RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
उन 7 दिनो मे मेरी आँखे पूरी काली पड़ चुकी थी,शरीर के कयि अंग थोड़ी सी मूव्मेंट मे ही गान्ड फाड़ दर्द देते थे,इतना दर्द कि खुद के दम पर चलना तो दूर उठना तक मुश्क़िल हो गया था....
"चल बाहर निकल...तुझपर से केस हटा लिया गया है...तेरा बड़ा भाई आया हुआ है तुझे लेने..."बाहर से एक कॉन्स्टेबल ने मुझे आवाज़ दी तब मैने अपनी आँखे खोली और मुझे पता चला कि अभी दिन है .
क्यूंकी लॉकप मे मेरा अधिकतर समय आँख बंद किए हुए गुज़रता था और इस समय मैं अपने दिमाग़ पर हावी होने की कोशिश करता था...मतलब कि मैं अपने वही पुराने तेवर ,वही पुराना घमंड ,वही पुराना आटिट्यूड ,वही पुरानी सोच को खुद के अंदर पैदा करने की कोशिश करता ,जिनकी वज़ह से मैं यहाँ था क्यूंकी मुझे मालूम था कि यहाँ से जब मैं निकलूंगा तो मुझे इन्ही की सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ेगी...
पूरे एक हफ्ते बाद जब मैं लॉक अप से निकला तो ऐसा लगा जैसे कि मुझे नयी ज़िंदगी मिली हो ,मैं खुद के दम पर उठ भी नही सकता था ,पर यहाँ से बाहर निकलने की चाह ने मुझे इतना सशक़्त बना दिया कि मैं अब अपने ही दम पर चल रहा था....बाहर आर.एल.डांगी ,मेरे पिता श्री, मेरा बड़ा भाई और एक लॉयर बैठा था.मैं सीधे उनके पास गया और पूरी ताक़त लगाकर सबसे पहले अपने पिता श्री के पैर छुए और फिर बड़े भाई के.....
"इसको सुधार लो ,वरना अबकी बार तो ये बच गया पर अगली बार नही बचेगा....उपर से इसकी अकड़ इतनी है कि हमारे ही पोलीस स्टेशन मे हमे ही गालियाँ दे रहा था....फिलहाल अभी तो हमने इसकी अकड़ निकाल दी है..."
ऐसे ही एस.पी. मुझे कयि नसीहत देते रहा ,मेरी शिक़ायत करता रहा और आख़िर मे उसने आराधना का नाम लिया....
"एक बात बता, तुझे कैसा लगा एक भोली-भाली लड़की की ज़िंदगी ख़त्म करके...तूने उसके माँ-बाप की हालत नही देखी शायद...उसकी माँ ने एक हफ्ते से पानी तक नही पिया ,वो अब आइसीयू मे अड्मिट है और बेचारा उसका बाप, वो तो लगभग पागल हो गया है...वो अब भी ये मानने को तैयार नही कि उसकी बेटी मर चुकी है....अरमान तूने बहुत ग़लत किया... "
"आपके मुँह से किसी दूसरे के लिए ग़लत शब्द शोभा नही देता..."इतनी देर से एस.पी. की बक-बक सुनकर मैं जब मरने की हालत मे पहुच गया तब मैने भी एक तीर छोड़ा"एक बात बताओ ,आप...यदि इस केस के पहले कलेक्टर के लड़के का केस ना होता...या फिर मैं अरमान ना होकर कोई दूसरा लड़का होता तो क्या तब भी आप मेरी वही हालत करते जो आपने की है....दरअसल ग़लत तो आपने किया है..."
"देखा आपने..."मेरे पापा की तरफ देख कर आर.एल.डांगी बोला"मैं इसकी इसी अकड़ की बात कर रहा था...हमे माफ़ करो और इसे लेकर यहाँ से जाओ...एक तो किसी की ज़िंदगी ख़त्म कर दी उपर से माफी माँगने के बजाय ज़ुबान लड़ा रहा है...नॉनसेन्स"
"आपके घर मे चाकू है...."
"हां है...तो"भड़कते हुए एस.पी. बोला
"तो आप उस चाकू से क्या करते है..."
"क्या करते है मतलब..."
"आप उस चाकू से क्या करते है मतलब आप उस चाकू से क्या करते है..."
जवाब मे डांगी साहब चुप ही रहा तब मैं बोला...
"आपके घर मे चाकू है और आप उस चाकू से सब्ज़िया काट-ते है अपनी गर्दन नही...प्यार भी उसी चाकू की तरह होता है डांगी जी ,जिसमे दोषी प्यार नही बल्कि बल्कि वो इंसान होता है जो या तो प्यार मे अपनी जान देता है या फिर उस प्यार को लात मारकर आगे बढ़ जाता है....ग़लती आराधना ने की थी,मैने नही..."
