RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
अदिति के जाते ही मेरा बेटा मेरे पास बैठ गया और कुछ पारिवारिक बातें होने लगीं. मैंने उससे उसकी नौकरी से सम्बन्धित बातें पूछी, उसने घर परिवार के बारे में पूछा. वैसे तो ये सब बातें फोन पर लगभग रोज होती ही रहती हैं लेकिन आमने सामने मिलने पर चाहे औपचारिकता वहश ही सही, दोहराई ही जाती हैं.अदिति के चचेरे भाई की शादी थी तो बेटे बहू का जाना ज्यादा अच्छा लगता. यही बात मैंने अपने बेटे के सामने फिर से दोहराई लेकिन उसने अपने जॉब, करियर की मजबूरी बता दी और प्रॉमिस किया कि आगे से वो ये सब पारिवारिक जिम्मेवारियाँ खुद संभालेगा.
इतने में ही अदिति भी चाय लेकर आ गई और हम तीनों ने हल्की फुल्की यहाँ वहाँ की बातें करते हुए चाय खत्म की. ये सब बातें करते करते मेरी नज़र बार बार बहूरानी के बदले बदले से जिस्म को निहार रही थी और शायद बहूरानी भी मेरे मन के कौतुहल, जिज्ञासा को अच्छे से समझ रहीं थीं. इसीलिए उसने मेरी तरफ नज़र भर के देखा और आँख झपका के गर्दन हिला के मुझे इशारा किया कि वो मेरे मन की बात समझ रही है.
“सुनो जी, आप बाज़ार से ताजा दही ला दो. पापा जी को नाश्ते में दही जरूर चाहिये होता है, और दही ताजा ही लाना, खट्टा मत ले आना!” बहूरानी ने यह कहते हुए मेरे बेटे को बाज़ार भेज दिया.जैसे ही वो घर से बाहर निकला, मैंने बहूरानी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वो मेरी गोद में आ गिरी. बहूरानी के कूल्हे मेरी जांघों पर थे, मेरी एक बाजू पर बहू का सर टिक गया.“हाँ, पापा जी… अब बताओ, क्या कह रहे थे आप? बहुत इशारे कर रहे थे?” बहूरानी ने मेरी गोदी में बैठ कर मेरे गले में अपनी बांहों का हार पहना कर पूछा. उसकी आंखों से प्यार ही प्यार झलक रहा था.
बहूरानी के होंठ मेरे होंठों से बस चंद इंच की दूरी पर थे, बहू ने होंठों पर कोई लिपस्टिक आदि नहीं लगाई थी, उसके होंठ प्राकृतिक रूप से ही गुलाबी हैं.मन कर रहा था कि अभी बहू के लबों को चूम लूं मैं… लेकिन मैंने सब्र किया… मन में मैंने सोचा कि अभी कुछ देर मैं इन लबों को चूम लेने की लालसा को मन ले लिए तड़पता रहूँगा, इस तड़प में मुझे और ज्यादा आनन्द मिलेगा.
बहूरानी की बात को अनसुना करके और अपने मन में बहू के चुम्बन की इच्छा को दबा कर मैंने उसकी कमर में हाथ डाल के उसे अपने अंक में समेट लिया, पहले तो मैंने बहू को अपनी छाती से चिपटा लिया… अजीब सी शान्ति मिली मुझे बहू को अपने गले से लगा कर…
फिर मैंने बहू के वक्ष पर अपना चेहरा टिका दिया और मेरी नाक उसके मम्मों की गहरी घाटी में धंस सी गई. तब मैंने अपनी जीभ से बहू की क्लीवेज को तीन चार बार चाटा. बहूरानी के जिस्म की सिहरन मुझे स्पष्ट महसूस हुई और उसकी बांहें मेरी गर्दन में कस के लिपट गयीं और उसने मुझे कस के अपने से लिपटा लिया.कुछ पलों तक हम दोनों यूं ही लिपटे हुए एक दूजे के दिलों की धकधक सुनते रहे. बहू रानी के जिस्म की खुशबू में मेरे मन में एक नया उल्लास भर दिया. बहुत लम्बे अरसे के बाद मुझे बहूरानी के कामुक जिस्म की कामुक गंध मिली थी, मैं तो मदहोश ही हो गया था जवानी की गंध पाकर!
