Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 01:19 PM,
#33
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-31

हीना जल्दी से उठकर कार के अंदर से ही आगे वाली सीट पर चली गई ऑर जल्दी से अपनी सलवार पहनने लगी ऑर अपने कपड़े ठीक करने लगी तब तक मैं भी अपने कपड़े पहन कर आगे वाली ड्राइविंग सीट पर आ चुका था...

हीना : ये तो अब्बू की जीप है ये यहाँ कैसे आ गये अब क्या होगा.

मैं : डर लग रहा है (मुस्कुरा कर)

हीना : जब आप साथ होते हो तब डर नही लगता (मुस्कुरा कर)

इतना मे वो जीप हमारे पास आके रुकी ऑर उसमे से एक आदमी निकलकर बाहर आया.

आदमी : (गाड़ी के दरवाज़े पर हाथ से नीचे इशारा करते हुए) छोटी मालकिन आप अभी तक गाड़ी सीख रही है बड़े मालिक आपको बुला रहे हैं उन्होने कहा है कि बाकी कल सीख लेना.

हीना : अच्छा... तुम चलो हम इसी कार मे आ रहे हैं

आदमी : जी जैसी आपकी मर्ज़ी मालकिन...

फिर वो आदमी वापिस जीप मे बैठ गया ऑर हमने भी उसके पिछे ही अपनी कार दौड़ा ली. हीना पूरे रास्ते मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर बैठी रही ऑर मुझे देखकर मुस्कुराती रही ऑर कभी-कभी मेरे गाल पर चूम लेती. कुछ देर मे हवेली आ गई तो बाहर खड़े दरबान ने हमारी कार देखते ही बड़ा दरवाजा जल्दी से खोल दिया मैं गाड़ी हवेली के अंदर ले गया ऑर गाड़िया खड़ी करने की जगह पर गाड़ी रोक दी. तभी सरपंच वहाँ आ गया. जिसे देखते ही हीना जल्दी से कार से उतर गई. हालाकी उसे चलने मे तक़लीफ़ हो रही थी लेकिन उसने अपने अब्बू पर कुछ भी जाहिर नही होने दिया.

सरपंच : बेटी आज तो बहुत देर करदी मुझे फिकर हो रही थी.

हीना : अब मैं बच्ची नही हूँ अब्बू... बड़ी हो गई हूँ ऐसे फिकर ना किया करो ऑर वैसे भी नीर मेरे साथ ही तो थे. (मुस्कुरा कर)

सरपंच : अर्रे ये किसके कपड़े पहने है. हाहहहहहाहा

हीना : वो मैं इनको लेने इनके घर गई थी तो वहाँ बाबा जी चाय पी कर जाने की ज़िद्द करने लगे वहाँ चाय पकड़ते हुए मेरे हाथ से चाय का कप गिर गया था जो मेरे कपड़ो पर गिर गया (हीना ने झूठ बोला) इसलिए इन्होने मुझे अपने कपड़े दे दिए पहन ने के लिए.... अच्छे है ना (मुस्कुराते हुए)

सरपंच : अच्छा...अच्छा अब तारीफे बंद करो ऑर चलो मैने खाना नही खाया तुम्हारी वजह से. (हीना के सिर पर हाथ फेरते हुए)

मैं गाड़ी से उतरते हुए दोनो बाप बेटी को बाते करते हुए देख रहा था ऑर उन दोनो की बाते सुनकर मुस्कुरा रहा था.

मैं : माफ़ कीजिए सरपंच जी आज थोड़ा देर हो गई. ये लीजिए आपकी अमानत की चाबी.

सरपंच : (चाबी पकड़ते हुए) कोई बात नही.... अर्रे ये तुम्हारे सिर मे क्या हुआ

मैं : कुछ नही वो ज़रा चोट लग गई थी.(अपने माथे पर हाथ फेरते हुए)

सरपंच : (मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए) अपना ख्याल रखा करो

मैं : जी ज़रूर...

हीना : अब्बू वो गाड़ी वाली बात भी तो करो ना इनसे.

सरपंच : अर्रे हाँ मैं तो भूल ही गया.... बेटा वो हीना कितने दिन से पिछे पड़ी है इसको नयी गाड़ी लेके देनी है... तो मुझे समझ नही आ रहा था कि कौनसी गाड़ी इसे लेके दूं तुम बताओ इसके लिए कौनसी गाड़ी अच्छी रहेगी.

मैं : कोई भी गाड़ी ले दीजिए... बस इतना ख़याल रखना कि गाड़ी छोटी हो जिससे इनको (हीना को) भी चलाने मे आसानी रहेगी.

