RE: Rishton Mai Chudai गन्ने की मिठास
गन्ने की मिठास--17
गतान्क से आगे......................
तो दोस्तो यहाँ तक आपने पढ़ा कि कैसे रामू और हरिया काका अपने काम धंधे मे ही मस्त रहते थे और उनके
घर के लोग गन्नो की मिठास से ही मस्त रहते थे अब यहाँ से आगे बढ़ते है...........
रामू और हरिया के खेत और गाँव के बीच मे एक तालाब था और उसके गहरीकरण के लिए सरकार ने मुझे नियुक्त
कर दिया, दरअसल मेरा नाम राज है मैं एक सिविल इंजिनियर हू और मुझे उस तालाब का काम दे दिया गया, गाँव से
शहर कुछ 25 किमी था इसलिए मैं अपनी बाइक से ही वहाँ पहुच गया, मजदूर मे लगा चुका था और तालाब के
किनारे-किनारे आम के मस्त पेड़ लगे थे और मैं एक पेड़ के नीचे लेट गया और ठंडी हवा का आनंद लेने
लगा, मैं सोच रहा था यह मैं कहाँ फस गया यहा पूरा दिन काटना मुश्किल पड़ जाएगा, उस दिन तो मैने जैसे
तैसे समय पास किया लेकिन अगले दिन मैं पूरी तैयारी के साथ आया, एक BP का क्वाटर दो पकेट सिगरेट और एक
राज शर्मा की किताब ,
मैं अपनी मस्ती मे मस्त था और सिगरेट खिचते हुए बीच-बीच मे शराब का घूँट ले
रहा था जब क्वाटर ख़तम हो गया तब मैने अपनी मा रति के द्वारा बाँधा गया खाना खोल कर खाया और
फिर एक सिगरेट जलाकर राज शर्मा की मस्ती भरी किताब को पढ़ने लगा, बीच-बीच मे मजदूरो को इंस्ट्रेक्षन भी
दे देता था,
शाम को करीब 4 बजे के बाद मैने सोचा बैठे-बैठे थक गये है थोड़ा टहल लिया जाय और मैं उठ कर तालाब की
मेध के किनारे होते हुए गन्नो के खेत के उसपार गया तो वहाँ एक आम के पेड़ के नीचे हरिया और रामू बैठे थे
हरिया के हाथ मे उसकी चिलम थी और वह कस लगा रहा था, दोनो बस ऐसे बैठे थे जैसे संडास जाते वक़्त
बैठा जाता है बिल्कुल आमने सामने,
दोनो के उपर के बदन पर कोई कपड़ा नही था हरिया ने धोती बाँधी हुई थी जो उसकी जाँघो के उपर तक होती थी,
और रामू लूँगी को घुटनो तक मोड़ कर बैठा था, मैं जब वहाँ से गुजरा तो रामू ने मेरी ओर देख कर मुस्कुराते
हुए कहा साहेब नमस्ते,
मैं वही ठहर गया और मैने कहा कौन हो भाई तुम और क्या मुझे जानते हो,
रामू ने तपाक से जवाब दिया साहब आप ही इस तलैया को गहराई करवा रहे हो ना, आप शहर से आए इंजिनियर हो
ना,
मैने कहा हाँ भाई तुमने बिल्कुल ठीक पहचाना मगर तुम कौन हो,
रामू- साहेब हमारा नाम रामू है और ये है हमारे चाचा हरिया,
हरिया- राम-राम बाबू जी
मैने भी हरिया को नमस्ते किया दिखने मे दोनो काफ़ी मजाकिया लग रहे थे मुझे भी अच्छा लगा और मैं
भी उनके पास उसी पेड़ की छाँव मे बैठ गया,
मैने रामू के कंधे पर हाथ रख कर कहा रामू तुम्हारे गाँव मे कितने लोग होंगे
रामू- यह तो हमे नही पता साहेब
मैने कहा चलो कोई बात नही पर आप दोनो चाचा भतीजा हो फिर ये चिलम एक साथ पी लेते हो
हरिया- अरे साहेब जी ये तो ससूरी चिलम है हम तो बहुत से काम साठे मे करते है, और फिर हरिया ही ही ही
करते हुए साहेब रामू और हमारे बीच कोई परदा नही रहता है,
|