Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
08-18-2019, 02:01 PM,
#84
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"शायद हड्डियो को पुरानी जगह पर फिट होने मे कुच्छ टाइम लगे..."

"मतलब कि मुझे कुच्छ दिन और यहाँ रुकना पड़ेगा...."रिपोर्ट को एक किनारे रखते हुए भैया ने कहा...

"अरे नही...आप क्यूँ रुकोगे, अब तो मैं नॉर्मल हूँ,अब आप घर जाओ...थोड़े दिन बाद मैं भी हॉस्टिल से चला जाउन्गा...."

"स्योर..."

"हां...आप जाओ"

"ठीक है तो मैं आज ही रात की ट्रेन से निकलता हूँ..."अपनी घड़ी पर टाइम देखते हुए उन्होने कहा"अरुण को मैं कॉल कर दूँगा ,वो कल आ जाएगा...."

"वो तो क्या ,उसका बाप भी आएगा..."

"क्या..."

"कुच्छ नही...आप जाने की तैयारी करो "
.
विपिन भैया को घर वापस भेजने के लिए मैं इतना उतावला इसलिए था क्यूंकी उनके यहाँ रहते तक मैं वो नही कर पाता जो मैं अब करने जा रहा था...जो मैं अब करने वाला था उसके लिए बड़े भैया का इस शहर से जाना बहुत ज़रूरी था और इसीलिए मैने बहुत ज़ोर देकर उन्हे जाने के लिए कहा...

दूसरे दिन अरुण मुझ से मिलने आया और आते ही उसने मेरे बेड के बगल मे रखी टेबल के उपर देखा कि कुच्छ खाने-पीने का समान रखा है या नही और जब उसे कुच्छ नही मिला तो मेरे सर के छोटे-छोटे बाल को खींच कर बोला...
"पूरा खा गया टकले,कुच्छ तो मेरे लिए छोड़ा होता...."

"अभी लंच आया नही ,आता होगा थोड़ी देर मे...."

"चल सही है...वैसे भी मुझे इस वक़्त सॉलिड भूख लग रही है..."

"बाइक पर आया है क्या..."

"और नही तो क्या हॉस्टिल से 20 किलोमेटेर पैदल आउन्गा...टकले तेरा दिमाग़ आजकल काम नही कर रहा है क्या..."

"गुड, मैं बहुत दिनो से इस मौके की तालश मे था..."एक पल मे कूदकर खड़ा होते हुए मैने कहा...

"बीसी...ये क्या था बे...कल तक तो तू ढंग से चल भी नही पा रहा था और आज एक दम से कूद कर खड़ा हो गया...."

"वो सब तू अभी नही समझेगा.."हॉस्पिटल द्वारा मुझे दी गयी मरीज़ो की ड्रेस उतारते हुए मैने वो कपड़े पहने जो मेरा भाई मुझे देकर गया था....

"साला कल तो एक चम्मच पकड़ते वक़्त तू दर्द से कराह रहा था और आज तो तुझे देखकर लगता है कि अभिच अपने हाथो से मूठ मार लेगा... "

"वो मैं नही कर सकता..."

"क्यूँ..."

"क्यूंकी कल रात ही मैने मूठ मारा है...ला बाइक की चाभी दे..."

"चूतिया है क्या...अगर कोई तुझे देखने आ गया तो..."

"अबे ये आइसीयू नही है जहाँ हर 15 मिनिट्स मे मुझे देखने कोई ना कोई आता रहेगा...इतने दिन बेड पर झूठी आक्टिंग करते हुए मैने जो नोटीस किया है उसके अनुसार अभी एक बार लंच सर्व करने के लिए हॉस्पिटल वाले आएँगे और फिर लंच देने के एक घंटे बाद ये देखने आएँगे कि मैं गोली,दवाई सही टाइम पर ले ली या नही....तो जब वो खाना देने आएँगे तो उनसे कहना कि मैं बाथरूम गया हूँ और जब वो एक घंटे बाद दोबारा आएँगे तो ये बोलना कि मैं फिर से बाथरूम गया हुआ हूँ....समझा"

"कुच्छ नही समझा, सीधे से लेट जा ...और वैसे तू कहाँ जाने की प्लॅनिंग कर रहा है..."मेरे हाथ से चाभी छीनते हुए अरुण ने पुछा....

