Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:28 PM,
#35
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
अगली दिन सुबह रवि आरती के उठने से पहले ही अपने कमरे में पहुच जाता है और फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस जाता है, फ्रेश होकर नीचे चला जाता है, चाय के लिए, तब तक सोनल भी उठ कर डाइनिंग टेबल पर आ जाती है, सामने रवि को बैठा देख कर सोनल शर्मा जाती है, फिर किसी तरह अपने को संभाल कर गुड़ मॉर्निंग किस करती है अपने पापा को,
और बैठ जाती है, कुछ देर में आरती भी निचे आ जाती है,
आरती--- रात को कब आये थे तुम। जगाया भी नही और अब भी उठ कर नीचे आ गए अब भी नही उठाया।
रवि--- वो तुम गहरी नींद में थी तो डिस्टर्ब नही किया, सुबह भी मै जल्दी उठ गया तो नीचे आ गया।
आरती---हम्म्म्म।
सोनल---- गुड़ मॉर्निंग म्मा, आप की कितनी गहरी नींद होती है, जो आपको पापा के आने जाने का भी नही मालूम पड़ता। लगता है दिन में काफी मेहनत का काम करती हो आप जिससे थक जाती होगी।
आरति----हैन अरे नही बेटा मैं कहा काम करती हूं, काम तो सारा रामू काका करते है,
सोनल---- क्या रामू काका, मम्मी रामू काका कोनसा काम करते हैं? तंज कसते हुए।
आरती चोंक कर --- सोनलल्लल बेटा घर का काम की बात कर रही हु।
सोनल---- मम्मी मैं भी उसी काम की बात कर रही हु।
रवि----- ये क्या चल रहा है दोनो मा बेटी में।
अच्छा आरति आज चल रही हो क्या शोरूम?
आरती न चाहते हुए भी हां भरती है और रवि और आरति दोनो उठकर तैयार होने कमरे में चले जाते है।
फिर रवि और आरति नास्ता करके शोरूम के लिए निकल जाते है।
शोरूम पहुचने पर दोनो केबिन में जाते है।
रवि आरति की बैठने को कहता है और कुछ डॉक्यूमेंट निकालता है और आरती के सामने रख देता है,
आरती डॉक्यूमेंट देख कर कंफ्यूज हो जाती है,
आरती---- ये क्या है रवि।
रवि---- ये डॉक्यूमेंट एक नई शॉप के है, मैं एक फैक्टरी ओपन कर रहा हु आउटर सिटी में आरती गारमेंट्स के नाम से और उसमें आप एमडी रहेगी।
आरती---- मैं मैं नही बनना कुछ।
रवि--- क्या मैं मैं लगा रखी है अरे अब कार चलाना सिख रही हु बस राउंड करती रहना और घर मे कोनसा काम करती हो इसी बहाने तुमारा टाइम पास हो जाएगा।
रवि आरति को लेजाकर फैक्ट्री दिखाता है, और स्टाफ से मिलवाता है , उनमे एक व्यक्ति आरती को दिखायी देता है जिसका नाम लखन होता है एक दम राक्षस टाइप, लंबा चोड़ा सेहतमंद , रंग काला बिल्कुल डरावना, लेकिन रवि के सामने हाथ बाँधे खड़ा रहता है, और नजर भर के भी आरति की तरफ नही देखता।
सबके जाने के बाद आरती रवी से लखन के बारे में पूछती है, रवि उसे बताता है कि ये सबसे वफादार और भरोसेमंद आदमी है, और रवि के काम देखता है फैक्ट्री के।
इन सब कामो में दोनो को मालूम ही नही पड़ता कि कब शाम हो जाती है, फिर रवि आरति को लेकर घर के लिए निकलता है, लेकिन गाड़ी एक रेस्टोरेंट कम बार मे के लिए मोड़ देता है।

