Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:31 PM,
#49
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
आरती जाँघो को जोड़ जोड़ कर बार-बार अपने आपको कही और ही भूलने की कोशिस करती रही पर नहीं हुआ उससे बार बार वो हास्पिटल के बेड के पास का सीन नहीं भुला पा रही थी भोला के लण्ड का स्पर्श उसे हाथों में अब तक था गरम और सख्त और मुलायम और मोटा सा लण्ड अब तक उसके जेहन में उसके शरीर के हर हिस्से को एक आग में झुलसा रहा था वो मजबूर थी ना चाहते हुए भी बार-बार उसके जेहन में यह बात घर किए हुए थी अब तो उसका सिर भी घूमने लगा था


वो धम्म से बेड पर गिर पड़ी चित होकर अपने हाथों को फैला कर उसने बेड के चारो ओर एक बार देखा कि वो ठीक है कि नहीं और फिर से वो अपनी दुनियां की सैर करने लगी थी कितना मजबूत था भोला और निडर भी किसी बात की चिंता नहीं की उसने अगर उस समय रवि या कोई और ही आ जाता तो और वो भी बिना किसी डर के बाद में उसका साथ देने लगी थी सोचते सोचते वो फिर से अपने आपको उसी आग में झौंकने लगी थी जिसे वो निरंतर खामोश करने की कोशिश कर रही थी पर हर बार वो कोशिश उसके शरीर को और भी उस आग में धकेल रहा था जिस आग से वो भाग रही थी
हर एक पहलू उसे उस ओर धकेल रहा था जिससे वो भागने की कोशिश कर रही थी लेटे लेटे वो बहुत देर तक अपने बारे में सोचती रही और अपने को कही और ही ले जाने की कोशिश करती रही पर हर बार वो लौट कर वही आ जाती थी जहां से चली थी अपने को संभालते हुए वो एक बार फिर से खड़ी हुई और अपने बेड को ठीक करने लगी थी वो नहीं सोचना चाहती थी उस बारे में नहीं वो अब और इस दलदल में नहीं फँसेगी नहीं वो अब नहीं बहकेगी हाँ… अब वो ठीक से सोच पा रही थी बिल्कुल ठीक आरती ने एक ही झटके में अपने बेड की ठीक करते हुए लाइट बंद करके चुपचाप लेट गई कमरे में बिल कुल सन्नाटा पसर गया था हल्की सी नाइट लैंप की रोशनी थी पूरे कमरे में बहुत ही मध्यम सी सिर्फ़ और सिर्फ़ आरती के सांसों की चलने की आवाज आ रही थी और कुछ नहीं


आरती बेड पर पहले तो फेल कर सोई हुई थी फिर अपने को सिकोड़ कर फिर और भी सिकोड़ कर सोने की कोशिश करती रही आखें बंद करती तो वही भोला का चेहरा उसे याद आता कैसे आखें बंद किए हुए था उस समय जब वो उसके लण्ड को सहला रही थी किसी पत्थर की तरह सख्त था आआआआआआह्ह उूुुुुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफफफफफफफ्फ़
आरती झट से उठ बैठी नहीं और नहीं सह सकती यह रवि की गलती है वो क्या करे उसका पति ही उसका साथ नहीं देता तो वो क्या करे शादी के बाद औरत हर एक इच्छा के लिए अपने पति पर ही निर्भर रहती है और वो हमेशा ही उसे अनदेखा करता है क्यों चला गया वो खाने से लेकर हर चीज़ उसे अपने पति से ही चाहिए होता है पर वो तो सिर्फ़ खाने और पहनने तक ही सीमित था असल समय में ही गायब हो जाता था नहीं अब और नहीं सह सकती वो उससे कुछ करना ही पड़ेगा, नहीं तो वो मर जाएगी उसे कोई चाहिए कोई भी उसके तन की आग को बुझाने को कोई भी चलेगा पर चाहिए अभी ही आरती के शरीर में जाने कहाँ से एक फुर्ती सी आ गई थी वो एक झटके से अपनी चादर को अपने शरीर से अलग करके नीचे पड़े हुए सँडल पर अपने पैरों को घुसा लिया और खड़ी हो गई वो अपने रूम से बाहर जाना चाहती थी