"सही कह रहा है तू ,ग़लती उसने की...तुझ जैसे इंसान के लिए अपनी जान देकर...."
"ग़लती तो आख़िर ग़लती ही होती है और हर ग़लती की एक सज़ा तय होती है ,बस खुद के अंदर जिगरा होना चाहिए उस सज़ा को स्वीकार करने की...आराधना मे दरअसल हिम्मत ही नही थी ,इसीलिए उसने मुझसे बदला लेने के लिए अपने जान दे दी ,वरना यदि वो मुझसे प्यार करती तो क्या मेरा नाम स्यूयिसाइड नोट मे लिखकर जाती ? एस.पी. साहब दुनिया की सबसे बड़ी प्राब्लम है जलन...जिसके अंदर जिसके भी खिलाफ ये जलन पैदा हो गयी तो फिर उन दोनो का कल्याण होना निश्चित है...आराधना के अंदर भी मेरे लिए यही जलन पैदा हो गयी थी ,उससे मेरी खुशी देखी नही गयी और बाइ दा वे मैं ये तुझे क्यूँ समझा रहा हूँ, मैं तो अब छूट गया हूँ और नेक्स्ट टाइम जब कभी भी तेरा पाला मुझसे पड़े तो कुच्छ करने से पहले ये ज़रूर सोच लेना कि जब तू एक मर्डर केस मे मेरा कुच्छ नही उखाड़ पाया तो अब क्या उखाड़ लेगा...."एस.पी. की घंटी बजाकर मैं कॉन्स्टेबल्स की तरफ पलटा और बोला"तुम लोग तो अपनी ख़ैरियत मनाओ, क्यूंकी अब मेरा सिर्फ़ एक ही ऐम है...यूपीएससी का एग्ज़ॅम क्लियर करना और फिर तुम सबको क्लियर करना"
मुझे बाहर निकालने के लिए एक एमएलए ,एक संसद और एक हाइ कोर्ट के लॉयर ने अपनी-अपनी पवर का इस्तेमाल किया....एमएलए को मेरे भाई ने ढूँढा ,लॉयर को हॉस्टिल वालो ने और सांसद तो हॉस्टिल मे रहने वाले एक लौन्डे का बाप था....वैसे भी स्यूयिसाइड नोट मे किसी का भी नाम लिख देने से वो अपराधी साबित नही होता ,लेकिन कुच्छ दिन दिक्कतो का सामना ज़रूर करना पड़ता है.
लॉक अप से निकालकर मुझे सीधे घर ले जाया गया और जब तक एग्ज़ॅम शुरू नही हुआ तब तक मैं घर मे ही अपना इलाज़ करवाता रहा....मेरा मोबाइल छीन लिया गया, घर से बाहर कही भी मेरे आने-जाने पर बॅन लगा दिया गया, यहाँ तक कि मेरे किसी दोस्त को भी मुझसे मिलने नही दिया गया और जब मेरे फाइनल एग्ज़ॅम शुरू होने मे दो दिन बाकी थे ,तब पांडे जी की लड़की...जो कि मेरी फ्यूचर भाभी थी..वो मुझसे मिलने आई और उस दिन मेरी लाइफ मे एक और ट्विस्ट ने प्रवेश किया....जो ये था कि पांडे जी की दो बेटी थी और जिसने बचपन से मेरा जीना हराम कर रखा था वो पांडे जी कि छोटी बेटी थी और उसकी बड़ी बहन से मेरे भाई की शादी हो रही थी.....
"कमाल है , आज तक मुझे यही पता था कि पांडे जी के बगीचे मे सिर्फ़ एक फूल है...लेकिन यहाँ तो दो फूल निकले..."
पांडे जी कि बड़ी बेटी भी है और उससे विपिन भैया की शादी होने वाली है ,ये जानकर मुझे राहत मिली और मैं थोड़ा-बहुत सुकून लेकर वापस कॉलेज के लिए रवाना हुआ.....
"अबकी बार कुच्छ ग़लत नही होना चाहिए अरमान....ये बात तू याद रख ले, वरना पूरे कॉलेज के सामने मारते-मारते घर लाउन्गा...."रेलवे स्टेशन मे बड़े भैया ने शब्द रूपी तीर चलाया और मुझे वापस कॉलेज के लिए रवाना किया......
