RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-15
वो आदमी इतना सुनकर वापिस चला गया ऑर फ़िज़ा मुझे गुस्से से खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी. मुझे समझ नही आ रहा था कि फ़िज़ा मुझे ऐसे गुस्से से क्यो देख रही है तभी वो वापिस पलट गई ऑर वापिस अपने काम वाली जगह जाने लगी.
मैं : फ़िज़ा क्या हुआ ऐसे बिना कुछ बोले कहाँ जा रही हो बात तो सुनो.
फ़िज़ा : (गुस्से मे) क्या है. जाओ अपनी छोटी मालकिन के पास वो तुम्हारा इंतज़ार कर रही है मेरे पिछे क्यो आ रहे हो.
मैं : अर्रे हुआ क्या है बताओ तो सही गुस्सा किस बात पर हो मैं तुम्हारे लिए उसके पास जा रहा हूँ तुम तो हर वक़्त गुस्सा ही करती रहती हो.
फ़िज़ा : अच्छा जी मैं गुस्सा करती हूँ तुम हवेली गये ऑर मुझे बताया भी नही वहाँ जाके क़ासिम की बात भी कर ली फिर भी मुझे बताना ज़रूरी नही समझा ऑर मैं बिना बात के गुस्सा कर रही हूँ क्यो हैं ना.
मैं : फ़िज़ा वो लड़की क़ासिम को जैल से निकलवाने मे हमारी मदद करेगी इसलिए मैं उसके पास गया था ऑर मैं तुमको बताना भूल गया था नाज़ी को सब पता है जाके पूछ लो.
फ़िज़ा : मैं क्यो पुछू नाज़ी से मुझे तुमको बताना चाहिए था ना ऑर क़ासिम को निकलवाने की कोई ज़रूरत नही है.
मैं : (चोन्क्ते हुए) क्यो तुम नही चाहती की वो बाहर आए ऑर तुम्हारे साथ रहे.
फ़िज़ा : नही मैं बस ये नही चाहती कि तुम मुझसे दूर हो जाओ.
मैं : क्या मतलब
फ़िज़ा : ज़ाहिर सी बात है कि क़ासिम अगर बाहर आएगा तो हम दोनो जैसे अब मिलते हैं वैसे नही मिल पाएँगे ऑर वैसे भी क़ासिम से मुझे सिर्फ़ आँसू ऑर तक़लीफ़ ही मिली है जो खुशी मुझे तुमसे मिली वो मैं खोना नही चाहती बस.
मैं : ठीक है जैसे तुम बोलोगि वैसा ही होगा.
फ़िज़ा : अब तुम छोटी मालकिन के पास भी मत जाना ठीक है.
मैं : (हाँ मे सिर हिलाते हुए) हमम्म अब तो खुश हो.
फ़िज़ा : हमम्म (मुस्कुराते हुए)
अभी हम बात की कर रहे थे कि नाज़ी भी हमारे पास आ गई.....
नाज़ी : क्या हुआ नीर वो आदमी कौन था
मैं : वो हवेली से आया था
फ़िज़ा : (मुझे चुप रहने का इशारा करके नही मे सिर हिलाते हुए) कुछ नही वो बस सरपंच ने ऐसे ही आदमी भेजा था कि हम क़ासिम के लिए हुए पैसे देंगे या नही तो मैने मना कर दिया कि हमारे पास पैसे नही है. जब होंगे तो दे देंगे.
नाज़ी : ओह्ह अच्छा
फिर हम तीनो अपने-अपने कामों मे लग गये ओर शाम को खेत से घर आ गये. रात को मैं बाबा के पास बैठा बातें कर रहा था ऑर उनके पैर दबा रहा था ऑर नाज़ी ऑर फ़िज़ा रसोई मे खाने बनाने मे लगी थी कि अचानक बिजली चली गई.
बाबा : ये बिजली वालो को रात मे भी सुकून नही है.
मैं : बाबा रुकिये मैं रोशनी के लिए मोमबत्ती लेके आता हूँ.
मैं मोमबत्ती लेने रसोई मे गया तो मुझे 2 नही बल्कि एक साया नज़र आया जो झुका हुआ था ऑर कोई समान निकाल रहा था डब्बे मे से मुझे लगा कि फ़िज़ा है इसलिए मुझे शरारत सूझी ऑर मैने पिछे से जाके उसको पकड़ लिया इससे पहले कि वो चोंक कर चीखती मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया.