“पापा, अब बताओ भी क्या कह रहे थे आप?” बहूरानी ने मेरी ठोड़ी के नीचे हाथ रखकर मेरा चेहरा ऊपर उठा कर मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा.अब मैं खुद को रोक नहीं पाया और मैंने बिना कोई जवाब दिए उसे अपने ऊपर झुका लिया और हमारे होंठ स्वतः ही जुड़ गये.किसी नवयौवना के अधरों का चुम्बन, उनका रसपान करना, विशेष तौर पर जब वो भी दिल से साथ निभा रही हो, कितनी स्वर्गिक आत्मिक आनन्द की अनुभूति कराता है, इसे शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं है. हमारे जाने पहचाने होंठ यूं ही पता नहीं कितनी देर अठखेलियाँ करते रहे, हमारी जीभ एक दूजे के मुंह में घुस कर लड़ती झगड़ती रही और तन में वासना का ज्वार हिलोरें लेने लगा.
तभी बहूरानी ने खुद को काबू किया और हाँफती हुई सी मुझसे दूर खड़ी हो गई; उसकी आँखों में सम्भोग की चाहत गुलाबी रंगत लिए तैर रही थी.
“क्या हुआ अदिति बेटा?”“कुछ नहीं पापा जी, अब और नहीं, नहीं तो खुद को रोक नही पाऊँगी. ये दही ले कर आने वाले ही होंगे.”“अरे जल्दी जल्दी कर लेंगे न… देख तेरे बिना डेढ़ साल से ऊपर ही हो गया है.”“पापा जी आज दिन और रात का सब्र कर लो फिर कल की पूरी रात, परसों का पूरा दिन और पूरी रात ट्रेन में अपने ही हैं. आप जो चाहो, जैसे चाहो कर लेना मेरे साथ… मैं मना नहीं करूंगी. अभी वक़्त की नजाकत को समझो आप! मैंने भी तो जैसे तैसे खुद को संभाला है आप भी कंट्रोल करो खुद को!”“ठीक है बेटा, तू सही कह रही है, इतना उतावलापन भी ठीक नहीं है.” मैंने कहा.
“पापा जी, अब बताओ, आप कुछ कहने वाले थे मुझे देख कर?” बहूरानी सामने वाली कुर्सी पर बैठती हुई बोली.“हाँ बेटा, मैं यह कह रहा था कि अबकी तो तू एकदम बदली बदली लग रही है, तू पहले की अपेक्षा और भी ज्यादा छरहरी सी निखरी निखरी नयी नयी सी लग रही है.” मैंने कहा.“हाँ पापा जी, मैंने सुबह के टाइम योगा और प्राणायाम करना शुरू किया है और शाम को आधा घंटा जिम में वर्कआउट करती हूँ रोज!” बहूरानी थोड़ा इठला के बोली.“गुड, वैरी गुड, कीप इट अप बेटा!” मैंने कहा.
तभी मेरा बेटा दही ले के आ गया और हमारी बातें यहीं खत्म हो गयीं.इसके बाद बहूरानी के घर में क्या हुआ, वो कुछ ख़ास नहीं है कहने को.
अगले दिन शाम को 8 बजे हमारी ट्रेन थी. राजधानी एक्सप्रेस के प्राइवेट कोच में हम ससुर बहू ने क्या क्या किया ये सब जानने के लिए कल ट्रेन चलने का इंतज़ार कीजिये.