"यदि मैने तुझे ये बता दिया तो तू मुझे जाने नही देगा और यदि तूने बिना सवाल-जवाब किए मुझे जाने दिया तो तुझे मैं वापस लौटने पर बहुत बड़ी खुशख़बरी दूँगा....सोच ले"बेड पर वापस बैठकर मैने कहा...
.
अरुण कुच्छ देर तक किसी सोच मे डूबा रहा और फिर मुझे बाइक की चाभी पकड़ाते हुए बोला"जहाँ जाएगा,वहाँ से खाना खाकर आना...क्यूंकी तेरा लंच तो मैं सफ़ा चट करने वाला हूँ..."

"ओके...अपना मोबाइल, वॉलेट भी दे.."

"वो क्यूँ..."तीसरी बार चौक कर अरुण ने पुछा...

"तेरे लिए लड़की जुगाड़ करने जा रहा हूँ...अब जल्दी से वॉलेट और मोबाइल निकल...."
.
हॉस्पिटल से बाहर आकर मैं जब पार्किंग की तरफ बढ़ा तब मुझे ध्यान आया कि मैने अरुण से बाइक का नंबर तो पुछा ही नही और मोबाइल अपने साथ ले आया हूँ तो अब उसे कॉल भी नही कर सकता....

"शायद उसने पार्किंग की स्लिप अपने पर्स मे डाली हो... "क्या करूँ ,क्या ना करूँ की उस अजीब सी उलझन मे फँसे मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ की बत्ती जैसे एका एक जली और तुरंत अरुण का वॉलेट निकाल कर चेक किया ...जिसमे मुझे अरुण की बाइक की स्लिप मिल गयी और मैं बाइक लेकर सीधे हॉस्पिटल से बाहर निकला

मेरा पहला टारगेट था नौशाद,क्यूंकी नौशाद को सबक सिखाने के लिए आज से अच्छा मौका मुझे कभी नही मिलता और इस वक़्त सारी सिचुयेशन ,सारी कंडीशन सेम वैसी ही थी जैसा कि मैने सोचा था...यहाँ तक कि अट्मॉस्फियरिक टेम्परेचर भी
हॉस्टिल की तरफ जाते वक़्त मैं उसी मेडिकल स्टोर के पास रुका,जहाँ से मैने दीपिका के लिए कॉंडम खरीदा था

"एक पॅड देना...."मेडिकल स्टोर वाले लड़के से मैने कहा

"कौन सा दूं, विस्पर या फिर स्टायफ्री...."

विस्पर और स्टायफ्री का नाम जब उस मेडिकल स्टोर वाले लड़के ने लिया तो मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ लेकिन मैं अपनी ग़लती सुधारता उससे पहले ही वो मेडिकल स्टोर वाला लड़का बोल पड़ा...

"आइ नो..गर्लफ्रेंड के लिए चाहिए ना...भाई एक सजेशन है ,फोन करके पुच्छ ले उससे कि उसकी पसंद क्या है मतलब कि किस ब्रांड का पॅड वो यूज़ करती है...."

उसके ऐसा बोलने पर मैने अपनी आँखे छोटी की और उसे कुच्छ सेकेंड्स तक घूरता रहा.दिल किया कि साले का सर पकड़ कर सारे बाल नोच डालु और अपनी तरह टकला बना दूं...दिल किया कि सीधे उसका सर पकडू और बाहर खींचकर उसपर लातों की बारिश कर दूं....लेकिन मैने ऐसा नही किया क्यूंकी मुझे अपनी एनर्जी नौशाद के लिए बचा कर रखनी थी...

"गॉज़ पॅड देना बोले तो पट्टी और रूई भी देना...."

जब मैने उससे लड़कियो वाले पॅड की जगह दूसरा पॅड माँगा तो अबकी बार उसने अपनी आखे छोटी कर ली और कुच्छ सेकेंड्स तक मुझे घूरता रहा....

"तू समान देगा या मैं दूसरे दुकान से जाकर ले लूँ..."

