Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:25 PM,
#17
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
घर आकर सोनल कुछ नही किया और सीधा अपने रूम में घुस गई। वैसे भी उसकी मम्मी आज कार चलाने सीखने गयी है। अकेले कमरे में बैठी वो बस अपने सर के लण्ड को याद कर रही थी, इतनी पास से पहली बार लण्ड देखा था उसने, वो कंफ्यूज थी कि क्या करे,क्या न करे। चाहती तो वो सर को सबक सिखा सकती है। बस एक बार अपने पापा को बताना है, लेकिन वो कुछ नही कर रही है ओर न ही सर के साथ करना
चाहती है। अजीब जद्दोजहद में पड़ी है।
सोचते सोचते पता नहीं कब नींद आ गई सोनल को। शाम के समय सो गई सोते ही सोनल के सपने में सर आके उसकी पैंटी खींच कर अपने लंड को उसके मुंह में डाल दिया और उसकी चूंत चाटने लगे फिर उसके हाथ पकड़ कर दोनों ऊपर बांध दिये और उसका टाप उतार कर ब्रा को फाड़ दिये, अब सर दोनों हाथों से बूब्स दबाने लगे और चूचियों को पकड़ कर अपने मुंह में लेकर चूसने लगे फिर उसकी गान्ड को चूमने लगे और चाटने लगे और बोले सोनल तेरी गांड के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।

फिर सीधा करके टांगे फैला कर अपनी जीभ से सोनल की चूंत को चाट चाट कर बिल्कुल पागल कर दिया फिर सर बोलने लगे कि अब मेरा लौड़ा चाटो सोनल और सोनल के मुंह में डाल दिया अपना मस्त लंड,सोनल पूरा लंड चूस चूस कर चाटी अब सर उसके बालों को पकड़ कर बोले सोनल मैं तुम्हें चोदू, सोनल बोली हां सर अपनी स्टुडेंट को चोदो ताकि पागल हो जाऊं, इतना चोदिये कि मैं पागल होके जन्नत का मजा ले लूं। सर बोले ओके सोनल मैं तुम्हें आज छिनाल की तरह चोदूंगा, सोनल ने कहा थैंक यू सर, तभी सर ने सोनल टांगें फैला कर चौड़ी कर दी और अपना लंड उनकी चूत में रख दिया और टांगे ऊपर कर दी और एक झटके में पूरा लौड़ा अन्दर उसकी चूत में डाल दिया।
और एक दम से सोनल की आंख खुल गयी। वो पूरे पसीने से भीगे हुए थी। अभी तक जो लड़की कभी अपनी चुत भी नही छुई हो आज उसे एक दम चुदाई भर सपना आया था। अभी भी उसके सामने सपने की यादें घूम रही थी। उसकी सांसे धौकनी के जैसे चल रही थी।
उधर आरति आज कार चलाने के लिए मनोज अंकल के स्कूल पहुच गयी थी। और अभी कार में मनोज अंकल के साथ कार में थी।
आरती थोड़ी सी ठिठकी पर अपने अंदर उठ रही सनश्य को रोक कर वो गाड़ी के अंदर बैठ गयी, मनोज अंकल भी सामने की सीट पर बैठ गये थे और गाड़ी गेट के बाहर की ओर चल दी गाड़ी सड़क पर चल रही थी और बाहर की आवाजें भी सुनाई दे रही थी पर अंदर एकदम सन्नाटा था शायद सुई भी गिर जाए तो आवाज सुनाई दे जाए। मनोज अंकल गाड़ी चला रहा था पर उसका मन पीछे बैठी हुई आरती को देखने को हो रहा था पर बहुत देर तक वो देख ना सका। पहली बार आरती उसके साथ अकेली आई थी वो सुंदरी जिसने कि उसके मन में आग लगाई थी उस दिन जब वो पार्टी में गई थी और आज तो पता नहीं कैसे आई है । (मनोज ने पार्टी में आरति का सेक्सी रूप देखा था।)
एक बड़ा सा लबादा पहने हुए सिर्फ़ साड़ी क्यों नहीं पहने हुए है आरती। मनोज ने थोड़ी ही हिम्मत करके रियर व्यू में देखने की हिम्मत जुटा ही ली देखा की आरती पीछे बैठी हुई बाहर की ओर देख रही थी गाड़ी सड़क पर से तेजी से जा रही थी । मनोज को मालूम था कि कहाँ जाना है , रवि ने कहा था कि ग्राउंड में ले जाना वहां ठीक रहेगा थोड़ी दूर था पर थी बहुत ही अच्छी जगह दिन में तो बहुत चहल पहेल होती थी वहां पर अंधेरा होते ही सबकुछ शांत हो जाता था पर उसे क्या वो तो इस घर का पुराना जानकार था और बहुत भरोसा था रवि को उसपर वो सोच भी नहीं सकता था कि आरती ने उस सोए हुए मनोज के अंदर एक मर्द को जनम दे दिया था जो कि अब तक एक लकड़ी के तख्त की तरह हमेशा खड़ा रहता था अब एक पेड़ की तरह हिलने लगा था उसके अंदर का मर्द कब और कहाँ खो गया था इतने सालो में उसे भी पता नहीं चला था वो बस जी सर् और जी मैडम के सिवा कुछ भी नहीं कह पाया था इतने दिनों में



