Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:24 PM,
#14
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में वो कितनी खूबसूरत लग रही थी लंबी-लंबी टाँगों से लेकर जाँघो तक बिल्कुल सफेद और चिकनी थी वो कमर के चारो ओर पैंटी फँसी हुई थी जो की उसकी जाँघो के बीच से होकर पीछे कही चली गई थी

बिल्कुल सपाट पेट और उसपर गहरी सी नाभि और उसके ऊपर उसके ब्रा में क़ैद दो ठग हाँ… रवि उनको ठग ही कहता था मस्त उभार लिए हुए थे आरती अपने शरीर को मिरर में देखते हुए कही खो गई थी और अपने हाथों को अपने पूरे शरीर पर चला रही थी और अपने अंदर सोई हुई ज्वाला को और भी भड़का रही थी वो नहीं जानती थी कि आगे क्या होगा पर उसे ऐसा अच्छा लग रहा था आज पहली बार आरती अपने जीवन काल में अपने को इस तरह से देखते हुए खेल रही थी
वो अपने आपसे खेलते हुए पता क्यों अपनी ब्रा और पैंटी को भी धीरे से उतार कर एक तरफ बड़े ही स्टाइल से फेक दिया और बिल्कुल नग्न अवस्था, में खड़ी हुई अपने आपको मिरर में देखती रही उसने आपने आपको बहुत बार देखा था पर आज वो अपने आपको कुछ अजीब ही तरह से देख रही थी उसके हाथ उसे पूरे शरीर पर घूमते हुए उसे एक अजीब सा एहसास दे रहे थे उसके अंदर एक ज्वाला सा भड़क रही थी जो कि अब उसके बर्दास्त के बाहर होती जा रही थी उसकी उंगलियां धीरे-धीरे अपने निपल्स के ऊपर घुमाती हुई आरती अपने पेट की ओर जा रही थी और अपने नाभि को भी अंदर तक छू के देखती जा रही थी दूसरे हाथों की उंगलियां अब उसकी जाँघो के बीच में लेने की कोशिश में थी वो उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी पूरे कमरे में फेल गई और वो अपने सिर को उचका करके नाक से और मुख से सांसें छोड़ने लगी उसकी जाँघो के बीच में अब आग लग गई थी वो उसके लिए कुछ भी कर सकती थी हाँ… कुछ भी वो एकदम से नींद से जागी और फिर से अपने आपको मिरर में देखते हुए अपने आपको वारड्रोब के पास ले गई और एक सफेद पेटीकोट और ब्लाउस निकाल कर पहनने लगी बिना ब्रा के ब्लाउस पहनने में उसे थोड़ा सा दिक्कत हुई पर, ठीक है वो तैयार थी अपने बालों को एक झटका देकर वो अपने को एक बड़े ही मादक पोज में मिरर की ओर देखा और लड़खड़ाती हुई सीढ़ियों तक पहुँची और किचेन का दरवाजा देखा और हल्के स्वर में आवाज लगाई और एक दम से पीछे हट गई
किचेन में हल्की आवाज आते ही रामू उठा और बाहर देखा।

आरति ने तुरंत खुद को छिपा लीया, और खंबे के पीछे खुद को रखकर तेज-तेज सांसें लेने लगी

उसके अंतर मन में एक ग्लानि सी उठ रही थी ना चाहते हुए भी उसने आवाज दी और बिस्तर पर बैठे बैठे सोचने लगी क्या कर रही है वो एक इतने बड़े घर की बहू को क्या यह सोभा देता है अपने घर के नौकरके साथ और वो भी इसी घर में क्या वो पागल हो गई है नहीं उसे यह सब नहीं करना चाहिए वो सोचते हुए बिस्तर पर लूड़क गई और अपने दोनों हाथों से अपने को समेटे हुए वैसे ही पड़ी रही उसका पूरा शरीर जिस आग में जल रहा था उसके लिए उसके पास कोई भी तरीका नहीं था बुझाने को पर क्या कर सकती थी वो जो वो करना चाहती थी वो गलत था पर पर हाँ… नहा लेती हूँ सोचकर वो एक झटके से उठी और तौलिया हाथ में लिए बाथरूम की ओर चल दी उसका पूरा शरीर थर थर काप
रहा था और शरीर से पसीना भी निकल रहा था वो कुछ धीरे कदमो से बाथरूम की ओर जा ही रही थी कि दरवाजे पर एक हल्की सी क्नॉच से वो चौंक गई

