Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
08-05-2019, 01:27 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
कविता वहीं पर पड़े-पड़े रात के बारे में सोचने लगी। उसे रह-रहकर रोना आ रहा था। एक तरफ उसका पति और दूसरी तरफ उसकी इज्जत थी। कविता ने आज तक अपने पति के इलावा किसी भी गैर मर्द से बात तक नहीं की थी, और आज उसे अपने पति के लिए उस कुत्ते ठाकुर के साथ अपनी इज्जत का सौदा करना पड़ रहा था। कविता ने सोच लिया था की ठाकुर ने अगर उसकी इज्जत को नोचा तो वो अपनी जान दे देगी। कविता उठकर घर का काम करने लगी उसे आज कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।

ऐसे ही दिन गुजर गया और रात हो गई। कविता ने अपनी बच्ची को खाना खिलाकर सुला दिया। कविता खुद नहाने बाथरूम में चली गई और नहाने के बाद साड़ी पहनकर अपनी बच्ची के पास बैठकर उसे गौर से देखने लगी। थोड़ी ही देर में ठाकुर के आदमी आ गए और कविता अपनी बच्ची को उस औरत के घर छोड़कर खुद उनके साथ ठाकुर के पास जाने लगी। ठाकुर के आदमियों ने कविता को जीप में बिठाकर फार्महाउस लेजाकर ठाकुर के सामने खड़ा कर दिया। वो लोग कविता को अंदर छोड़कर खुद वहाँ से बाहर चले गये।


ठाकुर सोफे पर बैठकर शराब पी रहा था। कविता को देखते ही सोफे से उठकर उसके पास आ गया- “छोरी तुम्हें भगवान ने बहुत दरियादिली से बनाया है देखो कितनी खूबसूरत हो तुम...” ठाकुर ने शराब के नशे में कविता के होंठों पर अपनी उंगलियों को फिराते हुए कहा।

कविता अपने होंठों पर एक गैर मर्द का हाथ महसूस करके कांप गई और ठाकुर से थोड़ा दूर हट गई। ठाकुर कविता के हटते ही उसके पीछे जाने लगा। कविता ठाकुर को अपने पास आता देखकर अपने कदम पीछे हटातेहटाते पीछे हटने लगी, और ठाकुर भी आगे चलते हुए उसके पास जाने लगा। कविता पीछे हटते-हटते अचानक किसी चीज से टकरा गई। वो दीवार थी अब उसके पास पीछे जाने के लिए कोई भी जगह नहीं थी। कविता एक तरफ जाने ही वाली थी की उस तरफ ठाकुर ने अपना हाथ दीवार पर रखकर उसका रास्ता बंद कर दिया। कविता दूसरी तरफ देखने लगी की ठाकुर ने उस तरफ भी अपना दूसरा हाथ रख दिया। कविता के पास अब इधार उधर होने की भी जगह नहीं थी।

ठाकुर- “छोरी क्यों इतना तड़पा रही हो? अब आई हो तो क्यों इधर-उधर भाग रही हो?” ठाकुर ने कविता की आँखों में देखते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर साहब भगवान के लिए मेरी इज्जत बख्श दो मैं मर जाऊँगी...” कविता ने एक आखिरी कोशिश करते हुए कहा।

ठाकुर- “छोरी अब मेरा माथा मत घुमा... लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगी...” ठाकुर ने गुस्सा होते हुए कविता से दूर हटकर अपना मोबाइल उठाते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर नहीं, फोन मत करो...” कविता समझ गई की ठाकुर उसकी इज्जत से खेले बिना नहीं मानेगा, इसलिए उसने अपने साड़ी का पल्लू अपने माथे और चूचियों से हटाते हुए चिल्लाकर कहा। ठाकुर कविता की चीख सुनकर उसकी तरफ देखने लगा।

ठाकुर- “छोरी यह हुई ना बात.. आओ आज की रात के लिए तुम हमारी दुल्हन बन जाओ...” ठाकुर ने कविता का विरोध खतम होते ही उसे अपनी गोद में उठाकर अपने बेड की तरफ ले जाते हुए कहा।