आरती एक अंजानी खुसी के पीछे भागने लगी थी वो बहुत खुश थी उसके चेहरे को ही देखकर यह लगता था। उसे पता ही नही था कि गाड़ी कहाँ जा रही थी आरती को इससे कोई मतलब नहीं था वो अपने विचारों में ही गुम थी पर जब गाड़ी किसी रेस्तरॉ में रुकी तो वो थोड़ा सा ठिठकि और रवि की ओर मुड़कर देखने लगी

रवि- अरे यार थोड़ा सा सेलिब्रेट भी तो करना है

आरती---घर चलते है वही सेलेब्रेट करेंगे सोनल के साथ।

रवि- अरे सोनल को छोड़ो वो तो उसे हम अलग से पार्टी दे देंगे। हमें तो आपके साथ सेलेब्रेट करना है चलो ।
और रवि और आरती दोनों रेस्टोरेंट में दाखिल हो गये बहुत कुछ आर्डर कर दिया और आखिर में एक-एक पैग भी आर्डर किया

आरती- दो किसलिए

रवि- एक मेरे लिए और एक तुम्हारे लिए

आरती- मेरे लिए पागल हो गये हो में नहीं पीउँगी
रवि- अरे यार स्कोच ही तो है एक में कुछ नहीं होता
आरती-- नहीं नहीं नशा हो गया तो बाप रे नहीं
तब तक वेटर पैग भी ले आया तो रवि ने एक तो अपने लिए उठा लिया और दूसरा आरती की ओर बढ़ा दिया
रवि- देखो कितने सारे लोग बैठे है और सभी लडीस या लड़कियाँ एक दो पेग पी रही है अरे यार कुछ नहीं होता

आरती- नहीं बस

रवि- तुम्हारी मर्ज़ी पर एक घुट तो ले ही सकती हो सिर्फ़ मेरी खातिर सेलेब्रेशन के लिए

आरती ने ग्लास उठ लिया और रवि ने चियर्स किया

रवि- नये एमडी और फैक्टरी के लिए
और हँसते हुए एक लंबा सा घुट मार लिया। आरती ने भी एक छोटा सा घुट लिया कोई बहुत बुरा स्वाद नहीं था पर डर था अंदर इसलिए ग्लास रख दिया

रवि- बुरा लगता हो तो छोड़ देना नहीं तो एक पेग में कुछ नहीं होता

आरती- नहीं घर में सोनल है अगर पता चल गया तो गजब हो जाएगा

रवि- अरे यार सोनल क्या कहेगी, अभी तक सो चुकी होगी। कुछ नहीं होता पी लो पर धीरे-धीरे

आरती भी सोचने लगी ठीक ही तो है कौन सा सोनल के पास जाना है और पी भी रही है तो अपने पति के साथ और उसी के कहने पर कोई दिक्कत हुई तो रवि तो है ही

खाना आने तक आरती ने धीरे-धीरे एक पेग खतम कर दिया था और रवि का साथ दे चुकी थी पर रवि ने दो और पेग आर्डर कर दिया। आरती गुस्से से रवि की ओर देखी वो दो पी चुका था फिर से दो क्यों

खाने के साथ ही आरती ने दो और रवि के तीन पेग पी चुके थे आरती का शरीर उड़ रहा था वो बिल्कुल बेफिक्र थी बहुत मजा आ रहा था आज पहली बार उसने शराब चखी थी या पी थी उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसके शरीर में एक अजीब सी फुर्ती आ गई थी वो रवि की हर बात पर बहुत ही ज्यादा चाहक रही थी या फिर जोर-जोर से हँस रही थी। रवि भी नशे की हालत में था वो देखकर ही अंदाज़ा लगा सकती थी पर वो तो खुद ही अपने काबू मे नहीं थी। चुननी कहीं जा रही थी और कदम भी ठीक से नहीं पड़ रहे थे

हां पर मजा बहुत आ रहा था वो और रवि लगभग झूलते हुए एक दूसरे को सहारा देते हुए बाहर अपनी गाड़ी पर आ गये थे और घर की ओर रवाना हो रहे थे

