non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
07-29-2019, 11:55 AM,
#7
RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
मैं हैरत से सन्न हो गया और उधर कामिनी हैरत से दीदी को देख रही थी। और दीदी निहायत मजे में आँख बंद किए मेरा लंड अपने मुँह से चूस रहीं थीं। मैं कुछ ही देर हैरत में रहा और फिर एक नकाबिल-ए-बयान लज़्जत मेरे वजूद में उतरने लगी। कुछ ही देर बाद मुझे अपने लंड में एक दबाव सा महसूस हुआ और मेरा जिस्म एंठना शुरू हुआ। यह महसूस करते ही दीदी ने अपना मुँह हटा लिया और हाथों से तेज़ी से मेरा लंड सहलाने लगीं। और फिर मेरी जिंदगी का अजीब वाकिया हुआ। मेरे लंड से सफेद रंग का गाढ़ा पानी बहने लगा और एक फौवारे की तरह उछल उछल कर बाहर आने लगा और उसके साथ ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म की जान ही निकल गई हो। ऐसा सुरूर… मैंने कभी महसूस नहीं किया था। मैं निढाल हो गया।

दीदी ने कहा-“कहो मजा आया?”

मेरी नजर दीदी की चूत की तरफ पड़ी तो वहाँ भी लेसदार पानी एक पतली धार की सूरत में उनकी चूत से बहकर घुटनों तक आया हुआ था। तो दीदी की चूत ने भी पानी छोड़ा था। मैंने कहा-“दीदी बहुत मजा आया अब हम दोबारा कब खेलेंगे…”

दीदी मुस्कराने लगी और बोली-“चल अब सो जा…”

और कामिनी से बोली-“देखा तूने… अब चल तू भी सो जा। कल सुबह बातें करेंगे इस बारे में…”

हम सब सो गये। हम सो रहे थे, हमारी क़िस्मत भी सो रही थी। ना जाने कब तक हमें यहाँ रहना था। ना जाने कब हम दुनियाँ को, लोगों को, अपने घर को, कब आख़िर कब देख सकेंगे। मुझे याद है उस पूरी रात मैं बहुत ही भयानक ख्वाब देखता रहा। अब मुझे महीना तो याद नहीं पर इतना याद है की गर्मियाँ थीं और हाँ साल तकरीबन था 1945, यानी तकरीबन सातवाँ साल शुरू हो चुका था।

उस रात की सुबह हुई तो हम उठे। मैं और कामिनी झोंपड़े में थे, कामिनी सो रही थी। उसकी कमसिन चूत अधखिली हालात में बिल्कुल मेरे सामने थी। दिल तो मेरा चाहा की मैं कामिनी की चूत चूसू लेकिन वह अभी सो रही थी। मेरा दिल फिर मेरे लंड से पानी निकालने को चाह रहा था। कामिनी की कंवारी चूत का खुला मुँह, उसकी चूत के हल्के गुलाबी लब, उसपर हल्के हल्के बाल, उसका जवान होता सीना जो जवानी की मदहोश सांसों से ऊपर नीचे हो रहा था। और उसका मासूम चेहरा सुतवाँ नाक, हल्का सा सांवला हुआ रंग, हल्के गुलाबी होंठ। आज मुझे एहसास हो रहा था की मेरी यह बहन तो बहुत ही हसीन है। खैर मेरा लंड बिल्कुल तना हुआ था। मैंने कामिनी को जगाना मुनासिब ना समझा और उठकर बाहर चला आया। खूबसूरत सुहानी धूप चारों ओर फैली हुई थी। एक और चमकीला दिन शुरू हो चुका था, पर हमारी जिंदगी में कोई नयापन ना था। कुछ दूर दीदी बैठी ताज़ा शिकार की हुई मछली भून रहीं थीं। और उनके हाथ में शराब थी।

मैं उनकी तरफ बढ़ गया-क्यों दीदी आज सुबह ही सुबह शराब?

