RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
फिर मैं उठ कर खड़ा हो गया और अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगा हो गया. मेरा मुरझाया लंड झूल रहा था जो धीरे धीरे जान पकड़ रहा था.
अब मैंने अपनी बहू की की ब्रा का हुक खोल दिया; हुक खुलते ही ब्रा के स्ट्रेप्स स्प्रिंग की तरह उछल गये और मैंने ब्रा को उतार कर बर्थ पर डाल दिया और बहूरानी को अपने सीने से लगा लिया. उनके मम्में मेरे सीने में समा गये. मैंने उसके कान की लौ को अपने होंठों और जीभ से चुभलाया और फिर कान के नीचे और गर्दन चूम डाली. फिर उसे बर्थ पर एक कोने में बैठा दिया.
बर्थ के दूसरे कोने पर मैं बैठ गया और बहूरानी के पांव पकड़ कर अपनी गोद में रख लिए.
“पापा जी… मेरे पांव छोड़िये… मुझे अच्छा नहीं लगता!” मेरी संस्कारशील बहू रानी बोली और अपने पैर पीछे खींचने लगी. मेरी बहू को उसके ससुर द्वारा उसके पाँव छूना अच्छा नहीं लगा.“अरे बेटा, तू टेंशन मत ले… बस एन्जॉय कर मेरे साथ!” मैंने उनके पांवों के दोनों तलुए चूम डाले और अपना लंड उनके तलुओं के बीच फंसा लिया.
“अदिति बेटा, अब तू अपने पैरों से मेरे लंड से खेल; अपने पंजों में इसे दबा कर इसकी मूठ मार और इसे रगड़!”
मेरे कहने से बहूरानी ने मेरा लंड अपने पैरों के पंजों में अच्छे से दबा लिया और इसे हल्के हल्के रगड़ने लगी जैसे हम कोई चीज अपनी हथेलियों से मलते या रगड़ते हैं. उसके ऐसे करते ही मेरे लंड में जोश भरने लगा.
इस तरह का ‘फुट जॉब’ मैंने कभी किसी पोर्न क्लिप में देखा था, तभी से मेरी तमन्ना थी कि कभी मौका मिला तो ये खेल मैं भी खेल के देखूंगा.
आह… कितना प्यारा नजारा था वो… बहूरानी के गोरे गुलाबी मुलायम पैर जिनमें शादी में जाने हेतु मेहंदी रचाई हुई थी और उनके बीच मेरा काला मोटा लंड. बेहद उत्तेजक दृश्य लग रहा था ऊपर से बहूरानी की सोने की पायलें और बिछिया… इन सबका कलर कम्बिनेशन लाजवाब था. भारत में काफी परिवारों में सोने के जेवर पैरों में नहीं पहनते लेकिन हमारे घर में ऎसी कोई रोक नहीं है.
बहूरानी के कोमल पैरों का स्पर्श मेरे लंड को और कठोर बनाता जा रहा था और अब वह पूरा अकड़ चुका था.
इसी समय ट्रेन की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी शायद कोई स्टेशन होगा. मैंने टाइम देखा तो दोपहर के साढ़े तीन होने वाले थे. यह टाइम तो नागपुर पहुँचने का था और जल्दी ही ट्रेन स्लो होती चली गई फिर रुक गई.हां नागपुर ही तो था. पर मुझे क्या. मुझे कौन से नागपुरी संतरे खरीदने थे.
ट्रेन रुकते ही मैंने बहूरानी को थोड़ा सा अपने पास खिसका लिया जिससे मेरे लंड पर उसके पंजों की ग्रिप और मजबूत हो गयी. मेरे पास खिसक आने से बहूरानी की जांघें खुल गयीं थीं और उसकी पैंटी में से चूत की झलक दिखने लगी थी. मैंने अपना एक पैर आगे बढ़ाया और अंगूठे से उसकी पैंटी अलग करके चूत को कुरेदने लगा.
बहूरानी को भी इस खेल में मजा आने लगा तो उसने अपनी पैंटी खुद ही उतार फेंकी और मेरे और नजदीक पैर खोल के बैठ गयी. मैंने अपना लंड फिर से उसके पांवों के तलुओं में दबा लिया और अपने पैर का अंगूठा उसकी चूत में घुसेड़ दिया.
हम दोनों अब पूरी मस्ती में आ चुके थे. बहूरानी अपने पैरों से मेरे लंड की मुठ मार रही थी, बीच बीच में वो मेरे लंड को मथानी की तरह मथने लगती और मैं उसकी चूत में पैर के अंगूठे से कुरेद रहा था. मैं अपने पैर का अंगूठा कभी गोल गोल घुमाता चूत में कभी अप एंड डाउन कभी दायें बायें… उसकी चूत अब खूब रसीली हो उठी थी; मेरा अंगूठा पूरा गीला हो गया था.
मेरी बहूरानी की आँखें वासना से गुलाबी हो गयीं थीं और वो इस खेल को खूब एन्जॉय करने लगीं थी.
तभी ट्रेन ने हॉर्न दिया और धीमे धीमे चलने लगी.नागपुर पीछे छूट चला था पर हम दोनों ससुर बहू अपने केबिन से बाहर की दीन दुनिया से बेख़बर अपनी ही दूसरी दुनिया में खोये हुए मजा कर रहे थे. हम दोनों में से कोई किसी को हाथों से छू नहीं रहा था; बस अपने पैरों से ही एक दूजे को मजे दे रहे थे.
बहूरानी ने अब अपनी कमर हिलानी शुरू कर दी थी, मैं समझ गया कि अब उसकी चूत का बांध टूटने ही वाला है. इधर मेरा लंड भी झड़ने के करीब पहुंच रहा था… और मेरे लंड की नसें फूलने लगीं.और तभी बहूरानी ने इसे महसूस करते हुए लंड को पंजों से मथना शुरू कर दिया.
पंद्रह बीस सेकंड बाद ही मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी छूटी और ऊपर वाली बर्थ से जा टकराई… फिर छोटी छोटी पिचकारियाँ किसी फव्वारे की तरह निकलने लगीं और बहूरानी के दोनों पांव मेरे वीर्य से सन गये.इसके साथ ही बहूरानी की कमर जोर से तीन चार बार आगे पीछे हुई और वो भी झड़ गयी और निढाल सी होकर उसकी नंगी पीठ पीछे टिक गयी और वो गहरी गहरी साँसें लेने लगीं.
“उफ्फ पापा जी, इस खेल का भी अपना एक अलग ही मजा है; आज पहली बार जाना! अह… मजा आ गया सच में!” बहूरानी थके थके से स्वर में बोली.“हां बेटा जी, जो काम लंड नहीं कर सकता वो काम उंगली या अंगूठा करता है. लंड तो सिर्फ अन्दर बाहर हो सकता है लेकिन अंगूठा तो हर एंगल से मज़ा दे सकता है.”“हां पापा जी, आप शत प्रतिशत सही कह रहे हैं.”
मैंने नेपकिन से अपना लंड और बहूरानी के पांव अच्छे से पौंछ डाले और फिर बहूरानी ने अपना सलवार कुर्ता पहन लिया, मैंने भी कपड़े पहन लिये.
अब मैंने टाइम देखा तो सवा चार बजने वाले थे. ट्रेन लगातार फुल स्पीड से सीटी बजाती हुई दिल्ली की ओर दौड़ी चली जा रही थी.
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