RE: Porn Kahani हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर
बेला को चोदने के बाद सोनू सामान लाने के शहर चला गया और बेला अपने घर चली गई।
दूसरी तरफ रजनी अपने कमरे में कान्ति देवी के साथ बैठी बातें कर रही थी।
ऊपर से तो भले ही वो कान्ति देवी के साथ हंस-हंस कर बातें कर रही थी, पर मन ही मन वो उससे गालियाँ दे रही थी।
‘और सुना बहू, नई दुल्हन लाने के बाद बेटा चन्डीमल तेरी तरफ ध्यान देता है कि नहीं?’ कान्ति देवी ने बातों-बातों में रजनी से पूछा। रजनी बेचारा सा मुँह लेकर बैठ गई।
‘ये सारे मर्द ना.. एक ही जात के होते हैं.. पर तू फिकर ना कर, भगवान के घर देर है.. अंधेर नहीं..’
रजनी ने उदास होते हुए कहा- पर मुझे तो लगता है भगवान ने मेरे लिए अंधेरा ही रखा है, अब तो वो मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते।
कान्ति- बोला ना.. सब मर्दों की एक ही जात होती है.. अपने अनुभव से बोल रही हूँ। कुछ दिन उसको नई चूत का चाव रहेगा, देखना बाद मैं सब ठीक हो जाएगा.. अच्छा चल मैं एक बार घर भी हो आती हूँ.. वहाँ की खबर भी ले लूँ।
उधर सोनू बाज़ार से सामान खरीद कर वापिस गाँव आ चुका था।
अब दोपहर के 12 बज चुके थे।
जैसे ही सोनू घर में दाखिल हुआ, वो सीधा रजनी के कमरे में चला गया।
बेला भी आ चुकी थी और खाना बना रही थी।
सोनू ने रजनी के कमरे में जाकर कहा- मालिकन सामान ले आया हूँ।
रजनी- इतनी देर कहाँ लगा दी।
सोनू- वो मालकिन ये जगह मेरे लिए नई है ना…इसलिए देर हो गई।
रजनी- अच्छा ठीक है, जा रसोई में सामान रख दे और कुछ देर आराम कर ले।
सोनू जैसे ही रसोई में जाने लगा।
रजनी भी उसके साथ रसोई में आ गई।
वो किसी भी कीमत पर सोनू और बेला को एक पल के लिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी।
सोनू सामान रख कर पीछे अपने कमरे में चला गया।
बेला खाना बना कर अपना और अपनी बेटी का खाना साथ लेकर अपने घर वापिस चली गई।
अब रजनी घर पर अकेली थी और सोनू पीछे अपने कमरे में था।
भले ही रजनी के पास ज्यादा समय नहीं था, पर रजनी ये वक्त भी बर्बाद नहीं करना चाहती थी।
वो जानती थी कि चाची कान्ति किसी भी वक्त टपक सकती है।
रजनी ने सबसे पहले मैं दरवाजा बंद किया और फिर घर के पीछे चली गई।
सोनू के कमरे में पहुँच कर उसने देखा कि सोनू अन्दर पलंग पर लेटा हुआ सो रहा था।
रजनी ने एक बार उसे अपनी हसरत भरी आँखों से ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उसके पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे आवाज़ दी।
सोनू ने अपनी आँखें खोलीं, तो रजनी को अपने ऊपर झुका हुआ पाकर वो एकदम से हड़बड़ा गया और उठ कर बैठ गया।
सोनू- क्या हुआ मालकिन आप आप यहाँ?
