RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
आपने मेरी दास्तान का वो हिस्सा तो मुलाहिजा फरमा लिया जब मैंने अपनी कंवारी और कम-उमर बहन कामिनी को कली से फूल बना दिया, मैं बहुत मदहोश था, दीदी की चूत भी बहुत हसीन थी, बहुत तंग थी। बेहद मजा था वहाँ भी, बहुत गर्मी थी वहाँ, लेकिन जो बात कामिनी की चूत में थी उसके सामने दीदी की चूत की आग मंद पड़ने लगी थी।
कामिनी को बुखार आ गया था, चूत खुलने की वजह से। उसकी चूत पर सूजन थी, रात भर वो बुखार में तपती रही। सुबह उसकी तबीयत कुछ संभल गई। चूत की सूजन भी कम होती दिखी, सुबह जब वो अंगड़ाई लेती नींद से बेजार होकर झोंपड़े से बाहर आई, तो मैं और दीदी कुछ दूर बैठे भुने हुये साँप खा रहे थे।
यह यहाँ पानी में रहते थे, जहरीले थे। लेकिन बहुत कम, अगर काट भी लें तो थोड़ा सा नशा हो जाता था, लेकिन अगर इनकी खाल खींचकर और जहर की थैली अलग करके इन का भुना हुआ गोश्त खाया जाए तो यह बेहद लजीज होते थे। अब यह कम ही पकड़े जाते थे, होशियार हो गये थे। जिस दिन यह हाथ लगते, हम बहुत खुशी से इनको खाते थे। आज इत्तिफाक से हमने तीन साँप पकड़ लिए थे। वैसे तो दो साँप ही बहुत थे हमारे लिए लेकिन हमने तीनों ही भून लिए थे, और मजे से खा ही रहे थे। कामिनी हमें देखकर वहीं आने लगी, अजीब बेढंगी चाल चल रही थी वो।
मुझे तो हँसी आ गई उसको देखकर, चूत अभी थोड़ी सूजी हुई थी, तो दोनों रानों के बीच से चूत का मुँह बाहर को निकला महसूस हो रहा था। और क्योंकी वो अपनी रानों को मिलाकर नहीं चल रही थी, तो अजीब गान्ड निकाल कर चलती बेहद अजीब लग रही थी। मैं हँस पड़ा, लेकिन उसने मुँह बनाया और खाने लगी, यह सांप उसकी भी पहली पसंद थे। खाने के बाद, दीदी तो अपनी खून आलूदा चूत लिए नदी की तरफ चली गईं, हमें वहाँ छोड़ गईं, और जाते जाते मुझे याद भी दिला गईं की-“प्रेम कोई चुदाई नहीं आज…”
और मैं सिर हिलाकर खामोश ही बैठा रहा। उनके जाने के बाद मैं कामिनी के पास आ बैठा, उसने रुख मोड़ लिया,
क्या हुआ कामिनी, क्यों नाराज हो?”
“भाई मुझसे बात ना करो, कितना दर्द है तुम भला क्या जानो…”
“कामिनी यह दर्द कभी ना कभी तो होना ही था, अच्छा तू सच बता मजा नहीं आया था क्या तुझको…”
वो कुछ देर खामोश बैठी रही-“भाई, अब तुम क्या करोगे, दीदी के तो पीरियड हैं, और मेरी चूत तो बहुत सूजी हुई है, आज कैसे चुदाई करोगे…” उसके लहजे में बहुत मासूमियत थी।
मैं रोनी शकल बनाकर बोला-“हाँ… कामिनी आज मुझसे कोई प्यार नहीं करेगा। तुझको भी दर्द है। अब पता नहीं कब तेरी यह प्यारी सी चूत मुझे मिलेगी, कब मैं इसे चूसूंगा। कब इसमें अपना लंड डालूंगा…”
वो बोली-“प्रेम भाई, क्या अब भी मुझ दर्द होगा…”
मैं बोला-“अरे नहीं पगली। दीदी को नहीं देखा। अब कैसे आराम से खड़े खड़े ही मेरा पूरा लंड अपनी चूत में ले लेतीं हैं, कुछ दिन बाद तेरी चूत जब सही होगी तो खुल चुकी होगी…”
हम कुछ देर बातें करते रहे, दीदी वापिस आती नजर आईं, वो बोलीं-“तुम दोनों को आज नहाना नहीं है क्या…”
कामिनी बोली-“दीदी मुझे तो सर्दी लग रही है…”
मैं उठा और नदी की तरफ जाते हुये बोला-“दीदी मैं तो जा रहा हूँ नहाने…”
मैं नदी पर आ गया, काफी सर्दी थी। लेकिन नदी पर नहाते हुये, बड़ा मजा आया, मैं नहा कर जब वापिस पहुँचा तो क्या देखता हूँ, दीदी कामिनी की दोनों टांगें खोले बीच में बैठी थीं, कामिनी ऊपर एक पत्थर पर बैठी थी, और दीदी के बाल पकड़े हुये थी, और दीदी उसकी सूजी हुई चूत को जबान से चाट रही थीं। मैं हैरान रह गया, मैं करीब जाकर बैठ गया, और उन दोनों बहनों के मजे से भरी आवाजें सुनता रहा। मेरा लंड बेहद गरम होकर खड़ा हो चुका था।
और कुछ ही देर बाद कामिनी सुकून में आती नजर आई। और दीदी को मैंने घूँट भरते देखकर अंदाजा लगा लिया की कामिनी अभी अपनी मनी छोड़ रही है और दीदी उसे पीने में मगन हैं। जब दीदी ने कामिनी की चूत से मुँह हटाया तो मैं उनके भीगे हुये होंठ और कामिनी की चूत से टपकती एक महीन सी मनी की लकीर देखते ही समझ गया की कामिनी भरपूर तरीके से फारिग हुई है।
मैंने अपनी शरारत से मुश्कुराती दीदी को देखकर कहा-“क्यों दीदी आपने तो मुझे कामिनी की चूत को छूने से मना किया था, और खुद आप उसकी मनी पी रही हैं, चूत चाट रहीं हैं।
दीदी मुश्कुराते हुये बोलीं-“प्रेम, पता है मैं तुम्हें एक राज की बात बताती हूँ आज। तुमने कहीं किसी कुत्ते (डॉग) को कुतिया की चुदाई करते देखा है…”
मैंने नहीं में गर्दन हिला दी।
वो बोलीं-“कुत्ता जब कुतिया को चोदता है तो कुतिया की चूत में एक काँटे जैसे चीज होती है जो कुत्ते के लंड को मजबूती से पकड़ लेती है, कुत्ते का लंड उसमें फँस जाता है…”
मैं बोला-“दीदी आपको यह कैसे पता?”
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