RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"इधर क्या अब मुझसे लड़ने आया है,चल भाग यहाँ से..."घूरते हुए मैने कहा
"क्या अरमान भाई...मैने सोचा था कि आज रात आपके हॉस्टिल मे रुकुंगा और सुबह निकल लूँगा...."
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पहले मैने सोचा कि उन सबको लात मार के भगा दूं,लेकिन फिर ख़याल आया कि ,अपने ही लौन्डे है..लड़ाई झगड़े मे साथ देते रहते है,इसलिए इनकी मदद करना तो मेरा फ़र्ज़ बनता है
"एक शर्त पर मैं तुम सबको यहाँ रुकने के लिए कहूँगा...आक्च्युयली एक नही दो शर्त पर...मतलब कि तीन शर्त पर..."
"अरे आप हुक़ुम करो..आपके लिए तो जान भी हाज़िर है ,यहाँ तक कि मेरे जेब मे पड़ी राजश्री के 10 पॅकेट आपको दे दूं...बस माँग मत लेना "
"ना तो मुझे तेरी राजश्री चाहिए और ना ही तेरी जान....मेरी पहली शर्त ये है तुम मे से कोई भी बिस्तर पर नही सोएगा..."
"क़बूल है..."वो सब एक साथ चिल्लाए
"मेरी सिगरेट कोई नही पिएगा..."
"क़बूल है..."वो सब एक बार फिर एक साथ चिल्लाए...
"और कोई मूठ नही मारेगा ,वरना लंड काट के मुँह मे दे दूँगा..."
"अरे आप टेन्षन नक्को करो, मुझे आपकी सब शर्त मंज़ूर है..."ज़मीन से खड़ा होकर राजश्री पांडे मेरे पास आया और मेरे कंधे पर हाथ रखकर अपना सीना ठोकते हुए बोला"देखो अरमान भाई..मैं एक किसान का बेटा हूँ, इसलिए ज़मीन मे सोने मे मुझे कोई दिक्कत नही होगी और मेरे पास ऑलरेडी सिगरेट की दो-दो पॅकेट है...एक आप भी रख लो..."बोलते हुए उसने सिगरेट की एक पॅकेट निकाली और मेरे जेब मे डाल दी...
"थॅंक्स और तीसरी शर्त याद है ना..."
"बिल्कुल याद है, आप फ़िकरा मत करो अरमान भाई...हम लोगो ने इतनी दारू चढ़ा रखी है कि मूठ मारना तो दूर की बात है,यदि इस वक़्त दीपिका मॅम अपना दूध मेरे हाथ मे थमा दे तो मैं उसे ना दबा पाऊ..."उसके बाद राजश्री पांडे ने मेरे गाल को चूमा और गुड नाइट बोलकर वही ज़मीन पर अपने दोस्तो के साथ पलट हो गया....
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"साला गे..."मेरे गाल पर जिस जगह राजश्री पांडे ने किस किया था उसे सॉफ करते हुए मैने कहा"ये लौंडा भी दीपिका पे फिदा है....और तभी मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ मे कुच्छ आया...कुच्छ ऐसा जिससे ,मैं दीपिका का सारा गुरूर तोड़कर उसकी चूत मे डाल सकता था..."
दिमाग़ मे तुरंत एक सूनामी की लहर उठी और फिर शांत हो गयी. अभी-अभी मेरे अंदर आए सूनामी ने मुझे आने वाले दिनो मे क्या करना है,कैसे करना है...इसके सारे फॅक्ट्स समझा दिए थे. लेकिन मैं इस समय एक बार फिर खुद से जूझ रहा था और मेरे सामने एक बार फिर वही सवाल था कि...क्या मुझे ये करना चाहिए ?
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एक लड़की की खूबसूरती उसे तभी तक बचा सकती है जब तक उसकी वो खूबसूरती किसी के आँख मे खटक ना जाए क्यूंकी यदि ग़लती से भी उस लड़की की खूबसूरती नफ़रत मे बदल गयी तो फिर उसका खूबसूरत जिस्म भी बदसूरत शरीर लगने लगता है और ऐसा ही इस वक़्त मेरे साथ हो रहा था....चाहे पूरा जमाना दीपिका मॅम के लिए पागल हो लेकिन अब वो मेरे लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ एक बदसूरत सी घमंडी लड़की थी...जिससे मुझे बदला लेना था....मुझे अब उसकी ना ही वो छातियाँ आकरसीत लगती और ना ही उसका मॉडेल फिगर. दीपिका माँ अब मेरी आँखो मे खटक रही थी और उसका नामे जहाँ मे आते ही मैं गुस्से से तड़प उठता था...दिल करता था की अभी उस म्सी का बाल पकाडू और घसीट-घसीट कर उसकी जान ले लूँ....