वो चौंक पड़ी, मेरी आवाज सुनकर फिर मुश्कुराते हुये बोली-“उठ गये… कहो कैसी रही रात?”

मैं मुश्कुराते हुये-“बहुत अच्छा और मजेदार था आपका खेल दीदी…”

वो बोली-“हाँ आज जरा कामिनी उठ जाए फिर मैं तुम दोनों को इस खेल की सारी तफ़सीलात भी बताऊूँगी…”

मैं वहाँ से उठ गया और नदी पर जाकर नहाने लगा और हाजत से फारिग हुआ। देखा तो कामिनी चली आ रही है अपनी मस्त जवानी भरी चाल चलती हुई वह भी नहाने आई थी। उसकी आूँखों में अब तक नींद का खुम्मार था। मैं उसको देखकर मुश्कुराया और पानी में आने का इशारा किया। वो पानी में उतर आई। मैं उसके पास पहुँचा-“क्यों कामिनी रात को कैसा लगा…”

वह बोली-“हाँ… भाई। तुम्हारे लंड से कोई चीज निकली थी और तुम निढाल हो गये थे। मैं तो डर गई थी…”


मैं बोला-“अरे नहीं पगली। मुझे तो बहुत ही मजा आया। अब दीदी से बोलेंगे तुम्हारी चूत से भी वोही चीज निकालें। सच बहुत मजा आता है…”

वो बोली-“लेकिन भाई मेरी चूत से दीदी कैसे निकालेंगी… मेरी चूत भी चूसेंगी वह क्या?”

मैंने कहा-“हाँ… तुम्हारी चूत से…” यह कहते हुये मैं उसके मम्मे सहलाने लगा-“अरे देख कामिनी तेरा सीना कितना बड़ा हो गया है?”

वो बोली-“नहीं भाई मुझको तो दीदी का सीना पसंद है कितनी बड़ी और गुलाबी नोकें हैं उनकी…”

मैं बोला-“कुछ दिन बाद तेरा सीना उनसे भी अच्छा हो जाएगा। तू देख तेरा सीना नोकीला और ऊपर को उठ रहा है जबकी दीदी का सीना बिल्कुल गोलाई में है…” मैं उसका सीना सहला रहा था।

फिर वह बोली-“अब चलें भाई…”

मैं भी बाहर निकल आया। हम दोनों बहन भाई हाथों में हाथ डाले जंगल से होते अपने झोंपड़े की तरफ बढ़ते चले गये। वहाँ दीदी नाश्ते की तैयारी कर चुकी थीं हमको देखते ही बोलीं-“कहाँ मस्त हो गये थे तुम दोनों… खेल में तो नहीं लग गये थे रात वाले…”

हम दोनों मुश्कुरा उठे-“नहीं दीदी बस नहा रहे थे…”

कामिनी बोली-“दीदी को बताओ ना की तुम मेरा सीना सहला रहे थे…”

दीदी शरारि से-“क्यों प्रेम… बहुत पसंद आ गया है कामिनी का सीना, अभी तो उभर रहा है फिर देखना कितना हसीन हो जाएगा। तुम अभी से सहलाने लगे…”

मैं बोला-“हाँ दीदी… मैं भी इसे यही बता रहा था…”

दीदी बोली-“अच्छा नाश्ता कर लो बाकी बातें बाद में करेंगे। आज मैं रात तक की मछली ले आई हूँ और हमें कोई और काम भी नहीं तो बातें करी जाय…”

हम सिर झुकाए नाश्ता करने लगे। नाश्ता करने के बाद हम अपने झोंपड़े में आ गये और बैठ गये। दीदी हम दोनों की तरफ देखते हुये बोलीं-“आज मैं तुम दोनों को बताती हूँ, उस चीज और उस मजे के लिए जिसके लिए हर इंसान तरसता है…”

हम ध्यान से दीदी की बात सुन रहे थे।

कुछ देर सोचने के बाद दीदी बोलीं-“अभी तुम दोनों छोटे हो इसलिए सिर्फ़ मैं इतना बताऊूँगी, जितना जानना ज़रूरी है तुम्हारे लिए ताकि तुम इस मजेदार खेल का सही लुफ्त ले सको…”