गाड़ी में बैठे ही रवि थोड़ा सा चुपचाप था पर आरती तो बिल्कुल बिंदास हो गई थी

आरती- चलो अब ड्राइवर

रवि- हाँ… कुछ मीठा हो जाए

आरती- यहां नहीं घर चलो

रवि- पति हूँ प्लीज थोड़ा सा बाकी घर में ठीक है

आरती- नहीं कोई देख लेगा नहीं

रवि- अरे यार देखने दे पति हूँ कोई ऐसा वैसा नहीं हूँ
और आरती के बिना पूछे ही उसने आरती के माथे के पीछे हाथ फँसा कर आरती को अपने पास खींच लिया और एक लंबा सा चुंबन उसके होंठों पर जड़ दिया आरती कुछ कहती तब तक तो हो चुका था जो होना था

आरती का पूरा शरीर सिहर उठा। रवि के बारे में उसकी धारणा एकदम से बदल गई थी वो भी तो एक जंगली की तरह ही था या सिर्फ़ दिखाने को ऐसा तो उसने कभी नहीं किया वो अवाक सी रवि की ओर देखती ही रह गई रवि हँसते हुए गाड़ी का इग्निशन ओन करके बड़ी ही सफाई से पार्किंग से निकला और कोई फिल्मी गाना गुनगुनाते हुए गाड़ी ड्राइव करने लगा

रवि- क्यों कैसा लगा

आरती- धात कोई देख लेता तो

रवि- कहो तो मैं रोड में ही गाड़ी रुक कर फिर से किस करू

आरती- नहीं कोई जरूरत नहीं है

रवि ने अचानक ही फिर से गाड़ी रोक ली और बिना किसी ओपचारिकता के फिर से आरती को अपनी ओर खींचकर एक लंबा सा चुंबन फिर से जड़ दिया और हँसते हुए गाड़ी चलाने लगा

आरती के होंठों पर भी एक हँसी फूट पड़ी और रवि के किस करने से जो थूक उसके होंठों पर लगी थी उसे चाट कर अपने मुख में ले लिया

आरती---आज तो बहुत रोमँटिक हो गये हो

रवि- आज में बहुत खुश हूँ आज से तुम मेरी बिज़नेस पार्ट्नर भी हो लाइफ पार्ट्नर भी हो और क्या चाहिए एक इंसान को अब में बाहर का काम देखूँगा और तुम यहां का

आरती- बाहर का मतलब

रवि- अरे यार अभी कुछ नहीं बस घर चले फिर तुम्हें बहुत प्यार करूँगा और फिर कहूँगा ठीक है

आरती थोड़ा सा शर्मा गई थी हाँ… उसे बहुत जरूरत थी रवि के प्यार की वो बहुत गरम हो चुकी थी किस ने तो जैसे आग में घी का काम कर दिया था पीने से तो वो बहुत उत्तेजित थी ही पर फिर किस उउउफफफ्फ़ जल्दी से घर आ जाए
घर पहुँचते ही कामया भी अपनी ओर से जल्दी से निकली और रवि भी पर जैसे ही डाइनिंग रूम को पार करने वाले थे कि सोनल को टेबल पर बैठे देखा तो दोनों चौक गए।
अरे सोनल बेटा सोई नही अभी तक---- रवि
नही,पापा tv देख रही थी,--- सोनल।
खाना खाओगे पापा,
नही बेटा खा कर आये है, तुम सो जाओ जल्दी tv बंध करके।
रवि पहले कमरे में निकल जाता है, आरति कुछ देर बाद लगभग दौड़ती हुई अपने कमरे में पहुँची तो देखकर सन्न रह गई। रवि तो बिस्तर पर लेट चुका था हिल भी रहा था मतलब सोया नहीं था उसका इंतजार कर रहा था वो जल्दी से अपने कपड़े लेके बाथरूम में घुसी और अपने को रवि के लिए तैयार करने लगी आज उसने रवि का लाया बेबीडोल वाली गाउन पहनी थी जो कि अंदर तो सिर्फ़ एक शमीज जितनी लंबी थी और बहुत ही महीन थी जाँघो के बहुत ऊपर ही खतम हो जाती थी
दो धागे समान स्टीप से बस उसे लटकाए हुए थे आरती के कंधे पर। आरती ने अपनी ब्रा भी उतार दी और अपना मेकप भी थोड़ा सा ठीक किया और ऊपर गाउनका दूसरा हिस्सा जो कि पैरों तक जाता था पर था वो भी वैसा ही महीन पर ढकने को अच्छा था पहनकर अपने कमरे में वापस आ गई पर यह क्या कमरे में रवि के हल्के खर्राटे सुनाई दे रहे थे सो चुका था वो बेड के पास जाके रवि को एक दो बार धक्के भी मारे पर वो तो जैसे कुम्भकरण की नींद में था