जब मेरे दिल और दिमाग़ ने दीपिका मॅम से बदला लेने वाले मेरे आइडिया पर अपनी मुँहार लगा दी तो मुझे एक और लड़की का ख़याल आया...और ये लड़की जो अभी मेरे ख़यालो मे आई थी वो कोई और नही बल्कि वही लड़की थी जो अक्सर मेरे ख्वाबो मे भी मुझे दर्शन देती थी...बस फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि मेरे ख्वाब मे वो मेरे लिए आती थी लेकिन हक़ीक़त मे वो किसी और के लिए आती थी...फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि ख्वाब मे मैं जिस जुस्तजु के साथ उसके करीब होता था ,हक़ीक़त मे मैं इसके बिल्कुल उलट उसी जुस्तजु के साथ उससे बहुत दूर हो रहा था....
ऐसा नही है कि मैने उसे कभी भूलने की कोशिश नही की लेकिन जब भी ऐसा करने की सोची तभी दिल से आवाज़ आई कि एक बार कोशिश करने मे क्या जाता है...?
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कभी-कभी जब वो सपने मे आती और मेरे करीब बैठी रहती तो दिल करता कि मेरी कभी आँख ही ना खुले .कयि बार जब मैं सपना देख रहा होता था तो मुझे ना जाने कहाँ से मालूम चल जाता था कि ये हक़ीक़त नही बल्कि हक़ीक़त के दुनिया की एक झूठी परच्छाई है,जिसका हक़ीक़त की बाहरी दुनिया मे कोई वज़ूद नही है.....लेकिन फिर भी मैं दिल को समझाने मे नाकाम ही रहा.
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उस दिन मैं पूरी रात नही सोया, खिड़की के पास बिस्तर खिसककर सिगरेट के धुए से सारी रात अपने सीने को जलाता रहा..क्यूंकी उस वक़्त मेरे अंदर हज़ारो सवालो ने एक साथ दस्तक दे दी थी ,जिसका जवाब मैं ढूँढ रहा था....मैने एक और सिगरेट जलाई और फिर सोचने लगा एमटीएल भाई के बारे मे....
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ऐसा नही है कि इतने दिन बीत जाने के बाद मैं सीडार को भूल चुका हूँ...उसकी मौत की खबर अब भी मेरे कानो मे गूँजती है और जब भी ये खबर मेरे कानो मे गूँजती है तो सारी दुनिया को एक तरफ करके,सारे साइंटिस्ट्स के थियरीस ,प्रिन्सिपल्स की माँ-बहन एक करके मैं खुद को उसी जगह पाता हूँ जहाँ मुझे हॉस्पिटल मे ये खबर पता चली थी....सीडार भाई कयि सारे सवाल अपने पीछे छोड़ गये थे जिसका जवाब शायद मुझे कभी नही मिलने वाला था...लेकिन एक चीज़ जो मैने करने की ठानी थी वो ये कि सीडार के उस हॉस्टिल का रुतबा मैं कायम रखूँगा ,जिसमे उसने अपनी ज़िंदगी के सबसे अहम चार साल बिताए थे...ऐसा सोचना भले ही किसी को पागलपन लगे लेकिन मुझे इससे कोई फ़र्क नही पड़ता....इस वक़्त दिल कर रहा था कि सीडार भाई कहीं से...कही से भी बस एक बार लौट कर आ जाए ताकि मैं उनसे गले मिल सकूँ....दिल कर रहा था कि एक बार फिर मैं कोई ग़लती करूँ और सीडार मुझे डाँटदे और फिर कंधे मे हाथ रखकर समझाए कि"अरमान, ऐसा मत कर..."
लेकिन अब ये हो नही सकता था...क्यूंकी अब ना तो एमटीएल भाई कभी वापस आने वाले थे और ना ही उनको लेकर मेरे अरमान कभी पूरे होने वाले थे....
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रात से सुबह हुई ,लेकिन मैं पिछले कयि घंटो की तरह अब भी उसी खिड़की के पास बैठा अपने अतीत के कुच्छ पन्ने पलट रहा था और अपने ज़िंदगी के उन पॅलो को याद कर रहा था,जो अब कभी आने वाले नही थे.....सीडार को इस वक़्त याद करने की एक वजह शायद ये भी थी कि मुझे खिड़की से हॉस्टिल के बाहर रखी वो चेयर दिख रही थी...जिसपर बैठकर मैं सीडार से अक्सर बात किया करता था....