ससुर बहू की कामुकता, शारीरिक आकर्षण, वासना, प्रेम और चुदाई की
अदिति के जाते ही मेरा बेटा मेरे पास बैठ गया और कुछ पारिवारिक बातें होने लगीं. मैंने उससे उसकी नौकरी से सम्बन्धित बातें पूछी, उसने घर परिवार के बारे में पूछा. वैसे तो ये सब बातें फोन पर लगभग रोज होती ही रहती हैं लेकिन आमने सामने मिलने पर चाहे औपचारिकता वहश ही सही, दोहराई ही जाती हैं.अदिति के चचेरे भाई की शादी थी तो बेटे बहू का जाना ज्यादा अच्छा लगता. यही बात मैंने अपने बेटे के सामने फिर से दोहराई लेकिन उसने अपने जॉब, करियर की मजबूरी बता दी और प्रॉमिस किया कि आगे से वो ये सब पारिवारिक जिम्मेवारियाँ खुद संभालेगा.
इतने में ही अदिति भी चाय लेकर आ गई और हम तीनों ने हल्की फुल्की यहाँ वहाँ की बातें करते हुए चाय खत्म की. ये सब बातें करते करते मेरी नज़र बार बार बहूरानी के बदले बदले से जिस्म को निहार रही थी और शायद बहूरानी भी मेरे मन के कौतुहल, जिज्ञासा को अच्छे से समझ रहीं थीं. इसीलिए उसने मेरी तरफ नज़र भर के देखा और आँख झपका के गर्दन हिला के मुझे इशारा किया कि वो मेरे मन की बात समझ रही है.
“सुनो जी, आप बाज़ार से ताजा दही ला दो. पापा जी को नाश्ते में दही जरूर चाहिये होता है, और दही ताजा ही लाना, खट्टा मत ले आना!” बहूरानी ने यह कहते हुए मेरे बेटे को बाज़ार भेज दिया.जैसे ही वो घर से बाहर निकला, मैंने बहूरानी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वो मेरी गोद में आ गिरी. बहूरानी के कूल्हे मेरी जांघों पर थे, मेरी एक बाजू पर बहू का सर टिक गया.“हाँ, पापा जी… अब बताओ, क्या कह रहे थे आप? बहुत इशारे कर रहे थे?” बहूरानी ने मेरी गोदी में बैठ कर मेरे गले में अपनी बांहों का हार पहना कर पूछा. उसकी आंखों से प्यार ही प्यार झलक रहा था.
बहूरानी के होंठ मेरे होंठों से बस चंद इंच की दूरी पर थे, बहू ने होंठों पर कोई लिपस्टिक आदि नहीं लगाई थी, उसके होंठ प्राकृतिक रूप से ही गुलाबी हैं.मन कर रहा था कि अभी बहू के लबों को चूम लूं मैं… लेकिन मैंने सब्र किया… मन में मैंने सोचा कि अभी कुछ देर मैं इन लबों को चूम लेने की लालसा को मन ले लिए तड़पता रहूँगा, इस तड़प में मुझे और ज्यादा आनन्द मिलेगा.
बहूरानी की बात को अनसुना करके और अपने मन में बहू के चुम्बन की इच्छा को दबा कर मैंने उसकी कमर में हाथ डाल के उसे अपने अंक में समेट लिया, पहले तो मैंने बहू को अपनी छाती से चिपटा लिया… अजीब सी शान्ति मिली मुझे बहू को अपने गले से लगा कर…
फिर मैंने बहू के वक्ष पर अपना चेहरा टिका दिया और मेरी नाक उसके मम्मों की गहरी घाटी में धंस सी गई. तब मैंने अपनी जीभ से बहू की क्लीवेज को तीन चार बार चाटा. बहूरानी के जिस्म की सिहरन मुझे स्पष्ट महसूस हुई और उसकी बांहें मेरी गर्दन में कस के लिपट गयीं और उसने मुझे कस के अपने से लिपटा लिया.कुछ पलों तक हम दोनों यूं ही लिपटे हुए एक दूजे के दिलों की धकधक सुनते रहे. बहू रानी के जिस्म की खुशबू में मेरे मन में एक नया उल्लास भर दिया. बहुत लम्बे अरसे के बाद मुझे बहूरानी के कामुक जिस्म की कामुक गंध मिली थी, मैं तो मदहोश ही हो गया था जवानी की गंध पाकर!