"देता हूँ...देता हूँ..."
.
उस मेडिकल स्टोर से निकल कर मैं फिर से हॉस्टिल की तरफ बढ़ने लगा और जैसे ही हॉस्टिल के करीब पहुचा तो मैने बाइक एक साइड रोक दी और अरुण का मोबाइल निकाल कर ,अमर सर को कॉल किया...

"मैं आ गया हूँ..."मैने कहा

"कहाँ है..."

"यही एस.पी. के बंगलों से थोड़ी दूर खड़ा हूँ..."

"ठीक है ,वही रुक मैं आता हूँ..."बोलकर अमर सर ने फोन काट दिया...
.
वैसे तो मैं जो भी प्लान सोचता हूँ ,किसी को लेकर मैं जो भी स्ट्रॅटजी बनाता हूँ,उसकी खबर शुरुआत मे सिर्फ़ मुझे और मेरे दिमाग़ को होती है...लेकिन इस बार मेरे स्ट्रॅटजी ,मेरे प्लान की खबर अमर सर को भी थी...क्यूंकी वो इस प्लान मे बहुत इंपॉर्टेंट रोल प्ले कर रहे थे....बड़े भैया के मोबाइल से अक्सर रात को 12 बजे के बाद मैं अमर सर को कॉल करके उनसे नौशाद की खबर लेता रहता था और दो दिन पहले ही उन्होने मुझे बताया था कि इन दिनो मिड टर्म चल रहे है और नौशाद मिड टर्म देने ना जाकर पूरे दिन हॉस्टिल मे रहता है...यही सबसे सही मौका था क्यूंकी अकॉरडिंग टू माइ प्लान, मैने नौशाद को हॉस्टिल मे ठोका...ये बात जितने कम लोगो को मालूम चले ये उतना ही मेरे लिए सही था.जब मुझे सड़क के किनारे बाइक खड़े किए हुए कुच्छ देर बीत गई तो मैने सामने की तरफ नज़र डाली और अमर सर मुझे दूर, आते हुए दिख गये...

"क्या हाल है ,अरमान सर...बहुत दिन लगा दिए हॉस्टिल आने मे..."

"हॉस्पिटल की नर्सस को मुझसे प्यार हो गया है,साली डिसचार्ज ही नही करती...."मुस्कुराते हुए मैने कहा...

"ये ले खून की डिब्बी..."एक छ्होटी से डिब्बी मेरे हाथ मे पकड़ाते हुए अमर सर ने कहा"अब जा और छोड़ना मत साले को...*** चोद देना उस बीसी ,एमकेएल की....बेस्ट ऑफ लक..."

"लक तो मेरे ही हाथ मे है इसलिए यदि बोलना है तो ऑल दा बेस्ट बोलो..."

"ठीक है भाई,जैसी तेरी मर्ज़ी...ऑल दा बेस्ट...और सुन"

"टेलो..."

"सिर्फ़ आधा घंटा है तेरे पास क्यूंकी उसके बाद लड़के कॉलेज से हॉस्टिल आना शुरू कर देंगे..."

"डॉन'ट वरी..."बाइक स्टार्ट करके मैने स्कार्फ से अपना फेस बाँधा और बोला"मेरे पास जुगाड़ है..."
.
कॉलेज मे सीनियर्स के मिड टर्म चल रहे थे ,इसलिए हॉस्टिल लगभग खाली ही था...लेकिन कुच्छ लौन्डे ऐसे होते है जिन्हे कॉलेज के मिड टर्म से कोई फ़र्क नही पड़ता और वो पूरे दिन हॉस्टिल मे रहकर खटिया तोड़ते रहते है.नौशाद उनमे से एक था. और भी कयि लड़के थे जो कॉलेज ना जाकर हॉस्टिल मे मौज़ूद थे...जिसमे से मेरा दोस्त सौरभ भी एक था और उसे इसकी भी जानकारी थी कि मैं आज यहाँ आने वाला हूँ....
.
आज महीनो बाद हॉस्टिल को देखकर सीडार की याद खुद ब खुद आ गयी लेकिन मैने सीडार की यादों को अपने जहाँ से निकाल कर बाहर फेका क्यूंकी ये वक़्त किसी की याद मे दुखी होने का नही था और जब मैं इसमे कामयाब हुआ यानी कि खुद से सीडार की यादों को दूर करने के बाद मैने अपने फेस को स्कार्फ से बाँधे हुए अपने रूम की तरफ बढ़ा,जहाँ मेरा खास दोस्त सौरभ, मेरे दूसरे खास दोस्त सुलभ के साथ बैठा तब से मेरा इंतज़ार कर रहा था,जब से मैने उन्हे कॉल करके बताया था कि मैं हॉस्टिल आ रहा हूँ.....जब मैं अपने रूम की तरफ जा रहा था तो मुझे हॉस्टिल मे रहने वाले कुच्छ लड़को ने देखा लेकिन वो इतने जल्दी मे थे कि मुझे पहचान तक नही पाए..मुझे ना पहचान पाने की एक वजह शायद ये भी हो सकती है कि मैने उस वक़्त अपने चेहरे और सर को स्कार्फ से बँधा हुआ था....