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"क्या सोच रेले हो अरमान भाई..."
"हुउऊउन्ण..."मैं जैसे झटके से होश मे आया...
"इतना चौक क्यूँ गये...मैं तो कल रात ही इधर आया था..."आँखे मलते हुए राजश्री पांडे बोला...
"कुच्छ नही,सीडार के बारे मे सोच रहा था...."
अबकी बार राजश्री पांडे कुच्छ नही बोला और अपने दोस्तो को उठाकर रूम से बाहर करने लगा....
"पांडे....सुन"जब वो वहाँ से जाने लगा तो मैने उसे आवाज़ दी"उस लड़के को जिसका चक्कर दीपिका मॅम के साथ चल रहा है ,उसे बोलना कि शाम को कॉलेज ख़तम होने के बाद मुझसे मिले..."
"बिल्कुल...मैं खुद उसे इधर लेके आउन्गा...."
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राजश्री पांडे और उसके दोस्तो के वहाँ से जाने के बाद मैं कुच्छ देर यूँ ही खुद से उलझता रहा और जब कॉलेज जाने का टाइम हुआ तो बढ़िया तैयार होकर हॉस्टिल से बाहर निकला....हॉस्टिल से कॉलेज जाते समय मुझे ऐसा लगा कि आज सूरज की रोशनी कुच्छ ज़्यादा ही है.आज कॉलेज की बिल्डिंग मुझे मेरे किसी बिच्छड़े हुए आशियाने की तरह लग रहा था,जहाँ मैं जल्द से जल्द पहुचना चाहता था और जैसे ही मैने कॉलेज के बौंड्री मे एंट्री मारी,सबकी नज़ारे मुझ पर आ टिकी...सभी स्टूडेंट्स अपने साथी स्टूडेंट्स से मेरे बारे मे खुसुर-फुसुर करने लगे...कुच्छ मेरे बॉडी को भी देख रहे थे ,कुच्छ मेरे शरीर पर ज़ख़्म के निशान ढूँढ रहे थे....उन सबको को इग्नोर मारते हुए मैं सीधे ,चुप-चाप कॉलेज मे घुसा और वहाँ की हालत भी बाहर की तरह ही थी...मतलब की सब मुझे देखते और फिर आपस मे बात करते...जब मैं कॉरिडर मे चलते हुए आगे बढ़ रहा था तो मेरे आयेज जो स्टूडेंट्स थे वो मुझे देखते ही साइड होते जा रहे थे...मुझे पहले से ही अंदाज़ा था कि मेरे कॉलेज आने पर कुच्छ-कुच्छ ऐसा ही महॉल होगा...
आज ना जाने कितने दिनो बाद मैं राइट टाइम पर कॉलेज पहुचा था.मैने क्लास मे बॅग रखा तो मुझे चाहने वालो ने मेरा हाल-चाल पुछा और कुच्छ लड़के अपना रोला जमाने के लिए मुझे अपने साथ क्लास से बाहर आने के लिए कहा.
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"अरमान...वो देख एश ,गौतम और उसकी वो बहन...जिसके चक्कर मे इतना बड़ा लफडा हुआ था..."एक लौन्डे ने मुझे इशारा करते हुए धीरे से कहा...
ये सुनकर मैं शुरू मे घबरा गया और सोचा कि तुरंत वहाँ से क्लास के अंदर चला जाउ...मेरे दिल ने,जो कि एश से बहुत प्यार करता था..उसने कहा कि मुझे अभी ही गौतम से उस दिन के लिए माफी माँग लेनी चाहिए ताकि एश मुझसे फिर से बात करने लगे, मैने ऐसा करने के लिए सोचा भी लेकिन तभी मेरे अहंकार ने मुझे ऐसा करने से सॉफ मना कर दिया...
"सही है...यदि मैने गौतम से माफी माँगी तो थूक कर चाटने वाली बात हो जाएगी और जब मैने दीपिका मॅम की गुलाबी चूत नही चाटी तो फिर ये क्यूँ करो...ब्लॅक होल मे जाए एश और मेरे हाथ से मार खाने वाला उसका बाय्फ्रेंड..."उनको अपनी तरफ आता हुआ देख मैने गॉगल्स निकाला और पहन कर वहाँ की दीवार से एक हाथ टीकाया....
