RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
“अंकल जी, कहां खोये हुए हो इतनी देर से?” कम्मो ने बोलते हुए मुझे कंधे से हिलाया.
“हें … अरे कुछ नहीं. ऐसे ही घर के बारे में सोच रहा था. तेरी दादी वहां अकेली है न!” मैंने कहा.
“क्या अंकल जी आप भी … उन्हें दादी मत कहिये. रिश्ते से दादी होंगी पर अभी ऐसी उमर नहीं आप लोगों की. मैं तो आंटी कह के बुलाऊंगी उन्हें!” वो चहक कर बोली.
“अच्छा जैसी तेरी मर्जी. तू तो प्यारी प्यारी गुड़िया है न मेरी!” मैंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और वो मेरे कंधे से आ लगी और अपने हाथ से मेरी छाती सहलाने लगी. प्रत्युत्तर में मैं उसकी पीठ सहलाने लगा और उसकी ब्रा के स्ट्रेप्स से खेलने लगा. उसने कोई प्रतिवाद नहीं किया.
हमारी टैक्सी लाल किले के निकट पहुंच रही थी; किले की गुम्बदें साफ़ दिखाई देने लगीं थीं इधर कम्मो की जांघों के बीच छुपा लालकिला भी मुझे ही पुकार रहा था जिस पर मुझे चढ़ाई करके जीतना था पर सुरक्षित जगह की वजह से पता नहीं जीत भी पाऊंगा या नहीं.
टैक्सी से उतर कर हम लाल किले के सामने जा खड़े हुए. कम्मो तो अवाक् सी उसे देखती रह गयी.
“हाय दैय्या … अंकल जी ये तो बहुत बड़ा है.” कम्मो बालसुलभ आश्चर्य से बोली.
“हां कम्मो बेटा … चलो देखते हैं भीतर से!” मैंने कहा.
लाल किले पहुंच कर हमने पूरा किला घूम डाला. घूमते घूमते थकावट भी होने लगी थी. वहां एक बड़े से हाल में, जिसे शायद दीवाने आम या दीवाने ख़ास कहते होंगे, एक बड़ा से तख़्त जिस पर पीतल की नक्काशी थी उसे देख कर कम्मो उसी पर जा बैठी.
“अंकल जी, थक गयी मैं तो. दो मिनट बैठ लूं फिर चलते हैं.” कम्मो बोली और अपनी चप्पल उतार कर पांव ऊपर कर के पालथी मार के बैठ गयी.
“अरे, ये शाहजहाँ का तख़्त है. उस पर बैठना मना है; अरे मत बैठो अभी कोई टोक देगा आकर!” मैंने कम्मो को मना किया.
“अंकल जी तखत खाली ही तो पड़ा है, जब शाहजहाँ जी आयेंगे तो मैं उठ जाऊँगी पक्का, चलते चलते पांव दुःख गये मेरे तो अभी दो मिनट आराम कर लूं बस!” वो बड़ी मासूमियत से बोली.
उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गयी. सोचा कि ये कौन सी किसी शहजादी से कम है.
लाकिला देखने वालों की काफी भीड़ थी उस दिन. देसी विदेशी सब तरह के लोगों के झुंड के झुंड इस प्राचीन धरोहर को निहार रहे थे. तभी एक विदेशी लड़की हमारी ओर आती दिखी. देखने में 25-26 की लगती थी, उसका टॉप इतना ढीला था की उसकी पूरी छातियां दिख रहीं थीं; उसके मम्मों के चूचुक जैसे तैसे छुपे हुए थे बस और उसका स्किन कलर का लोअर बेहद पतले कपड़े का था जो उसके जिस्म से चिपका हुआ था और उसमें से उसकी जांघों के बीच फूला फूला सा वो त्रिभुज और बीच की लकीर जिसे पोर्न की भाषा में कैमल-टो कहते हैं, कहर ढाने वाले अंदाज़ में दिख रही थी. अगर गौर से देखो तो उसकी चूत का दाना भी उसकी खुली दरार से नज़र आ ही जाता. इन पश्चिमी देशों के ठन्डे देशों की औरतों की चूत वैसे भी काफी लम्बी, मोटी और खूब गहरी होती है जैसा हमने पोर्न फिल्मों में देखा ही है. पर वो इन सबसे बेखबर अपनी ही धुन में मगन चलती हुई निकल गयी.
मैंने देखा कम्मो की नज़र भी उसकी विदेशी बाला की चूत पर ही जमीं थी. मैंने उसकी ओर देखा तो उसने हंस कर अपना मुंह उस तरफ फेर लिया.
“क्या हुआ री कम्मो, तू हंस क्यों रही है उस बेचारी को देख के?”
“अच्छा बड़ी बेचारी लग रही है वो आपको; मैं तो न देख रही थी उसे. मैं तो जे देख री थी की आप कैसे लट्टू हुए जा रहे हो उसे देख देख के!” कम्मो ने मुझे उलाहना सा दिया.
“अरे मैं क्यों लट्टू होऊंगा उसे देख के. तू जो है मेरे साथ!” मैंने हिम्मत करके कह दिया. मेरी बात का अर्थ समझ के कम्मो का मुंह शर्म से लाल पड़ गया उसने अपना निचला होंठ दांतों से दबा कर हंसती हुई आँखों से मुझे देखा पर कहा कुछ नहीं.
मेरे लिए यह अच्छा संकेत था कि मैं सही जा रहा था.
वहां से निकल कर हम लोग मीना बाज़ार की रौनक देखने लगे. मीना बाज़ार तो एक तरह से इन छोरियों के मतलब का ही है, इन्हीं के साज सिंगार का सामान बिकता है वहां.
कम्मो का वहां खूब मन लगा. उसने कुछ खरीदारी भी की और खुश हो गयी.
लालकिले से बाहर आये तो एक बज चुका था और हमें हल्की हल्की भूख भी लग आई थी.
“चलो कम्मो अब खाना खा लेते हैं, बताओ क्या खाओगी?”
“अंकल जी, मैंने कहा था न अभी आपसे कि मुझे तो डोसा इडली खाने का मन है. यहां कहीं मिले तो वही खाना है मुझे!”
“ठीक है गुड़िया, चलो चांदनी चौक चलते हैं वहीं खायेंगे” मैंने कहा और हम लोग चल पड़े.
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