उसे इस रूम में घुटन ही रही थी यहां अगर वो ज्यादा देर रहेगी तो पागल हो जाएगी नहीं नहीं उसे बाहर ही जाना है वो धीरे से अपने रूम का दरवाजा खोलकर बाहर आकर खड़ी हो गई सीढ़ियो के ऊपर जाने वाले रास्ते को एक बार देखा नहीं अंदर से एक हल्की सी आवाज आई वो थोड़ा सा रुक गई नहीं वो ऊपर नहीं जाएगी फिर वो धीरे-धीरे चलते हुए नीचे की ओर जाने लगी थी वो एक बात बिल कुल भूल चुकी थी कि वो क्या पहेने हुए थी सिर्फ़ एक छोटा सा शमीज टाइप का गाउन जो कि उसके अंदर का हर हिस्सा साफ-साफ दिखाने की कोशिश कर रहा था ना पैंटी और नहीं ब्रा बस एक हल्का सा गाउन था वो या कहिए एक महीन सा कपड़ा भर था उसके शरीर पर पर वो अपने आपसे नहीं लड़ पा रही थी शायद आज की पूरी रात ही वो अपने आपसे लड़ते हुए गुज़ार देगी सीढ़ियो से नीचे उतरते हुए उसे अपने पूरे घर के सन्नाटे को भी देखती हुई वो बिल्कुल धीमे कदमो से चलती हुई किचेन की ओर बढ़ रही थी किचेन में हल्की सी रोशनी थी


एक-एकदम सन्नाटा कोई नहीं था वहाँ रामु काका अपना काम खतम करके ऊपर चले गये होंगे हाँ… उसने आगे बढ़ कर फ्रीज खोला और एक बोतल निकाल कर धीरे धीरे एक-एक घुट पानी पीने लगी खड़ी हुई एक बार पूरे किचेन की ओर देखा फिर एक घुट फिर थोड़ा इधर उधर फिर एक बोतल रख ही रही थी कि उसे पीछे से एक आहाट सुनाई दी वो थोड़ा सा डरी पर हिम्मत नहीं हुई पलटने की आवाज रुक गई थी फ्रीज का दरवाजा अब भी खुला था और वो झुकी हुई थी झुके झुके ही उसने पलटकर किचेन से बाहर की ओर देखा आरती की सांसें फिर से फूलने लगी थी बिना पीछे पलटे ही खड़ी हुई और फ्रीज के दरवाजे को बहुत ही धीरे से बंद करके वही फिर से खड़ी हो गई ।
उसे नहीं पता था कि पीछे कौन था खड़ी ही हुई थी कि पीछे से दो हाथों ने उसकी कमर से चलते हुए धीरे-धीरे से उसकी चूची को अपनी गिरफ़्त में ले लिया आरती के मुख से एक लंबी सी आआह्ह निकली थी उसने उसे रोकने को कोशिश नहीं की अपने अंदर के द्वंद से वो थक चुकी थी वो नहीं गई थी किसी के पास अगर कोई उसे शांत करना चाहता है तो अब उसे क्यों रोके वो वैसे ही खड़ी रही बल्कि उसके हाथों को अपने हथेलियो से और कस कर पकड़ लिया था अपनी गर्दन को पीछे की ओर धकेल कर उसके कंधों पर टिका लिया था उसे सहारे की जरूरत थी एक बहुत ही मजबूत सहारे की अपनी चूची को बहुत ही धीरे-धीरे दब्ते हुए पा रही थी वो बहुत ही प्यार से
आरती- आअह्ह जोर से दबाओ

- क्यों अपने आपको तकलीफ देती है बहू हाँ…
और एक लंबा सा चुंबन उसके गालों को गीलाकर गया था हल्की हल्की दाढ़ी के सख्त बाल उसके कोमल और नाजुक से गालों को छू रहे थे वो और भी ज्यादा उसकी काम अग्नि को बढ़ा रहे थे वो अब अपने आप में नहीं थी अब तो वो उसके हाथों में थी और सबकुछ न्योछावर था सबकुछ

