Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 01:16 PM,
#26
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-24

फ़िज़ा : जान तुम्हारे बिना अब एक पल भी चैन नही आता मुझसे नाराज़ ना हुआ करो

मैं : मैं कब नाराज़ हुआ तुमसे?

फ़िज़ा : (मेरे दोनो गाल पकड़कर) अच्छा...सुबह जब मैं कान पकड़ कर माफियाँ माँग रही थी तब मेरी तरफ कौन नही देख रहा था बताओ ज़रा.

मैं : अच्छा...वो मैं तो ऐसे ही तुमको तंग कर रहा था

फ़िज़ा : जान बहुत मुश्किल से तुम मुझे मिले हो तुम नाराज़ होते हो तो दिल करता है सारी दुनिया ने मुझसे मुँह मोड़ लिया है तुम नही जानते मैं तुमको कितना प्यार करती हूँ तुम तो मेरे सब कुछ हो.

मैं : अच्छा.... बताओ कितना प्यार करती हो (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : प्यार बताया नही करके दिखाया जाता है (मुस्कुरकर मेरे होंठों को चूमते हुए)

मैं : तो करके ही दिखा दो वैसे भी अब तो तुम्हारा ही हूँ मैं.

फ़िज़ा : जान यहाँ नही उपर कोठरी मे चलते हैं ना

मैं : ठीक है फिर मैं लेके जाउन्गा तुमको....मंज़ूर है

फ़िज़ा : (कुछ ना समझने जैसा चेहरा बनाते हुए) क्या.....

मैं : (फ़िज़ा को गोद मे उठाते हुए) ऐसे.....

फ़िज़ा : (डर कर चोन्क्ते हुए) जाआंणन्न्.......

मैं : क्या है डर क्यो रही हो..... गिरोगी नही

फ़िज़ा : (मुस्कुराकर अपनी दोनो बाजू मेरे गले मे डालते हुए) एम्म्म जानती हूँ.... तुमने एक दम उठाया तो डर गई थी. जानते हो मुझे आज तक किसी ने भी ऐसे नही उठाया.

मैं Sadफ़िज़ा को गोद मे उठाके सीढ़िया चढ़ते हुए) किसी ने भी नही...

फ़िज़ा : (ना मे सिर हिलाते हुए)

मैं : चलो अब से हम जब भी कोठरी मे जाएँगे ऐसे ही जाएँगे....

फ़िज़ा : जो हुकुम मेरी सरकार का..... (हँसते हुए)

मैं : (अपना जुमला फ़िज़ा के मुँह से सुनकर हँसते हुए) मेरी बिल्ली मुझे ही मियउूओ....

फ़िज़ा : हमम्म जान भी मेरा.... मेरी जान के जुमले भी मेरे (मुस्कुराते हुए)

मैं : जान कोठरी का दरवाज़ा खोलो

फ़िज़ा : पहले मुझे नीचे तो उतारो फिर खोलती हूँ

मैं : उउउहहुउऊ ऐसे ही खोलो

फ़िज़ा : (अजीब सा मुँह बनके कोठारी की कुण्डी खोलते हुए) जान आप भी ना.....



हम दोनो अब कोठरी मे आ गये थे ऑर फ़िज़ा अब भी मेरी गोद मे ही थी. मैं चारो तरफ नज़र घुमा रहा था ताकि फ़िज़ा को लिटा सकूँ लेकिन वहाँ लेटने की कोई भी जगह नही थी ऑर ज़मीन भी मिट्टी से गंदी हुई पड़ी थी.

फ़िज़ा : क्या हुआ जान

मैं : जान लेटेंगे कहाँ यहाँ तो बिस्तर भी नही है

फ़िज़ा : जान वो जिस दिन तुम शहर से आए थे, तब नाज़ी उपर आई थी ना तो उसने यहाँ बिस्तर पड़ा देखा था जो उसने रात को उठाके नीचे रख दिया था क्योंकि अब तुम भी नीचे ही सोते हो

मैं : तो मैं अपनी जान को प्यार कहाँ करूँ फिर...

फ़िज़ा : आप मुझे नीचे उतारो मैं नीचे से जाके बिस्तर ले आती हूँ जल्दी से

मैं : म्म्म्ममम (कुछ सोचते हुए) रहने दो ऐसे ही कर लेंगे

फ़िज़ा : जान जिस्म ऑर कपड़े गंदे हो जाएँगे ऐसे तो...देख नही रहे यहाँ कितनी धूल है.