मैं : चिल्लाना मत मैं हूँ नीर (बहुत धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की : (वो खामोश होके खड़ी हो गई) हमम्म
मैं : एक पप्पी दो ना (धीमी आवाज़ मे)
वो साए वाली लड़की : (ना मे सिर हिलाते हुए)
तभी लाइट आ गई ऑर मैं हैरान-परेशान वही खड़ा का खड़ा ही रह गया मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मुझसे ऐसी ग़लती कैसे हो गई क्योंकि वो लड़की फ़िज़ा नही नाज़ी थी जिसको मैं गले लगाए खड़ा था. लाइट आने के बाद जैसे ही मैने उसको देखा जल्दी से उससे अलग हो गया ऑर रसोई से बाहर निकल गया तेज़ कदमो के साथ.
फ़िज़ा : अर्रे तुम यहाँ क्या कर रहे हो मैं तो तुमको मोमबत्ती देने गई थी.
मैं : कुछ नही वो मैं भी मोमबत्ती लेने आया था
मैं तेज़ कदमो के साथ वापिस कमरे मे आ गया. रात को खाने पर नाज़ी मुझे अजीब सी नॅज़ारो से देख रही थी लेकिन मुझमे उससे नज़ारे मिलाने की हिम्मत नही थी ना ही ये बात मैं किसी को बता सकता था. मैं बस जल्दी-जल्दी खाना ख़तम करके वहाँ से उठना चाहता था तभी नाज़ी बोली...
नाज़ी: भाभी आजकल बिजली जाने के भी फ़ायदे हो गये हैं ना (मेरी तरफ देखती हुई)
मैं : (डर से ना मे सिर हिलाते हुए ऑर मिन्नत वाले अंदाज़ मे नाज़ी को देखते हुए)
फ़िज़ा : (कुछ ना समझने वाले अंदाज़ मे) क्या मतलब.
नाज़ी : कुछ नही वो आजकल हम जैसे गाँव वाले भी शहर वालो की तरह मोमबत्ती जला के खाना खा सकते हैं जैसे फ़िल्मो मे दिखाते हैं.
फ़िज़ा : चल पागल (हँसती हुई)
नाज़ी : (मुझे देख कर हँसती हुई ऑर आँख मारते हुए) हमम्म्म.
फ़िज़ा : अच्छा नाज़ी तुम सबको एक बात बतानी थी (सिर झुका कर मुस्कुराते हुए)
नाज़ी : क्या भाभी.
फ़िज़ा : अब तू थोड़ी समझदार हो जा तुझे एक नये मेहमान की ज़िम्मेदारी उठानी है मेरे साथ.
नाज़ी : क्या मतलब
फ़िज़ा : मतलब ये कि तुम बुआ बनने वाली हो (शर्मा कर मुस्कुराती हुई)
नाज़ी : सचिईीई.....(अपनी जगह से खड़ी होके फ़िज़ा को गले लगाते हुए) हाए कोई मुझे सम्भालो कहीं मैं खुशी से बेहोश ही ना हो जाउ.
मैं : बहुत-बहुत मुबारक हो फ़िज़ा जी.
फ़िज़ा : शुक्रिया...
नाज़ी : चलो क़ासिम भाई ने एक काम तो अच्छा किया
फ़िज़ा : चल बदमाश कही की (कंधे पर मुक्का मारते हुए)
नाज़ी : अच्छा भाभी सुबह बाबा को भी बता दूं वो भी ये सुनकर बहुत खुश होंगे.
फ़िज़ा : (शर्म से मुँह नीचे करते हुए) जो तुमको ठीक लगे.
इसी तरह बातें करते हुआ हमने खाना खाया ऑर रात को सब जल्दी सो गये. फ़िज़ा भी कल रात की चुदाई से बहुत खुश थी इसलिए वो भी मुझे बुलाने नही आई ऑर कुछ हम दोनो पर नींद का भी खुमार था इसलिए आज मैं ऑर फ़िज़ा भी सो गये थे अपने-अपने कमरो मे. सुबह बाबा को नाज़ी ने बता दिया तो वो भी फ़िज़ा के बारे मे सुनकर बहुत खुश हुए ऑर उसको बहुत सी दुआएँ दी. अगले दिन मैने शहर जाना था फसल के लिए नये बीज लेने के लिए इसलिए जल्दी ही तेयार हो गया. आज मैं पहली बार अकेला शहर जा रहा था क्योंकि 2 बार हम जब भी शहर गये थे तो फ़िज़ा ऑर नाज़ी भी मेरे साथ जाती थी. फ़िज़ा मुझे जाने से पहले तमाम हिदायते दे रही थी जैसे मैं शहर नही किसी जंग पर जा रहा हूँ. जब मैं घर से निकला तो नाज़ी ऑर फ़िज़ा दोनो दरवाज़े पर खड़ी मुझे जाता हुआ देखती रही.
