RE: Incest Kahani माँ बेटी की मज़बूरी
कमरे में घुसकर मानसी चली गयी बाथरूम में नहाने … मेरे लिए यही मौका था … जब पानी गिरने की आवाज हुई बाथरूम में तो मैंने जाकर गुस्से से सुशीला को पकड़ लिया।
सुशीला- यह क्या कर रहे है मुनीम जी … आप तो बदतमीज़ी पर उतर आए।
मैं- बदतमीजी तो अभी की नहीं है, आगे देखती जाओ कि मैं क्या करता हूँ।
सुशीला- क्या कर रहे हो … अभी हम चिल्ला देंगे।
मैं- चिल्लाओ … क्या बोल रही थी कि हम मानसी की नादानी का फयदा उठा रहे हैं।
सुशीला- और नहीं तो क्या?
उसके आँखों से आँसू निकलने लगे थे।
मैं- सुन … तेरी बेटी मुँह काला कर चुकी है … उसके पेट में बच्चा है।
सुशीला चौंक गयी।
सुशीला- आ … प … झूठ बोल रहे हो। हमको फंसाने का नाटक है।
मैं- मैं नाटक कर रहा हूँ या तू … दो महीने से उसका मासिक बंद है। मालूम नहीं पड़ता क्या … कल रिपोर्ट आ रही है चिंता मत कर।
यह सुनकर सुशीला जोर से रोने लगी.
मैं- अब चिल्ला तू कितना चिल्लाती है … गाँव सबको बोल दूंगा कि उसके पेट में बच्चा है … और यह औरत भी कितने जगह मुँह काला कर चुकी है … मालूम नहीं। मेरे सामने सती सावित्री बनती है … देख दोनों को कैसे रगड़ रगड़ कर चोदता हूँ।
सुशीला के जोर से रोने की आवाज कमरे में गूंजने लगी … आवाज सुनकर मानसी ने पानी बंद कर दिया … वो बाथरूम से निकलने वाली थी।
सुशीला- हमारे साथ ऐसा मत करो। हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
और रोने लगी.
मैं- अब आई ना लाइन पर … सुन उसको कितने चोद चुके हैं मालूम नहीं … मैंने और एक बार चोद लिया तो क्या फर्क पड़ता है। अगर तू चाहती है कि गाँव में किसी को तेरी बेटी के बारे में पता न चले तो उसके और मेरे बीच में रुकावट न बनना … अगर तू साथ देगी … तो कल उसका पेट साफ करके जाएंगे। किसी को पता नहीं चलेगा। नहीं तो गाँव में अपना काला मुँह तेरी बेटी किसी को नहीं दिखा सकेगी … समझी?
सुशीला रो रही थी वैसे दीवार से चिपकी हुई … मैं उसके गाल और कान को चूमने लगा वैसे ही उसे दीवार से दबाकर … वो खड़ी थी और मैं उसके चूतड़ मसल रहा था.
तभी बाथरूम का दरवाजा खोलकर मानसी निकली, मानसी अपनी माँ को इस हालत में देख कर थोड़ा डर गयी।
मानसी- क्या हुआ माँ? यह अवाज कैसी थी और तुम रो रही हो?
मैं सुशीला के कान में आहिस्ता से बोला- अपनी बेटी को कुछ मत बोलना … नहीं तो सबको बता दूंगा.
सुशीला रो रही थी, मैंने उसके गाल पर चुममा दिया और उसके चूतड़ को मसलते हुए बोला- मानसी, वो कुछ नहीं, तुम्हारी माँ हमसे थोड़ा प्यार कर रही थी न … इसीलिए।
मानसी ने और एक बार उसकी माँ की अवस्था पर नजर डाली … और देखा कि सचमुच वो मुझे कुछ बोल नहीं रही है और मैं उसके चूतड़ मसल रहा हूँ, गालों को चूम रहा हूँ.
तो मानसी गुस्से से बोली- अंकल जो बोल रहे थे, ठीक था … खुद तो इश्क लड़ाती हो और हमारे पर गुस्सा दिखाती हो सती सावित्री बनकर?
मैं- ठीक समझी तू मानसी, अब अपनी माँ का असली रूप तो देख चुकी हो। अब मैं जो बोलूँगा वो करना … समझी … अपनी माँ की तरह तुम्हें भी हक़ है मजा लेने का। क्यूँ मानसी?
और मैंने एक बार चूम लिया सुशीला के गाल को! वह अभी भी रोती जा रही थी सिसक कर!
मानसी- जी अंकल … मैं आपका पूरा साथ दूंगी.
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