RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
अभी तक की इस कामवासना से भरपूर बहु की चुदाई कहानी में आपने पढ़ा कि हम ससुर बहू अपने केबिन के बाहर की दुनिया से बेपरवाह अपनी ही दुनिया में खोये हुए सेक्स का मजा कर रहे थे.
अब शाम हो चुकी थी, तभी कूपे के दरवाजे पर किसी ने नॉक किया, मैंने खोल कर देखा था पेंट्री कार का स्टाफ चाय नाश्ता लिए खड़ा था.चाय से निबट के बहूरानी बोली- पापा जी, अब मैं कुछ देर सोना चाहती हूँ.और वो ऊपर की बर्थ पर चली गयी.मैं भी अलसाया सा लेट गया.
जब हम लोग जागे तो चारों ओर अँधेरा घिर चुका था. बहूरानी टॉयलेट जाकर फ्रेश हो आयी फिर उसने अपने उलझे बाल सँवारे और हल्का सा मेकअप किया. इसी बीच मैं भी फ्रेश हो आया; अब कुछ ताजगी महसूस होने लगी थी. फिर हम दोनों कूपे से बाहर निकले और कम्पार्टमेंट के तीन चार चक्कर लगा डाले ताकि टहलना हो जाय और हाथ पैर खुल जायें.
ट्रेन साढ़े नौ के करीब भोपाल जा पहुंची. हम लोगों का डिनर हो चुका था और अब हमारी जर्नी लास्ट लैप में थी. सुबह छह बजे हमें निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन (दिल्ली में कई रेलवे स्टेशनों में से एक) पहुंच जाना था. अब कोई सात आठ घंटे ही हमारे पास थे.
“अदिति बेटा!”“हां जी पापा जी?”“दस बजने वाले हैं सवेरे छह बजे हम दिल्ली पहुंच जायेंगे. बस यही रात है हमारे पास!” मैंने कुछ दुखी होकर कहा.“हां पापा जी, फिर न जाने कब ऐसा मौका मिले!” बहूरानी जी भी कुछ मायूस होकर बोली.“चलो बेटा, बत्ती बुझा दो, फिर सोते हैं!” मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और लेटते हुए कहा.“ओ के पापा जी!” बहूरानी बोली और फिर लाइट्स ऑफ हो गयीं, कूपे में घुप्प अँधेरा छा गया.
मुझे बहूरानी के कपड़े उतरने की सरसराहट सुनाई दी और फिर उसका नंगा जिस्म मुझसे लिपट गया और उसका एक हाथ मेरे बालों में कंघी करने लगा. मैंने भी उसे अपने से चिपटा लिया और उसके स्तनों से खेलने लगा.बहूरानी मेरी छाती को सहलाने लगी, उसका हाथ मेरे सीने पर पेट पर सब जगह फिरने लगा, फिर उसने मेरी छाती चूमना शुरू कर दी. बार बार लगातार… ऐसा वो पहली बार कर रही थी.
“क्या बात है बहूरानी, आज यूं मेरी छाती ही चूमे जा रही हो; चूमना ही है तो लंड है नीचे की तरफ!” मैंने मजाक किया.“पापा जी, जो बात इस सीने में है वो लंड में कहां!” वो मेरे बायें निप्पल को मसलते हुए बोली.“क्या मतलब? मेरी छाती में कौन से मम्में लगे हैं… हहहहा” मैंने हँसते हुए कहा.“पापा जी, ये राज की बातें हैं. हम लेडीज को पुरुष की चौड़ी छाती ही सबसे ज्यादा अटरेक्ट करती है, आदमी की चौड़ी छाती हमें एक सिक्योर फीलिंग देती है फिर आपके इस चौड़े चकले सीने के तले पिसते हुए आपके लम्बे मोटे लंड की ठोकरें चूत को वो मजा देती हैं कि आत्मा तक तृप्त हो जाती है.”
“अच्छा? अगर चौड़े सीने वाले आदमी का लंड छोटा सा पतला सा हुआ तो?” मैंने हँसते हुए कहा.“पापा जी, वो बाद की बात है. मैंने तो ये कहा कि पहला इम्प्रेशन इस सीने का ही होता है हम लड़कियों पर; मर्द का चौड़ा मजबूत सीना हम फीमेलज़ को सेक्सुअली अपील करता है.” बहूरानी बोली और मेरे ऊपर मेरे सीने पर लेट गयी; उसके मम्में मेरी छाती में पिसने लगे.उधर मेरा लंड चूत में घुसने की आशा में झट से खड़ा हो गया.
