Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:23 PM,
#9
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
आरती- काका एक मदद चाहिए

रामु- जी बहू कहिए आप तो हुकुम कीजिए

और अपनी नजर झुका कर हाथ बाँध कर सामने खड़ा ही गया सामने आरती खड़ी थी पर वो नजर उठाकर नहीं देख पा रहा था उसकी साँसे बहुत तेज चल रही थी सांसो में आरती के सेंट की खुशबू बस रही थी वो मदहोश सा होने लगा था
आरती- वो असल में अआ आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना
रामू का कोई जबाब ना पाकर

आरती- वो असल में कल ना सोने के समय थोड़ा सा गर्दन में मोच आ गई थी में चाहती थी कि अगर आप थोड़ा सा मालिश कर दे
रामु- ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्जििइईईईई
आरती भी रामू के जबाब से कुछ सकपकाई पर तीर तो छूट चुका था

आरती- नहीं नहीं, अगर कोई दिक्कत है तो कोई बात नहीं असल में उस दिन जब आपने मेरे पैरों मोच ठीक किया था ना इसलिए मैंने कहा और आज से तो गाड़ी भी चलाने जाना है ना इसलिए सोचा आपको बोलकर देखूँ

रामू काका की तो जान ही अटक गई थी गले में मुँह सुख गया था नज़रों के सामने अंधेरा छा गया था उसके गले से कोई भी आवाज नहीं निकली वो वैसे ही खड़ा रहा और कुछ बोल भी नही पाया

आरती- आप अपना काम खतम कर लीजिए फिर कर देना ठीक है में उसके बाद खाना खा लूँगी
रामु- जी
आरती- चलिए में आपको बुला लूँगी कितना टाइम लगेगा आपको
रामु- जी 2 घण्टे
आरती- फ्री होकर बता देना में रूम में ही हूँ
और कहकर आरती अपने रूम की ओर पलटकर चली गई

रामू किचेन में ही खड़ा था किसी भूत की तरह सांसें ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे दिमाग सुन्न आखें पथरा गई थी हाथ पाँव में जैसे जान ही ना हो खड़ा-खड़ा आरती को जाते हुए देखता रहा पीछे से उसकी कमर बलखाती हुई और नितंबों के ऊपर से उसकी चुन्नी इधर-उधर हो रही थी

सीढ़ी से चढ़ते हुए उसके शरीर में एक अजीब सी लचक थी फिगर जो कीदिख रहा था कितना कोमल था वो सपने में आरती को जैसे देखता था वो आज उसी तरह बलखाती हुई सीढ़ीओ से चढ़कर अपने रूम की ओर मुड़ गई थी रामू वैसे ही थोड़ी देर खड़ा रहा सोचता रहा कि आगे वो क्या करे

आज तक कभी भी उसने यह नहीं सोचा था कि वो कभी भी इस घर की बहू को हाथ भी नही लगा सकता था मालिश तो दूर की बात और वो भी कंधे का मतलब वो आज आरती का शरीर को कंधे से छू सकेगा आआअह्ह उसके पूरे शरीर में एक अजीब सी हलचल मच गई थी बूढ़े शरीर में उत्तेजना की लहर फेल गई उसके सोते हुए अंगो में आग सी भर गई कितनी सुंदर है आरती, कही कोई गलती हो गई तो

पूरे जीवन काल की बनी बनाई निष्ठा और नमक हलाली धरी रह जाएगी पर मन का क्या करे वो तो चाहता था कि वो आरती के पास जाए भाड़ में जाए सबकुछ वो तो जाएगा वो अपने जीवन में इतनी सुंदर और कोमल लड़की को आज तक हाथ नहीं लगाया था वो तो जाएगा कुछ भी हो जाए वो जल्दी से पलटकर किचेन में खड़ा चारो ओर देख रहा था सिंक पर झूठे प्लेट पड़े थे और किचेन भी अस्त व्यस्त था पर उसकी नजर बार बार बाहर सीढ़ियों पर चली जाती थी

उसका मन कुछ भी करने को नहीं हो रहा था जो कुछ जैसे पड़ा था वो वैसे ही रहने दिया आगे बढ़ने ही हिम्मत या फिर कहिए मन ही नहीं कर रहा था वो तो बस अब आरती के करीब जाना चाहता था वो कुछ भी नहीं सोच पा रहा था उसकी सांसें अब तो रुक रुक कर चल रही थी वो खड़ा-खड़ा बस इंतजार कर रहा था कि क्या करे उसका अंतर मन कह रहा था कि नहीं यह गलत है पर एक तरफ वो आरती के शरीर को छूना चाहता था उसके मन के अंदर में जो उथल पुथल थी वो उसके पार नहीं कर पा रहा था

वो अभी भी खड़ा था और उधर

आरती अपने कमरे में पहुँचकर जल्दी से बाथरूम में घुसी और अपने को सवारने में लग गई थी वो इतने जल्दी बाजी में लगी थी कि जैसे वो अपने बाय फ्रेंड से मिलने जा रही हो वो जल्दी से बाहर निकली और वार्ड रोब से एक स्लीव लेस ब्लाउस और एक वाइट कलर का पेटीकोट निकाल कर वापस बाथरूम में घुस गई