उसे कोई चिंता ही नहीं थी जो भी बातें उसने गाड़ी में की थी या फिर आने तक की थी वो सब खतम वा फिर वो सब फालतू था आरती का दिमाग खराब होने को था वो वही बेड पर बैठ गई थी और रवि की ओर देखती रही उसने गुस्से में आके अपनी गाउन भी उतार दी और रवि को एक बार-बार फिर अपने हाथों से थोड़ा सा धकेला पर कहाँ रवि तो अपनी निद्रा में मस्त था अपनी इस दुनियां को छोड़ कर कही और ही पहुँच गया था पर आरती क्या करे वो तो कुछ और ही मूड में थी आज उसने पहली बार शराब भी पी थी और जो भी रवि रास्ते भर उसके साथ करता हुआ आया था
उससे उसके शरीर में एक भयानक आग लग गई थी वो उसे शांत करना चाहती थी पर रवि को उसकी कोई चिंता नहीं थी वो तो सो चुका था । आरती को इसी तरह मजधार में छोड़ कर आरती बेड के कोने में बैठकर अपने आपको कोष रही थी और रवि की ओर देखते हुए अपने भाग्य पर जो इतना इतरा रही थी वो सब यहां आने के बाद फुस्स हो जाता था वो गुस्से में अपनी चादर खींचकर अपने तकिये में मुँह छुपाकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी


लाइट भी बंद करदी और सुबह से लेकर शाम तक की घटना को परत दर परत खोलने की कोशिश करने लगी सुबह से कितना अच्छा दिन निकला था हर किसी ने उसे कितना इज़्ज़त दी थी हर कोई उसके आगे पीछे घूमता हुआ नजर आया था हर कोई उसकी एक झलक पाने को उतावला था चाहे वो फैक्टरी में हो या फिर शोरुम में ही क्यों ना हो पर रात होते होते रवि ने सब कचरा कर दिया उसकी नजर में उसकी क्या इज़्ज़त थी वो जान गई थी उसकी नजर में आरती क्या थी वो जान गई थी
उसे कोई फिकर नहीं थी आरती की। उसे तो सिर्फ़ पैसा खर्च करना आता है या फिर पैसा कमाना आता है और कुछ नहीं पत्नी को खुश रखने के लिए वो पैसा खर्च जरूर कर सकता था पर टाइम नहीं उसके पास आरती के लिए टाइम नहीं था उसे आरती की कोई जरूरत नहीं थी थी तो बस अपनी फर्म को एस्टॅब्लिश करने के लिए एक इंसान की या फिर एक नौकर की नौकर जो कि उसके बातों में उठे और फिर उसके आनुरूप चले बस और कुछ नहीं

अचानक ही आरती के दिमाग में नौकर रामु काका की याद ताजा हो आई वो कैसे इस बात को भूल गई आज तो वो दिन में भी घर में नहीं थी दोपहर को भी रामू काका के साथ उसका मिलन नहीं हुआ था और नहीं ही मनोज अंकल के साथ वो ड्राइविंग ही सीखने गई थी