- इस घर में तेरे गुलामों के रहते क्यों

और एक लंबा सा चुंबन होंठों को होंठों से जोड़ गया और आवाजें एक के अंदर एक गुम हो गई आरती का गाउन उसकी कमर के ऊपर की ओर उठ गया था पीछे खड़े सख्स के हाथों के कारण उसके हाथ अब उसकी चूची को अच्छे से दबा रहे थे आरती को जरा भी दर्द नही हो रहा था बल्कि बहुत अच्छा लग रहा था पीछे से उस सख्स के लण्ड का अहसास भी उसे हो रहा था शायद लूँगी के अंदर था पर साफ-साफ पता था कि वहां कुछ है और बहुत ही उतावला है क्योंकी हर बार वो एक झटका जरूर लेता था। आरती का एक हाथ अपने आप पीछे की ओर चला गया था और वो उस लण्ड को अपने हाथों में लेना चाहती थी वो लण्ड जो उसकी आग को शांत करना चाहता था उसके हाथों के पीछे पहुँचने से पहले ही पीछे खड़े सख्स ने जैसे उसकी मन की बात भाप ली हो एक ही झटके में उसकी धोती नीचे थी और आरती के नितंबों में गरम-गरम और तगड़ा सा लण्ड अपने आपको आजादी से स्पर्श करते हुए पाया उसका हाथ पीछे की ओर गया ही था कि उससे रहा नहीं गया और झट से उसने लण्ड को अपनी गिरफ़्त में ले लिया और बड़े ही उतावले पन के साथ उसे मसलने लगी थी पीछे खड़े सख्स को भी पता था कि आरती को क्या चाहिए वो भी आरती को धकेलते हुए पास में ही प्लॅटफार्म पर झुका कर खड़ा किया और अपने उतावले लण्ड को उसके रास्ते पर चलने को छोड़ दिया लण्ड अपने आप ही आरती की चुत के द्वार पर अपने सिरे को टिकाए हुए अपने आपको अंदर जाने के धक्के का इंतजार करता तब तक तो आरती ने भी अपनी जाँघो को थोड़ा खोलकर उसे रास्ता दे दिया और एक ही धक्के में लण्ड अपने रास्ते चल निकला
आरती- आआआआआआह्ह,

- धीरे बहू कोई सुन लेगा

और आरती के ऊपर झुकते हुए उसके होंठों को ढूँढ़ कर अपने कब्ज़े में किया ताकि उसके मुख से निकलने वाली आवाज बाहर तक नहीं जा सके लेकिन आरती तो जैसे अपने अंदर उस लण्ड को पाकर पागल हो गई थी उस सख्स के हर धक्के का साथ क्या दे रही थी बल्कि उसे पीछे की ओर ही धकेल देती थी हर धक्के के साथ वो इतना झुक जाती थी कि उस सख्स का लण्ड उसके अंदर तक बिना किसी तकलीफ के बहुत ही अंदर तक समा जाता था

वो सख्स भी शायद पहले से ही बहुत उतेजित था या कहिए आरती के इस तरह से वर्ताव करने से ही, वो बहुत ही जल्दी अपने मुकाम पर पहुँचने वाला था आरती का भी यही हाल था बहुत देर से जो आग उसके शरीर में लगी थी वो हर झटके में उसके हाथों से निकलती जा रही थी उसकी चुत के अंदर एक बहुत ही तेज और बड़ा सा समुंदर का सा जोर बनने लगा था वो जाने कब और कितनी देर तक उसका साथ दे पाएगी वो नहीं जानती थी पर, जो जंगली खेल दोनों खेल रहे थे उसमें कोई भी एक दूसरे का साथ छोड़ने को तैयार नहीं था हाँ पर एक दूसरे से दूर जाने को भी तैयार नहीं थाथे पीछे के हर धक्कों को झेलते हुए वो एक असीम समुंदर में एक झटके से गोते लगाने लगी थी उसके होंठ अब आजाद थे वो एक लंबी सी चीत्कार करते हुए अपनी कमर को और भी तेजी से पीछे की ओर करती जा रही थी और उस सख्स के हर धक्के का जबाब भी दे रही थी वो सख्स भी अपनी सीमा को लगने ही वाला था उसकी पकड़ इतनी कस गई थी, थी आरती की कमर के चारो तरह कि आरती को लगा था कि उसकी कमर की हड्डी ही टूट जाएगी पर जैसे ही वो सख्स झडा धीरे-धीरे उसकी पकड़ ढीली पड़ती गई और वो उसकी पीठ के ऊपर अपनी जीब और चेहरा घिसते हुए शांत हो गया पर जाने क्या हुआ कि जैसे ही वो सख्स शांत हुआ और अचानक ही उससे दूर भी हो गया पर एक दूसरी जोड़ी हाथों की गिरफ़्त में वो पहुँच गई थी
- बहू थोड़ा और रुक जा पागल कर दिया रे तूने