गौतम की हालत देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो आज ही कॉलेज मे आया है या फिर पिछले दो-तीन दिन से ही कॉलेज आ रहा होगा....वो एक पैर से लंगड़ा रहा था और एश के सहारे चल रहा था...
"अब ये बीसी गौतम मुझे यहाँ देखकर फिर से लफडा करेगा...क्या मुझे अभी क्लास के अंदर चले जाना चाहिए...."मैने खुद से पुछा लेकिन जवाब एक बार फिर मेरे अहंकार ने दिया"यदि तू गौतम को देखकर क्लास के अंदर गया तो ये सारे लौन्डे यही समझेंगे कि तेरी गौतम को देखकर फॅट गयी है और फिर इज़्ज़त डाउन हो जाएगी सोच ले..."
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आख़िरकार मैने वही दीवार पर एक हाथ टिका कर खड़े रहने का फ़ैसला किया और च्विन्गम मुँह मे ना होते हुए भी बड़े ताव से ऐसे मुँह चला रहा था जैसे 5-6 चिनगम मेरे मुँह मे एक साथ हो...
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"सुन बे..."जब वो तीनो मेरे सामने आए तो मैने दूसरी तरफ खड़े अपने क्लास के एक लड़के से तेज़ आवाज़ मे कहा"उस लड़के को होश आ गया क्या ,जिसे मैने कल रात सर पर रोड से मारा था या अभी भी कोमा मे है...."
पता नही मुझे अचानक क्या हुआ,जो मैं ये सब गौतम के मुँह पर बोल गया,क्यूंकी अंदर से तो मेरी भी बुरी तरह से फटी हुई थी...मेरी बात सुनकर गौतम एक पल के लिए जहाँ था वही रुक गया लेकिन अगले ही पल वो वहाँ से आगे बढ़ने लगा....मैने जिस लड़के को बलि का बकरा बनाकर आवाज़ दिया था वो अपना मुँह फाडे मुझे देख रहा था कि ये मैने उससे क्या कह दिया....जब गौतम ,एश और दिव्या के साथ आगे बढ़ गया तो एक बार फिर मैने जले पर नमक छिड़का और बलि का बकरा एक बार फिर से उसी लड़के को बनाया
"ओये उसकी उस आइटम का क्या हुआ, जिसका बाप बेदम रहीस है और जो कार से एक और आइटम के साथ आती है...."
"क्या बोल रहा है भाई,मरवाएगा क्या..."उस बलि के बकरे ने रोनी सी सूरत बनाई लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था,अबकी बार मैने गौतम के ज़ख़्म पर सीधे नमक की एक बोरी डालते हुए बोला
"यदि वो लड़का,जिसके सर पर मैने रोड मारी थी,वो तुझे दिखे तो उससे बोलना कि मेरे सामने औकात मे रहे वरना एक बार फिर से ठोकुन्गा..."
गौतम इस बार भी चुप रहा लेकिन उसे सहारा देने वाली एसा पीछे पलट कर अपने मन मे मुझे गालियाँ देने लगी और मैं आँखो मे काला चश्मा लगाए उसको देखकर मुस्कुराता रहा जिससे वो और जल-भुन गयी...जिस लड़के को मैने तीन बार बलि का बकरा बनाया था वो इस समय वहाँ से भाग चुका था.
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मुझे आज थोड़ा गौतम के बर्ताव पर ताज्जुब हुआ क्यूंकी वो आज मेरे मुँह से इतनी सारी बाते सुनकर भी चुप चाप रहा था....लेकिन कब तक ? क्यूंकी इतना तो मैं जानता था कि ना तो वो मेरे सामने झुकेगा और मेरे झुकने का तो सवाल ही पैदा नही होता....इसलिए मैने उसी वक़्त आँखो मे काला चश्मा लगाए ये अंदाज़ा लगा लिया था कि हम दोनो यदि कभी भूले से भी एक-दूसरे के आमने सामने आए तो अंजाम बहुत ही बुरा होगा,क्यूंकी अबकी बार गौतम का गुंडा बाप सीधे मेरी जान लेगा लेकिन मैं इतना चोदु नही जो पिछली बार की तरह गौतम के बाप के चंगुल मे फँस जाउन्गा....कुल-मिलकर जो भी होने वाला था बहुत बुरा होने वाला था.
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"अरमान तुम..."
"हां मैं, "विभा को देखकर मैने कहा...
"हाउ आर यू,..."
"एक दम झक्कास और तू..."
"फाइन...और ज़रा ढंग से पेश आओ ,ये कॉलेज है इसलिए गॉगल्स उतारो और चिनगम थूक कर क्लास के अंदर आओ..."