हन सच ही तो है वो भी कैसे इन दोनों को भूल गई वो तो हमेश ही तैयार मिलेंगे रामू तो घर का ही आदमी है जैसे ही आरती के जेहन में यह बात आई तो उसके शरीर में एक उत्तेजना की लहर फिर से दौड़ गई जो लहर वो अब तक दब चुकी थी। आरती से गुस्सा होकर पर जैसे ही रामू काका के बारे में सोचने लगी वो फिर से कामुक हो उठी वो अपने ही हाथों से अपनी चुचियों को चद्दर के नीचे दबाने लगी थी अपनी जाँघो को सिकोड कर अपने को शांत करने की कोशिश करने लगी थी अपनी सांसों को एक बार फिर से नियंत्रण में लाने की कोशिश करने लगी थी पर कहाँ जो उसने आज दिन भर नहीं किया था वो अब उसे बस लेटे ही लेटे शांत नहीं कर सकती थी उसे रामू काका के पास फिर से जाना ही होगा उसे आज किसी भी हालत में अपने तन को शांत करने जाना होगा नहीं तो वो शायद पागल हो जाए उसकी जाँघो के बीच में एक अजीब सी गुदगुदी से होने लगी थी वो सोच नहीं पा रही थी कि क्या करे पर कहते है ना जब इंसान इस तरह की स्थिति में हो तो उसके पास दो ही विकल्प होते है एक कठिन और एक आसान

उसने भी आसान तरीका ही चुना और धीरे से अपने बेड से उठी और एक नजर रवि के सोते हुए जिश्म की ओर डाली और पैरों में अपनी सॅंडल डालकर धीरे-धीरे कमरे के बाहर की ओर चल दी वो अपने को अब नहीं रोकना चाहती थी या कहिए रुक नहीं सकती थी वो अपने आप में नहीं थी उसे एक मर्द की जरूरत थी रोज उसके शरीर को मसलने के लिए उसे मर्द चाहिए ही था वो अब ऐसी ही हो गई थी चाहे वो रवि हो या फिर रामु काका हो या फिर मनोज अंकल ही क्यूँ ना हो उसे तो बस एक मर्द की चाहत थी जो उसके इस नाजुक और काम अग्नि से जल रहे तन की भूख को मिटा सके


वो एक बार पलटकर रवि की ओर देखा और बाहर निकल गई और हाँ… आज उसने एक काम और किया बाहर जाते हुए उसने डोर बाहर से लॉक कर दिया था बाहर का एक बार उसने ठीक से जायजा भी लिया अपने कदमो को वो रामू काका के कमरे की ओर ले जाने से नहीं रोक पा रही थी वो कुछ बलखाती हुई सी चल रही थी या फिर नशा शराब का था या उसके शरीर में उठने वाली सेक्स की आग का था पर उसकी चाल में एक मदहोशी थी उसके आँखें नम थी उनमें एक उम्मीद थी और एक सेक्स की भूख शायद अंधेरा ना होता तो और भी अच्छा से देखा जा सकता था वो बिल्कुल नशे की हालत में चलते हुए रामु काका के कमरे के बाहर पहुँच गई थी अंदर आज अंधेरा था शायद काका सो गये हो या फिर जाग रहे हो


चाहे जो भी हो वो रवि की तरह नहीं है वो जरूर उसकी जरूरत पूरी करेंगे नहीं तो उसकी छुट्टी कल से काम बंद सोचते हुए उसने बंद दरवाजे को हल्के से धकेला जो कि धीरे से खुल गया काका नीचे बिस्तर पर सोए हुए थे दरवाजे की आहट से भी वो नहीं उठे पर हाँ… उनके शरीर में एक हरकत जरूर हुई वो बेधड़क अंदर घुस गई और धीरे से रामु काका के पास बिस्तर के पास जाके घड़ी हो गई रामु काका अब तक दूसरी तरफ चेहरा किए सो रहे थे वो खड़ी-खड़ी सोच रही थी कि आगे क्या करे कैसे उठाए इस जानवर को हाँ जानवर ही था बस अपने मन की ही करता था और जैसे चाहे वैसे उसे आरती की कोई सुध लेने की जैसे जरूरत ही नहीं होती थी पर हाँ… उनका स्टाइल उसे पसंद था जो भी करे उसे अच्छा लगता था और बहुत अच्छा उसके तन और मन को शांति मिलती थी