हीना : अब्बू आप असल बात तो भूल ही गये ये वाली नही साथ जाने वाली बात पुछो ना.....

सरपंच : आप खुद ही पूछ लो महारानी साहिबा... (हीना के आगे हाथ जोड़ते हुए)

हीना : नीर जी वो मैं सोच रही थी कि आप को हम से ज़्यादा समझ है गाडियो की तो आप भी हमारे साथ ही शहर चलें ना नयी गाड़ी लेने के लिए (मुस्कुराते हुए)

मैं : (चोन्कते हुए) मैं... मैं कैसे.... नही आप लोग ही ले आइए मुझे खेतो मे भी काम होता है ना.

सरपंच : अर्रे बेटा मान जाओ नही तो ये सारा घर सिर पर उठा लेगी. जहाँ तक खेतो की बात है तो मैं अपने मुलाज़िम भेज दूँगा 1-2 दिन के लिए वो लोग तुम्हारे खेत का ख्याल रखेंगे जब तक तुम हमारे साथ शहर रहोगे.

मैं : ठीक है.. लेकिन एक बार बाबा से पूछ लूँगा तो बेहतर होगा.

सरपंच : तुम्हारे बाबा की फिकर तुम ना करो मैं हूँ ना मैं कल ही जाके बात कर आउगा फिर परसो हम शहर चलेंगे. अब तो कोई ऐतराज़ नही तुमको.

मैं : जी नही... अच्छा सरपंच जी अब इजाज़त दीजिए काफ़ी रात हो गई है सब लोग खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे.

सरपंच : ठीक है.... रूको तुमको मानसिंघ छोड़ आएगा... मानसिंघ... (अपने मुलाज़िम को आवाज़ लगाते हुए)

मानसिंघ : जी मालिक (दौड़कर सरपंच के सामने आते हुए)

सरपंच : नीर को उनके घर छोड़ आओ जीप पर.

मानसिंघ : जी... ठीक है मालिक.

उसके बाद मानसिंघ मुझे जीप पर घर तक छोड़ गया ऑर मेरे घर आते ही नाज़ी मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर-घूर कर देखने लगी लेकिन वो बोल कुछ नही रही थी ऑर ऐसे ही गुस्से से मुझे घुरती हुई चुप-चाप फ़िज़ा के कमरे मे चली गई. तभी फ़िज़ा भी रसोई मे से आ गई...

फ़िज़ा : आ गये नीर बहुत देर करदी.(मुस्कुराते हुए)

मैं : कुछ नही वो ज़रा हीना को गाड़ी सीखा रहा था तो देर हो गई.

फ़िज़ा : तुम्हारे इतनी चोट लगी है एक दिन नही सीखते तो क्या हो जाना था.

मैं : नही वो बाबा ने हीना को बोल दिया था तो मैं मना कैसे करता इसलिए सोचा जब आ गया हूँ तो गाड़ी चलानी भी सीखा ही देता हूँ.

फ़िज़ा : वो सब तो ठीक है लेकिन कुछ अपना भी ख्याल रखा करो.

मैं : (चारो तरफ देखते हुए) तुम हो ना मेरा ख्याल रखने के लिए...(मुस्कुराकर)

फ़िज़ा : अच्छा अब ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नही है चलो जाओ जाके नहा लो फिर साथ मे खाना खाएँगे.

मैं : अच्छा....

उसके बाद मैं नहाने चला गया ऑर फ़िज़ा भी वापिस रसोई मे चली गई. कुछ देर बाद मैं जब नहा कर बाहर आया तो फ़िज़ा अकेली ही खाने का सब समान टेबल पर रख रही थी.

मैं : नाज़ी दिखाई नही दे रही वो कहाँ है.

फ़िज़ा : वो अंदर है कमरे मे कह रही थी भूख नही है इसलिए खाना नही खाएगी. अब तुम तो जल्दी आओ मुझे बहुत भूख लगी है चलो आज हम दोनो खाना खा लेते हैं.(मुस्कुरा कर)

मैं : तुम खाना शुरू करो मैं ज़रा नाज़ी को देखकर आता हूँ.

फ़िज़ा : अच्छा...

मैं जब फ़िज़ा के कमरे मे गया तो नाज़ी अंदर उल्टी होके गान्ड उपर करके लेटी थी ऑर बार-बार तकिये को तोड़-मरोड़ रही थी. मैने एक नज़र उसको देखा ऑर वापिस खाने के टेबल के पास आ गया.

मैं : फ़िज़ा ज़रा नाज़ी की खाने की थाली बना दो मैं अभी उसको खाना खिला कर आता हूँ.