अपने रूम की तरफ जाते हुए मैने ये सोचा था कि जाकर उन दोनो कामीनो से मैं गले मिलूँगा जिसके बाद दोनो शुरू मे मेरा हाल पुछेन्गे और फिर मेरे सर पर हाथ फिरकर मुझे टकलू-टकलू कहेंगे....लेकिन अंदर जाकर ना तो मैं उनसे गले मिला और ना ही उनका हाल पुछा....

"साले ,तू मेरे बिस्तर पर लेटकर मूठ मार मार रहा है उठ भोसडी के वहाँ से..."

मेरे अचानक रूम के अंदर आने से और मेरी तेज़ आवाज़ के कारण सौरभ बौखला गया और जल्दी से अपने पैंट को,जो कि घुटनो तक खिसक गया था,उसे कमर के उपर लाते हुए मेरी तरफ बढ़ा...

"कैसा है अरमान..."अपना एक हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए सौरभ ने मेरा हाल पुछा....

"पीछे हट और लवडे मुझे छुना मत...साला जिस हाथ से मूठ मारता है उसी हाथ से हाथ मिलाता है..."अपने बिस्तर की बेडशीट को किनारे से पकड़ कर मैने खींचा और उसकी गठरी बनाकर सौरभ के मुँह पर दे मारा"बेटा इसे धो देना और सुलभ कहा है..."

"वो बाथरूम मे कर रहा है "

"वेरी गुड, लवडा मैं यहाँ इतने बड़े मिशन मे निकला हूँ और तुम दोनो यहाँ ये सब कर रहे हो...."

सौरभ को मैने बहुत सुनाया और जब सुलभ बाथरूम को स्पर्म डोनेट करके रूम मे आया तो मैने उसे भी बहुत गाली बाकी और फिर काम की बात करने लगे...

"नौशाद कहाँ है इस वक़्त..."उसका नाम लेते ही मेरा खून खौलने लगा ,क्यूंकी अब मुझे वो सब कुछ याद आने लगा था...जिसकी वजह से मैं 3 महीने से अधिक हॉस्पिटल मे पड़ा रहा था...उस दिन मुझे जितने भी ज़ख़्म मिले थे वो अब एक-एक करके हरे होते जा रहे थे....जब मेरे सारे ज़ख़्म एक-एक करके हरे हो रहे थे तो उसी वक़्त सौरभ ने मुझे सर्क्युलर शेप का लोहे का एक टुकड़ा दिया

"ये कहाँ से लाया ,मैने तो ड्यूस बॉल माँगा था..."

"कॉलेज के वर्कशॉप से चोरी कर लिया और वैसे भी ये ड्यूस बॉल से ज़्यादा हार्ड और भारी है...जिसको भी पड़ेगा उसका सर फॅट जाएगा..."

"ठीक है"सौरभ के हाथ से मैने बॉल ली...बॉल सच मे हद से ज़्यादा भारी थी...बॉल को अपने हाथो मे लेकर मैने सौरभ से रोड के बारे मे पुछा...

"रोड का जुगाड़ नही हो पाया ,लेकिन हॉकी स्टिक दरवाजे के पीछे छुपा दी है...."

