Kamukta Kahani अहसान
07-30-2019, 01:07 PM,
#24
RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-22

अब हम दोनो ने अपनी सीट बदल ली ऑर एक दूसरे की जगह पर आ गये मैने दुबारा उसको गाड़ी के तमाम पुरज़ो के बारे मे बताया फिर हीना को कार चलाने को कहा. हीना ने कार चलानी शुरू की अब उसने सिर्फ़ स्टारिंग पकड़ा था बाकी नीचे का सारा कंट्रोल मेरे हाथ मे था मैने अपना एक पैर ब्रेक पर रखा हुआ था अहतियात के लिए. लेकिन उसने जैसे ही कार चलानी शुरू की उसने एक दम क्लच छोड़ दिया जिससे गाड़ी झटके से बंद हो गई. काफ़ी बार उसने ट्राइ किया लेकिन हर बार गाड़ी झटके से बंद हो रही थी क्योंकि कभी वो झटके से क्लच छोड़ देती थी कभी रेस नही देती थी. अब वो भी परेशान होने लगी थी.

हीना : मुझे लगता है मैं कभी नही सीख पाउन्गी (रोने जैसा मुँह बनाके)

मैं : फिकर मत करो आज तो पहला ही दिन है कुछ वक़्त लगेगा लेकिन सीख जाओगी

हीना : कैसे सीखूँगी गाड़ी तो शुरू होती नही मुझसे.... पता नही अब्बू ने भी कैसी खटारा गाड़ी दी है कहा भी था नयी गाड़ी खरीद दो.

मैं : अर्रे कुछ नही होता गाड़ी एकदम ठीक है... चलो एक काम करो मैं ड्राइवर सीट पर बैठ जाता हूँ तुम मेरी गोद मे बैठकर चलाओ फिर नीचे पैर से मैं तुमको क्लच छोड़ना सिखाता हूँ पहले.

हीना Sadपरेशान होके) ठीक है

अब मैं ड्राइविंग सीट पर बैठा था ऑर हीना आके मेरी गोद मे बैठ गई. उसके मेरी गोद मे बैठते ही मुझे एक झटका सा लगा उसका बदन बहुत नाज़ुक ऑर कोमल था उसकी कमर एक दम सुरहीदार थी एक दम पतली सी जबकि उसकी गान्ड काफ़ी चौड़ी थी ऑर बाहर को निकली हुई थी साइड से लेकिन बेहद नाज़ुक थी. मैने उसकी कमर के साइड से अपने दोनो हाथ निकाले ऑर स्टारिंग थाम लिया जिस पर उसने पहले से हाथ रखे हुए थे. अब हम दोनो की टांगे एक दम जुड़ी हुई थी ऑर मैने अपने हाथ उसके हाथो पर रखे हुए थे मैने अपने मुँह उसके कंधे पर रखा हुआ था.हमने फिर से कार स्टार्ट की ऑर इस बार कार सही चलने लगी. अब वो बड़े आराम से बैठी कार चला रही थी ऑर खुश हो रही थी....

हीना: (खुश होके हँसते हुए) देखो नीर मैं कार चला रही हूँ

मैं : देखा मैने कहा था ना तुम बेकार मे उदास हो रही थी.

हीना : लेकिन ये हॅंडेल मुझसे सीधा क्यो नही चलता

मैं : धीरे-धीरे ये भी संभालना आ जाएगा. वैसे मेडम इसे हॅंडेल नही स्टारिंग कहते हैं (हँसते हुए)

हीना : अच्छा मुझे पता नही था.

फिर वो ऐसे ही बैठी कार चलाती रही ऑर मैं उसके नाज़ुक बदन ऑर उसके बदन की खुश्बू मे खोया रहा नीचे से मेरे लंड ने भी सिर उठाना शुरू कर दिया था जिसको शायद चूत की खुश्बू मिल गई. कुछ देर बाद हीना को शायद गान्ड के नीचे मेरा लंड चुभने लग गया इसलिए वो अपनी गान्ड को इधर-उधर हिलाने लगी जिससे मेरे लंड को बे-इंतेहा मज़ा आया ऑर वो एक दम लोहे की तरह सख़्त होके खड़ा हो गया लेकिन क्योंकि उपर हीना बैठी थी इसलिए वो सीधा नही खड़ा हो सका ऑर आगे की तरफ मूड गया ऑर चूत की छेद पर दस्तक देने लग गया. जैसे-जैसे लंड नीचे झटका ख़ाता वो सीधा चूत पर ठोकर मारता जिससे हीना को एक झटका सा लगता ऑर वो थोड़ा उपर को हो जाती ऑर फिर बैठ जाती. हम दोनो ही खामोश थे ऑर कार चला रहे थे ऑर हीना चुप-चाप मेरी गोद मे बैठी थी ऑर नीचे से मेरा लंड अपने ही काम मे लगा था क्योंकि कुछ दिन से उसे भी उसकी खुराक नही मिली थी. थोड़ी देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद हीना ने खुद अपनी गान्ड को मेरे लंड पर मसलना शुरू कर दिया शायद अब उसको भी मज़ा आने लगा था.