फ़िज़ा : ठीक है...लेकिन वो तो कह रही थी भूख नही है.

मैं : तुम खाना तो लगाओ बाकी मैं खिला लूँगा उसको

फ़िज़ा : ठीक है.

फिर फ़िज़ा ने नाज़ी की खाने की थाली मुझे दे दी ऑर मैं वो थाली लेके कमरे मे चला गया अंदर अभी भी नाज़ी वैसी ही उल्टी होके लेटी हुई थी.

मैं : लगता है आज बहुत गुस्सा हो (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी : तुमसे मतलब...

मैं : अच्छा तो मुझसे गुस्सा हो...

नाज़ी : मैं क्यो किसी से गुस्सा होने लगी.

मैं : अच्छा... तो फिर खाना खाने क्यो नही आई...

नाज़ी : मुझे भूख नही है

मैं : ठीक है थोड़ा सा खा लो मैं तुम्हारे लिए खाना लेके आया हूँ.

नाज़ी : (उठकर बैठते हुए) किसने बोला था खाने लाने को नही खाना मुझे तुम जाओ यहाँ से.

मैं : ऐसे कैसे जाउ तुमको खाना खिलाए बिना तो नही जाउन्गा. (मुस्कुराते हुए)

नाज़ी : अब मेरे पास क्या लेने आए हो जाओ उसी बंदरिया को जाके खाना खिलाओ जिसके साथ बड़ी हँस-हँस के बाते हो रही थी.

मैं : अच्छा....तो इसलिए नाराज़ हो...हाहहहहाहा

नाज़ी : हँसो मत मुझे बहुत गुस्सा चढ़ा हुआ है.

मैं : ठीक है गुस्सा मुझ पर उतारो ना फिर खाने ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है देखो कैसे मायूस होके थाली मे पड़ा है बिचारा.

नाज़ी : (हँसते हुए) नीर तुम जाओ ना मुझे भूख नही है.

मैं : अच्छा चलो आज सुबह जैसे करते हैं.

नाज़ी : सुबह जैसे क्या

मैं : जैसे तुमने मुझे खाना खिलाया था अपने हाथो से मैं भी तुमको वैसे ही खिलाता हूँ फिर तो ठीक है.

नाज़ी : तुम जाओ ना नीर मुझे नही खाना.

मैं : (बेड पर बैठ ते हुए ऑर थाली मे से रोटी का टुकड़ा तोड़कर नाज़ी के मुँह के सामने करते हुए) मैने तुमसे पूछा नही कि तुमको भूख है या नही चलो अब मुँह खोलो....

नाज़ी : (मुस्कुराकर मुँह खोले हुए) आपने खाया...

मैं : (ना मे सिर हिलाते हुए)

नाज़ी : क्या... चलो आप भी मुँह खोलो मैं खिलाती हूँ (मुस्कुराकर)

उसके बाद ऐसे ही हमने एक दूसरे को खाना खिलाया ऑर एक दूसरे को प्यार से देखते रहे.

मैं : वैसे तुम हीना से किस बात पर गुस्सा थी.

नाज़ी : जानते हो उस कमीनी ने कौन्से कपड़े पहने थे मेरे चाय गिराने के बाद.

मैं : मेरे कपड़े पहने थे तो क्या हुआ.

नाज़ी : ना सिर्फ़ आपके कपड़े पहने थे बल्कि उसने वो कपड़े पहने थे जो मैने खुद आपके लिए
बड़े प्यार से सिले थे. इसलिए मुझे गुस्सा आ रहा था.

मैं : कोई बात नही उसको कपड़ो से खुश हो लेने दो तुम्हारे पास तो तुम्हारा नीर खुद है फिर किसी से जलन कैसी....है ना

नाज़ी : (खुश हो कर मुझे गले से लगाते हुए) अब गुस्सा नही करूँगी.

मैं : चलो अब जल्दी से खाना ख़तम करो फिर सोना भी है बहुत रात हो गई है ना.

नाज़ी : एक बात बोलूं बुरा नही मनोगे तो....

मैं : हाँ बोलो

नाज़ी : वो जब आपके साथ होती है तो मुझे ऐसा लगता है जैसे आप मुझसे दूर हो गये हो.

मैं : किसी से बात कर लेने का मतलब ये नही होता नाज़ी कि मैं उसका हूँ... मैं सिर्फ़ ऑर सिर्फ़ इस घर का हूँ बॅस मुझे इतना पता है.

नाज़ी : मतलब सिर्फ़ मेरे हो. (मुस्कुराते हुए)

मैं : अच्छा अब दूर होके बैठो फ़िज़ा देख लेगी तो क्या सोचेगी.