वो जहां थी वही खड़ी हो गई और ध्यान से सुनने की कोशिस करने लगी नहीं कोई आहट नहीं हुई थी शायद उसके मन का भ्रम था कोई नहीं है दरवाजे पर जया, नही जया तो नीचे बाहर कपड़े धो रही होंगी और कौन हो सकता है रामू काका, अरे नहीं वो इतनी हिम्मत नहीं कर सकता वो क्यों आएगा

और उधर रामू काका ने आवाज सुनी थी खड़ा का खड़ा रह गया था सोचता हुआ कि क्या हुआ बहू को कही कोई चीज तो नहीं चाहिए शायद भूल गई हो नीचे या फिर कोई काम था उससे या कुछ और वो धीरे से किचेन से निकला और ऊपर सीडियो की ओर देखता रहा पर कही कोई आवाज ना देखकर वो बड़ी ही हिम्मत करके ऊपर की ओर चला और बहू के कमरे की ओर आते आते पशीना पशीना हो गया बड़ी ही हिम्मत की थी उसने आज दरवाजे पर आकर वो चुपचाप खड़ा हुआ अंदर की आवाज को सुनने की कोशिश करने लगा था एक हल्की सी आहट हुई तो वो कुछ सोचकर हल्के से दरवाजे पर एक कान करके खड़ा हो गया और इंतजार करने लगा था पर कोई आहट नहीं हुई तो यह सोचते हुए नीचे की ओर चल दिया की शायद बहू सो गई होगी


अंदर आरति का पूरा ध्यान दरवाजे पर ही था नारी मन की जिग्याशा ही कहिए वो अपने को उस नोक का कारण जानने की कोशिश में दरवाजे की ओर चली और कान लगाकर सुनने की कोशिश करने लगी कि कही कोई आहट या फिर कोई चहल पहल की आवाज हो रही है कि नहीं पर कोई आवाज ना देखकर वो दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर की ओर देखती है पर कोई नहीं था वहाँ कुछ भी नहीं था तो वो बाहर आ गई थी बाहर भी कोई नहीं था लेकिन आचनक ही उसकी नजर सामने सीढ़ियो पर पड़ी तो वहां रामू खड़ा था जो कि अब उसी की ओर देख रहा था आरति ने अब भी सफेद ब्लाउस और पेटीकोट ही पहना हुआ था और हाथ में तौलिया था वो रामू काका को सीढ़ियो में देख कर सबकुछ भूल गई थी उसे अपने आपको ढकने की बात तो दूर वो फिर से अपने को उस आग की गिरफ़्त में पाती जा रही थी जिस आग से वो अब तक निकलने की कोशिश कर रही थी


उसकी सांसों में अचानक ही तेजी आ गई थी और वो उसकी धमनिओ से टकरा रही थी रामु सीढ़ियो में खड़ा-खड़ा बहू के इस रूप को देख रहा था बहू तो कल जैसे ही स्थिति में है ती क्या वो आज भी मालिश के बहाने उसे बुला रही थी हाँ शायद पर अब क्या करे वो हिम्मत करके सीढ़ियो में ही घुमा और बहू की ओर कदम बढ़ाया अपने सामने इस तरह से खड़ी कोई स्वप्न सुंदरी को कैसेछोड़ कर जा सकता था वो उसका दीवाना था वो तो उस रूप का पुजारी था उस रूप को उसकाया को वो भोग चुका था उसकी मादकता और नाजूक्ता का अनुमान था उसे उसके लिए वो तो कब से लालायित था और वो उसके सामने इस तरह से खड़ी थी । रामू अपने आपको रोक ना पाया और बड़े ही सधे हुए कदमो से बहू की ओर बढ़ने लगा