हीना : अब तुम चलाओ मुझसे नही चलाई जा रही अब मैं देखूँगी.

मैं : ठीक है

वो अब भी मेरी गोद मे बैठी थी ऑर नीचे देख रही थी लेकिन उसकी आँखें बंद थी उसने अपने दोनो हाथ मेरे हाथो पर रखे हुए थे मैं काफ़ी देर ऐसे ही कार चलाता रहा ऑर वो बस मेरी गोद मे बैठी रही बीच-बीच मे उसकी साँस तेज़ हो जाती ऑर वो गान्ड को हिलाने लगती जैसे उसको अंदर से झटके लग रहे हो ऑर फिर शांत होके बैठ जाती लेकिन ज़ुबान से वो एक दम खामोश थी. अब मेरा लंड भी दर्द करने लग गया था क्योंकि वो हीना की गान्ड के नीचे मुड़ा पड़ा था इसलिए उसको अपनी गोद से उठाने के लिए मैने उससे पूछा...

मैं : अब काफ़ी वक़्त हो गया है बाकी कल सीख लेना अब घर चलें.

हीना : हमम्म (वो अब भी मुँह नीचे किए ऑर नज़रें झुकाए बैठी थी)

हीना अब भी मेरी गोद मे ही बैठी थी शायद वो उठना नही चाहती थी इसलिए मैने भी उससे उठने के लिए नही कहा ऑर ऐसे ही गाड़ी घुमा दी. अब गाड़ी मैदान से निकलकर उसी उबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते पर थी जहाँ से हम आए थे. मैं सोच रहा था कि यहाँ शायद हीना मुझे उतरने के लिए कहेगी इसलिए कुछ पल के लिए कार रोकदी ऑर उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा लेकिन वो कुछ नही बोली ऑर ऐसे ही मुँह नीचे किए हुए बैठी रही इसलिए मैने भी बिना कुछ बोले उस रास्ते की तरफ गाड़ी बढ़ा दी. रास्ता कच्चा होने से गाड़ी फिर से उछल्ने लगी ऑर साथ ही हिना भी उच्छलने लगी एक जगह ऐसी आई जहाँ कार ज़ोर से उच्छली साथ ही हीना भी काफ़ी उपर को उछल गई जिसको मैने कमर मे हाथ डालकर पकड़ लिया ऑर सिर पर छत लगने से बचाया. लेकिन उसके उच्छलने से मेरे लंड को खड़े होके अपना सिर उठाने की जगह मिल गई वो किसी डंडे की तरह कार की छत की तरफ मुँह किए खड़ा हो गया जिस पर हीना बैठ गई ऑर एक तेज़ सस्स्सस्स के साथ उसने सामने देखा ऑर मेरे हाथो पर अपनी उंगलियो के नाख़ून गढ़ा दिए जिससे मुझे भी दर्द हुआ ऑर मेरा हाथ छिल गया शायद मेरा लंड उसकी गान्ड की छेद पर चुभा था जिसकी वजह से उससे बेहद दर्द हुआ अगर हम दोनो की सलवार बीच मे ना होती तो मेरा लंड सीधा उसकी गान्ड मे ही घुस जाता अभी मैं अपने ख्यालो मे ही था कि मुझे हीना की आवाज़ आई

हीना : रोको....रोको....कार रोको...ससस्स आई....मेरे सिर मे लगी बहुत दर्द हो रहा है (मैं जानता था वो झूठ बोल रही है क्योंकि छत तक उसके सिर को मैने पहुँचने ही नही दिया था तो लगती कैसे)

मैं : क्या हुआ ठीक तो हो.