वो फिर बोलीं-“हर लड़की जब बालिग हो जाती है तो हर महीने उसकी चूत से खून आता है। प्रेम जैसे की तुम देखते ही हो की हर महीने मेरी और अब कामिनी की चूत से भी खून आता है इसको औरत के मखसौस आयाम कहते हैं या पीरियड…” दीदी मेरी तरफ देखते हुये बोलीं।

फिर अपनी बात जारी रखते हुये बोलीं-“जब यह पीरियड आ जाय तो लड़की बालिग हो जाती है या यूँ कह लो बच्चा पैदा करने के काबिल हो जाती है…”

हम दोनों चौंक पड़े। हमारी बेचैनी महसूस करते हुये दीदी बोलीं-“पहले मेरी बात सुन लो फिर मैं तुम्हारे सारे सवालों के जवाब तुम्हें दूँगी…”

हम दोनों खामोशी से सुनने लगे। आज तो गोया हरतून का दिन था।

दीदी गोया हुई-“बच्चा पैदा करने की क़ाबलियत का यह मतलब नहीं की लड़की को हाथ लगाओ और बच्चा पैदा हो जाए। उसके लिए कुछ खास करना पड़ता है। वो खास क्या है यह अभी तुम दोनों को बताने का वक्त नहीं आया। प्रेम मेरे भाई तुम अब मुकम्मल मर्द बन चुके हो, तुम्हारी उमर अब *** साल हो चुकी है। तुम बच्चा पैदा करने के काबिल हो किसी भी लड़की से। लेकिन अभी तुम बहुत कम उमर हो…”

दीदी आगे बात बढ़ाते बोलीं-“कामिनी भी अभी छोटी है लेकिन बालिग हो चुकी है। यानी बच्चा पैदा कर सकतीं है लेकिन यह भी अभी कम उमर है। हाँ मैं पूरी तरह मुकम्मल हूँ। मैं एक सेहतमंद बच्चा पैदा कर सकतीं हूँ, लेकिन यहाँ कोई ऐसा मर्द नहीं है जो मुझसे बच्चा पैदा कर सके सिवाए एक तुम्हारे प्रेम… तो जब तुम इस उमर में दाखिल हो जाओगे तो मैं पूरा तरीका भी तुम दोनों को बता दूँगी…”

फिर दीदी बोलीं-“प्रेम कल रात जो तुम्हारे लंड से निकला उसको “मनी” कहते हैं और जो तुम मेरी चूत से निकालते रहे हो और उस दिन कामिनी की चूत से तुमने निकाला वो भी मनी ही है लेकिन मर्द की मनी से जुदा…”

फिर दीदी ने कहा-“तुम दोनों जानते हो मैंने शुरू से ही तुम दोनों को बता रखा है आज फिर बता देती हूं…” वो कामिनी की तरफ देखते हुये बोलीं-“कामिनी यह प्रेम के आगे जो लंबी सी चीज तुम देख रही हो इसको लंड कहते हैं। मर्द इसी लंड से औरत को एक नई दुनियाँ में लेजाकर लुफ्त-ओ-शुरूर से रोशन करते हैं… कोई औरत जब यह लंड चुसती है तो मर्द को बेहद मजा मिलता है और इसी तरह जब मर्द औरत की चूत यानी यह…”

दीदी ने अपनी टांगें चौड़ी कर लीं जिससे उनकी चूत के दोनों लब खुल गये और अंदर का गुलाबी हिस्सा साफ नजर आने लगा। फिर दीदी बोलीं-“इसको चूत कहते हैं और जब मर्द अपने होंठों से इसको चुसते हैं तो वोही लुफ्त औरत को भी मिलता है…”