ठाकुर ने कविता को अपनी बाहों में उठाए हुए आगे बढ़कर उसे बेड के पास नीचे उतारते हुए सीधा खड़ा कर दिया। कविता एक बेजान लाश की तरह खड़ी थी। ठाकुर ने कविता की साड़ी को पकड़कर उसके जिम से अलग कर दिया। साड़ी के उतरते ही कविता का गोरा जिश्म सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में ठाकुर की आँखों के सामने आ गया।

ठाकुर ने अपनी शर्ट और पैंट को अपने जिश्म से अलग करते हुए अपने अंडरवेर को भी उतारकर बेड पर फेंक दिया। ठाकुर के सारे कपड़े उतारने के बाद उसका लण्ड बिल्कुल तनकर झटके मार रहा था। ठाकुर ने कविता के करीब जाते हुए उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख दिया। कविता ने तो ठाकुर को कपड़े उतारता हुआ। देखकर अपनी आँखें बंद कर ली थी, मगर अपना हाथ ठाकुर के खड़े लण्ड पर पड़ते ही उसका सारा जिस्म कांपने लगा। क्योंकी वो ठाकुर के लण्ड के स्पर्श से ही जान गई थी की ठाकुर ने उसका हाथ अपने नंगे लण्ड पर रख दिया है। कविता ने फौरन अपने हाथ को ठाकुर के लण्ड से हटा दिया।


ठाकुर- “क्या हुआ जानेमन अच्छा नहीं लगा क्या?” ठाकुर ने कविता का हाथ अपने लण्ड से हटाते ही उसको अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

कविता अपने आधे नंगे जिश्म को पहली बार किसी गैर मर्द के नंगे बदन से टकराने की वजह से अपने जिम में अजीब किस्म का अहसास होने लगा। कविता उस अजीब अहसास की वजह से बिना कुछ बोले अपनी आँखों को वैसे ही बंद किए बहुत जोर-जोर से साँसें लेते हुए हाँफ रही थी।

ठाकुर समझ गया की कविता गरम हो रही है। इसलिए उसने बिना कोई देर किए अपने होंठों को कविता के । होंठों पर रख दिया, और कविता के होंठों को चूमते हुए बुरी तरह अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। कविता को आज तक सिर्फ अपने पति ने चूमा था, वो भी बिल्कुल सादे तरीके से। ठाकुर के मुँह से अपने होंठों को चूसने । और अपनी चूचियों को उसके सख़्त सीने में दबने से कविता का जिश्म तप कर बहुत गरम हो गया और उसकी चूत से पानी टपकने लगा।

ठाकुर ने कविता को चुप खड़ा देखकर उसे ज्यादा गरम करने के लिए उसके मुँह को खोलकर उसकी जीभ को अपने मुँह में भरते हुए जोर-जोर से चूसने लगा, और अपने एक हाथ को उसके ब्लाउज़ के ऊपर से ही उसकी एक चूची को पकड़कर सहलाने लगा।

कविता ठाकुर की इस हरकत से बुरी तरह काँप उठी और अगले पल ही उसने ठाकुर को धक्का देते हुए अपने आपसे अलग कर दिया। कविता को यह अहसास हो गया था की वो ठाकुर के साथ इस पाप में उसका साथ दें रही है। इसलिए उसने ठाकुर को अपने आपसे दूर कर दिया और खुद बेड पर बैठकर अपनी किश्मत पर रोने लगी।

ठाकुर- “छोरी बहुत नखड़ा कर लिया, हमारे सबर का इम्तहान मत ले..." ठाकुर ने कविता के अलग होते ही गुर्राते हुए कहा।

कविता- “ठाकुर आपको जो करना है जल्दी कर लो मैं ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकती...” कविता ने ठाकुर के गुस्से को देखकर वैसे ही रोते हुए कहा।