हीना : कुछ नही मुझे उधर बैठने दो नही तो फिर से च्चत सिर मे लग जाएगी रास्ता खराब है इसलिए अब आप ही चलाओ बाकी मैं कल सीख लूँगी

मैं : ठीक है

मैने कार रोकी ऑर वो बाहर निकलकर साथ वाली सीट पर आके बैठ गई मैं लगातार उसके चेहरे को ही देख रहा था लेकिन उसकी नज़र एक दम सामने थी उसके चेहरे पर अब भी दर्द महसूस हो रहा था हालाकी वो अपने दर्द ज़ाहिर नही कर रही थी फिर भी उसके चेहरे से सॉफ पता चल रहा था कि उसको अब भी तक़लीफ़ हो रही है. उसकी तक़लीफ़ मेरे लंड से भी देखी नही गई ऑर वो भी बैठने लगा मैं मन ही मन अपने लंड को गालियाँ दे रहा था कि साले इतनी ज़ोर से घुसने की क्या ज़रूरत थी हल्के-फुल्के मज़े भी तो ले सकता था. ऐसे ही खुद से बाते करते हुए मैं कार चलाने लगा सारे रास्ते हम खामोश रहे हम दोनो मे उसके बाद कोई बात नही हुई. थोड़ी देर मे हवेली भी आ गई ऑर कार को देखते ही सरपंच के आदमियो ने बड़ा गेट खोल दिया जिससे कार अंदर आ सके. सामने सरपंच बाग मे टहल रहा था शायद वो हीना का ही इंतज़ार कर रहा था हमें देखकर सरपंच भी तेज़ कदमो के साथ हमारी तरफ आने लगा. मैने कार खड़ी की ऑर चाबी निकालकर सरपंच की तरफ बढ़ने लगा मेरे साथ ही हीना भी सरपंच के पास आ गई.

मैं : ये लीजिए सरपंच जी आपकी अमानत (कार की चाबी सरपंच को देते हुए)

सरपंच : कैसा रहा पहला दिन (मुस्कुराते हुए)

मैं : जी ये तो हीना जी ही बता सकती है

हीना : बहुत अच्छा था अब्बू अब तो मुझे स्टारिंग संभालना भी आ गया है थोड़ा-थोड़ा. (मुस्कुराते हुए)

सरपंच : अर्रे आएगा कैसे नही तुम तो मेरी बहुत होशियार बेटी हो (हीना के सिर पर हाथ रखते हुए)

मैं : अच्छा जी अब इजाज़त दीजिए घर मे सब इंतज़ार कर रहे होंगे

सरपंच: अर्रे ऐसे कैसे नही-नही खाना यही ख़ाके जाना

हीना : हाँ नीर जी खाना यहीं ख़ाके जाना

मैं : जी आज नही फिर कभी आज मैं घर बोलकर आया हूँ इसलिए सब लोग मेरा खाने पर इंतज़ार कर रहे होंगे.

सरपंच : अर्रे बचा-खुचा तो रोज़ खाते हो आज हमारे यहाँ शाही खाना भी खा के देखो तुमने जिंदगी मे कभी नही खाया होगा.

हीना : (बीच मे बोलते हुए) अब्बू आप फिर शुरू हो गये...मैने आपको कुछ समझाया था अगर याद हो तो...

सरपंच : अच्छा ठीक है नही बोलता बस अब तो खुश (इतना कहकर सरपंच अंदर चला गया)

मैं : ठीक है हीना जी कल मुलाक़ात होगी अब इजाज़त दीजिए.

हीना : अब्बू के इस तरह के बर्ताव के लिए माफी चाहती हूँ

मैं : अर्रे कोई बात नही आप माफी मत मांगिए....

हीना : वैसे अगर यहाँ खाना खा जाते तो बेहतर होता (मुस्कुराते हुए)

मैं : आज नही फिर कभी आपकी रोटी उधार रही हम पर (मुस्कुराते हुए) अच्छा अब इजाज़त दीजिए.