फिर मैं बस स्टॅंड आ गया जहाँ शहर जाने के लिए बस आती थी ऑर वहाँ खड़े तमाम लोगो के साथ बस का इंतज़ार करने लगा तभी एक काले रंग की कार मेरे सामने आके रुकी जिसका काँच नीचे हुआ तो अंदर सरपंच की बेटी बैठी थी.
मैं : सलाम छोटी मालकिन.
छोटी मालकिन : वालेकुम.सलाम शहर जा रहे हो?
मैं : हंजी
छोटी मालकिन : चलो अंदर गाड़ी मे आ जाओ मैं भी शहर ही जा रही हूँ
मैं : जी नही शुक्रिया मैं बस मे चला जाउन्गा बेकार मे आपको तक़लीफ़ होगी.
छोटी मालकिन : इसमे तक़लीफ़ की क्या बात है वैसे भी मैं अकेली ही तो हूँ आ जाओ अंदर चलो शाबाश. (कार का दरवाज़ा खोलते हुए)
मैं : जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. (कार मे बैठ ते हुए)
छोटी मालकिन : कल मैने तुमको बुलाया था तुम आए नही.
मैं : माफ़ करना काम मे मसरूफ़ था फिर भूल गया.
छोटी मालकिन : कोई बात नही ऑर ये तुम मुझे क्या छोटी मालकिन-छोटी मालकिन बुलाते हो मैं तुम्हारी थोड़ी ना मालकिन हूँ.
मैं : सारा गाँव आपको यही कहता है तो मैने भी यही बुला दिया
छोटी मालकिन : गाव वालो मे ऑर तुम मे फ़र्क है.
मैं : क्या फ़र्क है जी मैं भी तो उन जैसा ही हूँ.
छोटी मालकिन : (हँसती हुई) गाँव मे किसी की हिम्मत नही कि मेरे घर मे इस तरह घुस कर मेरे ही लोगो की पिटाई कर दे.
मैं : जी माफी चाहता हूँ वो मैं.....
छोटी मालकिन : अर्रे मैं नाराज़ नही हूँ उल्टा खुश हूँ कि कोई तो है जिसमे इतनी हिम्मत है बस कल थोड़ा सा बुरा लगा.
मैं : जी.... क्या हुआ मुझसे कोई ग़लती हो गई क्या.
छोटी मालकिन : आप मिलने जो नही आए बस यही खता हुई पहले मैने सोचा कि मैं चलती हूँ फिर अब्बा जान घर थे तो आपकी समस्या याद आ गयी फिर मैने बात की थी अब्बू से.
मैं : अच्छा फिर क्या कहा उन्होने छोटी मालकिन.
छोटी मालकिन : वो कह रहे थे कि अब कुछ नही हो सकता क़ासिम को सज़ा एलान हो चुकी है अब तो सज़ा पूरी ही काटनी पड़ेगी...(नज़रें झुका कर) माफ़ करना मैं आपकी मदद नही कर सकी.
मैं : कोई बात नही छोटी मालकिन आपने कोशिश की यही मेरे लिए बहुत है. (मुस्कुराते हुए)
छोटी मालकिन : ये तुम क्या मुझे छोटी मालकिन बुला रहे हो हीना नाम है मेरा.
मैं : लेकिन मैं आपको आपके नाम से कैसे बुला सकता हूँ
हीना : क्यो नही बुला सकते मैं भी तो तुमको नीर ही कहती हूँ ना
मैं : ठीक है जैसा आप बेहतर समझे हीना जी.
हीना : हीना जी नही सिर्फ़ हीना.
मैं : अच्छा हीना
हीना : अच्छा मैं तो शहर नये कपड़े खरीदने जा रही हूँ तुम शहर क्यो जा रहे हो.
मैं : वो मैने फसल के लिए नये बीज लेने थे इसलिए जा रहा हूँ.
हीना : अच्छा.... तुमको मैने पहले इस गाँव मे कभी देखा नही तुम कही बाहर रहते थे क्या पहले...?
मैं : जी... (मुझे याद आ गया कि फ़िज़ा ने अपने बारे मे किसी को भी बताने से मुझे मना किया हुआ है)
हीना : अच्छा तुमने ऐसा लड़ना कहाँ सीखा?
मैं : पता नही जब ज़रूरत होती है खुद ही सब कुछ आ जाता है.
हीना : हथियार भी चला सकते हो?
ये बात सुनकर मुझे जाने क्या हो गया ऑर मुझे अजीब सी तस्वीरें नज़र आने लगी जिसमे मैं लोगो पर गोलियाँ चला रहा हूँ मैने शहर के लोगो जैसे कपड़े पहने है मेरे आस-पास बहुत सारे लोग है तभी मेरे सिर मे दर्द होने लगा ऑर मुझे चक्कर से आने लगे ओर मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया...
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