वो थोड़ी देर खड़ी रही फिर अपने पैरों से धीरे से रामू काका के कंधे पर हल्के से से थपकी दी

आरती- काका एयेए
काका एकदम से पलटे उनका चहरा उसे नहीं दिखा हाँ… पर उसके यहां होने की संभावना उन्हें नहीं थी वो झट से उठकर बैठ गये कल की तरह आज भी वो ऊपर से नंगे थे और चद्दर से अपनी कमर तक ढँका हुआ था वो जैसे ही उठे उनका हाथ आरती की टांगों से लेकर जाँघो तक फिरने लगा

आरती- आआआआआह्ह ककयाआआआआआ हमम्म्मममममममममममम

वो खुरदुरे हाथ और दाढ़ी वाले चहरे का उसकी जाँघो पर घिसना आरती को एक लंबी सी आअह्ह निकालने से नहीं रोक पाया वो उत्तेजना की चरम पर एक झटके में ही पहुँच गई थी उसकी जाँघो के बीच में अजीब सी गुदगुदि होने लगी थी लिप्स आपस में एक दूसरे के ऊपर होने लगे थे जीब से अपनी सांसों को और चेहरा ऊपर उठाकर वो अपने आप पर कंट्रोल करना चाहती थी उसकी सांसें कमरे में एक अजीब सी हलचल मचा रही थी नीचे रामू काका अपने काम में लगे थे अपने हाथों में आई इस हसीना को अपने हाथों से घुमा-घुमाकर हर एक अंग को ठीक से तराशी हुई जगह को अपने हाथों से देख रहे थे वो आरती की कमर तक पहुँच गये थे और अपने होंठों से उन सारी जगह से जहां से वो होकर आए थे अपनी छाप छोड़ते हुए जा रहे थे अपनी होंठों से अपनी जीब से वो आरती के हर अंग को चूम रहे थे और जीब से चाट कर उसका रस सेवन कर रहे थे

आरती का पूरा शरीर जल रहा था और अब तो काका ने अपनी उंगली भी उसकी चुत में फँसा दी थी एकदम से चिहुक कर आरती ने अपनी दोनों जाँघो को थोड़ा सा अलग किया और काका की उंगलियों को अपने अंदर और अंदर तक जाने का न्योता दिया वो अपनी उंगलियों से काका के बालों खींचकर अपने पेट के चारो ओर घुमा रही थी, और जोर-जोर से सांसें ले रही थी वो अपना चहरा उठाकर सीलिंग की ओर देखती हुई नीचे हो रही हर हरकत को अपने जेहन में समाती जा रही थी आरती के होंठों से अचानक ही एक लंबी सी चीख निकल गई थी जब काका ने अपनी जीब उसकी चुत के ऊपर से फेरी

आरती के हाथों में जाने कहाँ से इतना जोर आ गया था कि वो काका के माथे को अपनी जाँघो के पास और पास खींचने लगी थी और उधर काका भी आरती के इशारो को समझ कर पूरे जोश के साथ आरती की चुत पर टूट पड़े थे वो अपनी जीब से ठीक उसके ऊपर दो तीन बार घुमाकर अपनी जीब को धीरे-धीरे अंदर तक घुसाने की कोशिश में लगे थे । आरती भी काका का पूरा साथ दे रही थी काका के घूमते हुए हाथों को वो भी दिशा देने की कोशिश करने लगी थी अपने नंगे बदन के हर हिस्से को काका के हाथों की भेट चढ़ाना चाहती थी जो सुख उसे अभी मिल रहा था वो काका के हाथों के स्पर्श से और भी बढ़ जाता था वो अपने आप पर काबू पाना चाहती थी पर काका के होंठों और जीब के आगे वो बिल्कुल अपाहिज थी उनकी हर हरकत से वो उछल पड़ती और जोर-जोर से सांसें फैंकती या फिर जोर से अपने होंठों को भिच कर अपने होंठों से से निकलने वाली चीख को दबा लेती पर ज्यादा देर वो यह कर नही पाई थी काका की एक हरकत से वो अपनी जगह पर से हिल गई थी और अपने हाथों की पकड़ को वो काका के माथे पर और भी सख़्त कर अपनी जाँघो के बीच में जोर से भिच लिया और एक लंबी सी चीख उसके मुख से अनायास ही निकल गई और अपनी जगह से गिरने को हुई


