RE: Maa Sex Kahani माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना
मैं ड्राइंग रूम में फैन के नीचे बैठा हुँ. नानाजी मेरे बगल में एक ही सोफे में बैठे है. नानी जी उनके साइड वाले सोफे मे. पूरे हप्ते में नानाजी से मेरी इतनी ज़ादा बात नहीं हो पाइ. एक बार फ़ोन पे बताये थे मुंबई वाली रिसोर्ट के बारे में सारी इनफार्मेशन उनको मिल चुकी है. अब वही बात छेड़ा है उन्होंने. उनके किसी जानने वाले से कुछ रिसोर्ट के बारे में इनफार्मेशन और कांटेक्ट नम्बर मिला है. उन्होंने इनिशियल पूछताछ कर लिया ऑलरेडी. केवल जाके एक बार सामने से देखके बुकिंग करके आना है. इन सब बातों के बीच अचानक माँ चाय लेके . मैं जहाँ बैठा हु , वहां से नानी को देखूँगा तो उनके पीछे किचन की तरफ का डोर है. मुझे मेरे पोजीशन से उस डोर के बाहर का पैसेज तक दिखाइ देता है और उस पैसेज के लेफ्ट में किचन का डोर है. मुझे यहाँ बैठके आवाज़ से पता चला था की वह किचन में थी. सो नानाजी से बात करते करते अन्जाने में मेरी नज़र बार बार उस पैसेज के तरफ जा रहा थी क्यूंकि मुझे अब मेरी बीवी का चेहरा देखने के लिए मन बहुत चंचल हो रहा था सो जब वह चाय लेके चलके आरही थी, में बात करते करते इधर उधर देखने की एक्टिंग कर रहा था और उनकी एक झलक सर से लेके पाओं तक देख लिया. वह चाय की ट्रे के ऊपर नज़र झुकाके चलते आरही थी. चेहरा बिलकुल नार्मल था विथाउट अन्य एक्सप्रेशण. समझ गया की वह सब के सामने सहज रहने का कोशिश कर रही है. पर फिर भी उनको चलते हुए आते देखके मेरी छाती में एक अजीब सिरसिरानी अनुभुति होती है और मेरे जीन्स के नीचे पेनिस के अंदर खुन भरके फुल्ने लगता है. वह नज़्दीक आयी तो में भी नाना नानी के सामने उनको डायरेक्टली ज़ादा देख नहीं पा रहा था पर बीच बीच में नज़र डाल रहा था उनके उपर. वह नानाजी को चाय दिया और मेरे सामने वाला सेंटर टेबल पे मेरा कप रख दिया. अभी तक मेरी तरफ नज़र नहीं उठाया. नानीजी तभी बोल पडी तो माँ नज़र उठाके उनको देखि. नानीजी बोली
" अरे मंजू...हितेश के लिए नास्ता बनादे"
फिर नानी मुझे देख के बोली
" बेटा क्या खाओगे....पराठे बनाऊ क्या अभी?"
मैने कह्
" हा. कुछ भी चलेगा"
नानी जब मेरे से बात कर रही थि, माँ तभी भी नानी को ही देख रही थी. फिर नानी माँ को देखके बोली
" मेथी है न...तोः मेथी का पराठा बनादे"
मा सर हिलाके हाँ बोलके चल पड़ी और किचन की तरफ डोर से बाहर निकल गयी. और वह जाके किचन में दाखिल हो गयी. माँ ऐसे आयी और गयी जैसे की में वहां हु ही नही. मेरी उपस्थिति को पूरा इग्नोर करके चलि गयी. मुझे बहुत गुस्सा आया. फ़ोन पे बात करके हम कितना एक दूसरे के नज़्दीक आने लगे , और अभी एकदम दूर कर रही है !! मुझे उनका दिया हुआ चाय भी पीने में गुस्सा आ रहा था पर क्या करूँ!! अब यहाँ से उठके जा नहीं सकता तुरंत. नाना नानी के सामने फिर एक दूसरी परिस्थितियां क्रिएट हो जायगी. फिर सोचा की ठीक है, अब दूर रह रही है, लेकिन कब तक दूर रहके भागेगी मेरे से. मैं भी जिद्दी हु, उनको जलद ही जलद मेरी बाँहों में होना चहिये. यह सोचके गुस्सा थोड़ा ठण्डा होने लगा और में चाय का कप उठाके नानीजी को देखते देखते सिप मारने लगा. नानी जी यह कह रही है की शादी के दो दिन पहले हमे रिसोर्ट पहुच जाना चाहिए और फिर शादी के बाद नेक्स्ट डे हम सब वहां से निकल जाएंगे. और नानाजी कहते है की इतना दिन वहां रहके क्या करना है. शादी का एक दिन पहले जाना है. नेक्स्ट डे शादी का मुहूर्त सुबह में है. सो शादी जल्दी जल्दी ख़तम हो जायेगा और उसी दिन दोपहर में हम निकल जाएंगे. जब यह लेके उनलोगों के अंदर बहस चल रहा था तब में केवल साइलेंट दर्शक बनके उनदोनों को देख रहा था मैं नानी को देख रहा था तभी माँ किचन से बाहर आके उस पैसेज में आई. आके नाना नानी की नज़र छिपाके दिवार पे टेक लगाके खड़ी होकर मुझे देखने लगी. मैं उनकी तरफ नज़र न देके भी यह सब मेरे साइड विज़न से देख पारहा हुँ. मेरे अंदर तभी भी थोड़ा गुस्सा भटक रहा था इस लिए मन में उनको देखने की प्रबल इच्छा था फिर भी में बहुत टाइम से खुद को कण्ट्रोल करके नहीं देख रहा था वह वही खड़ी खड़ी मुझे देख रही थी और उनके साड़ी का आँचल खुद की हाथ की उँगलियाँ में लेके गोल गोल घुमा रही थी. मैं खुद से जूझ रहा था की में उनकी तरफ देखूँगा नही. पर कुछ टाइम बाद जैसे ही में एकबार सर मोड़ ने गया, तोह आँख से आँख मिल गई. मेरे से नज़र मिलते ही एक शर्म की मुस्कराहट उनके होठ पे खील गया. और नज़र झुका लिया. लेकिन गयी नही. वहाँ खड़ी रहि. फिर मुझे देखा. मेरा गुस्सा फिर बढ़ गया. अभी थोडे देर पहले ऐसे इग्नोर करके गयी, और अभी चुप छुपके मुझे देखके मुस्कुरा भी रही है. मैं भी इग्नोर किया और मुह मोड़के नज़र नानी की तरफ टिकाया. पर मेरे ऑफ विज़न में मुझे पता चल रहा है की वह तभी भी वहां खड़ी होक मुझे देख रही है. अब मेरे खुद के ऊपर गुस्सा आया. मैं क्यों देखा अभी उनको. मेरी इस हरकत से उनको पता चल गया की में ग़ुस्से में हु और वह जान बुझके मुझे चिड़ानेके लिए अभी भी वहां खड़ी है. बचपन से सबसे अच्छी तरीके वह मुझे जानती है. मेरा हर नज़र का, हर बातों का, हर चुप्पी का मतलब मेरे से ज़ादा उनको पता है. मैं अब उनसे पकड़ा गया. अगर नहीं देखता तो ठीक था लेकिन क्या करे, इस नज़र का क्या गलति, जालिम मन ही नहीं मानता उनको बिना देखे.
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