रजनी- उठो.. खाना तैयार है, आकर खाना खा ले।
रजनी ने एक बार फिर से सोनू के बालों में प्यार से हाथ फेरा और पलट कर बाहर चली गई।
सोनू को ये सब कुछ अजीब सा लगा, पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उठ कर घर के आगे की तरफ आ गया।
पूरे घर मैं सन्नाटा छाया हुआ था, बस रसोई से बर्तन की आवाज़ आ रही थी।
सोनू रसोई में गया, यहाँ पर रजनी एक प्लेट मैं खाना डाल रही थी- आ गया तू.. चल बाहर जाकर बैठ.. मैं खाना लेकर आती हूँ।
सोनू- रहने दीजिए ना मालकिन.. मैं खुद ले लेता हूँ।
रजनी- हाँ मैं जानती हूँ, तू बड़ा होशियार है.. सब खुद ले लेता है।
सोनू रजनी के दोअर्थी बात सुन कर थोड़ा सा झेंप गया।
उसे भी शक हो गया कि हो ना हो रजनी को उसके और बेला के रंगरेलियों के खबर लग चुकी है।
वो चुपचाप बाहर आकर बैठ गया, थोड़ी देर बाद रजनी रसोई से बाहर आई।
उसने अपनी साड़ी के पल्लू को कमर पर लपेट रखा था और उसकी 38 साइज़ की चूचियां उसके ब्लाउज में ऐसे तनी हुई थीं, जैसे हिमालय की चोटियाँ हों।
इस हालत में सोनू के सामने आने मैं रजनी को ज़रा भी झिझक महसूस नहीं हो रही थी।
रजनी- अरे नीचे क्यों बैठ गया तू.. उठ ऊपर उस कुर्सी पर बैठ जा.. नीचे फर्श बहुत ठंडा है, सर्दी लग जाएगी।
सोनू- नहीं मालकिन.. मैं यहीं ठीक हूँ।
रजनी- अरे घबरा मत.. ऊपर बैठ जा.. घर पर कोई नहीं है।
सोनू बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ गया, रजनी ने उससे खाना दिया और खुद सामने पलंग पर जाकर बैठ गई।
सोनू सर झुकाए हुए खाना खाने लगा, रजनी उसकी तरफ देख कर ऐसे मुस्करा रही थी..जैसे शेरनी अपने शिकार होने वाले बकरे को देख कर खुश होती है।
सोनू तो ऐसे सर झुकाए बैठा था, जैसे वहाँ और कोई हो ही ना।
रजनी जानती थी कि इस उम्र के लड़कों को कैसे लाइन पर लिया जाता है।
वो पलंग पर लेट गई, उसने अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर पलंग के किनारे पर रख दिया और अपनी साड़ी और पेटीकोट को अपने घुटनों तक चढ़ा लिया, ताकि सोनू उसकी चिकनी चूत का दीदार कर सके।
टाँगों के फैले होने के कारण साड़ी में इतनी खुली जगह बन गई थी कि सामने बैठे सोनू को रजनी की चूत साफ़ दिखाई दे सके, पर सोनू को तो जैसे साँप सूँघ गया था, वो सर झुकाए हुए खाना खा रहा था।
‘अबे गांडू.. मादरचोद.. थाली में तेरी माँ चूत खोल कर बैठी है.. जो तेरी नज़रें वहाँ से हट नहीं रही हैं.. यहाँ मैं अपनी चूत खोल कर बैठी हूँ।’
रजनी ने मन ही मन सोनू को कोसा, पर सोनू तक रजनी के मन की बात नहीं पहुँची।
उसने खाना खत्म किया और उठ कर अपनी प्लेट रखने के लिए रसोई में चला गया।
जब सोनू रसोई में प्लेट रखने के लिए जा रहा था, तब रजनी को सोनू के जेब में से कुछ खनकने की आवाज़ सुनाई दी।
जिससे रजनी थोड़ी चौंक गई।
सोनू जब प्लेट रख कर वापिस आया तो रजनी ने उससे अपने पास बुला लिया।
रजनी पलंग पर बैठते हुए- अरे सोनू इधर आ.. क्या है तेरी जेब में?
रजनी की बात सुन कर सोनू का रंग उड़ गया।
जब वो शहर गया था.. तो वहाँ से वो बेला के लिए पायल खरीद कर लाया था, पर बेला को देने का मौका नहीं मिला था।
अब वो बेचारा क्या कहता कि जो पैसे रजनी ने उस रात सोनू को दिए थे, उसमें से वो बेला के लिए पायल ले आया है।
सोनू को यूँ चुप खड़ा देख कर रजनी ने फिर से सोनू से पूछा, पर अब सोनू कर भी क्या सकता था, चारों तरफ से फँस चुका था।
‘वो मालकिन.. वो पायल है..’
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