"चल कोई बात नही..."रूम के बाहर आते हुए मैं बोला"और अपनी आँखे खुली रखना और जैसे ही नौशाद बाथरूम मे घुसे ,काम मे लग जाना..."
.
सौरभ और सुलभ को हिदायत देने के बाद मैं उस फ्लोर के बाथरूम की तरफ बढ़ा...नौशाद का रूम बाथरूम के बगल मे था इसलिए वहाँ से गुज़रते वक़्त मैने नौशाद के रूम मे नज़र डाली तो देखा कि वो लोग दिन दहाड़े दारू पी रहे थे....यानी कि मेरा काम अब और भी आसान होने वाला था...

मैं बाथरूम के अंदर गया और दरवाजे की ओट मे खड़ा होकर अपने जेब से खून की डिब्बी निकाली और उसे रूई पर डालकर मैने रूई को अच्छी तरह से खून मे भिगोया और अपने दाहिने हाथ मे खून से सनी रूई को रखकर उसपर पट्टी बाँध दिया....अब मुझे इंतज़ार था कि कब नौशाद बाथरूम मे आए और मैं उसके सर पर लोहे की ये बॉल सीधे फेक कर मारू...लेकिन उसी वक़्त मेरे दिमाग़ मे ख़यालात कौंधा कि...कही इतने भारी वजन के बॉल से नौशाद की मौत ना हो जाए.....

मैने उस लोहे की बॉल को अपने दोनो हाथो से उछाला तभी अचानक मुझे बॅस्केटबॉल की याद आ गयी और मैने सामने वाली दीवार पर खून से एक गोला बनाया और खून से बने उस गोले के अंदर बॉल को फेकने लगा...मेरा निशाना अब भी पहले की तरह अचूक था ये जानकार मुझे थोड़ा प्राउड फील हुआ...नौशाद का इंतज़ार करते हुए जब मैं बॉल को खून से बने उस गोले पर निशाना साध रहा था तो मुझे वो दिन याद आ रहा था ,जब मुझे दीपिका मॅम ने बुरी तरह उन गुन्डो के बीच फँसा दिया था...मुझे वो पल याद आ रहा था जब नौशाद को मैने कॉल किया था और उसने मुझे "चूतिया" कहकर फोन रख दिया था.....उस निशान के अंदर बॉल को बार-बार डालते हुए मैं अमर सर के बारे मे भी सोच रहा था, जो एक समय नौशाद के खास दोस्तो मे से थे लेकिन जब से मैने उन्हे ये बताया था कि उस दिन मेरी जो हालत हुई उसका ज़िम्मेदार नौशाद है तो उनका चेहरा तमतमा उठा था और उन्होने मुझसे कहा कि "वो अभिच हॉस्टिल जाकर उस साले ,एमसी नौशाद को ज़िंदा दफ़ना देंगे...."

उनके उस दिन के अंग्री यंग मॅन रूप को देखकर मैं डर गया था ,क्यूंकी अमर सर विदाउट एनी प्लान ,नौशाद पर अटॅक कर देते और बाद मे फस जाते...जो मैं नही चाहता था....उन्हे उस दिन रोकने की एक और वजह ये भी थी मैं नौशाद को अपने हाथो से लाल करना चाहता था....
.
जब भी कोई दोस्त,दोस्ती...फ्रेंड ,फ्रेंडशिप के बारे मे बात करता है तो मेरी सोच अरुण,सौरभ,सुलभ से शुरू होकर इन्ही तीनो पर ख़तम हो जाती है और जब भी कोई अपने दोस्त की बात मेरे सामने करता है तो मैं उनके उस दोस्त को अपने दोस्तो से कंपेर करता हूँ, मुझे ऐसा लगता है जैसे कि उसके दोस्त भी अरुण,सुलभ और सौरभ की तरह होंगे...इसीलिए जब मुझे नौशाद और अमर सिर की दोस्ती के बारे मे पता चला तो मैं कुच्छ देर के लिए थोड़ा मुश्किल मे पड़ गया था कि कही अमर ,नौशाद का साथ ना दे...लेकिन हक़ीक़त मेरी शंका के विपरीत थी....उस दिन हॉस्पिटल मे जब मेरे एक हाथ से प्लास्टर उतारा गया था और अमर सर मुझसे मिलने आए थे तो उन्होने कहा था कि "अरमान...नौशाद बहुत सेल्फिश है मौका पड़ने पर वो मुझे भी इस्तेमाल करके कॉंडम की तरह फेक सकता है...इसलिए मैं तेरे साथ हूँ...."
.
"ये साले सौरभ और सुलभ ने नौशाद को इधर नही भेजा...कुत्तो कर क्या रहे हो...भूल तो नही गये..."खुद से बाते करते हुए मैने अपने चेहरे से स्कार्फ उतारा और नौशाद का इंतज़ार करने लगा और आख़िरकार वो वक़्त भी आ गया ,जब नौशाद सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुए बाथरूम मे घुसा....वो एक गाना गुनगुनाते हुए सिगरेट पी रहा था....बाथरूम के अंदर आकर नौशाद एक तरफ अपने पैंट की ज़िप खोल कर खड़ा हो गया