ठाकुर- “हाँ छोरी, जब हमारी हरकतों से तुम गरम हो रही हो तो जी भरकर मजे लो। क्यों इस झूठी आन के लिए अपनी जिंदगी तबाह कर रही हो?” ठाकुर ने कविता की बात सुनकर जोर से हँसते हुए कहा।

कविता- “नहीं मैं अपने पति को धोखा नहीं दे सकती...” कविता ने ठाकुर की बात सुनकर जल्दी से कहा।

ठाकुर- “देख छोरी मेरे लण्ड को, यह कितना मोटा और लंबा है? जिसे मैं चोदता हूँ वो दूसरी बार खुद मेरी तरफ दौड़ती हुई आती है। तुम्हारे पति का ऐसा लण्ड है?” ठाकुर ने कविता के पास जाकर उसको बालों से पकड़ते हुए अपने लण्ड को दिखाते हुए कहा।


कविता- “ठाकर उसका जैसा है, मुझे कबूल है क्योंकी वो मेरा पति है...” कविता ने अपनी आँखों के सामने ठाकुर के लंबे और मोटे लण्ड को देखकर अपनी आँखें बंद करते हुए कहा। कविता ने आँखें तो बंद कर ली थी, मगर वो एक बार ठाकुर का लण्ड देख चुकी थी जो उसके पति से कहीं ज्यादा बड़ा और मोटा भी था।

ठाकुर- “ठीक है छोरी। मैं आज देखता हूँ की जो तू जुबान से बोल रही है, क्या तुम्हारा जिम भी उसका साथ देता है?” ठाकुर ने यह कहते हुए कविता के ब्लाउज़ और पेटीकोट को उसके जिम से अलग कर दिया।

कविता की बड़ी-बड़ी चूचियां अब सिर्फ ब्रा में कैद होकर ठाकुर की आँखों के सामने थी। कविता की बड़ी-बड़ी चूचियां उसकी ब्रा में आधी ही समा पा रही थी, क्योंकी उसकी चूचियां बहुत बड़ी थी। ठाकुर ने कविता को धक्का देते हुए बेड पर सीधा सुला दिया, और खुद उसके ऊपर चढ़ते हुए कविता की चूचियों के उभारों को उसकी ब्रा के ऊपर से ही चाटने लगा।

कविता ने अपनी आँखें बंद कर ली थी, वो बस एक बेजान लाश की तरह लेटी हुई थी। कविता की कितनी कोशिश के बाद भी उसका जिम उसका साथ नहीं दे रहा था, और वो ठाकुर की हरकतों से गर्म हो रहा था। ठाकुर ने अचानक कविता की ब्रा को खींचते हुए उसकी चूचियों से नीचे सरका दिया और किसी जानवर की तरह उसकी दोनों चूचियों पर टूट पड़ा। ठाकुर कविता की दोनों चूचियों को बारी-बारी अपने मुँह में लेकर चूस और चाट रहा था और साथ में कभी-कभी उन्हें अपने दाँतों से काट भी रहा था।

कविता को ठाकुर की हरकतों से दर्द के साथ मजा भी आ रहा था। वो चाहकर भी अपने जिश्म को अपने काबू में नहीं रख पा रही थी। मगर वो अपने मजे या दर्द को अपने चहरे पर बिल्कुल नहीं आने दे रही थी। वो बस एक लाश की तरह बेड पर लेटी थी, जिसे ठाकुर नोच-नोच कर खा रहा था।

ठाकुर कुछ देर तक कविता की चूचियों के साथ खेलने के बाद नीचे होते हुए उसकी टाँगों के बीच आ गया और कविता की पैंटी को पकड़कर उसके जिश्म से अलग कर दिया। ठाकुर ने कविता की पैंटी के हटते ही उसकी टाँगों को आपस में से अलग करते हुए अपना मुँह उसकी चूत पर रख दिया। कविता का पूरा जिश्म ठाकुर का मुँह अपनी चूत पर रखते ही जोर से काँपने लगा, और ना चाहते हुए भी उसकी चूत से उत्तेजना के मारे पानी निकलने लगा।
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