई और दोनों बाहों को एक हल्का सा धकेला और हान्फते हुए वही पड़ी रही कमरे मे दूधिया नाइट बल्ब की रोशनी को निहारती हुई एक बार अपनी स्थिति का जायजा लिया वो संतुष्ट थी पर थकि हुई थी नजर घुमाने की, हिम्मत नहीं हुई पर पास लेटे हुए रामु काका की जांघे अब भी उसे टच हो रही थी आरती ने भी थोड़ा सा घूमकर देखा पास में रामु काका पड़े हुए थे और लाखा काका भी थोड़ी दूर थे लूँगी ऊपर से कमर पर डाले हुए लंबी-लंबी सानसें लेते हुए दूसरी ओर मुँह घुमाए हुए थे। आरती थोड़ा सा जोर लगाकर उठी और पाया कि वो फ्रेश है और बिल्कुल फ्रेश थी कोई थकावट नहीं थी हाँ थोड़ी सी थी पर यह तो होना ही चाहिए इतने लंबे सफर पर जो गई थी

वो मुस्कुराती हुई उठी और एक नजर कमरे पर पड़ी हुई चीजो पर डाली जो वो ढूँढ़ रही थी वो उसे नहीं दिखी उसका गाउन और पैंटी कोई बात नहीं वो थोड़ा सा लड़खड़ाती हुई कमरे से बाहर की ओर चालदी और दरवाजे पर जाकर एक नजर वापस कमरे पर डाली रामु और लाखा अब भी लेटे हुए लंबी-लंबी साँसे ले रहे थे

वो पलटी और सीडीयाँ उतरते हुए वैसे ही नंगी उतरने लगी थी सीढ़ियो में उसे अपना गाउन मिल गया पैरों से उठाकर वो मदमस्त चाल से अपने कमरे की ओर चली जा रही थी

समझ सकते है आप क्या दृश्य होगा वो एक स्वप्न सुंदरी अपने शरीर की आग को ठंडा करके बिना कपड़ों के सीढ़िया उतर रही हो तो उूुुुुुुउउफफफफफफफफ्फ़
क्या सीन है यार,

संभालती हुई उसने धीरे से अपने कमरे का दरवाजा खोला और बिना पीछे पलटे ही पीछे से धक्का लगाकर बंद कर दिया और पलटकर लॉक लगा दिया और बाथरूम की ओर चल दी जाते जाते अपने गाउनको बेड की ओर उच्छाल दिया और फ्रेश होने चली गई थी जब वो निकली तो एकदम फ्रेश थी और धम्म से बेड पर गिर पड़ी और सो गई थी जल्दी बहुत जल्दी। सुबह कब हुई पता ही नहीं चला हाँ… सुबह चाय के समय ही उठ गई थी।



सोनल के ही साथ चाय पी थी नीचे जाकर
सोनल- मम्मी,आज क्या ऋषि आएगा आपको लेने
आरती- कहा तो था पता नहीं
सोनल- हाँ… मुझे तो आज स्कूल जाना है खाना खा के चली जाती हु आप फिर आराम से निकलना क्यों
आरती- ठीक है
सोनल- मम्मी मैं रुकु जब तक नहीं आता
आरती- क्या बताऊ कल तो बोला था कि आएगा
सोनल- फोन कर लो एक बार
आरती-नंबर नहीं है उसका
आरती- धत्त क्या मम्मी आप भी, नंबर तो रखना चाहिए ना अब वो आपके साथ ही रहेगा धरम पाल अंकल जी ने कहा है थोड़ा सा बच्चे जैसा है और कोई दोस्त भी नहीं है उसका

