RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
स्त्रियां या लड़कियां स्पर्श के मामले में ज्यादा सचेत होती हैं सो जो जैसा मुझे महसूस हुआ जरूर वैसा ही उसे जरूर हुआ होगा तभी उसका मुंह आरक्त हो गया, उसके चेहरे पर गहरी लाली छा गई और उसकी आँखें नशीलीं हो उठीं. वैसे भी जब मैं उसे दोपहर में ताड़ रहा था और उसे चोदने के ख़याल मात्र से आनंदित हो रहा था वो मेरी ओर अपनी पीठ करके बैठ ही गयी थी मतलब उसने मेरे मनोभावों को पढ़ लिया था. मैंने पहले कहा था कि स्त्रियों में यह गुण जन्मजात होता है कि वो पुरुष के मनोभाव क्षणमात्र में ही पढ़ लेती हैं.
“चलो अच्छा ही हुआ इस कम्मो से भी परिचय हो ही गया. आखिर जान पहिचान से ही बात आगे बढ़ती है.” मैंने खुश होते हुए सोचा. लेकिन मैं मन ही मन शर्मिंदा या गिल्टी कांशस भी फील कर रहा था कि वो बेचारी मेरे बारे में न जाने क्या क्या धारणा बना रही होगी.
कम्मो मेरे सामने ही बैठी थी. अबकी बार मैंने उसे नजर भर के निहारा. सुन्दर गोल सा चेहरा, उमड़ते यौवन से भरपूर मजबूत सुगठित बदन जो कि सिर्फ मेहनत करने वाली कामिनियों का ही होता है. खूब लम्बे काले घने केश जिनकी चोटी उसकी कमर तक आती थी और वो अपनी चोटी गोद में लिये यूं ही उँगलियों में लपेट रही थी. उमर के हिसाब से भी लगता था कि यही कोई उन्नीस साल के क़रीब होगी.
“कमलेश जी, आप की शिक्षा पूरी हो गयी या अभी भी जारी है?” मैंने ऐसे ही बात शुरू करने की नीयत से उससे सवाल किया.“आप मुझे जी कह कर क्यों बुलाते हैं. सबकी तरह कम्मो ही कहिये न!”“ओके कम्मो, चलो बताओ जो मैंने पूछा?”
“पहले आप ये बताओ कि मैं आपको क्या कहूं? आप अदिति आंटी के फादर इन ला हो तो मेरे दादा जी जैसे हुए रिश्ते के हिसाब से तो!”“कम्मो, जो तेरा जी चाहे कह ले मुझे!” मैंने मुस्कुरा के कहा.
“रिश्ते का क्या … ये मेरी अदिति आंटी हैं लेकिन फ्रेंड जैसी हैं. आप रिश्ते से दादा जी हो लेकिन देखने से वैसे दादाजी टाइप के लगते नहीं. मैं तो आपको अंकल जी कहूंगी, ठीक है न?” कम्मो भी मुस्करा के बोली.“ओके कम्मो … अब बताओ अपने बारे में?” मैंने फिर पूछा.
तो जो उस कम्मो ने मुझे बताया उसकी बातों का सारांश ये है कि वो हाई स्कूल पास कर चुकी है फर्स्ट डिविजन में पर घर वालों ने उसे आगे नहीं पढ़ने दिया और उसकी उमर अभी साढ़े उन्नीस की है, घर में और खेतों में काम करना पड़ता है और उसकी शादी भी तय है, गेहूं की फसल के बाद इसी मई जून में उसकी शादी हो जायेगी.
गांव देहात में लड़कियों को कम ही शिक्षा दिलवाते हैं और शादी भी बहुत जल्दी कर देते हैं. कम्मो भी उसी तरह से थी.
“पापा जी, कम्मो मुझसे नया मोबाइल खरीदवाने का कह रही थी. इसका पुराना नोकिया का मोबाइल तो बेकार हो गया अब. पैसे तो हैं इसके पास. अब मैं तो बाज़ार जाऊँगी नहीं. आप ही इसे कल मार्केट ले जाना और कोई अच्छा, सिम्पल सा स्मार्ट फोन इसे दिलवा देना जिसे ये अच्छे समझ सके!” अदिति बहूरानी मुझसे बोली.
“हां हां क्यों नहीं … कल दिलवा देंगे इसे जैसा ये चाहेगी. वैसे भी मुझे यहां कल कोई काम धाम तो है नहीं; चलो इसी के साथ टाइम पास हो जाएगा और इसी बहाने दिल्ली के बाज़ार की सैर भी हो जायेगी. ठीक हैं न कम्मो; चलेगी न मेरे साथ?” मैंने खुश होकर उससे पूछा.“हां क्यों नहीं. जरूर चलूंगी अंकल जी!” वो थोड़ा शर्माते हुए बोली. उसने पलकें उठा के मुझसे कहा फिर नज़रें झुका दीं.
मैंने घड़ी देखी तो साढ़े सात बजने ही वाले थे.“अदिति बेटा चलें फिर? वो सामान चेक करना है नहीं तो देर हो जायेगी फिर. तेरे अंकल आंटी आने वाले होंगे!” मैंने अधीरता से कहा.“चलो पापा जी!” बहूरानी बोली और खड़ी हो गयी.
“सुन कम्मो, हम लोग शादी का सामान चेक करके आते हैं अभी!” अदिति ने कम्मो से कहा.“ठीक है आंटी जी. मैं नीचे जा रही हूं. आप लोग भी वहीं आ जाना. डिनर साथ ही करेंगे.” वो बोली.
इस तरह कम्मो को समझा कर बहूरानी जी मेरे आगे आगे तेज कदमों से सामान वाले रूम की तरफ चल दीं. उनके पीछे पीछे मैं उनके थिरकते नितम्बों को निहारता हुआ चल पड़ा. बंजारिन के वेश में उनका मादक हुस्न, घुटनों तक के घाघरे में से झांकती उनकी सुडौल पिंडलियां, लगभग नंगी पीठ पर बंधी चोली की डोरियां और घाघरे के बीच से अनावृत उनकी कमर, पीठ और नाभि क्षेत्र … सब कुछ कहर ढा रहा था.
मित्रो, आप सब तो जानते ही हैं कि मैं अपनी इन बहूरानी के साथ कई कई बार संभोग कर चुका हूं; अभी तीन दिन पहले ही हम दोनों बैंगलोर से ऐ सी फर्स्ट क्लास के प्राइवेट कूपे में बैंगलोर से दिल्ली आते आते उन छत्तीस घंटों में मैंने अपनी कुलवधू को हर तरह से, हर एंगल से … न जाने कितने आसनों में अपनी शक्ति शेष रहते चोदा था; परन्तु अदिति बहूरानी मुझे कभी भी बासी या फीकी, उबाऊ नहीं लगीं. हर बार वे एक नये ताजे खिले पुष्प की भाँति ही मुझे समर्पित हुयीं.
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