पर तभी एक जोड़ी हाथों ने उसे संभाल लिया और उसकी चीख को भी अपने होंठों के अंदर दबाकर उसे कमरे से बाहर जाने से रोका अब उसके शरीर में दो जोड़ी हथेली घूम घूमकर उसके शरीर की रचना को देख रही थी आरती को इस अचानक आए इस बदलाब का अंदाजा भी नहीं लगा और वो उस स्थिति में थी वो घूमकर अपने पीछे आए उस सख्स को धकेलने की कोशिश कर रही थी जो कि अपने हाथों से उसे बड़े ही प्यार से सहला रहा था और उसके गाउनके अंदर तक अपने हाथों को पहुँचा कर, उसकी चुचियों को अपनी जकड़ में ले आया था वो अपने होंठों से आरती के होंठों को सिले हुए अपनी जीब को उसके मुख में घुमाकर उसे और भी उत्तेजित कर रहा था जब उसकी अपनी अधखुली आखो से अपने पीछे आए उस सख्स पर नज़र गई तो एक बार चौंक गई थी वो तो रामू काका थे तो नीचे कौन था जो कि उसे परम आनंद के सागर में गोते लगा रहा था वो अपने मुकाम पर पहुँचने ही वाली थी वो किसी तरह से अपनी गर्दन घुमाने की कोशिश करती पर उसमें इतना जोर नहीं था

वो दो बहुत मजबूत हाथों के गिरफ़्त में थी जो कि उसके हर अंग को छू रहे थे और और निचोड़ भी रहे थे उसके हर अंग ने अब उसका साथ देना छोड़ दिया था वो अब पूरी तरह से दोनों मर्दो के सुपुर्द थी और वो दोनों जो चाहते थे वो कर रहे थे आरती की चीखे लगातार बढ़ती जा रही थी पर वो कही काका के मुख के अंदर घूम हो जाती थी काका उसके होंठों के साथ लगता था कि उसके पूरे चहरे को ही अपने मुख के अंदर ले लेना चाहते थे नीचे बैठे उस इंसान ने तो कमाल कर दिया था उसने आरती की दोनों जाँघो को उठाकर अपने कंधों पर रख लिया था और उसके पैर अब जमीन पर नहीं थे वो गिर जाती अगर रामू काका ने उसे ऊपर से कस कर जकड़ नहीं रखा होता अब वो हवा में अपनी जाँघो को उसे सख्स के कंधों पर रखे हुए अपनी कमर को उचका कर उस इंसान के मुख पर जोर-जोर से धक्के मार रही थी और अपनी छाती को आगे की और बढ़ा कर अपने शरीर को और भी धनुष जैसे करती हुई अपनी चरम सीमा की ओर आग्रसर होने लगी थी उसके पूरे शरीर में एक सिहरन के साथ एक बहुत बड़ी सी उथल पुथल मची हुई थी वो अपने एक हाथ से नीचे उस सख्स को अपनी योनि में घुसाने की कोशिश कर रही थी और एक हाथ से उसपर खड़े हुए काका को अपने होंठों के पास खींच कर अपनी जीब से उनके मुख का स्वाद लेने में लगी थी अचानक ही उसके शरीर मे एक जबरदस्त निचोड़ आया और वो वैसे ही हवा में अपने शरीर का साथ छोड़ कर लटक गई उसके शरीर में अब कोई जान नहीं बची थी वो एकदम निढाल हो चुकी थी