आरती- पर मेरे साथ क्यों

सोनल (थोड़ा हँसते हुए)- देखा तो है आपने उसे ही ही ही

आरती को भी हँसी आ गई थी कोई बात नहीं रहने दो उसे पर नंबर तो है नहीं कैसे पता चलेगा
देखा जाएगा
आरती- अगर नहीं आया तो लाखा के साथ निकल जाऊँगी गाड़ी में।
आरती- हाँ… ठीक है
और दोनों चाय पीकर तैयारी में लग गये ठीक खाने के बाद काम्पोन्ड में एक गाड़ी रुकने की आवाज आई थी रामु अंदर से दौड़ता हुआ बाहर की ओर गया और बताया कि धरंपाल जी का लड़का है
दोनों खुश थे चलो आ गया था
सोनल- उसे बुला लाओ यहां
रामु- जी
और थोड़ी देर में ही ऋषि उसके साथ अंदर आया था
आते ही सोनल को हेलो किया और आरती की ओर देखता हुआ नमस्ते भी किया था छोटा था पर संस्कार थे उसमें
सोनल- कैसे हो ऋषि
ऋष- अच्छा हूँ
सोनल- आओ खाना खा लो
ऋषि- जी नहीं खाके आया हूँ
सोनल- अरे थोड़ा सा डेजर्ट है लेलो
ऋषि- ठीक है
और आरती के साइड में खाली चेयर में बैठ गया और एक बार उसे देखकर मुस्कुरा दिया बहुत ही सुंदर लगा रहा था ऋषि आज महरून कलर की काटन शर्ट पहने था और उससे मचिंग करता हुआ खाकी कलर का पैंट ब्लैक शूस मस्त लग रहा था बिल्कुल शाइट था वो सफेद दाँतों के साथ लाल लाल होंठ जैसे लिपस्टिक लगाई हो बिल्कुल स्किनी सा था वो पर आदर सत्कार और संस्कार थे उसमें नजर झुका कर बैठ गया था सोनल के कहने पर और बड़े ही शर्मीले तरीके से थोड़ा सा लेकर खाने लगा था बड़ी मुश्किल से खा पा रहा था

सोनल- ऋषि अब से क्या तुम लेने आओगे मम्मी को

ऋषि- जैसा भाभी जी कहे
सोनल- नहीं नहीं वो तो इसलिए कि आरती ने बताया था कि तुम लेने आओगे इसलिए पूछा नहीं तो वो तो जाती ही है फैक्टरी का काम देखने

ऋषि- जी आ जाऊँगा यही से तो क्रॉस होता हूँ अलग रोड नहीं है इसलिए कोई दिक्कत नहीं है

सोनल- ठीक है तुम आ जाया करो हाँ कोई काम रहेगा तो पहले बता देना ठीक है और तुम्हारा नंबर दे दो
ऋषि - जी और खाने के बाद उसने अपना नंबर सोनल को दे दिया था और आरती को भी
आरती- तुम बैठो में आती हूँ तैयार होकर
सोनल के जाने के बाद ही आरती ने ऋषि से कोई बात की थी पर ऋषि टपक से बोला
ऋषि- तैयार तो है आप
आरती- अरे बस आती हूँ तुम रूको
ऋषि- जी झेपता हुआ खड़ा रह गया था
आरती पलटकर अपने कमरे की ओर चली गई थी सीढ़िया चढ़ते हुए ऋषि की बातों पर हँसी आ रही थी कि कैसे सोनल के हटते ही टपक से बोल उठा था वो शरारती है और हो भी क्यों नहीं अभी उम्र ही कितनी होगी उसकी 22 या 23 साल
उसने कमरे में पहुँचकर जल्दी से अपने कपड़ों को एक बार देखा और मेकप को सबकुछ ठीक था पलटकर चलती पर कुछ रुक सी गई थी वो एक बार खड़ी हुई कुछ देर तक पता नहीं क्या सोचती रही पर एक झटके से बाहर की ओर निकल गई थी

नीचे सोनल तो चली गयी पर ऋषि उसके इंतेजार में बैठा हुआ था ड्राइंग रूम में उसके आते ही वो खड़ा हुआ और एक बार मुस्कुराते हुए आरती की ओर देखा और उसके साथ ही बाहर की ओर चल दिया
गाड़ी में ड्राइविंग सीट के पास ही बैठी थी आरती ऋषि ड्राइविंग कर रहा था
ऋषि- फैक्टरी ही चले ना भाभी
आरती- हाँ… और नहीं तो कहाँ
ऋषि- नहीं ऐसे ही पूछा
आरती- हाँ… थोड़ा सा गुस्से से ऋषि की और देखा
आरती- मतलब
ऋषि झेपता हुआ कुछ नहीं कह पाया था पर ड्राइव ठीक ही कर रहा था बड़ी ही सफाई से ट्रफिक के बीच से जैसे बहुत दिनों से गाड़ी चला रहा हो
आरती- अच्छी गाड़ी चला लेते हो तुम तो
ऋषि- जी असल में बहुत दिनों से चला रहा हूँ ना 11 क्लास में ही चलाना आ गया था मुझे तो दीदी के साथ जाता था सीखने को दीदी से ही सिखाया है बिल्कुल चहकता हुआ सा उसके मुख से निकलता वो गुस्से को भूल गया था
आरती- हाँ… मुझे तो नहीं आती सीखने की कोशिश की थी पर सिख नहीं पाई
तपाक से ऋषि के मुख से निकाला
ऋषि- अरे में हूँ ना में सीखा दूँगा दो दिन में ही
आरती को उसके बोलने के तरीके पर हस्सी आ गई थी बिल्कुल चहकते हुए वो बोला था
आरती- ठीक है तुम सिखा देना और देखकर चलाओ नहीं तो टक्कर हो जाएगी
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस. - by sexstories - 08-27-2019, 01:34 PM

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