वो इतनी जल्दी में थी कि कोई भी देखकर कह सकता था कि वो आज कुछ अलग मूड में थी चेहरा खिला हुआ था और एक जहरीली मुश्कान भी थी उसके बाल खुले हुए थे और होंठों पर डार्क कलर की लिपस्टिक थी कमर के बहुत नीचे उसने पेटीकोट पहना था ब्लाउस तो जैसे रखकर सिला गया हो टाइट इतना था कि जैसे हाथ रखते ही फट जाए आधे से ज्यादा चुचे सामने से ब्लाउज के बाहर आ रहे थे पीछे से सिर्फ़ ब्रा के ऊपर तक ही था ब्लाउस कंधे पर बस टिका हुआ था दो बहुत ही पतले लगभग 1्2 सेंटीमीटर की ही होगी पट्टी

बाथरूम से निकलने के बाद आरती अपने को मिरर में देखा तो वो खुद भी देखती रह गई कि लग रही थी सेक्स की गुड़िया कोई भी ऋषि मुनि उसे ना नहीं कर सकता था आरती अपने को देखकर बहुत ही उत्तेजित हो गई थी हाँ उसके शरीर में आग सी भर गई थी वो खड़ी-खड़ी अपने शरीर को अपने ही हाथों से सहला रही थी अपने उभारों को खुद ही सहलाकर अपने को और भी उत्तेजित कर रही थी और अपने शरीर को अपने ही हाथों से सहला रही थी अपने उभारों को खुद ही सहलाकर अपने को और भी उत्तेजित कर रही थी और अपने शरीर पर रामु चाचा के हाथों का सपर्श को भी महसूस कर रही थी उसने अपने को मिरर के सामने से हटाया और एक चुन्नी अपने उपर डाल ली और रामू चाचा का इंतजार करने लगी

उधर रामू भी अपने हाथ को साफ करके किचेन में ही खड़ा था सोच रहा था कि क्या करे जाए या नहीं कही किसी को पता चल गया तो लेकिन दिल है कि मानता नहीं वो सीढ़ियों तक पहुँचा और फिर थम गया अंदर एक डर था मालिक और नौकर का रिश्ता था उसका वो कैसे भूल सकता था पागल शेर की तरह वो किचेन में तो कभी किचेन के बाहर तक आता और फिर अंदर चला जाता इस दौरान वो दो बार बाहर का दरवाजा भी चैक कर आया जो कि ठीक से बंद है कि नहीं पागल सा हो रहा था उसने सोचा कि चला ही जाता हूं।
रामु एक सांस में तेज़ी से उप्पेर आरती के कमरे के पास जाता है।
रामु- ज्ज्जिि (उसकी सांसें फूल रही थी )
उधर से आरती की आवाज थी शायद वो और इंतजार नहीं करना चाहती थी
आरती- क्या हुआ काका काम नहीं हुआ आपका

जैसे मिशरी सी घुल गई थी रामु के कानों में हकलाते हुए रामू की आवाज निकली
रमु-- जी बहू बस

आरती- क्या जी जी मुझे खाना भी तो खाना है आओगे कि

जान बूझ कर आरती ने अपना सेंटेन्स आधा छोड़ दिया रामु जल्दी से बोल उठा
रामू- नही नहीं बहू में तो बस आ ही रहा था आप चलिए बस आया
और लगभग दौड़ता हुआ वो एक साथ दो तीन सीडिया चढ़ता हुआ आरती के रूम के सामने था मगर हिम्मत नहीं हो रही थी कि खटखटा सके खड़ा हुआ रामू क्या करे सोच ही रहा था कि दरवाजा आरती ने खोल दिया जैसे देखना चाहती हो कि कहाँ रहा गया है वो सामने से भी सुंदर बिल कुल किसी अप्सरा की तरह खड़ी थी आरती चुन्नी जो कि उसके ब्लाउज के उपर से ढलक गया था उसके आधे खुले बूब्स जो कि बाहर की ओर थे उसे न्यूता दे रहे थे कि आओ और खेलो हमारे साथ चूसो और दबाओ जो जी में आए करो पर जल्दी करो

रामु दरवाजे पर खड़ा हुआ आरती के इस रूप को टक टकी बाँधे देख रहा था हलक सुख गया था इस तरह से आरती को देखते हुए आरती की आखों में और होंठों में एक अजीब सी मुश्कुराहट थी वो वैसे ही खड़ी रामु काका को अपने रूप का रस पिला रही थी उसने अपने चुन्नी से अपने को ढकने की कोशिश भी नहीं की बल्कि थोड़ा सा आगे आके रामु काका का हाथ पकड़कर अंदर खींचा