वो दोनो मर्दों के बीच में अपने शरीर को नहीं संभाल पाई थी जाने कौन था वहाँ पर जो भी था उसने उसे वो आंजाम दिया था जिसे वो चाहती थी उसका शरीर पसीने में लत पथ रामू काका के सहारे था और वो अब अपने होंठों को धीरे-धीरे आरती के होंठों से अलग भी करते और धीरे से फिर से अपने होंठों में दबा भी लेते आरती तो जैसे जन्नत की सैर कर रही थी नीचे से वो सख्स अभी भी उसकी योनि से निकल रहे हर ड्रॉप को अपनी जीब से चाट कर अपने मुख में भर रहा था जैसे कि कोई सहद का एक भी ड्रॉप वो वेस्ट नहीं करना चाहता था उसकी मजबूत पकड़ से वो पूरी तरह से उसकी गिरफ़्त में थी और उसे कोई चिंता नहीं थी कि वो गिर जाएगी उसकी जांघे अब भी उस सख्स के कंधे पर ही थी और कमर के ऊपर का हिस्सा रामु काका की गिरफ़्त में वो पूरी तरह से सुरक्षित थी हवा में भी


पर अब धीरे-धीरे नीचे वाले सख्स की पकड़ ढीली होने लगी थी और उसने धीरे से आरती की दोनों जाँघो के बीच से अपने चहरे को निकाल लिया था और किसी बहुत ही नाजुक चीज की तरह से आरती को उठाकर वही नीचे बिस्तर पर लिटाने लगा था ऊपर से रामू काका भी उस इंसान का साथ दे रहा था वो भी अब धीरे से आरती को उठाकर अपने हाथों को उसकी चुचियों पर रखकर आरती को बिस्तर पर लिटाने की कोशिश करने लगा था आरती को जैसे अपने शरीर के अंदर उठ रहे उफान को ठंडा करने वाले का चहरा देखना था आखिर कौन था वो जो काका के कमरे में उनके पहले से आके लेटा हुआ था पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी उसकी आँखें नहीं खुल रही थी उन दोनों ने उसे निचोड़ कर रख दिया था वो एक सुख के समुंदर में गोते लगा रही थी वो अब जमीन पर उस सख़्त के बिस्तर पर पड़ी हुई थी जहां उसकी नाक में सड़न की गंध भी आ रही थी और पसीने की भी वो निढाल सी लेटी हुई थी और दो सख्स का अपने पास बैठे हुए होने का एहसास भी कर रही थी कोई भी बातें नहीं कर रहा था बस दो जोड़ी हाथ एक बार फिर से उसके शरीर पर घूमने लगे थे और बहुत ही धीरे-धीरे शायद उसकी नजाकत को देखते हुए आरती का यह पहला एहसास था दो जोड़ी हाथ उसके शरीर के चारो ओर घूमते हुए उसे वो आनंद दे रहे थे कि जिसका कि उसने कभी भी अनुमान तक नहीं लगाया था वो वैसे ही निश्चल और निढाल पड़ी हुई उन हथेलियो को अपने शरीर पर घूमते हुए महसूस कर आई थी और फिर से अपने आपको एक बार फिर से काम अग्नि की भेट चढ़ाने को तैयार हो रही थी उसके हाथ पाँवो में एक बार फिर से जान पड़ने लगी थी वो अपने को फिर से उत्तेजित महसूस करने लगी थी वो कमर के नीचे बिल्कुल नंगी थी और ऊपर नाम मात्र के गाउनसे ढँकी हुई थी दो जोड़ी हाथ उसके गाउनको भी उतारने में लगे थे और उन्हें कोई नहीं रोक सकता था और जो रोक सकता था वो तो खुद उनकी इच्छा में शामिल थी वो अपनी सांसों को फिर से बढ़ने से रोकने लगी थी और शरीर की हलचल को भी धीरे-धीरे अपने अंदर तक ही समेट कर रखना चाहती थी पर वो किसी ना किसी तरह से उसके शरीर में या फिर उसकी सांसों से प्रदर्शित हो ही जाता था एक होंठ उसके होंठों से जुड़े और बहुत ही प्यार से उनको चूमकर अलग हो गये

- कैसा लगा बहू

आरती- हमम्म्ममम।
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