"हाउ आर यू, नौशाद सर..."पट्टी का आख़िरी सिरा बाँधते हुए मैं बोला....

नौशाद ने पीछे मुड़कर मुझे देखा और मुझे देखते ही साले की पेशाब रुक गयी ,अपना मुँह फाड़कर वो मुझे देखने लगा....वो कभी मुझे देखता ,तो कभी मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को और बाद मे उसने बाथरूम के गेट की तरफ देखा...जो नौशाद के अंदर घुसने के तुरंत बाद ही बाहर से बंद हो चुका था...बाथरूम के दरवाजे के साथ-साथ ही उस फ्लोर मे जितने रूम थे उनके गेट को भी सौरभ और सुलभ ने बाहर से लॉक कर दिया था...ताकि जब बाथरूम मे धूम-धड़ाका हो तो कोई भी अपने रूम से निकल कर मुझे डिस्टर्ब ना करे....
.
" दरवाजा बाहर से बंद है एमसी...अब उधर क्या देख रहा है..."बॉल को ज़मीन पर पटक कर मैने पीछे दीवार के सहारे टिकाए हुए हॉकी स्टिक पर अपना हाथ जमाया लेकिन अपना हाथ पीछे ही रखा ताकि नौशाद को मालूम ना चले कि मेरे पास हॉकी स्टिक है...
.
"तू अरमान है ना..."अपनी आँखे मलते हुए नौशाद ने मुझसे पुछा...

"क्यूँ, गान्ड फट गयी ना नाम सुन कर..."

"बीसी...अरमान ही है तू, तू यहाँ क्या कर रहा है..."

"तेरी ***** चोदने आया हूँ...जा बुला कर ला..."

नौशाद का आधा होश दारू ने उड़ा रखा था और उसका आधा होश मेरी इस गाली ने उड़ा दिया....वो ये भूल गया कि जब मैं यहाँ आया हूँ तो कुच्छ तो सोचकर ही आया होऊँगा..

नौशाद मेरी गाली से एक दम तमतमा गया और मेरी तरफ दौड़ा और तभिच मैने अपने हाथो मे रखे हॉकी स्टिक को पकड़ा और अपनी तरफ आते हुए नौशाद के थोबडे पर धौंस दिया...जिसके बाद वो लड़खड़ा कर एक किनारे गिर पड़ा...लेकिन उस बीसी मे दम था,वो मुझे मारने के लिए तुरंत उसी वक़्त उठ खड़ा हुआ और मैं अबकी बार उसे हॉकी स्टिक से ठोकता उसके पहले ही उसने अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मेरी कमर को पकड़ कर मुझे दीवार की तरफ धक्का दे दिया जिसकी वजह से मेरा सर दीवार से टकरा गया....
.
"रुक लवडे अभी तुझे बताता हूँ..."नौशाद को गाली बकते हुए मैं दीवार से हटा ही था कि नौशाद ने फिर से अपना सर झुकाया और दोनो हाथो से मुझे दीवार पर एक और बार ज़ोर से धकेला ,जिसके कारण मेरा सर और पीठ एक बार फिर दीवार से बुरी तरह टकराया....