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मेरा मन अब ये फालतू की मार-धाड़ ,डाइलॉग बाज़ी से खप चुका था और फाइनली मैं वो बन रहा था ,जो कि मुझे फर्स्ट एअर मे ही बन जाना चाहिए था...उस दिन कॉलेज आते वक़्त ट्रेन मे बहुत माल मिली ,लेकिन अपुन ने किसी की तरफ ध्यान तक नही दिया...मैं बस शांत अपनी सीट पर पूरे रास्ते बैठा रहा और खिड़की के बाहर झाँकते हुए एश के बारे मे सोचते रहा...
मैं सोच रहा था कि वो मुझे देखकर पहले तो एक दम से खुश होगी ,फिर थोड़ा सा इग्नोर मरेगी ,मुझसे लड़ेगी...और आख़िर मे आइ लव यू बोल देगी...अब एश ही मेरे पास एक ऐसी अच्छी याद थी ,जिसे लेकर मैं अपने कॉलेज से जाना चाहता था ,लेकिन मुझे क्या मालूम था कि एश के रूप मे एक और बॉम्ब मेरा इंतज़ार कर रहा था जो मुझपर बस फूटने ही वाला था....
हॉस्टिल मे मुझे वापस देख कर मेरे खास दोस्तो के आलावा बाकी सब खुश हुए , सबने हाल चल पुछा और आराधना को गालियाँ बकि....पूरा दिन मेरे रूम मे जुलूस उमड़ता रहा और फर्स्ट एअर से लेकर फाइनल एअर तक के लड़के मुझसे मिलने आए....सिवाय मेरे खास दोस्तो के. वो लोग तो तब रूम मे भी नही रहते थे,जब मैं रूम मे होता...बस बीच-बीच मे अपना कोई समान लेने आते और चले जाते...रात को भी वो किसी दूसरे के रूम मे ही सोते थे...ना तो उन्होने कोई पहल की और अपने को तो पहल करने की आदत ही नही थी.मेरे खाती दोस्तो मे से सिर्फ़ एक राजश्री पांडे ही था जो मुझसे मिला था और अरुण-सौरभ के रूम छोड़ने के बाद वो मेरे ही रूम मे रहने लगा था.....
हॉस्टिल पहूचकर दिल किया कि एश को कॉल कर लूँ लेकिन फिर सोचा कि कल तो एग्ज़ॅम है और एग्ज़ॅम देने तो कॉलेज आएगी ही इसलिए उससे सीधे कॉलेज मिल लिया जाएगा.इसलिए दूसरे दिन जब मैं 8थ सेमेस्टर का पहला एग्ज़ॅम देने कॉलेज पहुचा तो नोटीस बोर्ड मे सबसे पहले ये देखा कि सीएस-फाइनल एअर वाले किस क्लास मे बैठे है और फिर अपनी क्लास देखा...
एग्ज़ॅम हॉल से बाहर निकलते ही मैं ए-18 की तरफ भागा ,जो एश की क्लास थी और क्लास के गेट से अंदर नज़र डाली....एश बैठी हुई थी.मैं तक़रीबन आधा घंटे तक वहाँ क्लास के बाहर खड़ा रहकर एश का इंतज़ार करता रहा और जब वो बाहर आई तो मैं उसकी तरफ बढ़ा...
"हाई...कैसी है..."
"गौतम आया हुआ है ,इसलिए प्लीज़ तुम ना तो मुझसे बात करना और ना ही मेरे पीछे आना...."
"मारूँगा साले को, यदि तेरे और मेरे बीच मे आया तो..."तेज़ आवाज़ मे मैं बोला, लेकिन फिर रेलवे स्टेशन मे बड़े भैया की नसीहत याद आते ही मैं धीमा पड़ा और बोला"मेरा मतलब था ,मैं अभी जाता हूँ और तेरे पीछे नही आउन्गा...."
उस दिन के बाद एश मुझसे फेस टू फेस नही मिलती थी और जब मैं उसके नंबर पर कॉल करता तब उसका नंबर हमेशा स्विच ऑफ का गान करते हुए मिलता ,इसलिए मैने मज़बूरन एक दिन अवधेश को हॉस्टिल बुलाया और उससे पुछा कि इतने दिनो मे ऐसा क्या हो गया ,जो एश ना तो मुझसे मिल रही है और ना ही बात कर रही है....
"कुच्छ खास पता नही ,पर कुच्छ दिनो पहले सुनने मे आया था कि दिव्या और एश के बीच पॅच अप हो गया है...."
"ह्म...."
"यो ब्रो...एश आंड दिव्या आर बॅक टू बीयिंग फ्रेंड्स..."
"बस यही बचा था अब सुनने को... "
"और तो और ,गौतम उसे हर एग्ज़ॅम के दिन कॉलेज छोड़ने और लेने आता है....कुच्छ तो ये भी बोलते है दोनो की एंगेज्मेंट भी एश के 8थ सेमेस्टर ख़त्म होने के बाद हो जाएगी...."