मैं : खड़े होके करेंगे ना.... (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : (कुछ ना समझने जैसा मुँह बनाते हुए) खड़े होके कैसे करेंगे.

मैं : तुम बस देखती जाओ.

फ़िज़ा : अच्छा मुझे नीचे तो उतारो....जान ऐसे मज़ा नही आएगा.... बस 2 मिंट लगेंगे मैं बिस्तर ले आती हूँ ना...

मैं : अच्छा ठीक है ये लो... (गोदी से फ़िज़ा को उतारकर ज़मीन पर खड़ी करते हुए)


फ़िज़ा तेज़ कदमो के साथ वापिस नीचे चली गई ऑर मैं कोठारी का उपर वाला गेट खोल कर बाहर की ठंडी हवा का मज़ा लेने लगा अभी कुछ ही देर हुई थी कि मुझे किसी की सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ आई मैने एक बार मुड़कर देखा तो ये फ़िज़ा थी जिसके हाथ मे एक गद्दा ऑर एक चद्दर ऑर एक तकिया था. आते ही उसने एक प्यार भरी मुस्कान के साथ मुझे देखा ऑर आँखों के इशारे से मुझे बिस्तर दिखाया.

मैं : लाओ मैं बिछा देता हूँ

फ़िज़ा : जान आप रहने दो मैं कर लूँगी.

मैं : कोई बात नही दोनो करेंगे तो जल्दी हो जाएगा


फिर हम दोनो मिलकर जल्दी से बिस्तर बिच्छाने लगे बिस्तर के होते ही फ़िज़ा जल्दी से खड़ी हो गई ऑर अपना दुपट्टा साइड पर रख दिया जो अब भी उसके गले मे लटक रहा था फिर हम दोनो जल्दी से बिस्तर पर बैठ गये तो उसने मुझे धक्का देकर बिस्तर पर लिटा दिया ऑर खुद मेरे उपर आ गई.

मैं : आज क्या बात है बहुत जल्दी मे हो.

फ़िज़ा : मुझसे ऑर इंतज़ार नही हो रहा (मेरा चेहरा चूमते हुए)


मेरा चेहरा चूमते हुए फ़िज़ा सीधा मेरे होंठों पर आई ऑर उसने जल्दी से अपना मुँह खोल कर मेरे दोनो होंठ अपने मुँह मे क़ैद कर लिए ऑर बुरी तरह चूसने लगी उसकी साँस लगातार तेज़ हो रही थी ऑर उसके चूमने मे शिद्दत सी आती जा रही थी अब वो बहुत प्यार से मेरे होंठों को चूस रही थी साथ ही अपनी ज़ुबान मेरे दोनो होंठ पर फेर रही थी हम दोनो की मज़े से आँखें बंद थी कुछ देर मेरे होंठ चूसने के बाद उसने मेरे मुँह के अंदर अपनी रसीली ज़ुबान दाखिल कर दी जिसे मैने मुँह खोलकर अपने मुँह मे जाने का रास्ता दे दिया ऑर मज़े से उसकी ज़ुबान चूसने लगा बहुत मीठा-मीठा सा ज़ाएका था उसकी ज़ुबान का. ज़ुबान चूस्ते हुए उसने मेरे दोनो हाथ अपने हाथ मे पकड़े ऑर अपनी कमर पर रख दिए. मैं कभी उसकी ज़ुबान चूस रहा था कभी उसके रस से भरे हुए होंठ ऑर साथ ही उसकी कमर पर अपने दोनो हाथ फेर रहा था लेकिन आज मुझे उसकी कमीज़ के बीच मे कुछ चुभ रहा था....

मैं : (अपना मुँह उसके मुँह से अलग करते हुए) जान ये क्या है हाथ पर चुभ रहा है

फ़िज़ा : ज़िप्प है जान आज मैने आपके लिए नया सूट पहना है (मुस्कुराते हुए) खोल दो परेशानी हो रही है तो... (वापिस मेरे होंठों पर अपने होंठ रखते हुए)


