RE: Maa Sex Kahani माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना
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और उनके हाथ धीरे धीरे मेरे बाजु को ठीक से पकड़ने लगे. मेरे मन में यह भावनाएं आयी की माँ अब तक उनके मम्मी पापा के संग जी रही थी. और वह लोग उनकी बेटी की अच्छी तरह से देखभाल करके अपना कर्त्तव्य सही तरीके से पालन कर रहे थे. लेकिन अब से माँ मेरे संग मेरी पत्नी बनके जीने जा रही है. और मुझे मेरी पत्नी की रक्षा करके उनकी हर तरहा से देखभाल करनी है. शायद वह उनके अनजाने में मेरा बाजु पकड़ के मुझे मेरा कर्त्तव्य याद दिलाने लगी. शादी के टाइम में कसम खाकर यह कहा की में पूरी ज़िन्दगी उनके ख्याल रख़कर, उनकी हर इच्छा को पूरा करके, उनकी हर तरह की चाहत , मेरा प्यार, केअर, लॉयलटी, आनेस्टी देकर उनको हर झंझट से बचाकर मेरी बाँहों में सुकून की नींद लेने दूंगा. और इस वक़्त से मेरा वह कर्त्तव्य पालन करना सुरु हो गया है.
मै उनकी तरफ देख रहा था. और मेरे मन में एक नये तरह की अनुभुति और प्यार आया माँ के उपर. एक पति का उसकी पत्नी के ऊपर जो प्यार आता है, में पहली बार माँ के साथ हमारे नये रिश्ते में कदम रख के, इसी प्लेटफार्म में खड़े होकर वह प्यार महसुस करने लगा. मुझे इस तरह प्यार और भावनाएं पहले कभी मेहसुस नहीं हुई थी. तभी माँ अपना सर उठाके मेरी तरफ देखि. उनकी उस नम्म आँखों में अपनों से दूर जाने के ग़म के साथ साथ एक अद्भुत ख़ुशी भी झलक दे रहा है. वह अपने मम्मी पापा से दूर रहके भी अपने दिल से जुड़े हुए किसी के साथ, आपने बेटे के साथ, जो अब उनके पति है, उनके साथ जीवन बिताने जा रही है. उस की ख़ुशी और एक एक्ससाइटमेंट उनके मन में जो मिश्र अनुभुति कर रहा है, वह उनकी आँखों में मुझे दिख रहा है. मेरे साथ नज़र मिलाकर ऐसे ही हम दोनों उस भीड़ भरे प्लेटफार्म पे कुछ पल खड़े रहे, फिर माँ के अंदर एक शर्म खेल गया और वह अपने आँखे झुका ली . और शर्म के साथ उनके हाथ मेरे बाजु को छोड़ के अपने तरफ खीच ली. लेकिन वह उनके होठ पे एक मुस्कान लेकर मुझे यह संमझा दी की कितना भी ग़म और कितना भी कस्ट आये क्यूं,न आये वह मेरे साथ, मेरे पास , मेरे दिल में रहके अपने सारे ग़मों को भूलके चेहरे पे हसि लेके जी सकती है. मैं बस अपने ज़िन्दगी का एक नया अध्याय में प्रवेश करके मेरी माँ को साथ में लेके एक नये रस्ते में चलना सुरु किया. जहाँ केवल में और मेरी माँ यानि की मेरी बीवी है.
नाना नानी शाम की ट्रैन लेकर चले गये वह लोग बस सुबह होने से पहले ही घर पहुच जाएंगे. लेकिन हम लोगों को एमपी पहुँचते पहुचते कल शाम हो जाएगा. हम बांद्रा से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पे पहुच गये हमारे साथ तीन सूटकेस है. हम एक कुलि लेके सामान उसको देके में और माँ मुंबई की उस भीड़ में चल्ने लगे एक दूसरे के साथ , एकदम पास रह्के. माँने और मेरा हाथ नहीं पक़डा. वह बस एक नयी दुल्हन की तरह उनके पति के साथ धीरे कदमों से चलते आरही है. मैं उनके साथ उनके कदमों से अपने कदम मिलाकर चलने लगा. मुझे पूरी ज़िन्दगी बस उनको ऐसे ही साथ देना है. और में यह चाहता भी हु मन से, दिल से. चलते वक़्त भीड़ में कभी कभी माँ का बाजु मेरे बाजु से, और माँ का कन्धा मेरे कंधो से टच हो रहा है. और हर बार मुझे एक नरम और कोमल स्पर्श मेहसुस हो रहा है. माँ कितनी कोमल और नरम है हमारे शादी से पहले उसकी एक झलक मुझे मिली थी. और अब उन कोमल और नरम शरीर के स्पर्श से मेरे अंदर एक कंपकपी आने लगी. माँ के एक दम पास रहने के लिए मुझे उनके शरीर से एक खुशबू भी मिल रही थी . उनके बालों की वह मीठी महक में मेहसुस कर रहा हु. इतनी भीड़ में भी मुझे बस उनको मेरी बाँहों में लेने का मन किया. पर में चाहके भी उनके हाथ पकड़ नहीं पाया. न जाने क्यों शादी के बाद मेरे अंदर भी एक तरह की शर्म आगई. मैं कितना कुछ सोचके रखा था. पर आज माँ को एक अन्जान जगह पे हमारे परिचित समाज के बाहर अकेली पाकर भी , इस प्लेटफार्म की भीड़ की अंदर भी उनको छु नहीं पा रहा हु. माँ भी शायद मेरे जैसा इमोशन और सोच के थ्रू गुजर रही है. वह न मुझे देख रही है आँख उठाकर, न मेरे से सहज होकर बात कर रही है, न मुझे छु पा रही है. बस हम मन ही मन एक दूसरे को चाहकर भी इतना करीब रहके भी , कोई पहला कदम उठा नहीं पा रहे है.
हमारी ट्रैन आने में थोड़ा टाइम है. हम प्लेटफार्म के एक कोने वाले बेंच में बैठे है. हमारा लगेज सामने रखा हुआ है.
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