RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
अब दीदी ने कामिनी की चूत से मुँह हटाया, और कामिनी को एक तरफ लिटा दिया। वो बेहोश थी, दीदी ने शराब की बोतल ली और शराब उसकी गान्ड के सुराख पर डालने लगीं, जिससे खून रुक गया। लेकिन जलन से कामिनी की बेहोशी ख़तम होने लगी। दीदी ने शराब उसके मुँह से लगा दी, और वो पीने लगी और एक ही साँस में काफी सारी अपने हलक में उंड़ेल गई, और फिर एकदम होश में आ गई, और साथ ही चीखने लगी-“निकालो इसे… प्रेम भाई, मैं मर जाउन्गि, दीदी मेरी गान्ड फट गई है, दीदी जल्दी निकालो, मुझे जाने दो…” वो दीवानों की तरह चिल्ला रही थी।
मैं उसकी टांगें पकड़ा हुआ था। और दीदी ने उसे सीने से लगाया हुआ था। आख़िर कुछ देर बाद उसपर शायद नशा चढ़ने लगा, और वो सो गई।
दोस्तों, अगली सुबह हस्ब-ए-मामोल थी, वो नाराज थी मुझसे, अब तो उससे बैठा भी नहीं जा रहा था, लेकिन कुछ दिन में सब कुछ ठीक हो गया। मुझे याद है की उसके दो दिन बाद कामिनी के पीरियड शुरू होंगये। फिर जब दीदी के पीरियड शुरू हुये तो मैं कामिनी की खूब चुदाई किया करता था, और उसकी गान्ड मारता था, अब काफी खुल गये थे उसके दोनों ही सुराख।
बहुत खूबसूरत दिन थे। हम नये नये तरीकी ढूँढते मजा करने के लिए, कभी दीदी मुझे लेटकर मेरा लंड लिए बैठ जातीं और कामिनी मेरा लंड चूस चूसकर दीदी की चूत में डालती। कभी कामिनी यही करती। दीदी की गान्ड का सुराख अभी तक बंद था। मैंने कई बार चुदाई के वक्त उनकी गान्ड के सुराख में उंगली डाली, बहुत ही गरम था, और बहुत टाइट, लेकिन दीदी ने मना कर दिया। ना जाने क्यों अभी वो अपनी गान्ड का सुराख खुलवाना नहीं चाहती थीं, जब की कामिनी की गान्ड अब काफी बड़ी हो चुकी थी, उसकी चाल अब बेहद मस्तानी हो गई थी। घोड़ी बनते ही उसकी चूत और गान्ड का खुला सुराख सामने आ जाता, चूत भी काफी मोटी हो चली थी।
और मम्मे वैसे ही हसीन थे, बस और उभर आए थे, लेकिन ना जाने क्या बात थी, दो साल हो चले थे, मुझे अपनी दोनों बहनों को चोदते, लेकिन दोनों में से कोई भी प्रेगनेंट ना हो सकी थी, और आख़िर 1951 सेप्टेंबर में दीदी प्रेगनेंट हो गई, उसको हमल ठहर गया था, और महीने गुजरने के साथ उसका पेट फूलता जा रहा था। अब वो 5 महीने की हमला है। कामिनी को अभी हमल नहीं हुआ है, इसलिए वो और मैं बहुत चुदाई करते थे, दीदी भी शरीक होती थी अपने मोटे पेट को लिए। कामिनी उनको आराम से मेरे लंड पर बिठाकर उनकी चूत में लंड डाल देती थी और फिर उन्हें आराम से फारिग करवाया करते थे हम दोनों।
मेरे दोस्तों मेरी यह दास्तान अब निहायत ही अहम मोड़ पर आ चुकी है और अब शायद बहुत जल्द मैं आपको अपनी पूरी दास्तान सुनाकर आपसे विदा लूंगा और फिर वक्त की तारीखों में कहीं खो जाऊँगा लेकिन मुझे
यकीन है की मैं चाहे रहूँ ना रहूँ, मेरे अल्फ़ाज़ ज़रूर जिंदा रहेगे। मेरी मुहब्बत की दास्तान दुनियाँ के कानों तक ज़रूर पहुँचेगी। जो मुझे अपनी दोनों बहनों से थी और अब भी है। यह कहने में मैं कोई शरम महसूस नहीं करता की मैं अपनी बहनों से बेहद मुहब्बत करता हूँ।
हमें यहाँ आए अब 14 साल हो रहे हैं। दीदी को हमल ठहर चुका है, मेरे लंड से वह हमला हो चुकी है। मेरी मनी से उसका पेट फूल चुका है। तो इन कामों का जो अंजाम होना था वोही हुआ था। चूत तो सिर्फ़ मनी मांगती है दोस्तों। वह मनी किसके भी लंड से क्यों ना छूटी हो, उसका जो काम है, चूत का जो फंक्सन है। वो तो एक मशीन है।
|