RE: Incest Kahani माँ बेटी की मज़बूरी
“आह स्ससशह्ह्ह हाहाह…” मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी।
मैं- अच्छा … पर था किसका?
मानसी- वो हमारे घर के पास एक लड़का है न राजन … मेरे से दो क्लास ऊपर है.
मैं- अच्छा … कितनी बार चुद चुकी हो?
मानसी- यही कोई दस बारह बार!
मैंने मन में सोचा कि ‘साली पूरा चुदक्कड़ है … पेट में बच्चा करवा दिया है चुद चुद के!’
मैं- माँ को पता है?
मानसी- नहीं … किसी को पता नहीं पर तुम बताना नहीं!
मैं- मैं क्यों बताने लगा … हमारा लंड पसंद है?
मानसी शरमा के- हाँ!
मैं- अंदर लोगी?
मानसी- हाँ!
और उसने मेरे लंड को धोती के ऊपर से फिर से दबा दिया, फिर मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी।
मैं- पर तुम्हारी माँ तो कवाब में हड्डी बनी हुई है.
मानसी- मैं क्या कर सकती हूँ?
मैं- सुन, तू मेरा साथ दे … उसको भी एक बार चोद दूंगा तो फिर वो कभी तुम्हारे मेरे बीच हड्डी नहीं बनेगी।
मानसी- माँ को कैसे चोदोगे?
मानसी ने हैरत के साथ पूछा।
उसके मुँह से चोदने की बात सुनके मेरा लंड और फुंकार मारने लगा। मैं बोला- वो सब तुम मेरे ऊपर छोड़ दो। मैं कुछ भी करूँ तुम मेरा साथ देना, मुझसे डरने की जरूरत नहीं … और अभी झूला में बैठ के मजे लो।
अब चरखी घूमने लगी थी … उसका एक हाथ मेरे लंड पर था और दूसरे हाथ से मुझे जकड़े हुए थी. जब झूला नीचे आता तो सुशीला हम दोनों को जकड़े हुए देखती। उसके चेहरे से ग़ुस्सा साफ नजर आ रहा। पर हमें रोकने वाला कोई नहीं था. मैं भी ऊपर अँधेरा का फायदा उठा कर उसकी चूची एक हाथ से मसल देता … वो सिसकारी लेती थी ‘असस्स्स्श ह्ह्ह्ह …’ मगर झूले की आवाज में वो दब कर रह जाती थी.
मानसी भी कम शातिर खिलाड़िन नहीं थी। मेरे लंड को अब उसने पूरा जकड़ लिया था और झूले के हिलने के साथ वो भी उसे टाइट जकड़ लेती और झूले के हिलने के साथ ही उसका हाथ लंड के ऊपर जकड़ के ऊपर नीचे हो रहा था। मैं आनन्द में गोते लगा रहा था। जब झूला स्पीड से नीचे आता तब एक तो मेरे शरीर में सिहरनसी दौड़ जाती थी, उसके साथ उसकी मजबूत जकड़ लंड को सातवे आसमाँ पर पहुंचा देती थी। मेरी तो ऐसी इच्छा हो रही थी कि ऐसे ही हम जीवन भर झूलते रहें और वो मेरे लंड को ऐसे ही जकड़े रखे.
मेरी आँख आनन्द से बंद हो जाती थी और सिसकारी भी जोर की निकल जाती थी. ऐसे झूले पर आनन्द तो अद्भुत होता है. यह मुझे पहली बार मालूम हो रहा था … झूला जब नीचे जाता है तो मन में डर पैदा कर देता है इसीलिए इतने आनन्द के बाद भी लंड झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. इस आनन्द को मैं भाषा में व्यक्त नहीं कर सकता.
वहाँ पर बहत सारे लोग थे। मगर सब समझ रहे थे कि हम डर से एक दूसरे को जकड़ कर बैठे है। कोई हम पर शक ही नहीं कर सकता था. पर वहाँ एक ही औरत जो सुशीला थी, उसे शक होने लगा था पर वो कुछ कर ही नहीं सकती थी. और हम मजा ले रहे थे … मैं अब उसकी मस्त चूचियों को उसके काँधे के ऊपर से हाथ डाल कर कसके मसल रहा था और वो मेरे लंड को … और फिर सबके सामने खुली भीड़ में ऐसे आनन्द लेने में बड़ा मजा भी आ रहा था. अगर वही पर चूत में लंड डालने की अनुमति मिल जाती तो और भी अच्छा होता.
हम दोनो के मुँह से सिसकारी निकलती मगर वो झूले के घूमने की आवाज की वजह से कोई नहीं सुन पाता था.
मैं- और जोर से दबाओ।
उसने ऐसा ही किया. और अब मैं स्वर्ग में था … आँख बंद करके … उसी हिसाब से मैंने उसकी चूची की निप्पल भी मसल दी.
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