RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
मेरा बेटा दही लेकर आ गया था. मैं भी फ्रेश हो के नहा के आ गया और सबने मिल के नाश्ता किया. हमारी ट्रेन अगले दिन शाम को थी.तो रात को सोने के पहले मैं बहूरानी के नाम के मुठ मारी और सो गया.तो अगले दिन…
अगले दिन शाम को साढ़े सात बजे ही हम लोग स्टेशन पहुंच गये और दस मिनट बाद ही राजधानी प्लेटफोर्म पर लग गई. यूं तो मैं हमेशा ही ऐ सी में सफ़र करने का प्रयास करता हूं, कभी मजबूरी में स्लीपर कोच में जाना पड़ा हो तो वो अलग बात है. लेकिन फर्स्ट ऐ सी में वो भी प्राइवेट कूपे में यात्रा करने का वो मेरा पहला मौका था और बहूरानी के साथ आने वाले छत्तीस घंटे बिताने के ख़याल से ही मुझे रोमांच होने लगा था.
ट्रेन के प्लेटफोर्म पर लगते ही हम अपनी कोच में चढ़े और कूपे में जा पहुंचे. वाह क्या शानदार नजारा था कूपे का. ऊपर नीचे दो हाई क्वालिटी मटेरियल से बनी बर्थ थीं, नीचे वाली बर्थ सोफे में भी कन्वर्ट हो जाती थी; कोच में बड़ी सी खिड़की, पर्दे और बड़ा सा शीशा लगा था, साथ में ऐ सी का टेम्प्रेचर अपने हिसाब से कंट्रोल करने के लिए स्विच थे, फर्श पर बढ़िया मेट्रेस बिछी थी.कुल मिला कर उम्मीद से भी बढ़िया सुख सुविधा युक्त डिब्बा था.
ठीक आठ बजकर पांच मिनट पर ट्रेन ने बंगलौर स्टेशन से रेंगना शुरू कर दिया और जल्दी ही प्लेटफोर्म और शहर की लाइट्स पीछे छूटने लगीं और खिड़की के बाहर अँधेरा दिखने लगा. ट्रेन एकदम स्मूथली बिना आवाज किये दिल्ली की तरफ दौड़ रही थी.मैंने कूप भीतर से लॉक कर दिया. बहूरानी सोफे पर बैठी अभी कूपे की साज सज्जा को देख ही रही थी कि मैंने उसे अपनी गोद में खींच लिया और उसके दोनों गालों को बारी बारी से चूमने लगा. बहूरानी जी बार बार अपना चेहरा अपनी हथेलियों से छुपाने का जतन करती लेकिन मैंने उसकी एक न चलने दी और अब उसके दोनों स्तन अपने अधिकार में करके अपनी मनमानी करने लगा.
तभी किसी ने दरवाजे पर धीरे से तीन बार नॉक किया. मैंने दरवाजा खोला तो बाहर टी सी खड़ा था.“गुड इवनिंग सर, आपकी टिकेट दिखाइए प्लीज!” वो भीतर आते हुए बोला“गुड इवनिंग” मैंने भी जवाब दिया और अपने टिकट उसे चेक करा दिए. उसने चार्ट में कहीं टिक किया और मुझे हैप्पी जर्नी विश करता हुआ चला गया.
मैंने तुरन्त कूपे को फिर से लॉक किया और बहूरानी को अपने आगोश में भर लिया. उसके जिस्म से उठती भीनी भीनी महक मुझे मदहोश करने लगी.“पापा जी अब बस भी करो ना, चलो पहले खाना खा लो फिर ये सब बाद में कर लेना अब तो टाइम ही टाइम है अपने पास!”
“अरे बेटा, इतनी जल्दी नहीं अभी आठ बीस ही तो हुए हैं. नाइन थर्टी पर खायेंगे. तब तक मैं एक दो ड्रिंक ले लेता हूं.” मैंने कहा.
फिर मैंने बैग में से व्हिस्की की बोतल निकाल ली और डिस्पोजेबल गिलास में बढ़िया सा पटियाला पैग बना के सिप करने लगा.बहूरानी ने फ्राइड काजू कागज़ की प्लेट में सजा के मुझे परोस दिए.
“पापा जी, मुझे कपड़े चेंज करने हैं मैं बत्ती बुझा रही हूं अपना गिलास संभालना आप!” बहूरानी बोली.“अरे बेटा, चेंज क्या करना. उतार ही डालो सब कुछ, वैसे भी अभी कुछ देर बाद उतारना ही है न” मैंने हंस कर कहा.
“पापा अब आप रहने भी दो. आप बन जाओ नागा बाबा मैं ना बनने वाली!” बहूरानी ने कहा और अपने बैगेज से रात के कपड़े निकालने लगीं. फिर उसने लाइट ऑफ कर दी और चेंज करने लगी. उसके कपड़े उतारने की सरसराहट मुझे सुनाई दे रही थी.
फिर वो एक एक करके अपने उतारे हुए कपड़े बर्थ पर फेंकने लगीं जो मेरे ही ऊपर गिर रहे थे; पहले साड़ी फिर ब्लाउज… फिर पेटीकोट… पैंटी और अंत में उसकी ब्रा मेरी गोद में आन गिरी. मैं तो जैसे इतना धन पा के धन्य हो गया और अंधेरे में ही बहूरानी की ब्रा और पैंटी को मसल मसल के सूंघने लगा.
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