नाज़ी : (दूर होके बैठ ते हुए) ये तो मैने सोचा ही नही...हाहहाहा

मैं : इसलिए कहता हूँ तुम मे अभी बच्पना है

नाज़ी : (नज़रे झुकाकर मुस्कुराते हुए)

मैं : अच्छा अब मैं चलता हूँ ठीक है बहुत रात हो गई है तुम भी सो जाओ अब.

नाज़ी : मेरे वाले कमरे मे जाके सोना आज ठीक है.

मैं : हम्म अच्छा... (थाली लेके खड़ा होते हुए)

नाज़ी : अर्रे ये आप क्यो लेके जा रहे हो छोड़ो मैं ले जाउन्गी (थाली मुझसे लेते हुए)

मैं : ठीक है

उसके बाद मैं खड़ा हुआ ऑर जैसे ही कमरे से बाहर जाने लगा नाज़ी की आवाज़ मेरे कानो से टकराई जिसने मेरे कदम रोक दिए.

नाज़ी : आज मुँह मीठा नही करना (मुस्कुरा कर)

मैं : करना तो है लेकिन....फ़िज़ा देख सकती है इसलिए अभी रहने देते हैं (मुस्कुराकर)

नाज़ी : सोच लो.... ऐसा मोक़ा फिर नही दूँगी (मुस्कुराते हुए)

मैं : कोई बात नही मुझे कुछ करने के लिए मोक़े की ज़रूरत नही सिर्फ़ मर्ज़ी होनी चाहिए.

इतने मे फ़िज़ा की आवाज़ आ गई तो हम दोनो चुप हो गये....

फ़िज़ा : (कमरे मे आते हुए) अर्रे नाज़ी ने खाना खाया या नही.

मैं : खा लिया (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : क्या बात है जब मैने बोला था तो नही खाया तुम आए तो खा भी लिया.

नाज़ी : ऐसा कुछ नही है भाभी वो बस ये ज़िद्द करके बैठ गये तो खाना पड़ा.

फ़िज़ा : अच्छा अब चलो रसोई मे थोड़ा काम करवा दो मेरे साथ फिर सोना भी है.

नाज़ी : अच्छा अभी आई भाभी.

मैं : मेरे लिए ऑर कोई हुकुम सरकार....(मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : जी... आप जाइए ऑर जाके अपने नये कमरे मे सो जाइए आराम से (मुस्कुरा कर)

मैं : जो हुकुम.... आज बाबा के पास नही सोना क्या.

फ़िज़ा : नही वो बाबा कह रहे थे कि अगर नीर दूसरे कमरे मे सोना चाहे तो सुला देना नही तो यहाँ भी (बाबा के कमरे मे) सोएगा तो मुझे कोई ऐतराज़ नही.

मैं : तो मैं कहा सो फिर...

फ़िज़ा : जहाँ तुम चाहते हो सो जाओ आज तो सारा दिन मैं अकेली ही लगी रही नाज़ी भी तुम्हारे साथ शहर चली गई थी तो मुझे भी बहुत नींद आ रही है.

नाज़ी : तो भाभी आप सो जाओ ना वैसे भी बाबा ने ज़्यादा काम करने से मना किया है ना आपको.

फ़िज़ा : तो फिर घर का बाकी बचा हुआ काम कौन करेगा.

नाज़ी : मैं हूँ ना संभाल लूँगी आप जाओ जाके सो जाओ.(मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : अच्छा... ठीक है (मुस्कुराते हुए) नाज़ी सोने से पहले याद से नीर को दूध गरम करके दे देना मैने उसमे दवाई डाल दी है.

नाज़ी : अच्छा भाभी.

उसके बाद नाज़ी रसोई मे चली गई ऑर फ़िज़ा अपना बिस्तर करने लगी मैं भी अपने नये कमरे मे जाके लेट गया ऑर सोने की कोशिश करने लगा ऑर दिन भर हुए सारे कामो के बारे मे सोचने लगा. थोड़ी देर मैं ऐसे ही बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी. कुछ देर बाद नाज़ी भी दूध का लेके मेरे कमरे मे आ गई.

नाज़ी : सो गये क्या.

मैं : नही जाग रहा हूँ क्या हुआ

नाज़ी : ये दवाई वाला दूध लाई हूँ आपके लिए पी लो.
Reply


Messages In This Thread
Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 12:53 PM
RE: Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 01:19 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,462,377 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 540,009 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,216,428 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 919,967 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,630,758 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,062,425 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,919,782 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,953,977 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,991,921 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 281,198 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)