फिर बहूरानी ने मुझ पर बैठ के मेरा सुपारा अपनी चूत के छेद पर सेट किया और लंड को दबाने लगी. उसकी गीली रसीली चूत मेरे लंड को कुछ ही पलों में समूचा लील गयी. फिर बहूरानी जी मेरा लंड यूं अपनी चूत में घुसाये हुए मेरे ऊपर शांत लेट गयी. मेरे हाथ उसके नितम्बों पर जा पहुंचे, उसके गोल गोल गुदाज नितम्बों को मुट्ठी में भर भर के मसलने दबाने का मजा ही अलग आया.फिर मेरी कमर धक्के लगाने को उछलने लगी.
“पापा जी, धक्के नहीं लगाओ… बस चुपचाप यूं ही लेटे रहो रात भर!” बहूरानी बोली और मेरा निचला होंठ चूसने लगी.“ठीक है अदिति बेटा… एज यू लाइक!” मैंने कहा और अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया.
रात के सन्नाटे को चीरती हुई बंगलौर दिल्ली राजधानी अपने पूरे वेग से आंधी तूफ़ान की तरह अपने गंतव्य की ओर भागी दौड़ी चली जा रही थी. मेरे ऊपर जैसे कोई सुगन्धित रेशम का ढेर हो वैसी ही फीलिंग देता बहूरानी का नंगा जिस्म मुझसे लिपटा हुआ था. उसकी चूत से कल कल बहता रस मेरी जांघों को भिगोने लगा था.
“पापा जी…” बहूरानी मेरे कान में फुसफुसायी.“हां बेटा?”“जब ट्रेन किसी छोटे स्टेशन पर पटरियाँ चेंज करती है तो कितनी मस्त आवाजें आती हैं न…” बहूरानी जी अपनी चूत मेरे लंड पर धीरे से घिसते हुए बोली.“अबकी छोटा स्टेशन आये, तो आप ध्यान से सुनना!” वो फिर बोली.“हां बेटा, इन पटरियों का भी अपना संगीत है.” मैं बोला.
“आधी रात बीतने को थी; कभी कभी विपरीत दिशा से आती कोई ट्रेन हमें क्रॉस करती हुई निकल जाती. बहूरानी से मिलन का ये अलौकिक आनन्द अलग ही अनुभूति दे रहा था. चुदाई और सम्भोग का फर्क अब महसूस होने लगा था. नीरव अन्धकार में संभोगरत दो जिस्म आपस में कम्युनिकेट कर रहे थे जहां शब्दों की आवश्यकता ही नहीं थी. न कुछ देखने की जरूरत थी न कुछ सुनने की… योनि और लिंग के मिलन की वो अलौकिक अनुभूति जिसे शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं. चूत में घुस के आनन्द लूटता और लुटाता लंड का आनन्द देखने की चीज नहीं महसूस करने वाली बात है.
तभी किसी छोटे स्टेशन से ट्रेन गुजरने लगी. मेन लाइन से लूप लाइन पर जाती ट्रेन फिर वापिस मेन लाइन पर आती हुई… पटरियों की खटर पटर सच में एक मीठा उन्माद भरा संगीत सुनाने लगी.
“पापा जी… अब आप ऊपर आ जाओ, थक गई मैं तो!” बहूरानी बोली और मेरे ऊपर से हट गयी.मैं भी उठ के अलग हो गया.फिर वो बर्थ पर लेट गयीं.
“बहूरानी बेटा… अपनी चूत खोल न!” मैं उस पर झुकते हुए बोला.“वो तो मैंने पहले ही अपने हाथों से खोल रखी है पूरी… आ जाओ आप जल्दी से!” वो बेचैन स्वर में बोली.
मैं उसके ऊपर झुका और उसने खुद ही मेरा लंड पकड़ कर सही जगह पर रख कर उसे ज़न्नत का रास्ता दिखा दिया. मैंने भी देर न करते हुए लंड से एक करारा शॉट लगा दिया; लंड फचाक से बहूरानी की चूत में जड़ तक समा गया.
बहूरानी ने मुझे अपने आलिंगन में भर कर प्यार से चूमा और अपनी कमर ऊपर तक उठा के मेरे लंड का सत्कार किया- बस पापाजी, ऐसे ही लेटे रहिये मेरे ऊपर चुपचाप!वो बोली और अपने घुटने मोड़ के ऊपर उठा लिए; अब उसकी चूत का खांचा अपने पूरे आकार में आ चुका था; मैंने अपने लंड को और दबाया तो लगभग एक अंगुल के करीब लंड और सरक गया चूत में.यूं लंड घुसाये हुए चुपचाप शांत पड़े रहने का भी एक अलग ही मजा है; जी तो कर रहा था कि ताबड़तोड़ धक्के लगाऊं उसकी चूत में; बहूरानी का दिल भी पक्का कर रहा होगा लंड उसकी चूत में सटासट अन्दर बाहर होने लगे तो उसे चैन आये.
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