पर उस दिन की घटना के बाद वो एक अलग सा बन गया था,जब पार्टी में आरती का मनमोहिनी रूप देखा था, जब भी वो खाली समय में बैठता था तो आरती का चेहरा उसके सामने आ जाता था उसके चेहरे का भोलापन और शरारती आखें वो चाह कर भी उसकी वो मुश्कान को आज तक नहीं भूल पाया था वो बार-बार पीछे की ओर देख ही लेता था पर नजर बचा के

और पीछे बैठी आरती का तो पूरा ध्यान ही मनोज अंकल पर था वो दिखा जरूर रही थी कि वो बाहर या फिर उसका ध्यान कही और था पर जैसे ही मनोज अंकल की नजर उठने को होती वो बाहर की ओर देखने लगती और आरती मन ही मन मुस्कुराई वो जानती थी कि मनोज के मन में क्या चल रहा है वो जानती थी कि मनोज अंकल के साथ आज वो पहली बार अकेली आई है और उस दिन के बाद तो शायद मनोज अंकल भी इंतजार में ही होंगे कि कब वो आरती को फिर से नजर भर के देख सके यह सोच आते ही आरती के पूरे शरीर में फिर से एक झुनझुनी सी फैल गई और वो अपने आपको समेट कर बैठ गई वो जानती थी कि मनोज अंकल में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो कुछ कह सके या फिर कुछ आगे बढ़ेंगे तो आरती ने खुद ही कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश की

आरती- और कितनी दूर है अंकल

मनोज जो कि अपनी ही उधेड़ बुन में लगा था चलती गाड़ी के अंदर एक मधुर संगीत मई सुर को सुन के मंत्रमुग्ध सा हो गया और बहुत ही हल्के आवाज में कहा
मनोज- बस दो 3 मिनट लगेंगे

आरती- जी अच्छा
और फिर से गाड़ी के अंदर एक सन्नाटा सा छा गया दोनो ही कुछ सोच में डूबे थे पर दोनो ही आगे की कहानी के बारे में अंजान थे दोनो ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे पर एक दूसरे के आकर्षण से अंजान थे हाँ… एक बात जो आम सी लगती थी वो थी कि नजर बचा कर एक दूसरे की ओर देखने की जैसे कोई कालेज के लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने के बाद होता था वो था उन दोनों के बीच मे .

पीछे बैठी आरति थोड़ा सा सभाल कर बैठी थी और बाहर से ज्यादा उसका ध्यान सामने बैठे मनोज अंकल की ओर था वो बार-बार एक ही बात को नोटीस कर रही थी कि मनोज अंकल कुछ डरे हुए थे और, कुछ संकोच कर रहे है वो तो वो नहीं चाहती थी वो तो चाहती थी कि मनोज अंकल उसे देखे और खूब देखे उनकी नजर में जो भूख उसने उस दिन देखी थी वो उस नजर को वो आज भी नहीं भुला पाई थी उसको उस नजर में अपनी जीत और अपनी खूबसूरती दिखाई दी थी अपनी सुंदरता के आगे किसी की बेबसी दिखाई दी थी उसकी सुंदरता के आगे किसी इंसान को बेसब्र और चंचल होते देखा था उसने वो तो उस नजर को ढूँढ़ रही थी उसे तो बस उस नजर का इंतजार था वो नजर जिसमें की उसकी तारीफ थी उसके अंग अंग की भूख को जगा गई थी वो नजर रामु और मनोज में कोई फरक नहीं था आरती के लिए दोनों ही उसके दीवाने थे उसके शरीर के दीवाने उसकी सुंदरता के दीवाने और तो और वो चाहती भी यही थी इतने दिनों की शादी के बाद भी यह नजर उसके पति ने नहीं पाई थी जो नजर उसने रामु की और मनोज अंकल के अंदर पाई थी उनके देखने के अंदाज से ही वो अपना सबकुछ भूलकर उनकी नज़रों को पढ़ने की कोशिश करने लगती थी और जब वो पाती थी कि उनकी नजर में भूख है तो वो खुद भी एक ऐसे समुंदर में गोते लगाने लग जाती थी कि उसमें से निकलना रामू काका या फिर मनोज अंकल के हाथ में ही होता था आज वो फिर उस नजर का पीछा कर रही थी पर मनोज अंकल तो बस गाड़ी चलाते हुए एक दो बार ही पीछे देखा था उस दिन तो पार्टी में रवि के साथ होते हुए भी कितनी बार मनोज ने पीछे उसे भीड़ मे नजर बचा कर देखा था और सीढ़िया उतरते उतरते भी उसे नहीं छोड़ा था आज कहाँ गई वो दीवानगी और कहाँ गई वो चाहत आरति सोचने को मजबूर थी कि अचानक ही उसने अपना दाँव खेल दिया वो थोड़ा सा आगे हुई और अपने सम्मर कोट के बटनों को खोलने लगी और धीरे से बहुत ही धीरे से अपने आपको उसकोट से अलग करने लगी