हम फिर से एक दूसरे के होंठ चूसने लगे मैं अपना हाथ लगातार उपर की तरफ ले जा रहा था ताकि मुझे ज़िप्प का जोड़ मिल सके तभी मेरा हाथ फ़िज़ा के गले पर पहुँचा तो मुझे उसका जोड़ मिल गया जिसको मैं खींचता हुआ नीचे तक ले गया अब उसकी पूरी पीठ एक दम बे-परदा थी ऑर मेरे हाथो का अहसास उसे अपनी नंगी पीठ पर होते ही उसने एक ठंडी आअहह भारी ऑर फिर से मेरे मुँह से अपना मुँह जोड़ दिया मैं अब लगातार उसकी पीठ पर हाथ फेर रहा था लेकिन बार-बार उसकी ब्रा का स्टाप मेरे हाथो से टकरा रहा था इसलिए मैने उसको भी खोल दिया अब फ़िज़ा की पीठ एक दम नंगी थी जो एक दम चिकनी थी उस पर अपने हाथ ऑर अपनी उंगालिया फेरते हुए ऐसे लग रहा था जैसे किसी मखमल पर हाथ फेर रहा हूँ. उसको गले लगाते हुए मेरी उंगालिया उसके जिस्म मे धँस रही थी जिससे उससे इंतहाई मज़ा आ रहा था.


फ़िज़ा : जान जब आप मेरी पीठ पर उंगालिया गढ़ाते हो तो इंतहाई मज़ा आता है ऑर करो...

मैं : हमम्म ऐसा करो तुम उल्टी होके लेट जाओ आज मैं तुमको प्यार करूँगा तुम बस लेटी देखती रहना ठीक है

फ़िज़ा : (मेरे उपर से हटकर मेरे साथ उल्टी होके लेट ती हुई) हमम्म

अब वो उल्टी होके लेटी थी ऑर मेरे सामने उसकी दूध जैसी नरम ऑर नाज़ुक पीठ थी. मैं उसके उपर आके लेट गया ऑर उसके गले के पीछे चूमने लगा वो बस आँखें बंद किए लेटी थी मैं कभी उसके गले पर चूस रहा था कभी काट रहा था मेरे बार-बार काटने पर वो ससस्स ससस्स कर रही थी लेकिन उसने मुझे एक बार भी काटने से नही रोका शायद उसको भी मेरे इस तरह करने से मज़ा आ रहा था फिर मैं धीरे-धीरे नीचे आने लगा ऑर उसकी पीठ को चूस-चूस कर काटने लगा उसकी पूरी पीठ मेरी थूक से गीली हो गई थी लेकिन वो बस खामोश होके लेटी थी ओर मज़े से आंखँ बंद किए.

फ़िज़ा : जान अपनी ऑर मेरी कमीज़ उतार दो ना मुझे इनसे उलझल हो रही है मैं आपका जिस्म अपने जिस्म के साथ जुड़ा हुआ महसूस करना चाहती हूँ.

मैं : ठीक है रूको (मैं जल्दी से खड़ा हुआ ऑर अपने सारे कपड़े जल्दी से उतारने लगा)

फ़िज़ा : (गर्दन पीछे करके मुझे कपड़े उतारता हुआ देखती हुई) जान तुम्हारा बदन दिनो-दिन ओर भी सख़्त होता जा रहा है. (मुस्कुराते हुए)

मैं : वो खेत मे काम करता हूँ ना इसलिए....

फ़िज़ा : जानते हो अब पहले से भी ज़्यादा मज़ा आता है (मुस्कुरकर आँखें दुबारा बंद करते हुए)


मैने जैसे ही अपने सारे कपड़े उतारे ऑर फ़िज़ा के उपर लेटा तो फ़िज़ा बोली....

फ़िज़ा : जान मेरे भी आप ही उतार दो ना मुझमे अब हिम्मत नही है

मैने जल्दी से उसको सीधा करके बिस्तर पर ही उठाके बिठाया ऑर उसकी कमीज़ उतारने लगा उसने भी मेरी मदद के लिए अपनी दोनो बाहें हवा मे उठा दी. क्योंकि मैने पहले ही उसकी ब्रा का स्ट्रॅप खोल दिया था इसलिए उसकी कमीज़ के साथ उसकी ब्रा भी उतर गई ऑर उसके बड़े-बड़े ओर सख़्त मम्मे उछल्कर बाहर आ गये उसके निपल अंगूर की तरह एक दम सख़्त ऑर खड़े थे. जिसे मैं घूर-घूर कर देखने लगा मुझे इस तरफ घूरता देखकर उसके अपने दोनो हाथ अपने मम्मों पर रख लिए.

