RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
मैंने तो कम्मो से ये भी कहा था कि अपनी पसंद की ब्रा पैंटी भी ले ले पर उसने हंस के मना कर दिया था कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा कि अंकल जी के साथ ये कैसे खरीदीं? लेकिन मैंने जबरदस्ती करके उसे उसके साइज़ 34B की डिजाइनर ब्रा और पैंटी के दो सेट दिलवा ही दिए और उसे समझा दिया कि ये ब्रा पैंटी मैं अपनी जेब में रखे रहूँगा और बाद में उसे सबसे छुपा के चुपके से दे दूंगा और वो चुपचाप इसे अपने कपड़ों के साथ बैग में रख लेगी.
मेरी यह बात कम्मो ने भी मान ली थी.
फिर हम लोग मॉल से निकल कर बाहर आये तो मुझे याद आया कि अभी कम्मो को गोलगप्पे खिलवाना तो रह ही गया. गोलगप्पे वाला तलाश करके मैंने कम्मो की ये फरमाइश भी पूरी कर दी. कम्मो ने पूरे मजे ले ले कर गोलगप्पे खाए; उसका मुंह पूरा खुलता और गोलगप्पा गप्प से खा जाती इधर मेरे मन में ये ख़याल आता की काश मेरा वाला गोलगप्पा भी ये मुंह में ले लेती, चूस डालती, चाट देती अच्छे से. पर ये सब दिवा स्वप्न ही तो थे.
इतना सब निपटने के बाद पांच बजने को थे अब हमें वापिस धर्मशाला जाने का था. आज रात में ही शादी थी, बरात के लिए तैयार भी होना था सो मैंने ओला की कैब बुक कर ली और चल दिए.
फोन का कैरी बैग और सामान के बैग कम्मो ने पिछली सीट पर रख दिए और मुझसे सट कर बैठ गयी और मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया. कुछ ही घंटों में कम्मो के व्यवहार में कितना परिवर्तन आ चुका था उसकी शर्म हया लाज सब गायब हो चुके थे और उसकी जगह अपनत्व और अधिकार ने ले ली थी. हमारे यहां की लड़कियों की ये विशेषता है कि उनके साथ इस तरह के इंटिमेट सम्बन्ध बनते ही इनके व्यव्हार, बोलचाल में अधिकार झलकने लगता है. अपने पुरुष साथी पर अपना हक़, अपना एकाधिकार, ‘सिर्फ मेरा’ वाली भावनाएं स्वतः ही आ जाती हैं; दरअसल यह भी उनके प्रेम का अन्य रूप ही होता है.
“क्या सोचने लगे अंकल जी?” वो मुझे चिकोटी काट कर बोली
“कम्मो मैं सोच रहा था कि अब आगे हमारा रिश्ता और मजबूत कैसे होगा?” मैंने चुदाई की बात स्पष्ट न कह कर यूं दूसरे ढंग से कहीं.
“अंकल जी, अब मैं क्या बता सकती हूं इस बारे में. मैं तो आपके साथ ही हूं. मेरी तो हर बात में हां है; अब जो सोचना जो करना है वो आप जानो; मैं तो हर जगह आपके संग हूं.” वो मेरे कंधे पर अपना सिर रख कर समर्पित भाव से बोली और मेरी छाती सहलाने लगी.
“कम्मो, देखो जो मैं चाहता हूं, वही तुम भी चाहती हो अब. लेकिन हमारे मिलन के लिए कोई सुरक्षित जगह हो चाहिये ही न; मैं तुम्हे किसी ऐसी वैसी जगह लेके तो नहीं जा सकता न. इसलिए मुझे लगता है कि हम वो सब कर नहीं पायेंगे, हमारे सारे अरमान यूं ही धरे के धरे रह जायेंगे. देखो अभी हम लोग धर्मशाला पहुंच जायेंगे, फिर बारात की तैयारी; रात भर शादी में रुकना पड़ेगा. फिर कल मुझे वापिस जाना है. हम लोग मिल के भी नहीं मिल सके इसका अफ़सोस तो हमेशा रहेगा मुझे!” मैंने अत्यंत भावुक होकर कहा.
कम्मो चुप रही. वो बेचारी कहती भी क्या. वो तो मुझ पर अपना सब कुछ लुटाने, सबकुछ न्यौछावर करने को प्रस्तुत ही थी; कमी तो मेरी तरफ से थी कि मैं इतनी बड़ी दिल्ली में कोई एकांत कोना नहीं तलाश पा रहा था. ऐसी बेबसी का सामना मुझे पहले कभी नहीं करना पड़ा था. कम्मो मुझसे चिपकी हुई चुपचाप थी, वो बेचारी कहती भी तो क्या.
“अंकल जी, आप एक दिन और रुक नहीं सकते क्या?” वो जैसे तैसे बोली.
“कम्मो, चलो मैं एक दिन और रुक भी जाऊं तो उससे क्या होगा, जगह की समस्या तो हल होगी नहीं. हमलोग शादी में आये हैं. कल सुबह तक आधे लोग रह जायेंगे; शाम तक धर्मशाला खाली करनी पड़ेगी. फिर तुझे भी तो जाना होगा न!”
“हां अंकल जी, मुझे भी कल ही वापिस घर जाना है. मुझे तो मजबूरी में आना पड़ा अकेले. पिताजी की तबियत ठीक नहीं थी न और न ही मेरी मम्मी आने को तैयार थी. मैं भी कल दोपहर में किसी ट्रेन से मेरठ चली जाऊँगी वहां से एक घंटे का बस का सफ़र है शाम होने से पहले ही पहुंच जाउंगी अपने घर, रुक तो मैं भी नहीं सकती.” वो भी हताश स्वर में बोली.
मैं चुप रहा और उसे अपने से चिपटाए हुए उसके धक धक करते करते दिल की धड़कन महसूस करता रहा.
“अंकल जी, क्या आप यहां से मेरे साथ मेरे घर नहीं चल सकते? मम्मी पापा तो खेतों में निकल जाते हैं सुबह ही; मैं सारे दिन घर में अकेली ही रहती हूं.”
उसने मुझे अपना प्रस्ताव दिया.
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