मनोज जिसका कि गाड़ी चलाने पर ध्यान था पीछे की गति विधि को ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा था उसकी आखों के सामने जैसे किसी खोल से कोई सुंदरता की तितली बाहर निकल रही थी उूुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफफफफ्फ़ क्या नज़ारा था जैसे ही आरति ने अपने कोट को अपने शरीर से अलग किया उसका यौवन उसके सामने था आँचल ढलका हुआ था और बिल्कुल ब्लाउज के ऊपर था नीचे गिरा हुआ था कोट को उतार कर आरति ने धीरे से साइड में रखा और अपने दाँये हाथ की नाजुक नाजुक उंगलियों से अपनी साड़ी को उठाकर अपनी चुचियों को ढका या फिर कहिए मनोज को चिड़ाया कि देखा यह में हूँ और आराम से वापस टिक कर बैठ गई थी

जैसे कि कह रही हो लो अंकल मेरी तरफ से तुम्हें गिफ्ट मेरी ओर से तो तुम्हें खुला निमंत्रण है अब तुम्हारी बारी है।
वो अपने को और भी ठीक करके बैठने की कोशिश कर रही थी ठीक से क्या अपने आपको अंकल के दर्शान के लिए और खुला निमंत्रण दे रही थी वो थोड़ा सा आगे की ओर हुई और अपनी दोनों बाहों को सामने सीट पर ले गई और बड़े ही इठलाते हुए कहा
आरती- और कीईईतनीईिइ दुर्र्ररर है हाँ…

मनोज- जी बस पहुँच ही गये

और गाड़ी मैदान में उतर गई थी और एक जगह रोक गई


मनोज ने अपने तरफ का गेट खोलकर बाहर निकलते समय पीछे पलटकर आरती की ओर देखते हुए कहा

मनों- जी आइए ड्राइविंग सीट पर

आरती ने लगभग मचलते हुए अपने साइड का दरवाजा खोला और जल्दी से नीचे उतर कर बाहर आई और लगभग दौड़ती हुई इचे से घूमती हुई आगे ड्राइविंग सीट की ओर आ गई

बाहर मनोज़ डोर पकड़े खड़ा था और अपने सामने स्वप्न सुंदरी को ठीक से देख रहा था वो अपनी नजर को नीचे नहीं रख पा रहा था वो उस सुंदरता को पूरा इज़्ज़त देना चाहता था वो अपनी नजर को झुका कर उस सुंदरता का अपमान नहीं करना चाहता था वो अपने जेहन में उस सुंदरता को उतार लेना चाहता था वो अपने पास से आरती को ड्राइविंग सीट की ओर आते हुए देखता रहा और बड़े ही अदब से उसका स्वागत भी किया थोड़ा सा झुक कर और थोड़ा सा मुस्कुराते हुए वो आरती के चेहरे को पढ़ना चाहता था वो उसकी आखों में झाँक कर उसके मन की बातों को पढ़ना चाहता था वो अपने सामने उस सुंदरी को देखना और देखना चाहता था वो एकटक आरती की ओर नजर गढ़ाए देखता रहा जब तक वो उसके सामने से होते हुए ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठ गई आरती का बैठना भी एक और दिखावा था वो तो मनोज को अपने शरीर का दीदार करा रही थी बैठते ही उसका आचाल उसके कंधे से ढलक कर उसकी कमर तक उसको नंगा कर गया सिर्फ़ ब्लाउसमें उसके चूचियां जो की आधे से ज्यादा ही बाहर थी मनोज के सामने उजागर हो गया पर आरती का ध्यान ड्राइविंग सीट पर बैठे ही स्टियरिंग पर अपने हाथों को ले जाने की जल्दी में था वो बैठते ही अपने आपको भुलाकर स्टियरिंग पर अपने हाथों को फेरने लगी थी और उसके होंठों पर एक मधुर सी मुस्कान थी पर बाहर खड़े हुए मनोज की तो जैसे जान ही निकल गई थी अपने सामने ड्राइविंग सीट पर बैठी हुई उसे काम अग्नि से जलाती हुई स्वर्ग की उस अप्सरा को वो बिना पलके झपकाए आखें गढ़ाए खड़ा-खड़ा देख रहा था उसकी सांसें जैसे रुक गई थी वो अपने मुख से थूक का घुट पीते हुए डोर को बंद करने को था कि उसकी नजर आरती के साड़ी पर पड़ी जो की डोर से बाहर जमीन तक जा रही थी और आरती तो स्टियरिंग पर ही मस्त थी उसने बिना किसी तकल्लूफ के नीचे झुका और अपने हाथों से आरती की साड़ी को उठाकर गाड़ी के अंदर रखा और अपने हाथों से उसे ठीक करके बाहर आते हुए हल्के हाथों से आरती की जाँघो को थोड़ा सा छुआ और डोर बंद कर दिया
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस. - by sexstories - 08-27-2019, 01:25 PM

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