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आज बहुत दिन बाद कॉलेज आया था इसलिए क्लास मे आज थोड़ा शांत था...मेरी शांत रहने की एक और वजह शायद ये भी थी कि आज मेरे खास दोस्तो मे से कोई भी कॉलेज मे नही था...इसलिए यदि मैं बक्चोदि करता भी तो किससे करता...मैने अपने आस-पास बैठे लड़को से कयि बार बात करने की कोशिश भी की लेकिन मैं जिससे भी बात करता वो मेरी बात को सुनकर अनसुना कर देता और बोलता कि उसे क्लास से बाहर निकाल दिया जाएगा......
"साले कितने बोरिंग हो बीसी तुम लोग..."जब रिसेस हुआ तो अंगड़ाई मारते हुए मैं बोला"इससे अच्छा तो मैं लास्ट बेंच पर अकेले ही बैठू...."
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रिसेस के बाद फिर क्लास चालू हुई और अब मैं लास्ट बेंच पर अकेला बैठा हुआ था...मैने बहुत प्रयास किया कि मुझे नींद ना आए लेकिन टीचर्स के लेक्चर्स मुझे किसी लॉरी की तरह लग रहे थे और रिसेस के बाद दूसरे पीरियड मे ही मेरी आँखे भारी होने लगी....मैने सामने डेस्क पर अपना बॅग रखा और फिर बाग पर सर रखकर सो गया....
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"उठो,क्लास मे ताला लगाना है..."किसी ने मुझे ज़ोर से हिलाते हुए कहा...
"क्लास के बाकी लोग कहाँ गये..."आँखे मलते हुए मैने पीयान से पुछा...
इस समय पूरी क्लास मे मेरे और उस पीयान के सिवा कोई और नही था,इसलिए मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ
"छुट्टी हो गयी है,सब अपने घर को निकल गये अब तुम भी इधर से निकलो ,मुझे ताला लगाना है..."
"ये कैसे हो गया..."तुरंत खड़े होकर मैने अपना बॅग टांगा और बड़बड़ाते हुए क्लास से बाहर आया...
"बीसी, सालो ने मुझे जगाया तक नही और टीचर्स कैसे झन्डू थे जो उन्होने मुझे कुच्छ कहा तक नही...ज़रूर सालो की फॅट गयी होगी कि कही मुझे जगाने पर मैं उन्हे ना पेल दूं. "
टाइम देखने के लिए मैने अपने जेब से मोबाइल निकलना चाहा तो मोबाइल मेरे जेब से गायब था , तब मुझे याद आया कि मोबाइल तो मेरे डेस्क पर ही छूट गया है....
"सुनो भैया, क्लास दोबारा खोलना तो ,मेरा मोबाइल अंदर छूट गया है..."
उस पीयान को आवाज़ देकर मैने कहा लेकिन वो पीयान अपनी पीठ मेरी तरफ किए बाहर कॉरिडर मे झाड़ू लगा रहा था....उसके बाल अचानक से बहुत लंबे हो गये और वो पीयान मेरी तरफ झाड़ू लेकर घूमा तो मेरा दिल जैसे एक पल के लिए रुक ही गया...क्यूंकी उस पीयान की शकल आतिन्द्र की शकल मे बदल चुकी थी....
"बीसी, मैं फिर से सपना देख रहा हूँ..."मैने कहना चाहा लेकिन पता नही क्यूँ आवाज़ गले से बाहर ही नही निकली...
मैने तुरंत वहाँ से भागने का सोचा लेकिन आतिन्द्र को वहाँ देखकर पैर ज़मीन मे ऐसे चिपक गये कि वहाँ से भागना तो दूर एक कदम आगे-पीछे भी नही हो रहे थे और इधर आतिन्द्र अपने लंबे बालो की लटो को पीछे करते हुए एक डरावनी मुस्कान के साथ मेरे तरफ बढ़ रहा था.
मैं जानता था कि आतिन्द्र का भूत सिर्फ़ मेरे दिमाग़ मे है और हक़ीक़त से इसका कोई वास्ता नही है...लेकिन एक सच ये भी था कि आतिन्द्र को सपने मे देखकर मेरी सिट्टी-पिटी गुम हो जाती थी...साला कभी कुच्छ समझ ही नही आता था कि मैं क्या करूँ ? कैसे मेरे दिमाग़ मे बैठे आतिन्द्र से पीछा छुड़ाऊ...इस वक़्त सपना भले ही मेरा था लेकिन राज़ आतिन्द्र कर रहा था.....
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