हीना : अच्छा जी कल मिलेंगे फिर.... (हाथ हिलाते हुए मुस्कुराकर)

इतना कहकर मैं गेट की तरफ बढ़ गया ऑर हीना वही खड़ी मुझे देखती रही. गेट पर खड़े मुलाज़िम ने छोटा दरवाज़ा मेरे जाने के लिए खोल दिया ऑर मैं हवेली से बाहर निकल गया मैं अपनी सोचो मे गुम था ऑर मेरे कदम घर की तरफ बढ़ रहे थे. मेरे दिमाग़ मे इस वक़्त कई सवाल थे जिनके जवाब मुझे जानने थे. कहाँ मैं फ़िज़ा के साथ था ऑर बीच मे ये नाज़ी ऑर हीना कहा से टपक पड़ी ऑर अब ना तो मैं पूरी तरह नाज़ी के साथ था ना ही फ़िज़ा के साथ ऑर ना ही हीना के साथ ये तीनो ही मुझे एक जैसी लगने लगी थी. तीनो मेरे लिए फ़िकरमंद रहती थी ओर मेरा ख्याल रखने की पूरी कोशिश करती थी मुझे समझ नही आ रहा था कि तीनो मे किसको अपना कहूँ ऑर किसको बेगाना समझकर भूल जाउ.

अपनी ही सोचो मे गुम कब मैं घर पहुंच गया मुझे पता ही नही चला. जब घर आया तो नाज़ी ऑर फ़िज़ा घर के बाहर ही खड़ी थी शायद वो मेरा ही इंतज़ार कर रही थी. उनको मैने एक नज़र देखा तो दोनो ने ही अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया.

नाज़ी : ये क्या तुम पैदल आए हो तुम तो कार पर गये थे ना.

मैं : अर्रे हीना जी को छोड़कर भी तो आना था इसलिए कार भी वापिस वही दे आया

फ़िज़ा : ये सरपंच ने तुमको पैदल ही भेज दिया उससे इतना भी नही हुआ कि किसी मुलाज़िम को कहकर तुमको घर तक कार पर छोड़ जाए उसकी साहबज़ादी को मुफ़्त मे कार चलानी सीखा रहे हो.

मैं : अर्रे कोई बात नही पैदल आ गया तो क्या हो गया.

नाज़ी : बाप-बेटी दोनो एक जैसे हैं अहसान-फारमोश कही के.

मैं : अर्रे तुम दोनो के सवाल-जवाब ख़तम हो गये हो तो मुझे अंदर जाने दो यार भूख लगी है.

नाज़ी : हमम्म चलो हमने भी तुम्हारी वजह से खाना नही खाया. (मुस्कुराते हुए)

फ़िज़ा : चलो पहले तुम नहा लो फिर हम खाना खा लेंगे तब तक मैं खाना गरम करती हूँ

कुछ देर बाद मे मैं नहा लिया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी ने मिलकर खाना भी गरम कर दिया ऑर सब खाना टेबल पर लगा दिया था. हम तीनो खाना खाने बैठ गये.

नाज़ी : तो क्या सिखाया उस हेरोयिन को मास्टर जी ने (मुस्कुराते हुए)

मैं : कार ही सिखानी थी वही सिखाई ऑर क्या

फ़िज़ा : फिर सीख गई ना वो कार चलानी

मैं : अभी इतनी जल्दी कहा अभी तो कुछ दिन लगेंगे

नाज़ी : हाए तो क्या रोज़ा जाओगे उस भूंतनी को सिखाने के लिए?

मैं : हमम्म अब तो रोज़ इसी वक़्त ही घर आउन्गा कुछ दिन.

फ़िज़ा : ये बाबा भी ना इतना नही देखते कि एक अकेला इंसान सारा दिन खेत मे काम करके आया है अब उसको एक नये कम पर और लगा दिया है.

मैं : अर्रे तो क्या हो गया मैने कभी तुमको शिकायत तो नही की ना...

फ़िज़ा : यही तो रोना है तुम कभी शिकायत नही करते. लेकिन हमें तो दिखता है ना तुम हमारे लिए कितनी मेहनत करते हो जो काम किसी ओर इंसान के थे वो काम तुमको करने पड़ रहे हैं.

मैं : (मुस्कुराते हुए) कोई बात नही... मैं बहुत खुश-नसीब समझता हूँ खुद को जो मुझे इतने अच्छे घरवाले मिले तुम लोगो के लिए तो कुछ भी कर सकता हूँ.

नाज़ी : किस्मत तो हमारी अच्छी है जो हम को तुम मिल गये

मैं : अच्छा-अच्छा अब ज़्यादा बाते ना बनाओ ऑर चुप करके खाना खाओ.
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Kamukta Kahani अहसान - by sexstories - 07-30-2019, 12:53 PM
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