फ़िज़ा : जान ऐसे मत देखा करो मुझे शरम आती है (मुँह नीचे करके मुस्कुराते हुए)

मैं : कमाल है... मुझसे भी शरम आती है (गौर से उसका चेहरा देखते हुए)

फ़िज़ा : अच्छा लो बसस्स खुश (अपने दोनो हाथ हवा मे उठाकर)

मैं : हमम्म चलो अब लेट जाओ

फ़िज़ा : जान ये भी उतार दो ना तंग कर रही है (बच्चों जैसी मुस्कान के साथ अपनी सलवार की तरफ इशारा करते हुए)

मैने जल्दी से उसकी सलवार भी उतार दी ऑर वो जल्दी से वापिस उल्टी होके लेट गई शायद वो फिर से वही से शुरू करवाना चाहती थी जहाँ से मैने बंद किया था. इसलिए मैं भी बिना कुछ बोले उसके उपर ऐसे ही लेट गया. इस तरह बिना कपड़े के एक दूसरे के साथ जुड़ते ही हम दोनो के बदन को एक झटका सा लगा जिससे हम दोनो के मुँह से एक साथ आअहह निकल गई उसकी गान्ड बेहद नाज़ुक ऑर मुलायम थी जिसका मुझे पहली बार अहसास हुआ था. क्योंकि पहले मैं हमेशा उसके उपर की तरफ ही लेट ता था जब वो सीधी होके लेटी हुई होती थी इसलिए ये अहसास मेरे लिए नया था.

मैं : तुम्हारी गान्ड बहुत मुलायम है किसी गद्दे की तरह

फ़िज़ा : (आँखें बंद किए ही हँसते हुए) मेरा सब कुछ ही आपका है जान जो चाहे करो.

मैं वापिस थोड़ा नीचे को हुआ ऑर फिर से उसकी पीठ को चूसने चाटने ऑर काटने लगा जिससे फिर से उसके मुँह से ससस्स ससस्स निकल रहा था. अब मैं साइड से हाथ नीचे ले जाकर उसके मम्मों को भी दबा रहा था ऑर उसकी कमर पर अपने होंठ उपर नीचे फिरा रहा था साथ ही अब मैं नीचे की तरफ जा रहा था जिससे शायद उसका मज़ा बढ़ता जा रहा था इसलिए वो बार-बार अपनी गान्ड की पहाड़ियो को कभी सख़्त कर रही थी कभी उपर को उठा रही थी. तभी मैने सोचा क्यो ना इसकी गान्ड पर चूम कर देखूं मैं एक बार उसकी गान्ड पर चूम लिया जिससे उसे एक झटका सा लगा ऑर उसके मुँह तेज़ सस्स्स्सस्स निकल गया उसने पलटकर एक बार मुझे देखा फिर बिना कुछ बोले वापिस तकिये पर सिर रख दिया ऑर आँखें बंद कर ली शायद वो भी देखना चाहती थी कि मैं आगे क्या करता हूँ कुछ देर मैं ऐसे ही उसकी गान्ड को चूमता रहा फिर अचानक मैने अपना मुँह खोल कर एक बार हल्के से उसकी गान्ड की पहाड़ी को हल्का सा चूस कर काट लिया जिससे उसको इंतहाई मज़ा आया ओर उसने अपने दोनो हाथ पीछे ले-जाकर मेरा चेहरा पकड़ लिया.

फ़िज़ा : आआहह...जाअंणन्न्....

मैं : क्या हुआ अच्छा नही लगा

फ़िज़ा : बहुत अच्छा लगा तभी तो बर्दाश्त नही कर पाई.

मैं : फिर हाथ हटाओ अपने

फ़िज़ा बिना कुछ बोला उसने मेरे चेहरे के आगे से अपने हाथ हटा दिए ऑर मैं वापिस उसकी गान्ड की पहाड़ियो की चूसने ऑर काटने लगा वो बस मज़े से अपना सिर बार-बार तकिये पर मार रही थी ऑर मज़े से ऊओ....आआहह......सस्स्स्स्सस्स.....सस्स्स्स्स्सस्स..... कर रही थी. अचानक मैने उसकी दोनो गान्ड की पहाड़ियो को खोला ऑर उसमे अपना मुँह डालकर उसकी गान्ड की छेद पर अपनी ज़ुबान की नोक लगाई ऑर फॉरन सस्स्स्स्सस्स आआअहह करते हुए पलट गई ऑर मेरा चेहरा अपने हाथो से पकड़ लिया...
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Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 12:53 PM
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