मैं और कामिनी गौर से दीदी की चूत को देख रहे थे।

दीदी बोलीं-“और प्रेम तुमने आज बताया की तुमको कामिनी की मम्मे बहुत अच्छे लगते हैं तो यह भी मर्द की एक कमजोरी होती है औरत के मम्मे। हाँ वो इसको चुसते हैं, काटते हैं और अपना लुफ्त मुकम्मल करते हैं। तो मेरी बहन कामिनी और मेरे भाई प्रेम…”

दीदी हम दोनों को मुखातिब करते हुये बोलीं-“आज से हम एक नया खेल खेलेंगे। मैं और कामिनी एक साथ या अकेले जब भी दिल चाहे प्रेम का लंड चूसा करेंगे। और प्रेम मेरी और कामिनी की चूत चूसेगा। और हम सब अपनी मनी निकाला करेंगे और लुफ्त की दुनियाँ की सैर करेंगे। और हाँ अब हम अपनी घिजा पर भी तवज्जो देंगे, क्योंकी ज्यादा मनी निकल जाने से जिस्म कमजोर पड़ जाता है और इंसान बीमार भी हो सकता है…” अब पूछो तुमको क्या पूछना है दीदी बोलीं।

मैंने पूछा-“दीदी चूत चूसने के लिए क्या चीज चूसनी पड़ती है क्योंकी यह तो एक सुराख सा है…”

दीदी बोलीं-“प्रेम यह देखो…” दीदी फिर अपनी चूत को खोलते हुये बोलीं-“यह जो तुम इन दोनों लबों के बीच गुलाबी सा हिस्सा देख रहे हो, थोड़ा सा चुसते ही यहाँ से बहुत ही जायकेदार रस बहने लगता है, तुमको बहुत पसंद आएगा। अभी मैं तुमको चखाऊूँगी और यह चूत के ऊपर जो उभरा हुआ हिस्सा तुमको नजर आ रहा है इसको मुँह में दबाकर चूसने से बहुत जल्द मेरी मनी छूट जाएगी…”

मैं बोला-“तो दीदी आप की मनी मुँह में भर जाएगी मेरे…”

दीदी मुश्कुराते हुये-“उसका जायका इतना मजेदार होता है की तुम बार बार उसको चूसना चाहोगे…”

अब कामिनी बोली-“और दीदी प्रेम भाई की मनी निकली थी तो आपने मुँह हटा लिया था तो क्या जब मैं चूसूं तो मुँह हटा लेना है…”

दीदी ने कहा-“अरे नहीं वो तो मैं तुम दोनों को प्रेम की मनी छूटते हुये दिखाना चाहती थी वरना प्रेम की मनी का जायका भी बहुत अच्छा है। मैं अब सारी मनी पीउँगी तुम देखना और जब तुम चूस रही हो तो तुम भी पीकर देखना बहुत मजा आएगा…”

“और तो कुछ नहीं पूछना तुम दोनों को…” दीदी बोलीं।

हम खामोश रहे।

दीदी बोलीं-“चलो अब हम यह करके देखते हैं फिर बाकी बातें तुम दोनों खुद ही समझ जाओगे…”

फिर दीदी मुझसे बोलीं-“प्रेम अभी मैं और तुम यह नया खेल खेलते हैं और कामिनी हमें देखेगी फिर तुम दोनों जब तुम्हारा मन करे खेल लेना…”

मैं खड़ा हो गया। आप इससे ही अंदाजा लगा लें की दीदी मेरा लंड दोबारा चूसने वाली थी, यह सुनकर ही मेरा लंड दोबारा खड़ा हो गया था। या शायद बातों के दरमयान ही खड़ा हो चुका था। अब याद नहीं। तो कामिनी उठकर खड़ी हो गई मैं और दीदी अपने घास-फूस से तैयार बिस्तर की तरफ बढ़ गये। कामिनी सामने ही बैठ गई। मैं और दीदी बराबर बैठे थे। मैं दीदी की तरफ देख रहा था। दीदी की आँख शराब के खुमार और आने वाले लम्हात की खूबसूरती के बाइस ख्वाब अलोड हो रहीं थीं।
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