और आरती ने जब रामु काका को अपनी ओर बढ़ते हुए देखा तो जैसे वो जमीन में गढ़ गई थी उसकी सांसें जो कि अब तक उसकी धमनियों से ही टकरा रही थी अब उसके मुँह से बाहर आने को थी हर सांस के साथ उसके मुख से एक हल्की सी सिसकारी भी निकलने लगी थी उसके शरीर के हर एक रोएँ में सेक्स की एक लहर दौड़ गई थी उसे रामु काका के हाथ और उनके शरीर के बालों का गुच्छे याद आने लगे थे कल जब रामु काका ने उसे अपनी बाहों में लेकर रोंधा था वो एक-एक वाकया उसे याद आने लगा था वो खड़ी-खड़ी काँपने लगी थी उसका शरीर ने एक के बाद एक झटके लेना शुरू कर दिया था वो खड़े-खड़े लड़खड़ा गई थी और दीवाल का सहारा लेने को मजबूर हो गई थी उसकी और रामु काका की आखें एक दूसरे की ओर ही थी एक बार के लिए भी नहीं हटी थी अब आरती पीछे दीवार के सहारे खड़ी थी कंधा भर टिका था दीवाल से और पूरा शरीर पाँव के सहारे खड़ा था सांसों की तेजी के साथ आरती की चूचियां अब ज्यादा ही ऊपर की ओर उठ जा रही थी वो नाक और मुख से सांस लेते हुए रामू काका को अपने करीब आते देख रही थी रामू करीब और करीब आते हुए उसके बहुत नजदीक खड़ा हो गया अब रामु की नजर बहू के शरीर का अवलोकन कर रही थी वही शरीर जिसे कल उसने भोगा था और बहुत ही अच्छे तरीके से भोगा था जैसा मन किया था वैसे ही आज फिर वो उसके सामने खड़ी थी कल जैसे ही परिस्थिटी में और, खुल्ला आमंत्रण था रामु को वो सिर से पैर तक बहू को निहारता रहा और

रामु की नजर एक बार फिर से बहू के चेहरे पर पड़ी और उनको देखते हुए उसने अपने हाथों को बहू की ओर बढ़ाया धीरे से उसने बहू के पेट को छुआ

आरती- आआआआआआअह्ह उूुुुुुुुुउउम्म्म्मममममममममम
रामु के हाथों में जैसे मखमल आ गया हो नाजुक नाजुक और नरम नरम सा बहू का पेट उसकी सांसों के साथ अंदर-बाहर और ऊपर नीचे होते हुए वो अपने हाथों को एक जगह नहीं रख पाया वो अपने दूसरे हाथ को भी लाकर बहू के पेट पर रख दिया और अपने दोनों हाथों से उसको सहलाने लगा बल्कि कहिए उनका नाप लेने लगा वो अपने हाथों से बहू के पेट का आकार नाप रहा था और उस ऊपर वाले की रचना को महसूस कर रहा था वो अपनी आखें गढ़ाए बहू के पेट को ऊपर से देख भी रहा था और अपने हाथों से उस रचना की तारीफ भी कर रहा था उसकी आखों के सामने बहू की दोनों चूचियां अपनी जगह से आजाद होने की कोशिश कर रही थी वो अपने हाथों को धीरे से बहू के ब्लाउसकी ओर ले जाने लगा कि आचनक ही बहू लड़खड़ाई और रामु की सख़्त बाहों ने बहू को संभाल लिया अब बहू भीमा की ग्रफ्त में थी और बेसूध थी उसकी आखें बंद सी थी नथुने फूल रहे थे मुख से सिसकारी निकल रही थी उसका पूरा शरीर अब रामू के हाथों में था उसके भरोसे में था वो चाहे तो वही पटक कर बहू को भोग सकता था या फिर उठाकर अपने कमरे में ले जा सकता था या फिर अंदर उसी के कमरे में कल जैसे बिल्कुल नंगा करके उसके सारे शरीर को जो चाहे वो कर सकता था उसकी आखें बहू की चेहरे पर थी वो अपना सबकुछ रामु के हाथों में सौंप कर लंबी-लंबी सांसें लेते हुई उसकी बाहों ले लटकी हुई थी। रामु उस अप्सरा को अपने बाहों में संभाले हुए अपने एक हाथों से उसकी पीठ को सहारा दिया और दूसरे हाथ से उसके पैरों के नीचे से हाथ डालकर एक झटके से उसे उठाकर उसी के बेडरूम में घुस गया वो कमरे में आते ही अपने हाथों की उस सुंदर और कामुक काया को कहाँ रखे सोचने लगा उसके हाथों में आरती एक बेसूध सी जान लग रही थी एक रति के रूप में वो लगभग बेहोशी की मुद्रा में थी उसे सब पता था कि
क्या चल रहा था पर उसके हाथों से अब बात निकल चुकी थी वो अब रामू को भेट चढ़ चुकी थी या कहिए वो अपने को रामु के सुपुर्द कर चुकी थी अब वो इस खेल का हिस्सा बनने को तैयार थी । अब वो उसे दैत्यकाय के हर उस पुरुषार्थ को सहने को तैयार थी जो कि उसे चाहिए था जो कि उसे रवि से नहीं मिला था या फिर उसे नहीं पता था इतनी दिनों तक वो अब अपने आपको किसी भी स्थिति में रोकना नहीं चाहती थी रामु के गोद में वो ऐसी लग रही थी कि कोई बनमानुष उसे उठाकर अपने हवस का शिकार करने जा रहा हो वो तैयार थी उस बनमानुष को झेलने को उसे राक्षस को अपने अंदर समा लेने को वो चुपचाप उस राक्षस का साथ दे रही थी उसके हर कदम को देख भी रही थी और समझ भी रही थी जैसे कह रही हो करो और करो जो मन में आए करो पर मेरे तन की आग को ठंडा करो प्लीज