और फिर से एक लण्ड उसकी योनि में धड़-धड़ाते हुए बिना किसी चेतावनी के ही सरसराते हुए घुस गया और फिर एक भयानक सी तेजी और वहशीपन वाला खेल चालू हो गया था और आरती को कुछ समझ में आता तब तक तो शायद वो फिर से गरम-गरम सा महसूस करने लगी थी अपनी चुत में शायद उसे और भी चाहिए था शायद वो इतनी गरम हो चुकी थी कि एक के बाद एक और होने से भी उसे कोई फरक नहीं पड़ता था और वो और भी झुक कर उस सख्स के लण्ड को और भी अंदर तक ले जाने की कोशिस करने लगी थी उसके हाथ अब भी प्लॅटफार्म के ऊपर ही थे और पीछे के सख्स ने उसकी चुचियों को जोर से अपनी हथेलियो की गिरफ़्त में ले रखा था वो उन्हें मसलता हुआ लगातार झटके पर झटके दे रहा था हर झटके में आरती के मुख से एक लंबी और सुख के सागर में गोते लगाते हुए एक लंबी सी चीख निकलती थी जो किसी भी आदमी को और भी उत्तेजित कर सकती थी या फिर कहिए कि मुर्दे में भी जान डाल सकती थी पीछे के सख्स के लगातार होने वाले आक्रमण को आरती बिना किसी तकलीफ के झेलती चली गई और अपने मुकाम की ओर फिर से दौड़ लगाने लगी थी हर धक्के में वो चिहुक कर अपनी कमर को और भी मोड़ लेती या पीछे कर देती ताकि वो उस लण्ड का कोई भी हिस्सा को मिस नहीं करे जिस तरह से वो खेल चल रहा था उसे देखकर कोई भी कह सकता था कि दोनों बहुत दिनों से भूखे है और किसी तरह से अपनी आग को ठंडा करना चाहते है और वो ही कर रहे थे। आरती को अचानक ही अपने अंदर के ज्वार को चुत की ओर आते हुए पाया वो फिर से झरने वाली थी और जैसे ही वो झरने लगी थी पीछे वाले सख्स ने भी अपने लण्ड से ढेर सारा वीर्य उसकी चुत में छोड़ दिया और कस कर उसे अपनी बाहों में भर लिया आरती तो जैसे निढाल सी हो गई थी थकी हुई तो पहले से ही थी और अब तो दो बार उसके शरीर के साथ जो वो चाहती थी हो चुका था लगभग लटक चुकी थी उस सख्स की बाहों में अपने आपको प्लॅटफार्म के सहारे अपने हाथों को रखकर लंबी-लंबी सांसें छोड़ती हुई वो अपने को नार्मल करने की कोशिश कर रही थी उसकी चुत में अब तक उस सख्स का लण्ड घुसा हुआ था और बीच बिच में जोर का एक झटका दे देता था इतने में एक जोड़ी हाथों ने उसे फिर से सहारा दिया और उसके कंधों को पकड़कर उसे उँचा किया और सामने से उसे अपनी बाहों में भर लिया और कस कर उसके होंठों पर फिर से टूट पड़ा वो आरती के होंठों को अपने होंठों में दबाए उसे चूसता जा रहा था आरती में इतनी हिम्मत नही थी कि उसे मना करती और वो मना करना भी नहीं चाहती थी क्योंकी उसे यह अच्छा लग रहा था उसका शरीर तो ठंडा हो चुका था पर जैसे ही उस सख्स ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे वो एक बार फिर से उसका साथ देने लगी थी अपने जीब को खोलकर उसके मुख के अंदर तक पहुँचा चुकी थी एक आआआआह्ह सी निकली उसके मुख से शायद उस सुख के लिए थी जो उसे उस सख्स से मिल रहा था एक बार उसने अपनी आँखें खोलकर देखा वो रामु काका थे यानी रामु काका ही वो पहले सख्स थे जिन्होने उसके तन को सुख पहुँचाया था या यह कहिए फिर से उसे उस गड्ढे में धकेल दिया था जिससे वो बच रही थी पर कोई बात नहीं वो अगर नहीं करती तो शायद आज वो पागल हो जाती और जो पीछे है वो लाखा काका है जो अब तक उसे कस कर पकड़कर अपने मुरझाए हुए लण्ड को बाहर निकाल चुके थे और उसे ढीला छोड़ दिया था रामु काका के लिए वो अब पूरी तरह से रामु काका की बाँहों में थी और वो आरती को चूमते हुए धीरे-धीरे उसके पूरे शरीर का जाया जा ले रहे थे ऊपर से नीचे तक यानी उसके नितंबों तक जहां तक उनका हाथ पहुँच पा रहा था कभी कभी पीछे से एक और हाथ भी उसकी पीठ पर से रैन्गता हुआ नीचे की ओर आता और उसके नितंबों को छूता हुआ ऊपर की ओर उठ जाता शायद लाखा काका का मन अभी भरा नहीं था और नहीं रामू काका का तभी उसे पीछे से लाखा काका की आवाज सुनाई दी
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस. - by sexstories - 08-27-2019, 01:31 PM

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