“पापा, अब बताओ भी क्या कह रहे थे आप?” बहूरानी ने मेरी ठोड़ी के नीचे हाथ रखकर मेरा चेहरा ऊपर उठा कर मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा.अब मैं खुद को रोक नहीं पाया और मैंने बिना कोई जवाब दिए उसे अपने ऊपर झुका लिया और हमारे होंठ स्वतः ही जुड़ गये.किसी नवयौवना के अधरों का चुम्बन, उनका रसपान करना, विशेष तौर पर जब वो भी दिल से साथ निभा रही हो, कितनी स्वर्गिक आत्मिक आनन्द की अनुभूति कराता है, इसे शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं है. हमारे जाने पहचाने होंठ यूं ही पता नहीं कितनी देर अठखेलियाँ करते रहे, हमारी जीभ एक दूजे के मुंह में घुस कर लड़ती झगड़ती रही और तन में वासना का ज्वार हिलोरें लेने लगा.
तभी बहूरानी ने खुद को काबू किया और हाँफती हुई सी मुझसे दूर खड़ी हो गई; उसकी आँखों में सम्भोग की चाहत गुलाबी रंगत लिए तैर रही थी.
“क्या हुआ अदिति बेटा?”“कुछ नहीं पापा जी, अब और नहीं, नहीं तो खुद को रोक नही पाऊँगी. ये दही ले कर आने वाले ही होंगे.”“अरे जल्दी जल्दी कर लेंगे न… देख तेरे बिना डेढ़ साल से ऊपर ही हो गया है.”“पापा जी आज दिन और रात का सब्र कर लो फिर कल की पूरी रात, परसों का पूरा दिन और पूरी रात ट्रेन में अपने ही हैं. आप जो चाहो, जैसे चाहो कर लेना मेरे साथ… मैं मना नहीं करूंगी. अभी वक़्त की नजाकत को समझो आप! मैंने भी तो जैसे तैसे खुद को संभाला है आप भी कंट्रोल करो खुद को!”“ठीक है बेटा, तू सही कह रही है, इतना उतावलापन भी ठीक नहीं है.” मैंने कहा.
“पापा जी, अब बताओ, आप कुछ कहने वाले थे मुझे देख कर?” बहूरानी सामने वाली कुर्सी पर बैठती हुई बोली.“हाँ बेटा, मैं यह कह रहा था कि अबकी तो तू एकदम बदली बदली लग रही है, तू पहले की अपेक्षा और भी ज्यादा छरहरी सी निखरी निखरी नयी नयी सी लग रही है.” मैंने कहा.“हाँ पापा जी, मैंने सुबह के टाइम योगा और प्राणायाम करना शुरू किया है और शाम को आधा घंटा जिम में वर्कआउट करती हूँ रोज!” बहूरानी थोड़ा इठला के बोली.“गुड, वैरी गुड, कीप इट अप बेटा!” मैंने कहा.
तभी मेरा बेटा दही ले के आ गया और हमारी बातें यहीं खत्म हो गयीं.इसके बाद बहूरानी के घर में क्या हुआ, वो कुछ ख़ास नहीं है कहने को.
अगले दिन शाम को 8 बजे हमारी ट्रेन थी. राजधानी एक्सप्रेस के प्राइवेट कोच में हम ससुर बहू ने क्या क्या किया ये सब जानने के लिए कल ट्रेन चलने का इंतज़ार कीजिये.
ससुर बहू की कामुकता, शारीरिक आकर्षण, वासना, प्रेम और चुदाई की
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