RE: Adult Kahani कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास
ऋतु की सिसकियाँ रमण के अंदर छुपे जानवर को बाहर निकाल देती हैं, जिसे अपनी बेटी को चोदने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था.
‘ले साली रंडी, ले मेरा लंड अपनी चूत में, ले ले ले, मूत पिलाती है मुझे रंडी, आज फाड़ दूँगा तेरी चूत’
‘बेटी चोद ज़्यादा चौड़ा मत हो, मूत तो मेरा तू रोज पिएगा नाश्ते में---- चोद साले--- देखूं तो सही कितना दम है तेरे लंड में---- चोद भडवे चोद---- बस इतना ही दम है --- ज़ोर से पेल ना ----ऐसी चूत फिर कभी नही मिलेगी……..चोद बेटीचोद’
रमण उसकी बात सुन कर पागल सा हो जाता है और एक मशीन की तरहा सतसट उसकी चूत में लंड पेलने लगता है.
आआआआऐययईईईईईईईईईईई चोद मदर्चोद…….दम नही है क्या
ऋतु उसे और भड़काती है और रमण इतनी तेज चुदाई करता है कि उसकी साँस फूलने लगती है, उम्र का तक़ाज़ा सामने आने लगता है, ऋतु अब तक दो बार झाड़ चुकी थी, वो रमण को नीचा दिखाना चाहती थी………
‘ बस इतना ही दम है, चोद ना बेटी चोद’
रमण अपनी पूरी जान लगा कर उसे चोदने लगता है पर अपनी फुल्ती हुई साँस के आगे हार खा जाता है, बेशक उसका लंड खड़ा था क्योंकि वो दो बार झाड़ चुका था, पर उसके जिस्म में वो हिम्मत नही बची थी……..ऋतु उसे अच्छी तरहा निचोड़ चुकी थी…………हांफता हुआ वो पीछे गिर पड़ता है.
चाहे ऋतु की खुद की हालत बुरी हो चुकी थी, पर चेहरे पे मुस्कान लाती हुई रमण को और जॅलील करती है….. बस इतना ही दम था…. थू….और थूक देती है रमण के चेहरे पे……
‘अब कभी माँ और मेरे बीच मत आना---- तुझ में जान नही है…. हां जब हमारा दिल करेगा--- तुझे चोदने का मोका देते रहेंगे’
रमण को विश्वास नही हो रहा था ----- उसकी अपनी बेटी उसे कितना जॅलील कर रही है…. वो खुद को कोसने लगता है…. जिस्म की प्यास ने उसकी क्या हालत कर के रख दी.
ऋतु अपनी गान्ड मटकाते हुए बाथरूम से बाहर चली जाती है रमण को अकेला छोड़---- एक पछतावे के साथ.
अपने बिस्तर पे पहुँच कर वो रवि को स्मस भेज देती है.
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उधर, सोए हुए विमल की नींद खुल जाती है, अब भी उसके मुँह में सुनीता का निपल था, विमल फिर से सुनीता का निपल चूसने लगता है. जैसे ही सुनीता को अपने निपल पे फिर से हरकत का अहसास होता है, उसकी नींद भी खुल जाती है.
विमल के जिस्म में उत्तेजना बढ़ती है,और वो एक निपल को चूस्ते हुए सुनीता के दूसरे उरोज़ को थाम लेता है और हल्के हल्के दबाने लगता है.
अहह सुनीता सिसक पड़ती है और विमल के सर को ज़ोर से अपने सीने पे दबाने लगती है. उसकी चूत में भी खुजली मचनी शुरू हो जाती है. ना चाहते हुए भी वो बहेकने लगती है और उसके हाथ विमल को सहलाने लगते हैं. विमल उसके दोनो उरोज़ को कभी चूस्ता कभी दबाता और कभी निपल्स को उमेठने लगता. सुनीता के जिस्म में प्यास बढ़ने लगती है और वो अपनी जांघे आपस में रगड़ने लगती है. उसकी पकड़ विमल पे सख़्त हो जाती है और वो विमल को कस के अपने साथ चिपका लेती है.
विमल के लिए उसकी प्यासी ममता उसे सारे बंधन तोड़ने पे मजबूर कर रही थी. वो विमल के साथ चिपकती जा रही थी और अपनी एक टाँग उठा कर विमल की जांघों पे रख दी. विमल का खड़ा लंड अब उसकी चूत पे दस्तक दे रहा था.
‘अहह विमू, चूस बेटा, चूस, पीले सारा दूध’
उसकी सिसकी सुन विमल आक्रामक हो जाता है और जगह जगह उसके उरोज़ पे लव बाइट छोड़ने लगता है. सुनीता की सिसकियाँ और भी बढ़ जाती हैं.
आह्ह्ह्ह उफफफफफफफ्फ़ उम्म्म्ममममम ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
विमल उसके उरोज़ को चूस कर, काट कर लाल सुर्ख कर देता है और फिर उपर उठ कर वो सुनीता के होंठों को अपने होंठों के क़ब्ज़े मे ले लेता है और उसके दोनो होंठ चूसने लग जाता है.
सुनीता तड़प के रह जाती है और अपना जिस्म विमल के जिस्म से रगड़ने लगती है. उसके होंठों को चूस्ते हुए विमल उसके उरोज़ का भी मर्दन करने लगता है.
विमल ने उसके दोनो मम्मों को अपने पंजों में दबा रखा था, और हल्के हल्के दबा कर सुनीता की कामुकता को हवा दे रहा था.
‘ओह विमू, मेरे बच्चे, आज मुझ में समा जा, बहुत दूर रही हूँ तुझ से आज मुझे बहुत प्यार कर, मैं भी तुझे बहुत प्यार करना चाहती हूँ’ सुनीता अपने होंठ उस से अलग कर अपने दिल की बात बोल पड़ती है, और फिर पागलों की तरहा उसके होंठ चूसने लगती है.
जिस बचपन के प्यार को सुनीता ना पा सकी आज वो उसी जवानी को अपने अंदर समेट कर उस कमी को पूरा करना चाहती थी.
बहुत कोशिश करी थी सुनीता ने, कि बात यहाँ तक ना पहुँचे, पर जब भी विमल उसके पास होता, वो ना चाहते हुए भी खुद को रोक नही पा रही थी, उसकी प्यासी ममता उसे मजबूर कर रही थी, और आज वो उस धारा में पूरी तरहा बहना चाहती थी.
विमल उसके जॉगिंग सूट को उतार कर फेंक देता है, और अपनी शर्ट भी उतार देता है.
सुनीता की आँखों में एक कसक थी, एक प्यार था, एक निमंत्रण था.
विमल झुक कर उसकी आँखों को चूमता है, उसके गालों को चूमता है और फिर उसके नाज़ुक लबों को चूसने लगता है
उसके सामने अपने उपरी जिस्म के नंगा होने पर सुनीता के चेहरे पे शर्म की लाली छा जाती है और वो अपनी आँखे बंद कर लेती है.
विमल उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम कर से चुंबनो से भरने लगा तो सुनीता की सिसकियाँ छूटने लगी.
‘अहह उम्म्म्म खूब प्यार कर मुझे, कब से तरस रही हूँ तेरे प्यार के लिए’
विमल फिर सुनीता की गर्दन और कंधों को चूमता हुआ उसके उरोज़ निहारने लगता है.
उसकी तरफ से कोई हरकत होती ना पा कर सुनीता अपनी आँखें खोलती है और उसे अपने उन्नत उरोजो को निहारता हुआ पाती है. एक मुस्कान उसके चेहरे पे आ जाती है.
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