"बीसी...ये तो ववे खेल रहा है "
.
मैने जल्दी ही खुद को संभाल लिया और एक दम सीधे खड़ा हुआ...नौशाद ने इस बार भी वही पैतरा आजमाना चाहा लेकिन अबकी बार मैने साले के सर के बाल को ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी पूरी ताक़त से उखाड़ने लगा...मैने सोचा था कि अबकी बार नौशाद कामयाब नही होगा लेकिन उस साले के अंदर शराब पीने के बाद भी बहुत दम था उसने पहले मेरे दाहिने हाथ मे खून से सनी पट्टी को ये सोचकर ज़ोर से दबाया कि ,वहाँ सच मे कोई घाव है और उसके ज़ोर से दबाने के कारण मैं दर्द से कराहते हुए उसके सर के बाल छोड़ दूँगा...लेकिन हक़ीक़त तो ये थी कि ना तो मेरे दाहिने हाथ मे कोई घाव था और ना ही मैने उसका बाल छोड़ा...बल्कि और भी तेज़ी से उसके सर के बाल खींचने लगा...नौशाद ज़ोर से चिल्लाया और आख़िर मे जब उसके सर के एक तिहाई बाल मेरे हाथ मे आ गये तो उसने एक बार फिर ववे का पैतरा अपनाया मुझे दीवार पर ज़ोर से धकेला...

"साला तूने मुझे समझ क्या रखा है..."उसके सर को पकड़ कर मैने उसका सर दीवार से दे मारा और नीचे पड़ी हॉकी स्टिक उठाकर पूरी ताक़त से उसके पीठ पर मारना शुरू कर दिया....अब नौशाद ढीला पड़ने लगा था, उसका शरीर पस्त होने लगा और वो वही लेट गया....

"बोला था एमसी कि अपनी गान्ड संभाल कर रख वरना ऐसी गान्ड मारूँगा कि मुँह से सब कुच्छ करना पड़ेगा..."

नौशाद कुच्छ नही बोला और अपनी आँखे बंद कर ली ,जिसके बाद मैने उसके बॉडी के हर उस अंग को तोड़ा जो मेरा टूटा था....हॉकी स्टिक से मारते-मारते जब मैं थक गया तो बेहोश हो चुके नौशाद को मैने दीवार के सहारे टिकाया और लोहे की उस बॉल को उठाकर कर उससे थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया....

"अपने सर को बॅस्केटबॉल कोर्ट मे लगा रिंग समझ और ये लोहे की भारी भरकम बॉल जो मेरे हाथ मे है ,उसे बॅस्केटबॉल समझ..."बेहोश हो चुके नौशाद को देखकर मैने कहा...और उसके सर को निशाना बनाकर लोहे की बॉल उच्छाल दी...बॉल सीधे उसके सर से टकराई और खट्ट की आवाज़ हुई...जिसके बाद उसके सर से खून बहने लगा....

मुझे उसे अब छोड़ देना चाहिए था ,लेकिन मुझे अब मज़ा आने लगा था...मैने कयि बार ऐसे ही उसके सर को लोहे की बॉल से फोड़ा और आख़िरी मे उसके फेस पर दे मारी...बॉल सीधे जाकर उसके नाक के नीचे लगी.एक बार फिर वही जानी पहचानी आवाज़ हुई और वही जाना पहचाना लाल रंग उसके मुँह और नाक से निकला....

"बीसी ...अब जाकर हॉस्पिटल मे तीन महीने तू भी उसी तरह सडेगा..जैसे मैं सड़ा था...तू भी अब इस सेमेस्टर का एग्ज़ॅम नही दे पाएगा,जैसे कि मैं नही दे पाया था...."नौशाद को बुरी तरह पीटने के बाद भी जब मेरी हसरत पूरी नही हुई तो मैने उसके सर के बाकी बचे बाल को पकड़ कर वही घसीटना शुरू कर दिया और बाथरूम की खिड़की खोलकर नौशाद को वहाँ से नीचे फेक दिया....
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RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू - by sexstories - 08-18-2019, 02:01 PM

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