रामु अपने हाथों में बहू को उठाए कमरे में दाखिल हुआ और सोचने लगा की अब क्या करे पर वो खुद ही बिना किसी इजाज़त के बहू को उसके बिस्तर तक ले गया और धीरे से हाँ बहुत ही धीरे से बहू को उसके बिस्तर पर लिटा दिया बहू अब सिर और नितंबों और पैरों के तले को रखकर बिस्तर पर लेटी हुई थी। आरती को जैसे ही रामु ने बिस्तर पर रखा वो एक जल बिन मछली की तरह से तड़प उठी उसके हाथ पाँव और सिर बिस्तर पर अपने आपसे इधर उधर होने लगे थे वो अपने को रामु के शरीर से अलग नहीं करना चाहती थी वो जब रामु उसे अपने गोद में भरकर लाया था तो उसके नथुनो में रामु के पसीने की खुशबू को सूंघ कर ही बेसूध हो गई थी कितनी मर्दानी खुशबू थी कितनी मादक थी यह खुशबूओ काम अग्नि में जलती हुई आरती का पूरा शरीर अब रामु के रहमो करम पर था वो चाहती थी कि रामु कल जैसे उससे निचोड़ कर रख दे उसके शरीर में उठ रही हर एक लहर को अपने हाथों से रोक दे, वो अपने आपको अकेला सा पा रही थी बिस्तर पर और रामु पास खड़े हुए बहू की इस स्थिति को अपने आखों से देख रहा था बहू के ब्लाउसमें फँसे हुए उसके गोल गोल बड़े-बड़े चुचो को वो वही खड़े-खड़े निहार रहा था उसके ऊपर-नीचे होते हुए आकर को बढ़ते घटते देख रहा था उसके पेट को अंदर-बाहर होते देख रहा था जाँघो में फाँसी हुई पेटीकोट को उसकी टांगों के साथ ऊपर-नीचे होते हुए देख रहा था उसकी आखें बहू के हर हिस्से को देख रही थी और उसकी सुंदरता को अपने अंदर उतारने की कोशिश कर रही थी वो खड़े-खड़े देख ही रहा था कि उसके हाथों से बहू की नाजुक हथेली टकराई वो उसकी मजबूत हथेली को अपनी हथेली में लेने की कोशिश कर रही थी वो अपनी हथेली को रामु की हथेली पर कस कर पकड़ बनाने की कोशिश कर रही थी और अपने पास खींच रही थी उसके हाथ रामु को अपने पास और पास आने का न्यौता दे रहे थे। रामु भी अब कहाँ रुकने वाला था वो भी बहू के हाथों के साथ अपने आपको आगे बढ़ाया और बहू के हाथों का अनुसरण करने लगा बहू अपने हाथों को रामु के हाथों के सहारे अपने चूची तक लाने में सफल हो गई थी उसके चूचियां और भी तेज गति से ऊपर की ओर हो गये।
आरती के मुख से एक आआअह्ह निकली और वो रामू के हाथों को अपने चूची के ऊपर घुमाने लगी थी रामू को तो मन की मुराद ही मिल गई थी जो खड़े-खड़े देख रहा था अब उसके हाथों में था वो और नहीं रुक पाया वो अपने अंदर के शैतान को और नहीं रोक पाया था वो अपने दोनों हाथों से बहू की दोनों चूचियां को कस कर पकड़ लिया और ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा । आरती का पूरा शरीर धनुष की तरह से अकड गया था वो अपने सिर के और कमर के बल ऊपर को उठ गई थी
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