"ग़ज़ब...चल ठीक है, तू जा...बाइ..."
"बाइ...."
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बीसी ,वो सब क्या हो रहा था...मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा था , इसलिए मैने डिसाइड किया कि नेक्स्ट पेपर के दिन जब एश कॉलेज आएगी तब मैं उससे ज़रूर बात करूँगा...फिर चाहे वहाँ दिव्या का भाई खड़ा हो या फिर मेरा भाई.वैसे भी लवडा आख़िरी तीन दिन ही बचे है कॉलेज मे और यदि अब नही पुछा तो ज़िंदगी भर नही पुच्छ पाउन्गा......
इतने दिनो मे हर दिन एश की क्लास के बाहर खड़े होकर इंतज़ार करते हुए मैने एश की टाइमिंग अब्ज़र्व कर ली थी...जिसके अकॉरडिंग,वो एग्ज़ॅम टाइम के ठीक 5 मिनिट पहले क्लास के अंदर घुसती और फिर पूरे तीन घंटे बाद ही बाहर निकलती थी. लेकिन फिर भी अपुन को रिस्क नही माँगता था...इसलिए मैं उस दिन भी आधे घंटे पहले एग्ज़ॅम हॉल से निकला और एश के एग्ज़ॅम हॉल के बाहर खड़ा उसका इंतज़ार करने लगा....
एश अपने टाइमिंग के अनुसार ही बाहर निकली और बाहर मुझे देखते ही उसने वही कहा,जो वो पिछले कयि दिनो से मुझसे कहती आ रही थी....लेकिन इस बार मैं नही माना और उसके शॉर्टकट मारकर उससे पहले पार्किंग पर पहुच गया.....पार्किंग मे मुझे देखकर पहले तो एश चौकी और एक बार फिर उसने वही लाइन दोहराई...
"गौतम ,यही है...इसलिए तुम ना तो मुझसे बात करो और ना ही मेरे पीछे आओ..."
"गौतम की माँ की.......जय, चूतिया समझ रखा है क्या...जो इतने दिन से घुमा रही है,अभी घुमा कर एक हाथ दूँगा तो सारी बत्तीसी निकल आएगी...."
"मुझे तुमसे कोई बात नही करनी..."
"वाह बेटा, जब मन किया तब कूद कर आ गयी और जब मन किया तो चली गयी....भूल मत कि मैं वही अरमान हूँ ,जो....."
"जो इस कॉलेज का सबसे बड़ा चूतिया है...."मेरी आवाज़ को काट-ते हुए एक तीसरी आवाज़ आई और जब निगाहे उस आवाज़ की तरफ गयी तो गौतम के दर्शन हुए.....
"तू...निकल ले बेटा, पिछली बार की मार भूल गया क्या..."
"नही भूला ,इसीलिए तो इतने दिन से एश के साथ कॉलेज आ रहा हूँ ,इसी मौके के इंतज़ार मे कि कब तू आज वाली हरक़त करे और मैं तुझ पर अपनी भडास निकाल सकूँ...."
"तू...मुझपर भडास निकालेगा."जबारपेली हँसते हुए मैं बोला"चल बे ,तुझ जैसे हज़ार भी आ जाए तो मेरा कुच्छ नही उखाड़ नही सकते...और मेरा मूड कही घूम गया तो यही पर लिटा-लिटा कर मारूँगा,इसलिए थोड़ी देर के लिए चल फुट ले..."
"ले नही जाता यहाँ से ,बोल क्या करेगा...."मेरे पास आते हुए गौतम बोला...
"गौतम...तुम इससे लड़ क्यूँ रहे हो.इसे सच बताओ और इस कहानी को यही ख़त्म करो.."गौतम का हाथ पकड़ कर एश बोली...
"मेरी तरह शायद इसे भी पता है कि यदि तू मुझसे भिड़ा तो दुर्गति तेरी ही होनी है ,इसीलिए इसने तुझे रोक लिया...."फिर एश की तरफ देख कर मैं बोला"यदि तूने ऐसे हाथ पकड़ कर मुझे बुरे काम करने से रोकने की कोशिश की होती तो कसम से मैं आज वो नही होता ,जो मैं हूँ...खैर कोई बात नही ,जो हुआ उसका गम तुम जैसे छोटे और नीच लोग मनाते है ,मैं तो युगपुरुष हूँ...मुझे इससे क्या मतलब कि कल क्या हुआ और कल क्या होगा....इसलिए अब अपना मुँह फाडो और बकना चालू करो.5 मिनिट का टाइम है तुम दोनो के पास, वो सब कुच्छ याद करने के लिए जो तुम कहने वाले हो..."
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