आरती- क्या काका जल्दी करो ऐसे ही खड़े रहोगे क्या जल्दी से ठीक कर दो फिर खाना खाना है मुझे
रामु किसी कठपुतली की तरह एक नरम सी और कोमल सी हाथ के पकड़ के साथ अपने को खींचता हुआ आरती के कमरे में चला आया नहीं तो क्या आरती में दम था कि रामु जैसे आदमी को खींचकर अंदर ले जा पाती यह तो रामु ही खिंचा चला गया उस खुशबू की ओर उस मल्लिका की ओर उस अप्सरा की ओर उसके सूखे हुए होंठ और सूखा गला लिए आकड़े हुए पैरों के साथ सिर घूमता हुआ और आखें आरती के शरीर पर जमी हुई

जैसे ही रामु अंदर आया आरती ने अपने पैरों से ही रूम का दरवाजा बंद कर दिया और साइड में रखी कुर्सी पर बैठ गई जो कि कुछ नीचे की ओर था बेड से थोड़ी दूर रामु आज पहली बार रवि भैया के रूम में आया था उनकी शादी के बाद कितना सुंदर सजाकर रखा था बहू ने जितनी सुंदर वो थी उतना ही अपने रूम को सजा रखा था इतने में आरती की आवाज उसके कानों में टकराई
आरती- क्या रामू काका क्या सोच रहे हो
रामू- कुछ नही
वो बुत बना आरती को देख रहा था आरती से नजर मिलते ही वो फिर से जैसे कोमा में चला गया क्या दिख रही थी आरती सफेद कलर की टाइट ब्लाउस और पेटीकोट पहने हुए थी और लाल कलर की चुन्नी तो बस डाल रखी थी क्या वो इस तरह से मालिश कराएगी क्या वो आरती को इस तरह से छू सकेगा उसके कंधों को उसके बालों को या फिर

आरती- क्या काका बताइए कहाँ करेंगे यही बैठू

रामु- जी जी .....और गले से थूक निगलने की कोशिश करने लगा

रामु आरती की ओर देखता हुआ थोड़ा सा आगे बढ़ा पर फिर ठिठ्क कर रुक गया क्या करे हाथ लगाए #### उूउउफफ्फ़ क्या वो अपने को रोक पाएगा कही कोई गड़बड़ हो गई तो भाड़ में जाए सबकुछ वो अब आगे बढ़ गया था अब पीछे नहीं हटेगा वो धीरे से आरती की ओर बड़ा और सामने खड़ा हो गया देखते हुए आरती को जो कि सिटी के थोड़ा सा नीचे होने से थोड़ा नीचे हो गये थी
आरती- मैं पलट जाऊ कि आप पीछे आएँगे

आरती रामू काका को अपनी ओर आते देखकर पूछा उसकी सांसें भी कुछ तेज चल रही थी ब्लाउज के अंदर से उसकी चूचियां बाहर आने को हो रही थी रामु की नजर आरती के ब्लाउसपर से नहीं हट रही थी वो घूमते हुए आरती के पीछे की ओर चला गया था उसकी सांसों में एक मादक सी खुशबू बस गई थी जो कि आरती के शरीर से निकल रही थी वो आरती का रूप का रस पीते हुए, उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया उपर से दिखने में आरती का पूरा शरीर किसी मोम की गुड़िया की तरह से दिख रहा था सफेद कपड़ों में कसा हुआ उसका शरीर जो की कपड़ों से बाहर की ओर आने को तैयार था और उसके हाथों के इंतजार में था

आरती अब भी चुपचाप वही बैठी थी और थोड़ा सा पीछे की ओर हो गई थी रामू खड़ा हुआ, अब भी आरती को ही देख रहा था वो आरती के रूप को निहारने में इतना गुम थाकि वो यह भी ना देख पाया कि कब आरति अपना सिर उकचा करके रामू की नजर की ओर ही देख रही थी

आरती- क्या चाचा शुरू करो ना प्लेअसस्स्स्स्सीईईईईई

रामु के हाथ काप गये थे इस तरह की रिक्वेस्ट से आरती अब भी उसे ही देख रही थी उसके इस तरह से देखने से आरती की दोनों चूचियां उसके ब्लाउज के अंदर बहुत अंदर तक दिख रही थी आरति का शरीर किसी रूई के गोले के समान देख रहा था कोमल और नाजुक

रामू ने कपते हुए हाथ से आरती के कंधे को छुआ एक करेंट सा दौड़ गया रामू के शरीर में उसके अंदर का सोया हुआ मर्द अचानक जाग गया आज तक रामू ने इतनी कोमल और नरम चीज को हाथ नहीं लगाया था

एकदम मखमल की तरह कोमल और चिकना था आरती का कंधा उसके हाथ मालिश करना तो जैसे भूल ही गये थे वो तो उस एहसास में ही खो गया था जो कि उसके हाथों को मिल रहा था वो चाह कर भी अपने हाथों को हिला नहीं पा रहा था बस अपनी उंगलियों को उसके कंधे पर हल्के से फेर रहा था और उसका नाज़ुकता का एहसास अपने अंदर भर रहा था वो अपने दूसरे हाथ को भी आरती के कंधे पर ले गया और दोनों हाथों से वो आरति के कंधे को बस छूकर देख रहा था
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