RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
उसने अपना फंक्सन पूरा करना है, अब आप चाहे इस मशीन में मेटीररयल कहीं से ही लाकर क्यों ना डालें। चाहे अपने घर से लाकर या कहीं बाहर से लाकर, उसका तो काम प्रोडेक्सन करना है। और दीदी की चूत पूरी तरह फंक्सनल थी। उसने मेरी मनी से आ रहा मेटीररयल आक्सेप्ट कर लिया था । वह नहीं जानती थी की यह इसके भाई के लंड से निकली मनी थी। यह तो एक ही माँ के दो बच्चों का काम था। और दीदी की चूत अब दिन ब दिन खुलती जा रही थी। पेट के फूलने से वह बाहर को आती जा रही थी। दीदी के मम्मे अब सीने पर ढलके आ रहे थे। इस वक्त भी दीदी मजे लेने का कोई मोका हाथ से नहीं जाने देतीं थीं। उनके हमल को 8 माह हो गये थे।
अब वह चूत में तो ना लेतीं थीं। लेकिन मैं कामिनी को चोद रहा होता था तो मेरा लंड चुसती। या कामिनी से अपनी मोटी सी चूत चुसवा लिया करती थीं। मैं और कामिनी मगन थे। दीदी को अभी चोदा नहीं जा सकता था। कामिनी आजकल खूब चुद रही थी। उसका हुश्न अब खिल कर मुकम्मल हो चुका था वो भरपूर जवान हो चुकी थी। उसके बदन में बिजलियाँ भर चुकी थीं।
उसकी उमर अब 20 साल थी, और 20 साल में ही उसकी चूत काफी खुल गई थी, लब गुलाबी और बाहर को लटक से गये थे। गान्ड का सुराख भी गुलाबी था और खुला हुआ था। और मम्मे अब पूरी तरह उभर आए थे। बेहद टाइट और ऊपर को उठे हुये। बहुत मजा देती थी मेरी बहन मुझे। अब उसके पीरियड का मसला भी नहीं रहा था। पीरियड के दिनों में मैं उसकी गान्ड चोदा करता था या लंड चुसवा लिया करता था। उन दिनों बस हमारी यही मसरूफ़ियत थीं।
और आख़िरकार 1952 शुरू हुआ। और दीदी ने एक रात एक सेहतमंद लड़के को जनम दिया। क्या ही खूबसूरत लड़का था। वह मुझ पर और दीदी पर ही गया था। यह हम दोनों का बेटा था, मैं उसका बाप और मम्मी दोनों था। दीदी की चीखें मुझ आज भी याद हैं। मैं और कामिनी घबरा गये थे। यह हम ही जानते हैं की किस तरह हमने दीदी की चूत को खोलकर वह बच्चा बाहर खींचा। और दीदी की चूत से बाहर आयी नली को अंदर धकेला जो बच्चे के साथ ही बाहर आ गई थी।
और फिर कुछ दिन गुजर गये। अब दीदी काफी संभल गईं थीं। हमारे पास वक्त गुजारने का एक नया खिलौना आ गया था। हम उस बच्चे के साथ ही लगे रहते यहाँ तक की मैं आजकल कामिनी की चुदाई भी नहीं कर रहा था। कामिनी भी हर वक्त बच्चे के साथ खेलती रहती।
हमने उसका नाम अक्षय रखा। मेरा और राधा दीदी का बेटा हमारा बेटा तेज़ी से बड़ा होने लगा। दीदी उसको दूध पिलाया करती थीं। मैं और कामिनी भी उसे कभी-2 घुमाने ले जाते लेकिन वह अभी बेहद छोटा था। फिर दीदी की छठ्ठी हमने मनाई। दीदी नहा धोकर साफ सुथरी होकर आईं। बच्चे को हमने हमारे बचाए हुये कपड़ों में लपेट रखा था। दीदी निखरी निखरी सामने बैठी थीं। रात का वक्त था। आग जलाकर हम साहिल पर ही बैठे हुये थे। गर्मी की रात थी। बेहद धीमी और मस्त हवा चल रही थी समुंदर की तरफ से। मैं और कामिनी मछली भून रहे थे, एक दूसरे से मजाक कर रहे थे।
दीदी अक्षय को लिए बैठी थीं। वह उनकी गोद में हुमक रहा था, दीदी के चेहरे पर एक अंजाना सुकून था एक चमक थी। मैं और कामिनी एक दूसरे से मजाक करते रहे, एक दूसरे के पीछे भागते, दीदी हमें मुश्कुरा कर देख रहीं थीं। अचानक कामिनी ने मुझे एक जोरदार हाथ मारा और भाग खड़ी हुई। मैं उसके पीछे भगा। हम कुछ दूर तक भागे की कामिनी का पाँव फिसल गया और वो नीचे जा गिरी। मैं भी नहीं संभला और उसके कोमल जिस्म पर गिरा। कई दिनों से मैंने अपने लंड की आग अपनी दोनों बहनों में से किसी की चूत से नहीं बुझाई थी। उसके जिस्म की रगड़ खाकर मेरा लंड एकदम ही तन गया। और फिर मैं भला क्यों रुकता। कुछ ही देर बाद कामिनी की लज़्जत से भरी बहकी बहकी आवाजें ठंडे साहिल की भीगी रेत पर हवाओं की दोर पर काफी दूर तक जा रही थी। वो सिसक रही थी, मनी छोड़ रही थी।
लेकिन मेरा लंड तो उसकी गुलाबी चूत से इंतकाम लेने पर तुला हुआ था। वह अंदर गहराइयों से हो आता बिना उसे सुकून दिए, उसकी नैय्या को पार लगाए, और उसकी बेकली बढ़ती जा रही थी। वह काट रही थी मुझे झंझोड़ रही थी। लेकिन मैं उसके मम्मे पकड़े उसकी चूत में समाया हुआ था। बस हमारी तेज चलती सांसों की आवाजें। समुंदर की मोजों का धीमा सा शोर या कुछ देर बाद कामिनी की हल्की सी नखड़ा भरी आवाज सुनाई दे जाती थी। रात तेज़ी से भागति जा रही थी। दीदी भी शायद हमारा इंतजार करके अब झोंपड़े में जा चुकी थीं। और मैं और कामिनी ठंडी रेत पर लेटे अपने जिस्मों की आग को एक दूसरे के जिस्मों में उड़ेल रहे थे। और फिर हमारे जिस्म सर्द पड़ गये, ज़ज्बात की रवानी को करार आ गया। हम एक दूसरे से लिपटे पड़े थे। चाँदनी हमारे जिस्मों को चूम रही थी।
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